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सत्य की परीक्षा

दिनेश चमोला

प्रकाशक : आकाश गंगा पब्लिकेशन्स प्रकाशित वर्ष : 2001
पृष्ठ :32
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2961
आईएसबीएन :00000

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सत्य की परीक्षा पर आधारित कहानी।

Satya Ki Pariksha-A Hindi Book by Dinesh Chamola

प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश

सत्य की परीक्षा

रूपाभी व अमिताभ दो भाई थे। दोनों ही बहुत सुन्दर और पढ़ने में बहुत तेज थे। पास-पड़ोस वाले उन्हें लव-कुश कहकर पुकारते। थे भी तो लव-कुश जैसे। उनकी ही तरह उन्हें भी तीर-कमान का बहुत शौक था। जैसे ही स्कूल से पढ़कर आते तो अपना कार्य करने के उपरान्त से खूब तीर-धनुष चलाते। कभी-कभार तो आसमान में उड़ते पक्षियों के समूह को पलक झपकते ही धरती पर चित कर देते।

अब यह शौक धीरे-धीरे उनकी अभिरुचि बन गय़ा था। इसके लिए वे अपने पूरे इलाके में प्रसिद्ध होने लगे। उनके पिता महेन्द्र प्रताप अपने प्रदेश के प्रसिद्ध शिकारी थे, जिन्हें एक दिन जंगल में किसी बब्बर शेर ने मार डाला था। इसलिए उनकी माँ उन्हें शिकारी नहीं बनाना चाहती थी। लेकिन ‘होनहार विरावान के होत चीकने पात’ उन्हें कौन रोके ? सपने में भी तीर कमान का खेल खेलते।

उनके पिता जितने हिंसक थे मां उतनी ही धार्मिक प्रवृत्ति की थीं। वह कहा करती थी-‘‘बेटा, शौक के तीर चलाना बुरी बात नहीं है किन्तु अपने शौक के लिए किसी के प्राण हर लेना अधर्म व पाप है।’’
पिता की मृत्यु के बाद घर में दाल-रोटी का भी कोई साधन न था। मां मेहनत-मजदूरी कर लेती जिससे दो जून की रोटी तो नसीब हो जाती लेकिन बदले में बुढ़िया माँ कई दिनों तक मारे कमर के दर्द के कराहती रहती। उनमें माँ का यह दर्द सहा न जाता।

एक दिन मां ने उन्हें पास बुलाया और कहा-
‘‘बेटा मैं तुम्हें जीवन में बहुत बड़ा देखना चाहती थी। लेकिन क्या करूं, मेरे शरीर ने जवाब दे दिया है। हाथ काँपते हैं, पीठ में दर्द रहता है। अब मैं मजदूरी भी नहीं कर सकती....भगवान ही कुछ रास्ता ढूँढ निकालेंगे....

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