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यह जंगल मेरा है

दिनेश चमोला

प्रकाशक : सुयोग्य प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2000
पृष्ठ :32
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2963
आईएसबीएन :0

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एक गाँव में एक गरीब ब्राह्मण रहता था। नाम था सत्यव्रत। बहुत ईमानदार और सदा सच बोलने वाला। उसकी पत्नी वर्षों पहले स्वर्ग सिधार चुकी थी। उनका इकलौता बेटा था देवव्रत।

Yah Jangal Mera Hain A Hindi Book by DR. Dinesh Chamola

प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश

यह जंगल मेरा है

एक गाँव में एक गरीब ब्राह्मण रहता था। नाम था सत्यव्रत। बहुत ईमानदार और सदा सच बोलने वाला। उसकी पत्नी वर्षों पहले स्वर्ग सिधार चुकी थी। उनका इकलौता बेटा था देवव्रत।

गरीब सत्यव्रत जीवन से परेशान होने पर भी ईमानदारी के मार्ग से विचलित न होता था। रोज भिक्षाटन के लिए पास-पड़ोस के गाँवों में जाता। । शाम को प्राप्त हुई भिक्षा से सन्तुष्ट घर लौट आता। दोनों पिता बेटे रात को रूखा-सूखा खाकर सुख की नींद सोए रहते।

सत्यव्रत जितना बूढ़ा था, देवव्रत उतना ही छोटा। उसे चिन्ता थी कि उसकी मौत के बाद अनाथ देवव्रत की देखभाल कौन करेगा ? एक दिन शाम को बूढ़े ब्राह्मण ने उसे अपने पास बुलाया और प्रेम से कहा—‘‘बेटा ! अब मैं कुछ ही दिनों का मेहमान हूं। तुम जीवन में निराश न होना। बेटा, ईमानदारी और सच्चाई से रहना। निष्ठा से काम करने पर भगवान् भी सहायता करते हैं।’’

‘‘पिताजी, आप कहाँ चले जाओगे ? मैं फिर अकेला किसके साथ रहूंगा ? ’’ भोले देवव्रत ने कहा।

‘‘बेटा, वहां जहाँ से कोई लौटकर वापिस नहीं आता..और तुम जब कुछ बड़े हो जाओगे तो नारद जंगल में मेहनत से लकड़ियाँ काटना। उनको बेचकर रोटी खाना। वहां तुम्हें अवश्य एक दिन कोई मार्गदर्शक मिल जाएगा।’’
बस, भोले देवव्रत के लिए उसके बूढ़े पिता के ये अंतिम शब्द थे। इस प्रकार एक दिन ऐसे ही क्रूर काल ने उसके बूढ़े पिता को भी उससे छीन लिया। अब देवव्रत इस दुनिया में निपट अकेला छूट गया।


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