मनोरंजक कथाएँ >> पिलपिली साहब पिलपिली साहबमृत्युंजय
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हास्य-व्यंग्य से भरपूर शिक्षाप्रद कथा-विशेषतया नव साक्षरों व उत्तर साक्षरता अभियान के लिए
प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश
पिलपिली साहब
आपको पिलपिली साहब से मिलने की बहुत इच्छा होगी। आखिर यह महाशय कौन हैं ?
कहाँ रहते हैं ? हैं भी या नहीं ? इस प्रकार के प्रश्नों से आप घिरे हुए
होंगे। यही तो पिलपिली साहब का परिचय है। वह व्यक्ति भी क्या जिसके संबंध
में अनेक प्रश्न न उठें और जो विवाद के घेरे में न हो !
पिलपिली साहब शुद्ध देशी हैं। उनके नाम पर मत जाइएगा। जिनके नाम नयनसुख होते हैं, वे अंधे होते हैं। जिनका नाम सुंदर लाल होता है, वह न सुंदर होता है और न लाल। वह बदसूरत होता है। उसका रंग बिना जला कोयला होता है।
पिलपिली साहब मेरे पड़ोसी हैं। इसके कारण मैं उनके बारे में सच-सच बता सकता हूँ।
पिलपिली साहब निहायत ही नेक इन्सान हैं। सबका भला चाहते हैं। सबके काम आते हैं।
पिलपिली साहब उसूल के आदमी हैं। नेकी कर कुएँ में डाल- यह उनका तकिया कलाम है। ‘धरती फोड़’ भी कुछ लोग उन्हें कहते हैं। ‘चलता-फिरता रेड़ियो’ भी उनके नामों में से एक नाम है।
पिलपिली साहब ऐसे कल-पुर्जे हैं, जिन्हें हर जगह ‘फिट’ किया जा सकता है।
वह सदा परोपकार के लिए तैयार बैठे मिलते हैं। उनका कहना है- जो दूसरे के काम न आया, उसकी भी क्या जिंदगी है ? यही कारण है कि वह पूरे शहर में पहचाने जाते हैं।
पिलपिली साहब के हुलिया का जरा मुलाहजा फरमाइए। एक आँख अंदर को दबी हुई है। उससे कुछ नहीं दीखता है। फिर भी वह ऐन रात को काजल लगाना नहीं भूलते। डाक्टर चाहे काजल को आँख का दुश्मन क्यों न घोषित करें, लेकिन वह सदियों से चले आ रहे काजल के महत्त्व को सिद्ध कर सबकी बोलती बंद कर देते हैं।
पिलपिली साहब शुद्ध देशी हैं। उनके नाम पर मत जाइएगा। जिनके नाम नयनसुख होते हैं, वे अंधे होते हैं। जिनका नाम सुंदर लाल होता है, वह न सुंदर होता है और न लाल। वह बदसूरत होता है। उसका रंग बिना जला कोयला होता है।
पिलपिली साहब मेरे पड़ोसी हैं। इसके कारण मैं उनके बारे में सच-सच बता सकता हूँ।
पिलपिली साहब निहायत ही नेक इन्सान हैं। सबका भला चाहते हैं। सबके काम आते हैं।
पिलपिली साहब उसूल के आदमी हैं। नेकी कर कुएँ में डाल- यह उनका तकिया कलाम है। ‘धरती फोड़’ भी कुछ लोग उन्हें कहते हैं। ‘चलता-फिरता रेड़ियो’ भी उनके नामों में से एक नाम है।
पिलपिली साहब ऐसे कल-पुर्जे हैं, जिन्हें हर जगह ‘फिट’ किया जा सकता है।
वह सदा परोपकार के लिए तैयार बैठे मिलते हैं। उनका कहना है- जो दूसरे के काम न आया, उसकी भी क्या जिंदगी है ? यही कारण है कि वह पूरे शहर में पहचाने जाते हैं।
पिलपिली साहब के हुलिया का जरा मुलाहजा फरमाइए। एक आँख अंदर को दबी हुई है। उससे कुछ नहीं दीखता है। फिर भी वह ऐन रात को काजल लगाना नहीं भूलते। डाक्टर चाहे काजल को आँख का दुश्मन क्यों न घोषित करें, लेकिन वह सदियों से चले आ रहे काजल के महत्त्व को सिद्ध कर सबकी बोलती बंद कर देते हैं।
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