अमर चित्र कथा हिन्दी >> समझदार बीरबल समझदार बीरबलअनन्त पई
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बीरबल के जीवन पर आधारित पुस्तक.....
Samajhadar Birbal A Hindi Book by Anant Pai
प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश
समझदार बीरबल
बीरबल की विनोद-प्रियता और बुद्धिचातुर्य ने न केवल अकबर, बल्कि मुगल साम्राज्य की अधिकांश जनता का मन मोह लिया था। लोकप्रिय तो वीरबल इतने थे कि अकबर के बाद उन्हीं की गणना होती थी। वे उच्च कोटि के प्रशासक, और तलवार के धनी थी। पर शायद जिस गुण के कारण वे अकबर को परम प्रिय थे, वह गुण था उनका उच्च कोटि का विनोदी होना।
बहुत कम लोगों को पता होगा कि बीरबल एक कुशल कवि भी थे। वे ‘ब्रह्म’ उपनाम से लिखते थे। उनकी कविताओं का संग्रह आज भी भरतपुर-संग्रहालय में सुरक्षित है। वैसे तो वीरबल नाम से प्रसिद्ध थे, परन्तु उनका असली नाम महेशदास था। ऐसा विश्वास किया जाता है कि वे यमुना के तट पर बसे त्रिविक्रमपुर (अब तिकवाँपुर के नाम से प्रसिद्ध) एक निर्धन ब्राह्मण परिवार में पैदा हुए थे।
लेकिन अपनी प्रतिभा के बल पर उन्होंने अकबर के दरबार के नवरत्नों में स्थान प्राप्त किया था। उनकी इस अद्भुत सफलता के कारण अनेक दरबारी उनसे ईर्ष्या करते थे, और उनके विरुद्ध षड्यंत्र रचते रहते थे।
बीरबल सेनानायक के रूप में अफगानिस्तान की लड़ाई में मारे गये। कहा जाता है कि उनकी मृत्यु ईर्ष्यालु विरोधियों के षड्यंत्र का परिणाम थी।
बीरबल की मृत्यु के समाचार से अकबर को कितना गहरा आघात पहुँचा था, इसका प्रमाण है उनके मुख से कविता के रूप में निकली ये पंक्तियाँ :
बहुत कम लोगों को पता होगा कि बीरबल एक कुशल कवि भी थे। वे ‘ब्रह्म’ उपनाम से लिखते थे। उनकी कविताओं का संग्रह आज भी भरतपुर-संग्रहालय में सुरक्षित है। वैसे तो वीरबल नाम से प्रसिद्ध थे, परन्तु उनका असली नाम महेशदास था। ऐसा विश्वास किया जाता है कि वे यमुना के तट पर बसे त्रिविक्रमपुर (अब तिकवाँपुर के नाम से प्रसिद्ध) एक निर्धन ब्राह्मण परिवार में पैदा हुए थे।
लेकिन अपनी प्रतिभा के बल पर उन्होंने अकबर के दरबार के नवरत्नों में स्थान प्राप्त किया था। उनकी इस अद्भुत सफलता के कारण अनेक दरबारी उनसे ईर्ष्या करते थे, और उनके विरुद्ध षड्यंत्र रचते रहते थे।
बीरबल सेनानायक के रूप में अफगानिस्तान की लड़ाई में मारे गये। कहा जाता है कि उनकी मृत्यु ईर्ष्यालु विरोधियों के षड्यंत्र का परिणाम थी।
बीरबल की मृत्यु के समाचार से अकबर को कितना गहरा आघात पहुँचा था, इसका प्रमाण है उनके मुख से कविता के रूप में निकली ये पंक्तियाँ :
दीन जान सब दीन,
एक दुरायो दुसह दु:ख,
सो अब हम को दीन,
कुछ नहीं राख्यो बीरबल।
एक दुरायो दुसह दु:ख,
सो अब हम को दीन,
कुछ नहीं राख्यो बीरबल।
अकबर के लिए बीरबल सच्चे सखा, सच्चे संगी थे। अकबर के नए धर्म दीन-ए-इलाही के मुख्य 17 अनुयायियों में यदि कोई हिन्दू था, तो वे थे अकेले बीरबल।
अनोखी सजा
दिन भर का काम-काज निपटाने के बाद मुगल बादशाह अकबर कुछ समय अपने दरबारियों के साथ हँसी मजाक में बिताते थे। तब वे अक्सर ऐसे निराले प्रश्न करते जिनके उत्तर बड़े ही मनोरंजक होते थे।
एक दिन सुबह वह कपड़े पहनकर तैयार हो रहे थे कि उनका पोता दौड़ता हुआ आया।
बाबा, बाबा, आपकी मूँछों में कुछ काला-काला है ! नीचे झुकिए, मैं अभी निकाल देता हूँ।
ओ....ओ....ओह !
शैतान कहीं के ! यह हरकत क्यों की ?
हा ! हा ! बाबा ! आपको बुद्धू बना दिया मैंने !
अच्छा, अब जा कर खेलो। मुझे काम करना है।
एक दिन सुबह वह कपड़े पहनकर तैयार हो रहे थे कि उनका पोता दौड़ता हुआ आया।
बाबा, बाबा, आपकी मूँछों में कुछ काला-काला है ! नीचे झुकिए, मैं अभी निकाल देता हूँ।
ओ....ओ....ओह !
शैतान कहीं के ! यह हरकत क्यों की ?
हा ! हा ! बाबा ! आपको बुद्धू बना दिया मैंने !
अच्छा, अब जा कर खेलो। मुझे काम करना है।
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