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जल जीवन का आधार

कृष्ण कुमार मिश्र

प्रकाशक : नेशनल बुक ट्रस्ट, इंडिया प्रकाशित वर्ष : 2001
पृष्ठ :106
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 33
आईएसबीएन :8123735839

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पानी धरती पर पायें जाने वाले पदार्थों में सबसे साधारण है, लेकिन गुणों में असाधारण एवं विशिष्ट है। इस पुस्तक में पानी के इन्हीं आश्चर्यजनक गुणों के पीछे छिपे विज्ञान की एक झलक दी गयी है जिनके कारण जल जीवन का आधार बनता है।

Jal Jeevan Ka Aadhar - A hindi Book by - Krishna Kumar Misra जल जीवन का आधार - कृष्ण कुमार मिश्र

प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश

पानी धरती पर पायें जाने वाले पदार्थों में सबसे साधारण है, लेकिन गुणों में असाधारण एवं विशिष्ट है। इसके इन्हीं गुणों के कारण जीवन न केवल इस धरती पर अस्तित्व में आया और विकसित हुआ, बल्कि वह इसलिए आज भी बरकरार है। इस पुस्तक में पानी के इन्हीं आश्चर्यजनक गुणों के पीछे छिपे विज्ञान की एक झलक दी गयी है जिनके कारण जल जीवन का आधार बनता है। आशा है, स्पष्ट शैली में लिखी और आवश्यक चित्रों से सुसज्जित यह पुस्तक प्रकृति के इस सर्वव्यापी आश्चर्य के बारे में और अधिक गहराई से जानने की पाठकों की पिपासा जरूर बढ़ाएगी।

कृष्ण कुमार मिश्र ने काशी हिन्दू विश्वविद्यालय से 1992 में रसायन विज्ञान में पी. एच.डी. की उपाधि प्राप्त की । संप्रति टाटा मौलिक अनुसंधान संस्थान ( टी.आई.एफ.आर.) मुंबई, के होमी भाभा विज्ञान शिक्षण केन्द्र में वह फैलो हैं। डॉ मिश्र एक सक्रिय एवं सक्षम विज्ञान लेखक हैं। उन्होंने विज्ञान को लोकप्रिय बनाने की दिशा में विज्ञान के अनेक विषयों पर, विशेषकर हिंदी भाषा में व्यापक तौर पर लिखा है। अपनी पुस्तक हिंदी में अनूदित कर लेखक कृष्ण कुमार मिश्र ने अपनी उत्कृष्ट अनुवाद क्षमता का भी परिचय दिया है। जल के आश्चर्यजनक गुणों के पीछे छिपे विज्ञान की झलक बहुत ही विशिष्ट प्रकार से दर्शायी गयी है।

आमुख


हमारे सामान्य से सामान्य अनुभवों में भी रहस्य छिपा होता है जिसे केवल विज्ञान ही उद्घाटित कर सकता है। किसी व्यक्ति के मानस में कौंधने वाले साधारण से साधारण प्रश्न में भी गहरा वैज्ञानिक परिज्ञान होता है। मानव सदैव से इन सबसे विस्मित जरूर रहा होगा जैसे कि सूर्य को शक्ति कहां से मिलती है, आसमान नीला क्यों दिखायी देता है, क्या कारण है कि हवा अक्रिय है लेकिन हाइड्रोजन ज्वलनशील होती है, मधुमक्खियों द्वारा सुंदर और कलात्मक छत्ता बनाने के पीछे कौन-सी प्रेरणा है, इत्यादि। ऐसे कुछ जाने-पहचाने प्रश्नों के संतोषजनक उत्तर ढूंढ़ने के पीछे अनेक लोगों की सदियों के श्रमसाध्य प्रयासों की भूमिका रही है।

विश्व में शायद ही कोई वस्तु ऐसी होगी जो पानी से भी ज्यादा आम हो। हम पानी के आश्चर्यजनक गुणों को प्रायः गंभीरता से नहीं लेते। वास्तव में यह एक उत्कृष्ट विलायक है और काफी अधिक तापमान तक द्रव अवस्था में बना रहता है। इसे गरम करने तथा उबालने के लिए काफी उष्मा की जरूरत होती है। सबसे असंगत तथ्य यह है कि इसकी ठोस अवस्था अर्थात बर्फ द्रव (जल) की अपेक्षा हलकी होती है। लेकिन पानी के इन्हीं तथा ऐसे ही अनेक विलक्षण गुणों के कारण ही न केवल पृथ्वी पर जीवन है बल्कि इन्हीं के चलते धरती पर जीवन का उद्भव एवं विकास भी हुआ है।
पानी की इस आश्चर्यजनक भूमिका के पीछे आखिर क्या है ? जल ‘जीवन का आधार’ क्यों है ? प्रस्तुत पुस्तक ऐसे ही स्वाभाविक प्रश्नों में निहित विज्ञान की एक झलक देती है। पता चला है कि पानी के असामान्य गुणों का महत्त्वपूर्ण कारण है उनके अणुओं के बीच लगने वाला अंतर-आणविक बल, जिसे हाइड्रोजन बंध कहते हैं। हालांकि पानी के हाइड्रोजन बंध कमजोर होते हैं, लेकिन पानी के गुणधर्म एवं विशिष्ट व्यवहार के पीछे उनकी अहम भूमिका होती है।
पुस्तक की विषय-वस्तु रुचिकर और पठनीय है। लेखक ने इसे बड़े रोचक ढंग से प्रस्तुत किया है। इस लोकोपयोगी प्रस्तुतीकरण में सभी तकनीकी प्रश्नों के उत्तर दिए जाने संभव नहीं हैं लेकिन आशा है कि यह पुस्तक प्रकृति के इस सर्वव्यापी आश्चर्य के बारे में और गहराई से जानने की पाठकों की पिपासा जरूर बढ़ाएगी।
होमी भाभा विज्ञान शिक्षण केंद्र
टाटा मौलिक अनुसंधान संस्थान
मुंबई

प्रो. अरविन्द कुमार
निदेशक

प्रस्तावना


जल जीवन का आधार है। सचमुच जल के बिना जीवन की कल्पना नहीं की जा सकती। इसीलिए तो कहते हैं ‘जल ही जीवन है’। पानी की महत्ता को हमारे पूर्वज भी अच्छी तरह जानते थे। जीवन के लिए इसकी आवश्यकता और उपयोगिता का हमारी तमाम प्राचीन पुस्तकों एवं धार्मिक कृतियों में व्यपक उल्लेख मिलता है। पानी के महत्त्व का वर्णन वेदों और दूसरी अन्य रचनाओं में भी मिलता है। मानव को हमेशा से ज्ञात रहा है कि हवा (प्राणवायु, जिसे हम आक्सीजन के रूप में जानते हैं) और पानी जीवन की दो सबसे बड़ी आवश्यकताएं हैं। फिर भी पानी के वैज्ञानिक तथ्यों से बहुत कम लोग परिचित हैं। पानी एक तरह से प्रकृति का विलक्षण यौगिक है।

पानी प्रत्येक जीव के लिए उतना ही अहम है चाहे वह कोई सूक्ष्म जीवाणु हो या फिर भारी भरकम हाथी। जैविक प्रक्रियाओं का पूरा रसायन एक तरह से कार्बन के यौगिकों का जलीय रसायन है। इन यौगिकों को जैवकार्बनिक यौगिक कहते हैं। हालांकि देखने में पानी एक साधारण यौगिक प्रतीत होता है लेकिन यह अपने आप में अनेक असाधारण तथ्य छिपाए है। शोधकर्ता इन तथ्यों का अभी भी पता लगा रहे हैं। जीवन का उद्भव और विकास पानी के इन्हीं विशिष्ट गुणों के कारण हुआ है। हम धरती पर इसलिए हैं क्योंकि यहां पानी मौजूद है। आज से लगभग साढ़े तीन अरब वर्ष पहले धरती पर आक्सीजन की मात्रा नगण्य थी और जीवन के उषाकाल में यहां की परिस्थितियां आज की तरह नहीं थीं। बाद में नीलहरित शैवाल जैसे एककोशिकीय जीवों द्वारा वातावरण में आक्सीजन छोड़ी गयी। जीवन की उत्पत्ति के लाखों-करोड़ों वर्ष बाद आक्सीजन की पर्याप्त उपलब्धता धरती पर आक्सीजन पर आधारित बहुकोशिकीय जीव विकसित हुए।
इस पुस्तक में मेरा अभिप्राय पानी के विशिष्ट गुणों तथा जीवन के उद्भाव, विकास और उसे बरकरार रखने में उसकी अहम भूमिका का सरलता से वर्णन करना है। प्रकृति के इस सर्वसाधारण पदार्थ के पीछे बड़ा ही रुचिकर विज्ञान है। आशा है, पुस्तक को आप रुचिकर एवं सूचना प्रद पायेंगे।
जनवरी 2001

कृष्ण कुमार मिश्र

आभार


मैं प्रो. अरविन्द कुमार के प्रति बहुत आभारी हूं जिन्होंने पुस्तक लेखन के दौरान निरंतर मेरा उत्साहवर्द्धन किया। उन्होंने पुस्तक को आद्योपांत पढ़ा और अनेक महत्वपूर्ण सुझाव दिये तथा पुस्तक का आमुख भी लिखा। होमी भाभा केंद्र के अपने सहकर्मियों विशेष रूप से डॉ. पोरस लकड़ावाला तथा डॉ. (श्रीमती) बी.एस. महाजन के प्रति मैं आभारी हूं जिन्होंने इस पुस्तक के बारे में कई रचनात्मक सुझाव दिये। पानी के बारे में कुछ रोचक जानकारी उपलब्ध कराने के लिए मैं डॉ. देबब्रत गोस्वामी (टी.आई.एफ.आर.) का भी आभारी हूं। पुस्तक के व्यंग्यचित्र एवं उसकी सुंदर साजसज्जा के लिए मैं जयदेब दासगुप्ता के प्रति आभारी हूं। अंत में मैं श्रीमती मंजु गुप्ता (नेशनल बुक ट्रस्ट, इंडिया) के प्रति आभार व्यक्त करना चाहूंगा जिन्होंने पुस्तक लेखन के दौरान हर संभव संपादकीय सहयोग दिया।

कृष्ण कुमार मिश्र

हिमगिरि के उत्तुंग शिखर पर,
बैठ शिला की शीतल छांह।
एक पुरुष भीगे नयनों से,
देख रहा था प्रलय प्रवाह।।
नीचे जल था ऊपर हिम था
एक तरल था, एक सघन।
एक तत्त्व की ही प्रधानता,
कहो उसे जड़ या चेतन।

(जयशंकर प्रसाद की कृति ‘कामायनी’ के उद्धृत)

1
परिचय


जीवन (मानव जीवन सहित) मामूली घटकों एवं साधारण बलों पर आधारित व्यापक संगठन का परिणाम है।

-जी.ई. पैलाडे

जैसा कि हम जानते हैं, धरती पर मौजूद सभी पदार्थों में पानी सबसे साधारण, सबसे महान् और सबसे आश्चर्यजनक है, फिर भी अधिकतर लोग इसके बारे में बहुत कम जानते हैं।

-थामस किंग

जल जीवन का आधार है।


-अल्बर्ट वॉन जेंट ग्योर्गी

प्रख्यात वैज्ञानिक एवं जाने-माने लोकप्रिय विज्ञान लेखक जे.बी.ए. हाल्डेन (1892-1964) ने भी एक बार हंसी-हंसी में कहा था कि कैंटकबरी के आर्चबिशप भी 65 प्रतिशत पानी हैं। वैसे सरसरी तौर पर उनकी यह बात हलकी-फुलकी लग सकती है, लेकिन यदि उनकी बात पर गौर करें तो पायेंगे कि उन्होंने एक बड़ी बात कही थी जो एक वैज्ञानिक सत्य है। हाल्डेन के कहने का तात्पर्य यह था कि हर जीव चाहे वह छोटा हो या बड़ा, पानी तथा पानी जैसे ही दूसरे साधारण रसायनों से बना है जो सजीव भी हो सकते हैं और नहीं भी। सजीवों के सघंटन का दो-तिहाई से तीन-चौथाई भाग पानी ही होता है। प्रश्न उठता है कि यदि सजीवों की तरह तमाम दूसरी वस्तुएं भी पानी तथा अन्य रसायनों से बनी होती हैं तो फिर कुछ चीजें सजीव, तो कुछ निर्जीव क्यों होती हैं ? आर्चबिशप 65 प्रतिशत पानी होकर सजीव हैं जबकि एक गिलास पानी जो सौ प्रतिशत पानी होता है सजीव न होकर निर्जीव होता है। संघटन के स्तर पर सजीवों और निर्जीवों में ऐसी क्या भिन्नता है जिनके आधार पर कुछ चीजें सजीव होती हैं तो कुछ निर्जीव ? कोई वस्तु पदार्थ से ही बनी होती है और पदार्थ की सबसे छोटी रचनात्मक इकाई परमाणु है। फिर सजीव और निर्जीव का भेद किस आधार पर किया जाता है ? दरअसल ये परमाणु कुछ विशिष्ट तरीकों से व्यवस्थित होकर ऐसा व्यवहार करते हैं कि उस वस्तु को सजीव कहा जाता है। जबकि उन्हीं परमाणुओं से बनी दूसरी वस्तुओं को सजीव नहीं माना जाता तो फिर सजीवों और निर्जीवों में भेद का आधार क्या है ? कब कोई वस्तु सजीव होगी और कब निर्जीव ?

जीवन क्या है ? उसे अभी सही तौर पर परिभाषित नहीं किया जा सका है। वास्तव में जीवन एक अबूझ पहेली है। जीवन के बारे में वैज्ञानिक भी अंतिम तौर पर कुछ कह पाने में सक्षम नहीं हैं। हाँ, जीवन के लक्ष्ण और गुण जरूर चिह्नित किये जा सके हैं। और जब ये लक्षण और गुण किसी वस्तु में मौजूद होते हैं तो हम कहते हैं कि वह वस्तु सजीव है। इनकी अनुपस्थिति में वह चीज निर्जीव कहलाती है। इसलिए वैज्ञानिक प्रायः जीवन की बात न करके सजीव और निर्जीव को परिभाषित करते हैं और उसी परिप्रेक्ष्य में उनका उल्लेख भी करते हैं। सर्वाधिक मान्य परिभाषा के अनुसार-‘‘सजीव वस्तु भौतिक और रासायनिक तौर पर परिभाषित एक संरचना है जो अत्यधिक व्यवस्थित, स्वनिर्देशित और जटिल होती है तथा वह अपनी वृद्धि और विकास के लिए आसपास के वातावरण में मौजूद पदार्थ और ऊर्जा का उपयोग करने में सक्षम होती है।’’ एक गिलास पानी सजीव नहीं है क्योंकि वह अपने आसपास के पदार्थ और ऊर्जा का उपयोग नहीं कर सकता जबकि आर्चबिशप सजीव हैं क्योंकि वे अपने चारों ओर मौजूद चीजों का उपयोग करने में समर्थ हैं। किसी सजीव की सबसे छोटी संरचनात्मक इकाई कोशिका होती है जिसे सही-सही अर्थों में सजीव कहा जाना चाहिए। अणुओं-परमाणुओं के मध्य अन्योन्यक्रिया ही सजीव के लक्षण दर्शाती है। अन्योन्यक्रिया के संपादन के लिए एक माध्यम की जरूरत होती है। यह माध्यम पानी होता है। नोबेल पुरस्तकार विजेता जीववैज्ञानिक अल्बर्ट वॉन जेंट ग्योर्ग्गी ने पानी को ‘जीवन का माध्यम’ कहा क्योंकि जीवन पानी में पैदा होता है और उसी में विकसित होता है।

हाल्डेन ने 1929 में बताया कि हमारे शरीर में लगभग जितनी कोशिकायें होती हैं उतनी ही एक कोशिका में मौजूद परमाणुओं की संख्या होती है। मानव शरीर स्वयं में निर्जीव होते हैं। ये निर्जीव परमाणु ही मिलकर जीव का निर्माण करते हैं। अतः हाल्डेन ने बताया कि सजीव और निर्जीव के बीच की विभाजक रेखा, कोशिका और परमाणु के बीच जीवन का रिश्ता जन्म के बाद भी पानी से टूटता नहीं है।

काव्यातमक अर्थों में पानी ‘जीवन का पालना’ है। धरती पर जीवन और पानी का बड़ा नजदीकी रिश्ता है। धरती का तीन-चौथाई हिस्सा पानी से ढका है। पानी के कारण ही वाह्य अंतरिक्ष से देखने पर धरती नीले रंग की दिखायी देती है। इसीलिए धरती को नीला ग्रह भी कहते हैं। वैज्ञानिकों के पास इस बात के काफी प्रमाण हैं कि सर्वप्रथम धरती पर जीवन पानी में ही अस्तित्व में आया। अरबों वर्ष बाद आज भी जीवों की अधिकतर प्रजातियां पानी में ही मिलती हैं। सही अर्थों में कहा जाये तो सागर में जीवों की एक अलग दुनिया ही मौजूद है। इसमें कोई दो राय नहीं कि पानी हमारी धरती पर प्रचुर मात्रा में पाया जाता है तथा कमोबेश यह हर जगह उपलब्ध है। पानी पर अध्ययन भी खूब किया गया है, लेकिन आश्चर्य की बात यह है कि इसके बारे में अर्जित हमारी जानकारी अभी भी काफी सीमित है। चूंकि पानी एक सर्वव्यापी और साधारण यौगिक है इसलिए लोगों में यह आम धारणा होती है कि यह मात्र जगह भरने की वस्तु है और इसमें कुछ विशेष बात नहीं है।

पानी का एक रंगहीन, गंधहीन, स्वादहीन और पारदर्शी द्रव है। इसके इन्हीं गुणों से कुछ लोगों को यह लगता रहा है कि पानी अक्रियाशील द्रव है। हालांकि आज हमें ज्ञात है कि पानी अद्भुत गुण-संपन्न यौगिक है और साथ ही यह काफी क्रियाशील भी है। पानी प्रकृति में तीनों रूपों में मिलता है यानी ठोस, द्रव और गैस। कोई दूसरा यौगिक इस तरह से तीनों स्थितियों में नहीं मिलता। ठोस रूप को बर्फ कहते हैं जो शून्य डिग्री सेल्सियस ताप पर या उससे नीचे के ताप पर पाया जाता है। शून्य से 100 डिग्री सेल्सियस तापमान तक पानी द्रव अवस्था में पाया जाता है। सामान्य वायुमंडलीय दाब पर यह 100 डिग्री सेल्सियस पर उबलने लगता है। यानी भाप या वाष्प में बदल जाता है जिसे हम गैसीय अवस्था कहते हैं। जैसा कि हम जानते हैं कि किसी पदार्थ के गुणधर्म उसकी संरचना पर निर्भर करते हैं। पानी के गुणों की कुंजी उसकी आणविक संरचना में ही निहित है। पानी के विस्मयकारी गुणों से शायद आप यह सोचें कि इसकी संरचना क्लिष्ट होगी। लेकिन वास्तव में ऐसा नहीं है। पानी केवल दो तत्वों से मिलकर बना है-हाइड्रोजन और आक्सीजन। पानी के एक अणु में दो परमाणु हाइड्रोजन के होते हैं और एक परमाणु आक्सीजन का होता है। इस तरह पानी का एक अणु कुल मिलाकर मात्र तीन परमाणुओं से बना होता है। इतना साधारण अणु और उसके गुणों में इतना वैविध्य किसी को भी अचरज में डाल सकता है। पानी के दो अणुओं के बीच एक खास तरह का आकर्षण बल काम करता है जिसे हाइड्रोजन बंध कहते हैं। पानी के विचित्र गुणों का सारा श्रेय इन्हीं हाइड्रोजन बंधों को जाता है। इसके बारे में हम आगे चर्चा करेंगे।

हमारे दैनिक जीवन में पानी की अहम भूमिका होती है। पानी हमारे भोजन का मुख्य घटक है। हमारा भोजन पानी में ही पकाया जाता है। एक वयस्क आदमी को पीने के लिए प्रतिदिन औसतन 8 गिलास की आवश्यकता होती है। गरमी में पानी की अधिक आवश्यकता होती है। ऐसा इसलिए होता है कि हम कई तरीकों से हमेशा अपने शरीर से पानी त्यागते हैं। नित्यकर्म में शौच और पेशाब द्वारा पानी बाहर निकलता है। हम अपनी त्वचा से निरंतर पानी वातावरण में छोड़ते हैं। हालांकि हमें इस बात का आभास नहीं होता। मेहनत के समय हम पसीने के रूप में पानी त्यागते हैं। वैसे हमारा शरीर औसतन करीब 250 मिलीमीटर प्रति घंटे की दर से पानी त्यागता है। लेकिन कुछ खास स्थितियों में यह दर 3 लीटर तक भी पहुंच जाती है। शरीर की साफ-सफाई के लिए हम पानी से नहाते हैं। कपड़े धोने के लिए पानी का इस्तेमाल होता है। एक शहरी आदमी औसतन प्रतिदिन 100 से लेकर 500 लीटर पानी विभिन्न कामों में खर्च करता है। हमारे दैनिक जीवन में पानी की महत्ता किसी भी दूसरी चीज से अधिक है। इन सारी बातों के मूल में पानी की भूमिका इसलिए है क्योंकि पानी में इन चीजों के लिए जरूरी गुण मौजूद हैं। आगे विस्तार से हम इन गुणों की चर्चा करेंगे।



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