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शटल

नरेन्द्र कोहली

प्रकाशक : क्रिएटिव बुक कम्पनी प्रकाशित वर्ष : 2000
पृष्ठ :102
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 3345
आईएसबीएन :81-86798-12-9

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नरेन्द्र कोहली के द्वारा लिखी गईं कुछ अच्छी कहानियों का संग्रह

Shatal

प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश

1966-67 के दो वर्ष मेरे जीवन में घटनाओं की दृष्टि से अधिक हलचल भरे थे। विवाद, पहली संतान का जन्म और चार महीने के पश्चात उसकी मृत्यु। ‘परिणति’, ‘दूसरी आया’ और ‘किस्से कहानियों की पृष्ठभूमि में ये ही घटनाएँ हैं। रोमानियत को छोड़ जीवन यथार्थ के ढर्रे पर आ रहा था। परिवारिक संबंधों की अनेक जटिलताएँ अपने केंचुल खोल रही थीं।

अपने आसपास की घटनाएँ, कहानियों के रुप में ही ढलती थीं। व्यंग्य पूरी तरह से मुझे पर हावी नहीं हुआ था। धीरे-धीरे अपनी आंखे अवश्य खोल रहा था। ‘सार्थकता’ उसके अंकुर फूटते दिखाई पड़ते हैं।
उपन्यास-लेखन की ओर बढ़ने की छटपटाहट भी चल रही थी। ‘दि कॉलेज’ लिख चुका था।

सार्थकता


मेरी पत्नी ने बड़े जतन से अपने बाल धोए, झाड़े, पोंछे और फिर यहाँ बालकोनी में, जहाँ मैं बैठा हूँ तार पर सूखने के लिए उन्हें टाँग गई है।
पिछले साल जब हम दोनों अपने हनीमून की दसवीं एनवर्सिरी मनाने के लिए कश्मीर गए थे, तो लौटते हुए उसने ये बाल, दिल्ली से खरीदे थे, दिल्ली के बाजारों में। पर उसकी पसंद के बाल नहीं मिल रहे थे। बाज़ारों में इस प्रकार घूमने का आदी नहीं हूँ। आदी होऊँ भी तो कम-से-कम इस प्रकार की हेयर-हंटिंग मैं बरदाश्त नहीं कर सकता। पर कोई अपनी पत्नी की इच्छा का विरोध कैसे कर सकता है, जब कि वह हनीमून से लौट रहा हो। हनीमून, चाहे दसवाँ ही क्यों न हो। शायद इसीलिए मेरी पत्नी अपनी एनुअल शॉपिंग, हनीमून से लौटते हुए रास्ते में ही कर आती है।

हम इन बालों के लिए काफी भटके थे। जो बाल मेरी पत्नी अपने मायके से अपने सिर के साथ लायी थी, वे बहुत छोटे थे। अतः पूरक बाल, काफी लंबे चाहिए थे, जो मिल नहीं रहे थे। फिर उसके बाल जड़ों की ओर घने काले थे (अब भी हैं) और पूँछ तक पहुँच कर भूरे हो गए थे, शायद बहुत घिस जाने के कारण। उसके मल्टी-शेड बालों के कारण काफी कठिनाई हुई थी मुझे। जैसे-तैसे हमने ये बाल खरीद लिए थे, जो लंबे तो काफी थे, पर न तो एकदम काले थे, न एकदम भूरे। इसीलिए उसे इन बालों से बहुत प्रेम था। प्यार मुझे भी कम नहीं था, क्योंकि मुझे भी बहुत भटकना पड़ा था उसके लिए।
और अब वह उन्हें यहाँ टाँग गई थी। यह बात खतरे से खाली नहीं थी।

हमारा यह फ्लैट इस बिल्डिंग की छठी मंजिल पर है। बस छह ही मंजिलें हैं, इस बिल्डिंग में। अंग्रेजी के अक्षर ‘एल’ के आकार की इस बिल्डिंग में अठारह फ्लैट हैं। हर मंजिल पर तीन। दो साथ-साथ और तीसरा आमने-सामने।
इस ऊँचाई पर जहाँ हम हैं, बहुत हवा चलती है। और जब चलती है तो वहशियों की तरह चलती है। खिड़कियाँ बंद कर ली जाएँ तो सारी-सारी रात खिड़की  के शीशों पर सिर पटकती रहती है। आती है और बार-बार समुद्र की लहरों के समान, गुर्राती-चिघाड़ती हुई लौट जाती है। जब कभी कोई खिड़की पूरी बंद न हो और कोई कोना-खूँजा खुला रह जाए तो किसी बहुत भारी ट्रक के चलने की–सी आवाज़ करती हुई भीतर घुस जाती है।
पर मेरी पत्नी ये बाल यहाँ क्यों डाल गई है। अभी हवा चलेगी तो उड़ जाएँगे। और न जाने किसके घर जा गिरेंगे। या शायद किसी के भी घर न गिरें, नीचे जा पड़ें। फिर चौकीदार उन्हें लिए-लिए फ्लैट में पूछता फिरेगा, ‘‘मेम साहब ! ये बाल आपके हैं ?’
अभी उस दिन मेरी पत्नी ने मुझे बताया था, कि किसी की ब्रेसियर्स उड़कर नीचे जा पड़ी थी और चौकीदार अपनी ईमानदारी के लिए उसे लिए हर द्वार फिरा था, ‘‘मेम साहब ! यह बनियान आपकी है ?’’

हर औरत एक बार ब्रेसियर्स को देखकर संकुचित होती और फिर झूठे क्रोध से चौकीदार को घूरती और तब जोर का दरवाज़ा उसके मुँह पर बंद कर देती—फटाक !  बदतमीज़ चौकीदार ! अफसरों की पत्नियों से कोई ऐसे सवाल करता है !

थोड़ी ही देर में सबके दरवाज़े बंद थे और सारी औरतें बालकोनियों पर टँगी हुई देख रही थीं कि कि कौन उस ब्रेसियर्स को स्वीकार करता है।
जब चौकीदार नीचे की मिसिज़ सिंह के पास पहुंचा तो उसने झपटकर उसके हाथ से ब्रेसियर्स छीन ली और बिना कुछ कहे दरवाज़ा बंद कर दिया। चौकीदार ने दरवाज़े पर अपने पीले दांत दिखाकर चिढ़ाया और छड़ी हिलाता हुआ लौट गया।

मेरी पत्नी फिर बालकोनी पर आती है, यह देखने कि बाल सूखे कि नहीं।

जी में आता है कि उससे कहूँ कि बाल यहाँ न टाँगे, हवा चली तो उड़ जाएँगे। पर मैं कहता नहीं हूँ। वह बाल देखकर जल्दी से अपने गाउन को सँभालती हुई ड्रेसिंगटेबिल की ओर लौट जाती है। वह शायद नहाकर आयी है, इसीलिए गाउन पहन रखा है उसने। वह केवल बेल्ट के सहारे बँधा हुआ गाउन पहनकर बालकोनी में आना और भी खतरनाक है। हवा चल पड़े तो गाउन अपनी जगह टिककर नहीं रहता। और फिर सामने के छहों फ्लैटों के बेड रूमों से देखा जा सकता है कि गाउन के नीचे किसी ने क्या पहन रखा है, कुछ है भी कि नहीं।

पर हवा नहीं चलती और मेरी पत्नी भीतर लौट जाती है। मेरा ध्यान फिर ब्रेसियरेस की ओर लौट जाता है।
मिसेज़ पांडेय की ब्रेसियर्स के भी बहुत सारे किस्से हवा के साथ इन फ्लैटों में उड़ते-फिरते हैं।

मेरी पत्नी ने बताया था कि जब सवेरे पांडेय साहब ऑफिस जाते हैं और मिसेज़ पांडेय उन्हें लिफ्ट तक छोड़ने आती हैं तो उनके ब्रेसियर्स के दोनों स्ट्रैप पीठ पर ब्लाउज के बहुत नीचे तक झूले रहते हैं और स्तन ब्लाउज़ से नीचे पेट तक लटक आए होते हैं। सब लोग अपने-अपने फ्लैटों से मिसेज़ पांडेय को देखकर एंजॉय करते हैं और मिसेज़ पांडेय नीचे धँसती हुई लिफ्ट की ओर देख कर हाथ हिलाती हैं—टा-टा...

इस विषय में मिसेज पांडेय से कोई नहीं पूछता, पर अपनी ओर से सब ही उस दृश्य के कारणस्वरूप कोई-न-कोई कहानी सुना देते हैं। नीचे वाली मिसेज़ दास का कहना है कि मिसेज़ पांडेय लेट राइज़र हैं। पांडेय जब आफिस जाने लगते हैं तो बेचारी सीधे बिस्तर से उठकर, या बिस्तर समेत ही लिफ्ट तक आ जाती हैं। कपड़े ठीक करने का समय ही नहीं मिलता।
मिसेज़ शर्मा इस बात को नहीं मानतीं। उनका विचार है कि मिसेज़ पांडेय बच्चे को फीड करती-करती पति को सी-ऑफ़ करने के लिए आ जाती हैं। पर कौन जाने ऑफिस जाने से पहले खुद पांडेय साहब फीड लेते हों। बेबी फूड की कमी आखिर व्यस्क लोगों के कारण ही हो गई है इस देश में।

मेरी पत्नी बालकोनी में लौट आती है, बालों को देखने के लिए। पर अब वह गाउन उतारकर साड़ी पहन आयी है। हवा से कोई खतरा नहीं है।
बाल भी शायद सूख गए हैं या शायद गीले ही उतार लिए गए हैं। उसे जूड़ा करना होगा, बाल तो चाहिए ही, सूखे हो या गीले।
जाते-जाते वह सकेंड-फ्लोर की बालकोनी में खड़े बच्चे की ओर इशारा कर जाती है। मैं मुड़कर देखता हूँ। बच्चे ने सिर्फ छोटी-सी एक बुशर्ट पहन रखी है। उसकी माँ ने उसे निकर नहीं पहनाई है। यह मिसेज़ कालरा का चौथा बच्चा है। तीन लड़कियों के बाद पहला लड़का। मिसेज़ कालरा इसे भी निकर नहीं पहनातीं। वह चाहती हैं कि सब लोग देख लें कि तीन लड़कियों के बाद उसने लड़का पैदा किया है।

मेरी पत्नी झपटकर फिर बालकोनी में आ जाती है। उसके दो प्रकार के बाल उसके दोनों हाथों में हैं, जूड़ा अभी बना नहीं है।
‘‘आप अभी बैठें ही हैं ?’’ वह मुझसे कहती है।
‘‘तो ?’’
‘‘तो क्या ! वर्मा-वर्मी के घर नहीं जाना क्या ?’’
वह मिसेज़ वर्मा को वर्मी, मिसेज़ शर्मा को शर्मी तथा मिसेज़ दास को दासी कहती है।

मैं सोचने लगता हूँ और मेरी पत्नी झपटकर भीतर चली जाती है। वर्मा-वर्मी के घर जाने से मैं बहुत कतराता हूँ। छुट्टी के दिन तो और अधिक घबराहट होती है।
पिछली बार हम गए थे तो नौकर ने दरवाजा खोला था।
‘‘साहब हैं ?’’ मैंने पूछा।
‘‘नहा रहे हैं।’’ नौकर ने बताया।
‘‘मेम साहब ?’’ मेरी पत्नी ने पूछा।
‘‘नहा रही हैं।’’ नौकर ने फिर बताया।
हम दोनों- ने एक-दूसरे की ओर देखा। हम जानते थे कि इन फ्लैटों में बाथरूम एक ही है। नौकर ने हमें देखा—‘‘जी, वे इकट्ठे नहाते हैं।’’ उसने दाँत दिखाए।
वर्मा के घर जाने का कोई मतलब नहीं है।

मेरी पत्नी फिर बाहर आ जाती है। वह जूड़ा कर आयी है। और शायद मुझे दिखाने आयी है। जब कभी भी बाहर जाना होता है, वह जूड़ा करके एक बार मेरे सामने से गुज़र जाती है जैसे कोई मॉडल अपने-आपको प्रदर्शित करती है, ताकि यदि मुझे कुछ कहना हो तो कह दूँ। यह न हो कि लिफ्ट में जाते समय उसका जूडा देखूँ और अपने कठमुल्लापन के कारण उसे फिर से लौटा लाऊँ, ताकि वह नए सिरे से मेरी पसंद का जूड़ा बनाए।

पर मैं उसे जूड़े के विषय में कुछ नहीं कहता हूँ। मैं सामने थर्ड-फ्लोर के बेडरूम में बैठी एक लड़की के प्रतिबिंब को उनकी खिड़की के शीशे में देख रहा हूँ।
‘‘यह कौन है ?’’ मैं अपनी पत्नी से पूछता हूँ।
‘‘कौन ?’’ वह घूर कर देखती है, ‘‘ओह। वह मिसेज़ घोष की देवरानी है। नर्स है।’’
‘‘तुम्हें कैसे मालूम वह नर्स है ?’’ मैं खिड़की के शीशे को छूता रहता हूँ।
‘‘लो।’’ मेरी पत्नी को मेरे अज्ञान पर तरस आता है, ‘सब जानते हैं कि वह नर्स है। फस्ट नाइट में ही उसने अपने पति को शरीर के हर अंग का नाम बताया था।’’
‘‘आपको यह सब कैसे मालूम हो गया ?’’ मैं और अधिक जानने के लिए अपनी पत्नी को घूर कर इस प्रकार देखता हूँ, मानो मुझे विश्वास नहीं हो रहा।

उसे मेरी अविश्वास की मुद्रा अच्छी नहीं लगती। वह सबूत पर सबूत देने लगती है, ‘‘उनकी पहली रात थी। भीतर सुहाग-दीप सारी रात जलता रहा। मिसेज़ घोष ने की-होल से सब कुछ देखा और हम सबको स्वयं बताया था।’’
‘‘तुम सब बहुत गंदी हो।’’ मैं उसकी बात का मजा लेते हुए कहता हूँ, ‘‘किसी के बारे में ऐसी बात नहीं करनी चाहिए।’’
‘लो।’’ वह मेरे भोले पन का मज़ाक बनाती है, ‘‘यहां लोगों को एक दूसरे के संबंधों की फ्रिक्वेंसएंसी तक का पता होता है। सब लोगों को सबकी वाइफों के पीरियड की डेट तक मालूम है। तुम हो संत। चलो, उठो।’’

उसके तैयार होने के बाद मैं उसे पहली बार गौर से देखता हूँ। वह पूरे मेक-अप में है। और जब भी वह पूरे मेक-अप में होती है, उसके चेहरे पर से वे सारी रेखाएँ मिट जाती हैं, जो शादी के बाद इन दस वर्षों में बन गई हैं ऐसी हालत में वह मुझे उतनी ही अच्छी लगती है, जितनी शादी के समय लगती थी और तब मेरा मन कहीं भी जाने का नहीं होता।



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