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अमृत-मंथन
अमृत-मंथन
प्रकाशक :
इंडिया बुक हाउस |
प्रकाशित वर्ष : 2006 |
पृष्ठ :29
मुखपृष्ठ :
पेपरबैक
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पुस्तक क्रमांक : 3361
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आईएसबीएन :81-7508-475-8 |
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283 पाठक हैं
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अमृत-मंथन
Amrit Manthan A Hindi Book by Anant Pai - अमृत-मंथन - अनन्त पई
प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश
देवताओं द्वारा अमृत समुद्र से निकालकर उसे पीकर अमर होने की कथा। रोचक है और नाटकीय भी।
पहले दूध के समुद्र, क्षीरसागर को मथा गया। मथानी का काम लिया गया विशाल मन्दराचल पर्वत से; और नाग, वासुकि मथने की रस्सी बना।
भगवान विष्णु ने कछुए का रूप धर कर मंथन के समय मन्दाचल के आधार का स्थान ग्रहण किया।
यह लोकप्रिय कथा कुछ एक विभिन्नताओं के साथ सभी पुराणों व दोनों महाकाव्यों में मिलती है। उदाहरण के लिए, समुद्र में से निकलने वाली वस्तुओं की संख्या भिन्न मानी गयी है रामायण, महाभारत और पद्म पुराण में इनकी गिनती नौ बताई गयी है भागवत में यह संख्या दस है, वायु पुराण में बारह और मत्स्य पुराण में चौदह मानी गयी हैं। इसी प्रकार असुर, राहु की भूमिका के बारे में सब ग्रन्थ एकमत नहीं है।
हमारी कहानी भागवत और महाभारत पर आधारित है।
अमृत मंथन
एक बार महर्षि दुर्वासा पृथ्वी पर घूम रहे थे।
....कि तभी उन्होंने उड़ती हुई अप्सरा के हाथ में दिव्य पुष्पों की माला देखी...।
उन फूलों की सुगन्ध इतनी मादक थी कि हार को पाने की लालसा दुर्वासा के मन में बलवती हो। उठी।
हे सुन्दरी, मैं तुमसे प्रार्थना करता हूँ वह माला मुझे दे दो।
अवश्य लीजिए भगवान इस माला के योग्य आप नहीं होंगे तो कौन होगा !
महर्षि माला लेकर आगे बढ़े।
• इन्हें शिव जी के अंश का अवतार माना जाता है।
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