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अमर चित्र कथा हिन्दी >> स्यमन्तक मणि

स्यमन्तक मणि

अनन्त पई

प्रकाशक : इंडिया बुक हाउस प्रकाशित वर्ष : 2006
पृष्ठ :31
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 3362
आईएसबीएन :81-7508-460-X

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स्यमन्तक मणि पर आधारित पुस्तक....

Syamantak A Hindi Book by Anant Pai

प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश

स्यमन्तक मणि

स्यमन्तक मणि सूर्य देव धारण करते थे। वह मणि बहुत चमत्कारी थी और जिसके पास रहती उस पर अनोखा प्रभाव दिखलाती थी। सज्जन के पास रहती तो उसका शुभ करती और किसी दुष्ट के पास रहती तो उसका अनिष्ट करती। सूर्य ने अपने भक्त, राजकुमार सत्राजित् से प्रसन्न हो कर वह मणि उसे दे दी तब किसी को, स्वयं सत्राजित् को भी गुमान नहीं था कि वह क्या-क्या रंग दिखायेगी।

सत्राजित ने मणि अपने भाई, प्रसेन को दी और प्रसेन को एक सिंह ने मार डाला। रीछों के राजा जाम्बवान् ने उस सिंह को मारा तो मणि उसे मिल गयी। चूंकि कृष्ण ने इस मणि की प्रशंसा की थी, अतः सन्देह यह हुआ कि उन्होंने उसे चुरा लिया है। इस कलंक से मुक्त होने के लिए कृष्ण ने मणि की खोज में जंगलों की ख़ाक छानी। फिर अनेक रोचक घटनाएँ घटीं, जो यहाँ प्रस्तुत हैं। यह कथा भागवत् पुराण पर आधारित है।

 

स्यमन्तक मणि

 

द्वारका का राजकुमार सत्राजित सूर्य देव का उपासक था।
एक दिन जब वह अपने रथ में जंगल से गुजर रहा था—
धूप में बड़ी चकाचौंध है !

अचानक वृक्षों के बीच
आप कौन हैं, महाराज ?
वही जिसकी तुम उपासना करते हो।
मैं धन्य हुआ !

तुम्हारी भक्ति से प्रसन्न होकर मैं यह स्यमन्तक मणि तुम्हें देता हूँ।
सूर्य देव उपहार देकर अन्तर्धान हो गये।
मणि की जगमगाहट ने मेरे मार्ग को रोशन कर दिया।

सत्राजित गले में वह जगमगाती मणि धारण किये हुए द्वारका लौटा।
हमारे राजकुमार को क्या हुआ है ?
इन पर अनोखा प्रकाश जगमगा रहा है।


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