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कार्तिकेय
कार्तिकेय
प्रकाशक :
इंडिया बुक हाउस |
प्रकाशित वर्ष : 2006 |
पृष्ठ :30
मुखपृष्ठ :
पेपरबैक
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पुस्तक क्रमांक : 3384
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आईएसबीएन :81-7508-463-4 |
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213 पाठक हैं
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कार्तिकेय भगवान शंकर और पार्वती के वरिष्ठ पुत्र और गणेश के बड़े भाई के रूप में जाने जाते हैं। अमर चित्र कथा की यह प्रस्तुति अन्य अंको की तरह बड़े ही मनमोहक ढंग से इस कथा को प्रस्तुत करती है।
Narad Ki Kathayein A Hindi Book by Anant Pai
प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश
नारद की कथाएँ
पौराणिक कथाओं के सबसे अधिक लोकप्रिय पात्र है- देवर्षि नारद। शायद ही कोई ऐसी महत्त्वपूर्ण घटना होगी जिसमें नारद की भूमिका न रही है। उनकी एक विशेषता यह बतायी गयी है कि वे कहीं टिक कर नहीं बैठते। आज देवताओं के बीच विचरण कर रहे हैं तो कल मानवों के और परसों असुरों के बीच। और ये सब के सब उनका बड़ा आदर-सम्मान करते हैं। नारदजी विष्णु के अनन्य भक्त हैं।
यद्यपि पौराणिक कथाओं में नारद का उल्लेख सदा सम्मान के साथ किया गया है तथापि जन-साधारण यह कह कर उनकी हँसी उड़ाते हैं कि वे तो इधर से उधर लगाकर झगड़े करवाते फिरते हैं।
वास्तविकता यह है कि वे जो भी करते हैं उससे दुष्टों का पराभव होता है तथा सज्जनता की प्रतिष्ठा बढ़ती है।
मान्यता है कि वीणा का आविष्कार नारद ने किया है। ‘‘नारदस्मृति’’ तथा ‘‘नारद-भक्ति-सूत्र’’ की रचना भी उन्होंने ही की है।
प्रस्तुत रचना की तीन कथाएँ शिव पुराण और कुछ दंत-कथाओं पर आधारित हैं। इनमें बताया गया है कि देवर्षि होते हुए भी नारद प्रलोभनों में फँस गये और उन्हें अहंकार हो आया। किन्तु जब-जब इन दुर्बलताओं के शिकार हुए विष्णु ने उन्हें उबार लिया। नारद धीरे-धीरे मानवीय दुर्बलताओं से ऊपर उठते गये और उन्होंने सम्यक् ज्ञान प्राप्त कर लिया।
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