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झूलानट
झूलानट
प्रकाशक :
राजकमल प्रकाशन |
प्रकाशित वर्ष : 2018 |
पृष्ठ :162
मुखपृष्ठ :
सजिल्द
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पुस्तक क्रमांक : 3391
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आईएसबीएन :9788126703845 |
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झूलानट
Jhoolanat (Maitreyi Pushpa)
गाँव की साधारण सी औरत है शीलो - न बहुत सुंदर और न बहुत सुघड़... लगभग अनपढ़ - न उसने मनोविज्ञान पढ़ा है, न समाजशास्त्र जानती है। राजनीति और स्त्री-विमर्श की भाषा का भी उसे पता नहीं है। पति उसकी छाया से भागता है। मगर तिरस्कार, अपमान और उपेक्षा की यह मार न शीलो को कुएँ-बावड़ी की ओर धकेलती है और न आग लगाकर छुटकारा पाने की ओर। वशीकरण के सारे तीर-तरकश टूट जाने के बाद उसके पास रह जाता है जीने का निःशब्द संकल्प और श्रम की ताकत - एक अडिग धैर्य और स्त्री होने की जिजीविषा... उसे लगता है कि उसके हाथ की छठी अंगुली ही उसका भाग्य लिख रही है... और उसे बदलना ही होगा।
मैत्रेयी न वक्तव्य देती हैं, न भाषण। वह पात्रों को उठाकर उनके जीवन और परिवेश को पूरी नाटकीयता में ‘देखती’ हैं। संबंधों के बीहड़ों में धीरे-धीरे उतरना उन्हें बेहद पठनीय बनाता है। शीलो की कहानी भी मैत्रेयी ने इदन्नमम, चाक, अल्मा कबूतरी और गोमा हँसती है की सहज विविधता ले लिखी है। न जाने कितनी स्थितियाँ, प्रसंग और घटनाएँ हैं जिनके चक्रव्यूहों में अनायास ही उनकी नायिकाओं के नख-शिख उभरते चलते हैं। मुहावरेदार, जीवंत और खुरदुरी लगने वाली भाषा की ‘गंवई ऊर्जा’ मैत्रेयी का ऐसा हथियार है जो उन्हें अपने समकालीनों में सबसे अलग और विशिष्ट बनाता है... वह उपन्यास की शिष्ट और प्राध्यापकीय मुख्यधारा की इकहरी परिभाषा को बदलने वाली निर्दमनीय कथाकार हैं। अपनी प्रामाणिकता में उनका हर चरित्र आत्मकथा होने का प्रभाव देता है और यही उनकी कथा-संपन्नता है।
‘झूला नट’ की शीलो हिन्दी उपन्यास के कुछ न भूले जा सकने वाले चरित्रों में एक है। बेहद आत्मीय, पारिवारिक सहजता के साथ मैत्रेयी ने इस जटिल कहानी की नायिका शीलो और उसकी ‘स्त्री-शक्ति’ को फोकस किया है...
पता नहीं ‘झूला नट’ शीलो की कहानी है या बालकिशन की! हाँ, अंत तक, प्रकृति और पुरुष की यह ‘लीला’ एक अप्रत्याशित उदात्त अर्थ में जरूर उद्भासित होने लगती है।
निश्चय ही ‘झूला नट’ हिन्दी का एक विशिष्ट लघु-उपन्यास है...
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