लोगों की राय

बाल एवं युवा साहित्य >> स्वतन्त्रता संघर्ष का इतिहास

स्वतन्त्रता संघर्ष का इतिहास

हजारी प्रसाद द्विवेदी

प्रकाशक : किताबघर प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2004
पृष्ठ :52
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 3411
आईएसबीएन :81-7016-006-5

Like this Hindi book 11 पाठकों को प्रिय

421 पाठक हैं

इसमें स्वतंत्रता संघर्ष के इतिहास का वर्णन किया गया है।

Swatantrata Sangharsh Ka Itihas A Hindi Book by Hajari Prasad Dwivedi

प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश

प्राक्कथन

स्व. आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी ने अनेक ग्रन्थों द्वारा हिन्दी साहित्य की अभूतपूर्व सेवा की है। उन्होंने जहां एक तरफ अत्यन्त श्रेष्ठ उपन्यासों की रचना की वहीं दूसरी तरफ शोधपरक ग्रन्थों की। निबन्ध लेखन के क्षेत्र में ललित निबंधों के सृजन द्वारा हिन्दी को अत्यन्त सुन्दर निबन्ध दिए। प्रस्तुत पुस्तक स्व. आचार्य द्विवेदी के चिन्तन को समझने में एक महत्वपूर्ण दिशा प्रदान करती है। सैकड़ों साल की गुलामी से सन् 1947 ईं में भारत स्वतन्त्र हुआ था।

भारत के लिए यह एक अत्यन्त महत्वपूर्ण घटना थी। जागरुक एवं संवेदनशील साहित्यकार इस घटना की उपेक्षा नहीं कर सकता था। स्व. आचार्य जी ने स्वतन्त्रता-संघर्ष के ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य को इस पुस्तक में प्रस्तुत किया है। इसमें नामों की भरमार नहीं है यह उनकी अपनी दृष्टि थी। इस पुस्तक का रचनाकाल सन् 1948 के करीब है। इसमें हमने किसी प्रकार परिवर्तन नहीं किया है। आज़ादी की चालीसवीं वर्षगांठ पर नयी पीढ़ी को हमारी यह एक विनम्र भेंट है।

भारत के स्वतन्त्रता संघर्ष का इतिहास काफी लंबा और पेचीदा है। अठारहवीं शताब्दी के प्रथम चरण में हिन्दुस्तान इस अर्थ में स्वतन्त्र था कि उसके किसी भाग पर किसी बाहरी शक्ति का आधिपत्य1 नहीं था। भारत ही सभी अधिपतियों का जन्मस्थान था भारत के बाहर किसी स्थान पर न उनका आधिपत्य था

और न उसकी मिलकियत2 पर उनका कोई दावा था। पर उस समय देश की राजनीतिक शक्ति काफी बिखरी हुई थी। देश विभिन्न राज्यों में बंट गया था और उनमें काफी प्रतिद्वन्द्विता और टकराव था। इस टकराव ने किसी हद तक साम्प्रदायिकता का रूप धारण जरूर किया, उस समय जब मराठाओं ने हिन्दू पादशाही का नारा लगाया और शाह वलीउल्लाह साहब ने मराठा काफिरों को दिल्ली से मार भगाने के लिए अफगानिस्तान के अहमदशाह अब्दाली को आमन्त्रित किया। पर ये संघर्ष वास्तव में साम्प्रदायिकता की बजाय साम्राज्यिक थे, आधिपत्य की भावना से प्रेरित थे।

प्रथम पृष्ठ

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book

A PHP Error was encountered

Severity: Notice

Message: Undefined index: mxx

Filename: partials/footer.php

Line Number: 7

hellothai