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365 कहानियाँ

आबिद सुरती

प्रकाशक : प्रभात प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2004
पृष्ठ :283
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 343
आईएसबीएन :81-7315-349-3

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बच्चों के लिए विभिन्न संस्कृतियों से ली गयी ज्ञानवर्धक कहानियों का संकलन...

365 Kahaniyen - A Hindi Book by Aabid Surti - 365 कहानियाँ - आबिद सुरती

प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश

लेखक की बात

महापुरुषों की जीवनी में अकसर पाया जाता है कि बचपन में उन्हें ढेर सारी कहानियाँ सुनने-पढ़ने का अवसर प्राप्त हुआ था। चाहे वे कहानियाँ नाना-नानी से सुनी हों या खरीद कर पढ़ी हों, एक बात निश्चित है—उन महापुरुषों को महान् बनाने में कहानियों का योगदान कम नहीं था। वैसी ही रोचक ज्ञान बढ़ानेवाली इस संकलन की कहानियाँ हैं। हर रोज तुम्हें सिर्फ एक कहानी पढ़नी है। पढ़कर थोड़ा चिंतन-मनन करना है। मसलन....

लगभग कहानियों से सच, एकता, भाईचारे की महक आती है। क्या इसका मकसद विश्व में प्रेमधर्म का प्रचार करना है ? क्या इसी कारण ये कहानियाँ देश-विदेश में यात्रियों की तरह घूमती रहती हैं ?
दूसरा, भारत की कहानी भेष बदल कर जर्मन कहानी कैसे बन जाती है। जर्मन कहानी नये रूप रंग के साथ चीन में कैसे घुस जाती है ? चीनी कहानी का ‘अलादीन’ सारे संसार का प्रिय पात्र कैसे बन जाता है ? नए-नए सवाल उठे तो माता-पिता या मास्टर जी से जबाव भी तलब करने हैं। यही रहस्य है महान् बनने का, यही मार्ग है जीवन को सफल बनाने का, देश को आगे बढ़ाने का।

1 बिजली और तूफान की कहानी

बहुत समय पहले बिजली और तूफान धरती पर मनुष्यों के बीच रहा करते थे। राजा ने उन्हें मनुष्यों की बस्ती से दूर रखा था।
बिजली तूफान की बेटी थी। जब कभी किसी बात पर बिजली नाराज हो उठती, वह तड़प कर किसी के घर पर गिरती और उसे जला देती या किसी पेड़ को राख कर देती, या खेत की फसल नष्ट कर देती। मनुष्य को भी वह अपनी आग से जला देती थी।
जब-जब बिजली ऐसा करती, उसके पिता तूफान गरज-गरजकर उसे रोकने की चेष्टा करते। किंतु बिजली बड़ी ढीठ थी। वह पिता का कहना बिलकुल नहीं मानती थी। यहाँ तक कि तूफान का लगातार गरजना मनुष्यों के लिए सिरदर्द हो उठा। उसने जाकर राजा से इसकी शिकायत की।

राजा को उसकी शिकायत वाजिब लगी। उन्होंने तूफान और उसकी बेटी बिजली को तुरंत शहर छोड़ देने की आज्ञा दी और बहुत दूर जंगलों में जाकर रहने को कहा।
किंतु इससे भी समस्या का समाधान नहीं हुआ। बिजली जब नाराज होती, जंगल के पेड़ जला डालती। कभी-कभी पास के खेतों का भी नुकसान कर डालती। मनुष्य को यह भी सहन न हुआ। उसने फिर राजा से शिकायत की।
राजा बेहद नाराज हो उठा। उसने तूफान और बिजली को धरती से निकाल दिया और उन्हें आकाश में रहने की आज्ञा दी, जहाँ से वे मनुष्य का उतना नुकसान नहीं कर सकते थे जितना की धरती पर रहकर करते थे।
क्रोध का फल बुरा होता है।

2 सूअर और लड़के

दो शहरी लड़के रास्ता भूल गए। अँधेरा बढ़ रहा था, अतः मजबूरन उन्हें एक सराय में रुकना पड़ा।
आधी रात को एकाएक उनकी नींद उचट गई। उन्होंने पास के कमरे से आती हुई एक आवाज को सुना—‘कल सुबह एक हंडे में पानी खौला देना। मैं उन दोनों बच्चों का वध करना चाहता हूँ।’’
दोनों लड़कों का खून जम गया।
‘हे भगवान !’ वे बुदबुदाए, ‘इस सराय का मालिक तो हत्यारा है !’’ तुरंत उन्होंने वहाँ से भाग जाने का निश्चय किया। कमरे की खिड़की से वे बाहर कूद गए। पर बार पहुँचकर उन्होंने पाया कि बाहर दरवाजे पर ताला लगा हुआ है। अंत में उन्होंने सुअरों के बाड़े में छिपने का निर्णय किया।

रात भर उन्होंने जागते हुए बिताई। सुबह सराय का मालिक सुअरों के बाड़े में आया। बड़ा सा छुरा तेज किया और पुकारा—‘‘आ जाओ मेरे प्यारे बच्चों, तुम्हारा आखिरी वक्त आ पहुँचा है !’’
दोनों लड़के भय से काँपते हुए सराय के मालिक के पैरों पर गिर पड़े और गिड़गिड़ाने लगे।
सराय का मालिक यह देखकर चकित रह गया। फिर पूछा, ‘‘बात क्या है ?’’
‘‘हमने रात में आपको किसी से कहते सुना था कि सुबह आप हमें मौत के घाट उतारने वाले हैं।’’ लड़कों ने जवाब दिया।
सराय का मालिक यह सुनकर हँसा, ‘‘बेवकूफ लड़कों ! मैं तुम लोगों के बारे में नहीं कह रहा था। मैंने तो दो नन्हें सूअरों के बारे में कहा था, जिन्हें मैं इसी तरह पुकारता हूँ।’’
पूरी बात जाने बिना दूसरों की बातों पर कभी कान नहीं देने चाहिए।

3 घंटी की कीमत

रामदास एक ग्वाले का बेटा था। रोज सुबह वह अपनी गायों को चराने जंगल में ले जाता। हर गाय के गले में एक-एक घंटी बँधी थी। जो गाय सबसे अधिक सुंदर थी उसके गले में घंटी भी अधिक कीमती बँधी थी।
एक दिन एक अजनबी जंगल से गुजर रहा था। वह उस गाय को देखकर रामदास के पास आया, ‘‘यह घंटी बड़ी प्यारी है ! क्या कीमत है इसकी ?’’
‘‘बीस रुपये।’’ रामदास ने उत्तर दिया।
‘‘बस, सिर्फ बीस रुपये ! मैं तुम्हें इस घंटी के चालीस रुपये दे सकता हूँ।’’

सुनकर रामदास प्रसन्न हो उठा। झट से उसने घंटी उतारकर उस अजनबी के हाथ में थमा दी और पैसे अपनी जेब में रख लिये। अब गाय के गले में कोई घंटी नहीं थी। घंटी की टुनक से उसे अन्दाजा हो जाया करता था। अतः अब इसका अन्दाजा लगाना रामदास के लिए मुश्किल हो गया कि गाय इस वक्त कहाँ चर रही है। जब चरते-चरते गाय दूर निकल आई तो अजनबी को मौका मिल गया। वह गाय को अपने साथ लेकर चल पड़ा।
तभी रामदास ने उसे देखा। वह रोता हुआ घर पहुँचा और सारी घटना अपने पिता को सुनाई। उसने कहा, ‘‘मुझे तनिक भी अनुमान नहीं था कि वह अजनबी मुझे घंटी के इतने अच्छे पैसे देकर ठग ले जाएगा।’’
पिता ने, ‘‘ठगी का सुख बड़ा खतरनाक होता है। पहले वह हमें प्रसन्नता देता है, फिर दुःख। अतः हमें पहले ही से उसका सुख नहीं उठाना चाहिए।’’
लालच से कभी सुख नहीं मिलता।

4 सच्ची सेवा

एक थी बिल्ली। मुरगी के बच्चे उसे बहुत ही भाते थे। रोजाना दो-चार बच्चों को वह कहीं-न-कहीं से खोज-खाजकर खा जाती थी। एक दिन उसे भनक मिली कि एक मुरगी बीमार है। वह हमदर्दी जताने मुरगी के दरबे के पास आई और कहा, ‘‘कहो बहन, कैसी हो ? क्या मैं तुम्हारी ऐसी हालत में तुम्हारे कुछ काम आ सकती हूँ ? तुम्हारी सेवा करना मेरा फर्ज भी तो है।’’
बीमार मुरगी क्षण भर सोचती रही। फिर बोली, ‘‘अगर तुम सचमुच मेरी सेवा करना चाहती हो तो मेरे परिवार से दूर रहो---और अपनी जमातवालों से भी ऐसा ही करने को कहो।’’
दुश्मन की शुभकामनाओं पर भरोसा नहीं करना चाहिए।

5 ज्ञान की प्यास

उन दिनों महादेव गोविंद रानडे हाई कोर्ट के जज थे। उन्हें भाषाएँ सीखने का बड़ा शौक था। अपने इस शौक के कारण उन्होंने अनेक भाषाएँ सीख ली थीं; किंतु बँगला भाषा अभी तक नहीं सीख पाए थे। अंत में उन्हें एक उपाय सूझा। उन्होंने एक बंगाली नाई से हजामत बनवानी शुरू कर दी। नाई जितनी देर तक उनकी हजामत बनाता, वे उससे बँगला भाषा सीखते रहते।
रानडे की पत्नी को यह बुरा लगा। उन्होंने अपने पति से कहा, ‘‘आप हाई कोर्ट के जज होकर एक नाई से भाषा सीखते हैं। कोई देखेगा तो क्या इज्जत रह जाएगी ! आपको बँगला सीखनी ही है तो किसी विद्वान से सीखिए।’’
रानडे ने हँसते हुए उत्तर दिया, ‘‘मैं तो ज्ञान का प्यासा हूँ। मुझे जाति-पाँत से क्या लेना-देना ?’’
यह उत्तर सुन पत्नी फिर कुछ न बोलीं।
ज्ञान ऊँच-नीच की किसी पिटारी में बंद नहीं रहता।

6 कोयल

गरमियों की एक सुबह घनिष्ठ मित्र तोताराम और कल्लू एक जंगल में गए। सहसा उन्हें कोयल की कुहुक सुनाई पड़ी। ‘‘यह एक पक्षी की आवाज है जो किसी मंगल की सूचना देती है।’’
अंधविश्वासी तोताराम ने कहा, ‘‘मैंने इसकी आवाज सुबह-सुबह सुनी है। मुझे विश्वास है कि आज का दिन बड़ा भाग्यशाली होगा। अवश्य ही मुझे रुपयों से भरा थैला मिलेगा।’’
‘‘नहीं !’’ कल्लू ने तोताराम की बात का प्रतिवाद किया, जो उससे भी अधिक वहमी था, ‘‘तुम मुझसे अधिक भाग्यशाली नहीं हो। मुझे विश्वास है, यह आवाज मेरे लिए अधिक भाग्यशाली साबित होगी। तुम देखना, जरूर मुझे अच्छी-खासी रकम प्राप्त होगी।’

खूबसूरत मौसम का मजा लेने के बजाय वे दोनों इसी बात पर लड़ने लगे। तू-तू, मैं-मैं के बाद हाथापाई पर उतारू हो गए। कुछ ही समय में वे बुरी तरह जख्मी हो गए। दोनों डॉक्टर के पास पहुँचे। डॉक्टर ने उनसे पूछा कि वे आखिर इस स्थिति में पहुँचे कैसे ? सारी घटना बयान करने के बाद उन दोनों ने डॉक्टर से पूछा, ‘‘आप बताएँ कि कोयल ने किसके भाग्यशाली होने की सूचना दी थी ?’’
डॉक्टर ने हँसते हुए कहा, ‘‘कोयल ने मेरे भाग्यशाली होने की सूचना दी थी। अगर तुम दोनों इसी तरह लड़-झगड़कर हाथ-पैर तोड़ते रहे तो मुझे रुपयों का ढेर तुम्हारे इलाज के एवज में मिलता रहेगा।’’
बेकार के झगड़े से दूसरों को फायदा होता है।

7 गरीब विधवा

विधवा कमला देवी अपनी दो पुत्रियों के साथ बड़ी गरीबी में दिन बिता रही थी। अब तक जो भी जमा-पूँजी उसके पास थी, सब खर्च हो चुकी थी। तिस पर आय का एकमात्र सहारा उसकी गाय भी मर गई। वह बड़ी परेशान थी। आखिर करें क्या ?
‘‘बस, एक ही रास्ता है, अगर भगवान् हमें कहीं से एक गाय दे दे।’’
‘‘विश्वास और हिम्मत से काम करो, ईश्वर अवश्य तुम्हारी मदद करेगा।’’ उनके पड़ोसी ने उनसे कहा।
‘‘पर हम करें क्या ?’’ कमला देवी ने निराशा से भरकर कहा।

‘‘तुम अपनी आमदनी बढ़ाओ। तुम सब बहुत अच्छी कढ़ाई-बुनाई जानती हो। प्रतिदिन तीन-चार घंटा यह काम अतिरिक्त करो, ताकि कुछ ऊपरी आमदनी हो सके। उसे जमा करो। दूसरी बात यह कि अपनी चाय का खर्चा कम कर दो। रोज सुबह दलिया बनाकर उसका पानी पियो, जो स्वास्थ्यवर्धक भी होगा और बचत भरा भी। इस तरह जल्दी ही दूसरी गाय खरीदने के लिए पैसे इकट्ठे हो जाएँगे।’’
कमला देवी और उसकी पुत्रियों ने अपने पड़ोसी के सुझाव के मुताबिक काम करना शुरू कर दिया। साल के अंत में उनके पास इतना पैसा इकट्ठा हो गया कि वे एक अच्छी गाय खरीद सके।
मेहनत, बचत और समझदारी आदमी के लिए दूसरा ईश्वर है।

8 उलटी गंगा

एक बनिया था। भला था। भोला था। नीम पागल था। एक छोटी सी दुकान चलाता था, दाल, मुरमुरे, रेवड़ी जैसी चीजें बेचता था और शाम तक दाल-रोटी का जुगाड़ कर लेता था।
एक रोज दुकान बंद कर देर रात वह अपने घर जा रहा था, तभी रास्ते में उसे कुछ चोर मिले। बनिये ने चोरों से पूछा, ‘‘इस वक्त अँधेरे में आप लोग कहाँ जा रहे हैं ?’’
चोर बोले, ‘‘भैया, हम तो सौदागर हैं। आप हमें क्यों टोक रहे हैं ?’’
बनिये ने कहा, ‘‘लेकिन एक पहर रात बीतने के बाद आप जा कहाँ रहे हैं ?’’

चोर बोले, ‘‘माल खरीदने।’’
बनिये ने पूछा, ‘‘माल नकद खरीदोगे या उधार ?’’
चोर बोले, ‘‘न नकद, न उधार। पैसे तो देने ही नहीं हैं।’’
बनिये ने कहा, ‘‘आपका यह पेशा तो बहुत बढ़िया है। क्या आप मुझे भी अपने साथ ले चलेंगे ?’’
चोर बोले, ‘‘चलिए। आपको फ़ायदा ही होगा।’’
बनिये ने कहा, ‘‘बात तो ठीक है। लेकिन पहले यह तो बताओ कि यह धंधा कैसे किया जाता है ?’’
चोर बोले, ‘‘लिखो—किसी के घर के पिछवाड़े...’’
बनिये ने कहा, ‘‘लिखा।’’
चोर बोले, ‘‘चुपचाप सेंध लगाना...’’
बनिये ने कहा, ‘‘लिखा।’’
चोर बोले, ‘‘फिर दबे पाँव घर में घुसना...’’

बनिये ने कहा, ‘‘लिखा।’’
चोर बोले, ‘‘जो भी लेना हो, सो इकट्ठा करना...’’
बनिये ने कहा, ‘‘लिखा।’’
चोर बोले, ‘‘न तो मकान मालिक से पूछना और न उसे पैसे देना...’’
बनिये ने कहा, ‘‘लिखा।’’
चोर बोले, ‘‘जो भी माल मिले उसे लेकर घर लौट जाना।’’
बनिये ने सारी बातें कागज पर लिख लीं और लिखा हुआ कागज जेब में डाल लिया। बाद में सब चोरी करने निकले। चोर एक घर में चोरी करने घुसे और बनिया दूसरे घर में चोरी करने पहुँचा। वहाँ उसने ठीक वही किया जो कागज में लिखा था। पहले पिछवाड़े सेंध लगाई। दबे पाँव घर में घुसा। दियासलाई जलाकर दीया जलाया। एक बोरा खोजकर उसमें पीतल के छोटे बड़े बरतन बड़ी बेफ़िक्री से भरने लगा। तभी एक बड़ा तसला उसके हाथ से गिरा और सारा घर उसकी आवाज से गूँज उठा। घर के लोग जाग गए।

सबने ‘चोर-चोर’ चिल्लाकर बनिये को घेर लिया और उसे मारने-पीटने लगे। बनिये को ताज्जुब हुआ। मार खाते उसने अपनी जेब में रखा कागज निकाला और उसे एक नजर पढ़ डाला। फिर तो वह जोश में आ गया। जब सब लोग उसकी मरम्मत कर रहे थे, तब बनिया बोला—
‘‘भाइयों, यह तो लिखा-पढ़ी से बिलकुल उलटा हो रहा है। यहाँ तो उलटी गंगा बह रही है।’’
बनिये की बात सुनकर सब सोच में पड़ गए। मारना-पीटना रोककर सबने पूछा, ‘‘यह तुम क्या बक रहे हो ?’’
बनिये ने कहा, ‘‘लीजिए, यह कागज देख लीजिए। इसमें कहीं पिटाई का जिक्र है’’ ? घर के लोग तुरंत समझ गए। उन्होंने बनिये को घर से बाहर धकेल दिया।
सोच-विचारकर किया कार्य कभी कष्टदायक नहीं होता है।

9 मच्छर की कहानी

क्या तुमको पता है कि केवल मादा मच्छर ही काटती हैं ? खून पीती हैं ?
बहुत पहले की बात है। वियतनाम के एक गाँव में टॉम और उसकी पत्नी न्हाम रहते थे। टॉम खेती करता था और पत्नी रेशम के कीड़े पालती थी। टॉम बड़ा मेहनती था, पर न्हाम जिंदगी में तमाम ऐशो-आराम की आकांक्षी थी।
एक दिन न्हाम एकाएक बीमार पड़ गई। टॉम उस वक्त खेतों में काम कर रहा था। जब वह घर लौटा, उसने पाया कि न्हाम अब इस दुनिया में नहीं है। टॉम घुटने टेककर ईश्वर से प्रार्थना करने लगा। तभी उसे आकाशवाणी सुनाई दी कि वह समुद्र के बीच स्थित एक विशाल पहाड़ी पर न्हाम का शव ले जाए।

कई दिनों की यात्रा के बाद टॉम न्हाम के शव के साथ उस पहाड़ी पर पहुँचा और एक खूबसूरत फूलों के बाग में ले जाकर शव को लिटा दिया। उसकी पलकें थकान से झपक ही रही थीं कि सहसा सफेद बालों तथा तारों-सी चमकती आँखोंवाले एक महापुरुष वहाँ प्रकट हुए। उन महापुरुष ने टॉम से कहा कि वह उनका शिष्य बनकर इसी जगह शांति से रहे। पर टॉम ने कहा कि वह अपनी पत्नी न्हाम को बेहद प्यार करता है और उसके बगैर रह नहीं सकता।
महापुरुष टॉम की इच्छा जानकर बहुत प्रसन्न हुए। उन्होंने कहा कि वह अपनी उँगली काटकर खून की तीन बूँदें न्हाम के शव पर चुआ दे। टॉम ने वैसा ही किया। तभी जादू-सा हुआ। खून की बूँदे पड़ते ही न्हाम उठ बैठी। तब महापुरुष ने न्हाम को चेतावनी दी कि अगर वह ईमानदार और मेहनती नहीं बनेगी तो उसे सजा भुगतनी पड़ेगी। यह कहकर वह महापुरुष वहाँ से अचानक गायब हो गए।

टॉम और न्हाम नाव पर बैठकर चल दिए। रास्ते में एक गाँव के किनारे उन्होंने नाव रोकी। टॉम खाने-पीने का कुछ सामान खरीदने चला गया। नाव में बैठी न्हाम टॉम के लौटने की प्रतीक्षा कर रही थी। तभी एक विशाल सुसज्जित नाव उसके पास आई। उस नाव का मालिक एक अमीर था। उसने न्हाम को अपनी नाव पर आकर चाय पीने की दावत दी। चायपान खत्म हुआ तो अमीर ने न्हाम से उसकी खूबसूरती की प्रशंसा की और उससे शादी का प्रस्ताव रखा। यह भी वादा किया कि वह उसे अपने महल की एकमात्र रानी बनाकर रखेगा। न्हाम का तो सपना ही था कि वह धनी महिला बने, उसकी सेवा में ढेरों नौकर चाकर हों। वह चट से उस अमीर का प्रस्ताव मान बैठी।

टॉम जब गाँव से चीजें खरीदकर लौटा तो एक बूढ़े नाविक ने उसे किस्सा सुनाया। टॉम न्हाम की धोखेबाजी से आगबबूला हो उठा। वह फौरन उस अमीर के घर की तरफ रवाना हुआ। कुछ ही दिनों में वह वहाँ जा पहुँचा। उसके महल में पहुँच उसने एक नौकर से प्रार्थना कि कि वह महल के मालिक से मिलना चाहता है। तभी अचानक न्हाम फूल तोड़ने के लिए बगीचे में आई और टॉम को वहाँ देख चकित रह गई। उसने टॉम से कहा कि वह यहाँ बेहद सुखी है और यहाँ से कहीं नहीं जाना चाहती।

टॉम ने कहा कि वह उसे कतई वापस नहीं ले जाना चाहता। वह तो अपने खून की तीन बूँदें वापस लेने आया है। वह न्हाम उसे लौटा दे। बस !

न्हाम इस बात से बेहद खुश हुई, ‘चलो खून की तीन बूँदें देकर ही छुटकारा मिल जाएगा।’ ऐसा कहकर उसने तुरंत अपनी एक उँगली में गुलाब का काँटा चुभोया और टॉम की बाँह पर खून टपकाने लगी। जैसे ही खून की तीसरी बूँद गिरी, न्हाम का शरीर सिकुड़ने लगा और वह मादा मच्छर के रूप में तब्दील हो गई। यही न्हाम की सजा थी। वह मादा मच्छर बनकर टॉम के सिर पर मँडराने लगी, जैसे भन्नाकर कह रही हो, ‘मुझे खून लौटा दो ! मैं माफी माँगती हूँ, मैं माफी माँगती हूँ !!’’
धोखाधड़ी हमें मौत की ओर ले जाती है।

10 बच्चे की शिक्षा

फ्रांसिस वेलेंड पार्कर अमरीका के प्रसिद्ध शिक्षा विशेषज्ञ थे। बहुत दूर-दूर से लोग बच्चों की शिक्षा के बारे में उनसे परामर्श लेने आया करते थे। एक दिन उनका कहीं भाषण हो रहा था। भाषण पूरा होने पर एक महिला उनके पास आई। उसने पार्कर महोदय से सवाल किया, ‘‘मैं अपने बच्चे का शिक्षण प्रारंभ करना चाहती हूँ। इसके लिए कौन सा समय ठीक होगा ?’’
पार्कर ने पूछा, ‘‘आपका बच्चा कब पैदा हुआ ?’’
यह सुनकर महिला को बड़ा आश्चर्य हुआ। बोली, ‘‘बच्चा तो आज से पाँच वर्ष पहले पैदा हो चुका है।’’
पार्कर ने कहा, ‘‘श्रीमतीजी, तब तो आपने अपने बच्चे के पाँच सुनहरे वर्ष बरबाद कर दिए। शिक्षण का कार्य तो बच्चे के जन्म के साथ ही शुरू हो जाना चाहिए। जल्दी घर जाइए और बच्चे का शिक्षण अभी से शुरू कर दीजिए।’’
ज्ञान और शिक्षा के लिए कोई समय बंधन नहीं है।

11 नकली मोर

एक कौए ने मोर के पंख लगा लिये और अपने को मोर समझकर मोरों की एक टोली में जा घुसा। उसे देखकर मोरों की टोली ने उसे फौरन पहचान लिया। फिर क्या ! दूसरे ही पल सारे मोर उसपर झपट पड़े। चोंच मारकर उसे अपनी टोली से दूर खदेड़ दिया। रुआँसा होकर कौआ अपनी जमात में वापस लौट आया। उसके अपने भाई-बंधु भी उसकी इस हरकत से नाराज हो गए थे। वे भी उस पर टूट पड़े। सौरे कौओं ने मिलकर उसके पंख नोच डाले।
नकल को अकल कहाँ !




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