धर्म एवं दर्शन >> जिंदगी की कहानी जिंदगी की कहानीमहाराजी
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महाराज जी के प्रवचनों का संग्रह...
प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश
प्रवेश : स्वर्ण कलश में
इस युग में मानव मात्र के हृदय में सद्ज्ञान द्वारा शांति का अनुभव कराने
वाले महाराजी के प्रवचनों का लाभ जन मानस को निरंतर मिल रहा है। जीवन के
आदर्श लक्ष्य में तन्मय हो जाने, खो जाने और विलीन हो जाने की प्रक्रिया
का ही नाम प्रेम है। प्रभु प्रेम रूपी वह अथाह महासागर है जिसमें उतरकर
मनुष्य का कायाकल्प हो जाता है। प्रभु प्रेम प्रदाता है, उसमें अपने को
आत्मसात कर कोई भी दुःख, भय और अशुभ से मुक्ति पा सकता है। जब हम परमेश्वर
की अनुभूति करते हैं तो हमें हमारे अन्तर्मन और मस्तिष्क की असीम सत्ता का
ज्ञान होता है और हम सत् चित् आनंद के नैसर्गिक जगत में पहुँच जाते हैं।
इस महान सत्ता की ओर ले जाने वाले आसानी से नहीं मिलते। हमें खोजना होता है और सच पूछिए तो वे भी ऐसे श्रद्धालुओं को खोजते हैं। यह द्वैत भाव हमारे नश्वर जीवन को आनंदमय बनाता है और हम उसमें आत्मसात हो जाते हैं। आत्मसात होने की प्रक्रिया सहज नहीं है। जब तक हमारा अहंकार नष्ट नहीं हो जाता, हम उस निर्मलता के पवित्र द्वार तक नहीं पहुंच सकते। इसीलिए जीवन में हमें खोज होती है जो वहां तक हमें पहुँचा सके। मनुष्य की बाहर जाती हुई वृत्तियों को भीतर मोड़ने की विधि ही ज्ञान का स्वरूप है। ज्ञान की अनुभूति की प्रक्रिया को जो हमें उपहार स्वरूप प्रदान कर सके, हमारे लिए वह पूज्यनीय है।
इस महान उपलब्धि को प्राप्त कराने में महाराजी, यानी महामना प्रेम रावत जी ने अपने पूर्ण ज्ञान और निस्वार्थ प्रेम से हमारे लिए द्वार खोल दिये हैं। इसीलिए जब वे प्रवचन करते हैं तो आपको लगता है कि उनसे व्यक्तिगत बात कर रहे हैं और आप सभी कुछ भूलकर उस अनंत सत्ता में आत्मसात हो जाते हैं। अब तक महाराजी ने न जाने कितने मानव हृदयों को यह अहसास कराया है और उन्हें नया जीवन दिया है
महाराजी का संकल्प एवं शिक्षा एक सूक्ष्म बीज के समान है जिसे वे अपने श्रोताओं के हृदयों में रोपित कर देते हैं जो समय के साथ प्रस्फुटित होकर विशाल रूप ले लेता है और हम अपने आपको एक पवित्र लोक में अधिष्ठित पाते हैं। हम भ्रम से बचते हैं जब वे कहते हैं, कहां भटक रहे हो तुम, क्या खोज रहे हो तुम, परेशान क्यों है ? किससे हो ? हमारा हृदय शांति प्राप्त करने के लिए पुकारता है परंतु हम उस पुकार को नहीं समझ पाते क्योंकि हम अपने हृदय की भाषा को नहीं जानते।
उनका कहना बहुत सहज है जिस शांति को प्राप्त करके मानव हृदय अपने जीवन में शांत हो जाना चाहता है, वह कहीं बाहर नहीं है। वह तो पहले से ही हमारे हृदय में हमारा उसी प्रकार इंतजार कर रही है जिस प्रकार एक बीज रेगिस्तान में पड़ा हुआ अंकुरित होने के लिए वर्षा का इंतजार करता है। जैसे ही वर्षा होगी बीज अंकुरित हो जाएगा और उसका संदेश हमारे भीतर पहुंचकर हमें अपार शांति देगा।
बाहर क्या खोज रहे हो
तलाश किसकी है
कब से तलाशते रहे हो
पा सके क्या ?
नहीं...
इसलिए कि जो कुछ
खोज रहे हो तुम
सब तुम्हारे भीतर है।
बस अभ्यंतर में है जो
आत्मसात हो जाओ;
जिसकी भी खोज है
आपके अंदर है।
वह आपके अंदर
रहेगा जीवित
जब तक जीवन है,
इसलिए
मित्रता करो
अपने अभ्यंतर से
अपनी आखिरी श्वास तक
सच्चा मित्र वही तो है !
यही उस परम सत्ता का आशीर्वाद है
तुम्हारे लिए !
इतना सहज और महान संदेश देने वाले महाराजी के कुछ प्रवचन इस पुस्तक में संभालकर प्रस्तुत किये गये हैं। यह पुस्तक नहीं, आपका जीवन धर्म है, यह पहचानिए और पढ़िए ध्यान से।
किसी खोज के लिए
भटकना नहीं पड़ेगा तुम्हें !
तो प्रस्तुत है अमृत का यह सोपान घट आपके हाथों में। प्रवेश करने दीजिए अभ्यंतर में और अपार सुख तथा शांति प्राप्त करने की दिशा में अग्रसर होइए।
इस महान सत्ता की ओर ले जाने वाले आसानी से नहीं मिलते। हमें खोजना होता है और सच पूछिए तो वे भी ऐसे श्रद्धालुओं को खोजते हैं। यह द्वैत भाव हमारे नश्वर जीवन को आनंदमय बनाता है और हम उसमें आत्मसात हो जाते हैं। आत्मसात होने की प्रक्रिया सहज नहीं है। जब तक हमारा अहंकार नष्ट नहीं हो जाता, हम उस निर्मलता के पवित्र द्वार तक नहीं पहुंच सकते। इसीलिए जीवन में हमें खोज होती है जो वहां तक हमें पहुँचा सके। मनुष्य की बाहर जाती हुई वृत्तियों को भीतर मोड़ने की विधि ही ज्ञान का स्वरूप है। ज्ञान की अनुभूति की प्रक्रिया को जो हमें उपहार स्वरूप प्रदान कर सके, हमारे लिए वह पूज्यनीय है।
इस महान उपलब्धि को प्राप्त कराने में महाराजी, यानी महामना प्रेम रावत जी ने अपने पूर्ण ज्ञान और निस्वार्थ प्रेम से हमारे लिए द्वार खोल दिये हैं। इसीलिए जब वे प्रवचन करते हैं तो आपको लगता है कि उनसे व्यक्तिगत बात कर रहे हैं और आप सभी कुछ भूलकर उस अनंत सत्ता में आत्मसात हो जाते हैं। अब तक महाराजी ने न जाने कितने मानव हृदयों को यह अहसास कराया है और उन्हें नया जीवन दिया है
महाराजी का संकल्प एवं शिक्षा एक सूक्ष्म बीज के समान है जिसे वे अपने श्रोताओं के हृदयों में रोपित कर देते हैं जो समय के साथ प्रस्फुटित होकर विशाल रूप ले लेता है और हम अपने आपको एक पवित्र लोक में अधिष्ठित पाते हैं। हम भ्रम से बचते हैं जब वे कहते हैं, कहां भटक रहे हो तुम, क्या खोज रहे हो तुम, परेशान क्यों है ? किससे हो ? हमारा हृदय शांति प्राप्त करने के लिए पुकारता है परंतु हम उस पुकार को नहीं समझ पाते क्योंकि हम अपने हृदय की भाषा को नहीं जानते।
उनका कहना बहुत सहज है जिस शांति को प्राप्त करके मानव हृदय अपने जीवन में शांत हो जाना चाहता है, वह कहीं बाहर नहीं है। वह तो पहले से ही हमारे हृदय में हमारा उसी प्रकार इंतजार कर रही है जिस प्रकार एक बीज रेगिस्तान में पड़ा हुआ अंकुरित होने के लिए वर्षा का इंतजार करता है। जैसे ही वर्षा होगी बीज अंकुरित हो जाएगा और उसका संदेश हमारे भीतर पहुंचकर हमें अपार शांति देगा।
बाहर क्या खोज रहे हो
तलाश किसकी है
कब से तलाशते रहे हो
पा सके क्या ?
नहीं...
इसलिए कि जो कुछ
खोज रहे हो तुम
सब तुम्हारे भीतर है।
बस अभ्यंतर में है जो
आत्मसात हो जाओ;
जिसकी भी खोज है
आपके अंदर है।
वह आपके अंदर
रहेगा जीवित
जब तक जीवन है,
इसलिए
मित्रता करो
अपने अभ्यंतर से
अपनी आखिरी श्वास तक
सच्चा मित्र वही तो है !
यही उस परम सत्ता का आशीर्वाद है
तुम्हारे लिए !
इतना सहज और महान संदेश देने वाले महाराजी के कुछ प्रवचन इस पुस्तक में संभालकर प्रस्तुत किये गये हैं। यह पुस्तक नहीं, आपका जीवन धर्म है, यह पहचानिए और पढ़िए ध्यान से।
किसी खोज के लिए
भटकना नहीं पड़ेगा तुम्हें !
तो प्रस्तुत है अमृत का यह सोपान घट आपके हाथों में। प्रवेश करने दीजिए अभ्यंतर में और अपार सुख तथा शांति प्राप्त करने की दिशा में अग्रसर होइए।
राजेन्द्र अवस्थी
लेखक, सम्पादक. दार्शनिक
लेखक, सम्पादक. दार्शनिक
सत्य तुम्हारे अंदर है
लोग समझते हैं भगवान एक विचित्र पहेली है। कोई कहता है, भगवान ऊपर है। कोई
कहता है, भगवान मंदिर में है। कोई कहता है, भगवान है ही नहीं। कोई कहता
है, भगवान तुम्हारे अंदर में है। अब यह समझने में दिक्कत हो जाती है कि
सत्य क्या है ! पर सबसे बड़ी बात यह है कि एक चीज भगवान ने मनुष्य को दी
है और वह चीज है अनुभव !
अनुभव को छोटा-मोटा मत मानिए ! किसी को यह समझाना पड़े कि हवाई जहाज में बैठने का क्या आनंद है ! उसके लिए कम से कम 400-500 पन्ने की किताब बड़े आराम से लिखी जा सकती है। परंतु अगर उसी व्यक्ति को आप किताब न दें, हवाई जहाज में बैठा दें तो एक भी पन्ना लिखने की जरूरत नहीं है, उसकी समझ में आ जाएगा। यह है अनुभव ! जिस चीज का हम अनुभव नहीं कर सकते हैं, उसके लिए तो हमको किताब पढ़नी ही पड़ेगी।
चंद्रमा पर सब लोग नहीं जा सकते। कम से कम अभी तो नहीं जा सकते। हो सकता है कि ऐसी चीजों का अविष्कार आगे 100 साल, 200 साल के बाद हो, कि बड़ी आसानी से मनुष्य चंद्रमा पर जा सके। अभी तो चंद्रमा में जाने पर क्या-क्या होता है, यह हम किताब में ही पढ़ सकते हैं। उसका अनुभव नहीं कर सकते। पर जिस चीज का हम अनुभव कर सकते हैं, अगर उसको हमने सिर्फ थ्योरी में, सिर्फ किताबों में ही रखा, तो उसका कोई तुक नहीं बैठता है।
रात को मैं सोच रहा था और कई बार सपने में भी होता है। कई बार सपने आते हैं कि प्रोग्राम हो रहा है और हम प्रोग्राम में बोल रहे हैं। तो कल रात को मैं सुना रहा था कि खाना बनाने वाले बहुत हैं और जो खाना बनाता है, उसकी हम यह खूबी समझते हैं कि वह तरह-तरह के व्यंजन तैयार करे। स्वादिष्ट से स्वादिष्ट व्यंजन तैयार करे ! पर अगर कोई ऐसा मिल जाए जो कहे, ‘हम पत्थर की सब्जी बनाएंगे आपके लिए,’ उसका क्या तुक हुआ ? मतलब अगर पत्थर की सब्जी बना भी दी, तो उसे खा थोड़े ही सकेंगे ! अगर खा भी लिया, तो पेट में तो गड़बड़ होगी। क्योंकि पेट को वह चीज चाहिए, जो वह पचा सके। पेट को नयी-नयी चीजों से मतलब नहीं है। नयी-नयी चीजों से मतलब है आँख को और जीभ को पर पेट को एक ही चीज से मतलब है कि खाना पचा सकूँगा या नहीं पचा सकूंगा ?
एक सत्य और भी है। जब लड़की पैदा होती है, लोग कहते हैं,‘‘अरे, इसको दहेज देना पड़ेगा !’’ इस तरीके से सोचने वाले कई लोग हैं। उनके लिए यही सत्य है ! पर इससे होगा क्या ? हिन्दुस्तान में और चीन में लड़कियों की संख्या कम हो रही है और लड़कों की संख्या ज्यादा बढ़ रही है। इस तरह इन दोनों देशों में एक समय ऐसा हो जाएगा कि दस-दस तो लड़के होंगे और एक होगी लड़की ! तो दहेज किसको देना पड़ेगा ? दहेज देना पड़ेगा लड़के वालों को। इसलिए क्योंकि बड़ी मुश्किल के बाद कहीं ढूंढ़ने से लड़की मिलेगी तो उसको जितना चाहे उतना दहेज देने के लिए लोग तैयार हो जाएंगे।
एक समय आएगा कि बैलगाड़ी नहीं रहेगी। आज बैलगाड़ी का नाम सुन के, आपको मालूम है क्या होता है ? आप सुनते हैं, समझते हैं बैलगाड़ी को। बैलगाड़ी का नाम लेते हैं तो बैल और गाड़ी, ये दो चीजें आपके ख्याल में आती हैं। परंतु एक ऐसा समय होगा जब नहीं आएगा ख्याल तब आपको पूछना पड़ेगा, ‘‘क्या होती है बैलगाड़ी !’’ आप समझिए कि जिसको आप सत्य मान रहे हैं, आपका इस पृथ्वी पर होना, आपके नाते-रिश्ते, आपके संबंध, आपके कार्य जो आप इस संसार में करते हैं-इनको आप सत्य मानते हैं, पर ये सत्य नहीं हैं। आपका यहां होना भी थोड़े समय के लिए है। अब हैं और हो सकता है आगे आप नहीं होंगे !
अनुभव को छोटा-मोटा मत मानिए ! किसी को यह समझाना पड़े कि हवाई जहाज में बैठने का क्या आनंद है ! उसके लिए कम से कम 400-500 पन्ने की किताब बड़े आराम से लिखी जा सकती है। परंतु अगर उसी व्यक्ति को आप किताब न दें, हवाई जहाज में बैठा दें तो एक भी पन्ना लिखने की जरूरत नहीं है, उसकी समझ में आ जाएगा। यह है अनुभव ! जिस चीज का हम अनुभव नहीं कर सकते हैं, उसके लिए तो हमको किताब पढ़नी ही पड़ेगी।
चंद्रमा पर सब लोग नहीं जा सकते। कम से कम अभी तो नहीं जा सकते। हो सकता है कि ऐसी चीजों का अविष्कार आगे 100 साल, 200 साल के बाद हो, कि बड़ी आसानी से मनुष्य चंद्रमा पर जा सके। अभी तो चंद्रमा में जाने पर क्या-क्या होता है, यह हम किताब में ही पढ़ सकते हैं। उसका अनुभव नहीं कर सकते। पर जिस चीज का हम अनुभव कर सकते हैं, अगर उसको हमने सिर्फ थ्योरी में, सिर्फ किताबों में ही रखा, तो उसका कोई तुक नहीं बैठता है।
रात को मैं सोच रहा था और कई बार सपने में भी होता है। कई बार सपने आते हैं कि प्रोग्राम हो रहा है और हम प्रोग्राम में बोल रहे हैं। तो कल रात को मैं सुना रहा था कि खाना बनाने वाले बहुत हैं और जो खाना बनाता है, उसकी हम यह खूबी समझते हैं कि वह तरह-तरह के व्यंजन तैयार करे। स्वादिष्ट से स्वादिष्ट व्यंजन तैयार करे ! पर अगर कोई ऐसा मिल जाए जो कहे, ‘हम पत्थर की सब्जी बनाएंगे आपके लिए,’ उसका क्या तुक हुआ ? मतलब अगर पत्थर की सब्जी बना भी दी, तो उसे खा थोड़े ही सकेंगे ! अगर खा भी लिया, तो पेट में तो गड़बड़ होगी। क्योंकि पेट को वह चीज चाहिए, जो वह पचा सके। पेट को नयी-नयी चीजों से मतलब नहीं है। नयी-नयी चीजों से मतलब है आँख को और जीभ को पर पेट को एक ही चीज से मतलब है कि खाना पचा सकूँगा या नहीं पचा सकूंगा ?
एक सत्य और भी है। जब लड़की पैदा होती है, लोग कहते हैं,‘‘अरे, इसको दहेज देना पड़ेगा !’’ इस तरीके से सोचने वाले कई लोग हैं। उनके लिए यही सत्य है ! पर इससे होगा क्या ? हिन्दुस्तान में और चीन में लड़कियों की संख्या कम हो रही है और लड़कों की संख्या ज्यादा बढ़ रही है। इस तरह इन दोनों देशों में एक समय ऐसा हो जाएगा कि दस-दस तो लड़के होंगे और एक होगी लड़की ! तो दहेज किसको देना पड़ेगा ? दहेज देना पड़ेगा लड़के वालों को। इसलिए क्योंकि बड़ी मुश्किल के बाद कहीं ढूंढ़ने से लड़की मिलेगी तो उसको जितना चाहे उतना दहेज देने के लिए लोग तैयार हो जाएंगे।
एक समय आएगा कि बैलगाड़ी नहीं रहेगी। आज बैलगाड़ी का नाम सुन के, आपको मालूम है क्या होता है ? आप सुनते हैं, समझते हैं बैलगाड़ी को। बैलगाड़ी का नाम लेते हैं तो बैल और गाड़ी, ये दो चीजें आपके ख्याल में आती हैं। परंतु एक ऐसा समय होगा जब नहीं आएगा ख्याल तब आपको पूछना पड़ेगा, ‘‘क्या होती है बैलगाड़ी !’’ आप समझिए कि जिसको आप सत्य मान रहे हैं, आपका इस पृथ्वी पर होना, आपके नाते-रिश्ते, आपके संबंध, आपके कार्य जो आप इस संसार में करते हैं-इनको आप सत्य मानते हैं, पर ये सत्य नहीं हैं। आपका यहां होना भी थोड़े समय के लिए है। अब हैं और हो सकता है आगे आप नहीं होंगे !
पानी केरा बुदबुदा, अस मानुष की जात।
देखत ही छिप जाएगा, ज्यों तारा प्रभात।।
देखत ही छिप जाएगा, ज्यों तारा प्रभात।।
एक घटना और है, सबेरे-सबेरे एक तारा निकलता है। सूरज से थोड़ा-सा उदय होने
से पहले निकलता है। फिर वह उठता है, उठता है, उठता जाता है और जैसे ही
सूरज आता है, सूरज की रोशनी ज्यादा है तो वह तारा नहीं दिखाई देता। यह
मनुष्य के साथ भी होता है।
सत्य क्या है ? सत्य तुम्हारे अंदर है ! तुम सत्य नहीं हो, सत्य तुम्हारे अंदर है ! क्या संबंध है तुम्हारा और सत्य का ? जैसे पतीले में दाल ! दाल को तुम खा सकते हो, पतीले को नहीं खा सकते हो। तुम्हारे अंदर सत्य है-जो था, है और तुम्हारे बाद भी रहेगा। परंतु एक चीज तुम कर सकते हो अपने जीवन में और वह है कि इस शरीर के होने के कारण और इस स्वांस के आने-जाने के कारण तुम उस सत्य का अनुभव कर सकते हो। इस पूरी चर्चा में बात है अनुभव की ! जब अनुभव कर सकते हो तो अनुभव करो ! अनुभव करने के बाद फिर हजारों पुस्तकों की जरूरत नहीं रहेगी। पढ़ना चाहो, पढ़ सकते हो, ऐसी बात नहीं है। बात यह है कि जिस चीज का मैं अनुभव कर सकता हूं, उस चीज का मैं अनुभव करूं। जिस चीज का मैं अनुभव नहीं कर सकता हूं, उसके बारे में पढ़ूं और क्या है वह चीज ? सुनिए कि प्रकृति क्या है मनुष्य की ?
मैं सोच रहा था जैसे दूध को मटके में रखते हैं, दूध को जमाते हैं, वह दही बन जाता है। दही को बिलोते हैं, उसमें से मक्खन निकल आता है। मक्खन को गरम करते हैं, मक्खन को पकाते हैं, उसमें से घी निकल आता है। अब सोचिए जरा ! क्योंकि मक्खन को गर्म किया, तो घी निकला। अब घी को ठंडा कर दीजिए, तो क्या मक्खन बन जाएगा ? दही को बिलोया तो मक्खन निकला। अब उसी मक्खन को अगर आप एक मटके में बंद करके कहीं रख दें ताकि वह हिले-डुले नहीं, तो क्या वह दही बन जाएगा ? दूध को मटके में रख करके जमाया, तो वह दही बना। उसी मटके को अगर हिलाते रहेंगे तो क्या वह दूध बन जाएगा ? नहीं ! यह एक-तरफी बात है। दूध से दही, दही से मक्खन, मक्खन से घी ! पर घी से दूध नहीं बन सकता है ! यह प्रकृति का गुण है। इसी तरह देखिए धान ! धान को साफ करते हैं तो आता है चावल ! चावल को जब पकाते हैं, बन जाता है भात ! पर भात से चावल नहीं बना सकते। चावल से धान नहीं बना सकते हैं ! यह प्रकृति है।
इसी बात को समझिए कि इस जीवन रूपी यात्रा में हम चल रहे हैं। जो-जो कदम आगे ले रहे हैं, इनको पीछे नहीं ले जा सकते ! एक समय था, जब बच्चे थे। एक समय आया, जवान हुए। एक समय आएगा जब वृद्ध होंगे। फिर एक समय आएगा और भी वृद्ध होंगे। जो बीत गया सो बीत गया ! उसको आप वापिस हासिल नहीं कर सकते हैं। इसका मतलब क्या है ? इसका मतलब है कि हमारे लिए एक-एक दिन मायने रखता है। एक दिन ! एक घंटा ! 60 मिनट का बनाते हैं एक घंटा ! 60 सेकेंड का बनाते हैं एक मिनट ! सात दिन का बनाते हैं एक सप्ताह ! 30 दिन का बनाते हैं एक महीना ! 12 महीने का बनाते हैं एक साल ! उस साल से चीजों की तुलना करते हैं, हर एक चीज की महीने में तुलना करते हैं, घंटों से तुलना करते हैं ! पर समझिए कि असली रफ्तार क्या है ? घड़ी को देखते हैं, उसमें एक घंटा देखते हैं, एक मिनट देखते हैं। अगर उसमें छोटी सुई है तो एक सेकेंड देख सकते हैं। पर असली रफ्तार क्या है ? सत्य क्या है ? मैं बताता हूं। जो असली सत्य है-वह एक घंटा नहीं है, एक मिनट नहीं है, एक सेकेंड नहीं है, एक दिन नहीं है, एक सप्ताह नहीं है।
असली सत्य है एक स्वांस जो अंदर आ रहा है और एक स्वांस जो अंदर से बाहर जा रहा है ! घड़ी स्वांस के बारे में आपको कुछ नहीं बताएगी। यह जो स्वांस जा रहा है न, यह समझ लीजिए कि यह गया ! दूध से बना दही, दही से बना मक्खन, मक्खन से बना घी, पर ये अब वापस कभी नहीं आ सकता। जो निकल गया, वह निकल गया ! जो निकल गया उसमें से हमने अपने लिए क्या बचाया, यह सही प्रश्न है। उसमें क्या पाया ? क्या पकड़ा ?
आपकी उम्र 20 साल की है, 30 साल की है, 40 साल की है, 50 साल की है 60 साल की है। आपने उस 60 साल में, उस 50 साल में, उस 25 साल में क्या कमाया ? धन नहीं। क्योंकि धन आपका नहीं है। धन आपका नहीं है और कभी हो नहीं सकता है, क्योंकि जब आप चले जाएंगे तो वह किसी और का हो जायेगा। आदमी बनाता है मकान। अपने लिए बनाता है मकान और कहता है, ‘‘यह मेरा मकान है।’’ परंतु मकान कभी नहीं कहता है, ‘‘यह मेरा मालिक है।’’ जब आप चले जाएंगे, वह मकान किसी और का हो जाएगा। वही ठाठ हैं उसके ! समझने की बात है कि आपने क्या असली चीज कमायी ?
सत्य क्या है ? सत्य तुम्हारे अंदर है ! तुम सत्य नहीं हो, सत्य तुम्हारे अंदर है ! क्या संबंध है तुम्हारा और सत्य का ? जैसे पतीले में दाल ! दाल को तुम खा सकते हो, पतीले को नहीं खा सकते हो। तुम्हारे अंदर सत्य है-जो था, है और तुम्हारे बाद भी रहेगा। परंतु एक चीज तुम कर सकते हो अपने जीवन में और वह है कि इस शरीर के होने के कारण और इस स्वांस के आने-जाने के कारण तुम उस सत्य का अनुभव कर सकते हो। इस पूरी चर्चा में बात है अनुभव की ! जब अनुभव कर सकते हो तो अनुभव करो ! अनुभव करने के बाद फिर हजारों पुस्तकों की जरूरत नहीं रहेगी। पढ़ना चाहो, पढ़ सकते हो, ऐसी बात नहीं है। बात यह है कि जिस चीज का मैं अनुभव कर सकता हूं, उस चीज का मैं अनुभव करूं। जिस चीज का मैं अनुभव नहीं कर सकता हूं, उसके बारे में पढ़ूं और क्या है वह चीज ? सुनिए कि प्रकृति क्या है मनुष्य की ?
मैं सोच रहा था जैसे दूध को मटके में रखते हैं, दूध को जमाते हैं, वह दही बन जाता है। दही को बिलोते हैं, उसमें से मक्खन निकल आता है। मक्खन को गरम करते हैं, मक्खन को पकाते हैं, उसमें से घी निकल आता है। अब सोचिए जरा ! क्योंकि मक्खन को गर्म किया, तो घी निकला। अब घी को ठंडा कर दीजिए, तो क्या मक्खन बन जाएगा ? दही को बिलोया तो मक्खन निकला। अब उसी मक्खन को अगर आप एक मटके में बंद करके कहीं रख दें ताकि वह हिले-डुले नहीं, तो क्या वह दही बन जाएगा ? दूध को मटके में रख करके जमाया, तो वह दही बना। उसी मटके को अगर हिलाते रहेंगे तो क्या वह दूध बन जाएगा ? नहीं ! यह एक-तरफी बात है। दूध से दही, दही से मक्खन, मक्खन से घी ! पर घी से दूध नहीं बन सकता है ! यह प्रकृति का गुण है। इसी तरह देखिए धान ! धान को साफ करते हैं तो आता है चावल ! चावल को जब पकाते हैं, बन जाता है भात ! पर भात से चावल नहीं बना सकते। चावल से धान नहीं बना सकते हैं ! यह प्रकृति है।
इसी बात को समझिए कि इस जीवन रूपी यात्रा में हम चल रहे हैं। जो-जो कदम आगे ले रहे हैं, इनको पीछे नहीं ले जा सकते ! एक समय था, जब बच्चे थे। एक समय आया, जवान हुए। एक समय आएगा जब वृद्ध होंगे। फिर एक समय आएगा और भी वृद्ध होंगे। जो बीत गया सो बीत गया ! उसको आप वापिस हासिल नहीं कर सकते हैं। इसका मतलब क्या है ? इसका मतलब है कि हमारे लिए एक-एक दिन मायने रखता है। एक दिन ! एक घंटा ! 60 मिनट का बनाते हैं एक घंटा ! 60 सेकेंड का बनाते हैं एक मिनट ! सात दिन का बनाते हैं एक सप्ताह ! 30 दिन का बनाते हैं एक महीना ! 12 महीने का बनाते हैं एक साल ! उस साल से चीजों की तुलना करते हैं, हर एक चीज की महीने में तुलना करते हैं, घंटों से तुलना करते हैं ! पर समझिए कि असली रफ्तार क्या है ? घड़ी को देखते हैं, उसमें एक घंटा देखते हैं, एक मिनट देखते हैं। अगर उसमें छोटी सुई है तो एक सेकेंड देख सकते हैं। पर असली रफ्तार क्या है ? सत्य क्या है ? मैं बताता हूं। जो असली सत्य है-वह एक घंटा नहीं है, एक मिनट नहीं है, एक सेकेंड नहीं है, एक दिन नहीं है, एक सप्ताह नहीं है।
असली सत्य है एक स्वांस जो अंदर आ रहा है और एक स्वांस जो अंदर से बाहर जा रहा है ! घड़ी स्वांस के बारे में आपको कुछ नहीं बताएगी। यह जो स्वांस जा रहा है न, यह समझ लीजिए कि यह गया ! दूध से बना दही, दही से बना मक्खन, मक्खन से बना घी, पर ये अब वापस कभी नहीं आ सकता। जो निकल गया, वह निकल गया ! जो निकल गया उसमें से हमने अपने लिए क्या बचाया, यह सही प्रश्न है। उसमें क्या पाया ? क्या पकड़ा ?
आपकी उम्र 20 साल की है, 30 साल की है, 40 साल की है, 50 साल की है 60 साल की है। आपने उस 60 साल में, उस 50 साल में, उस 25 साल में क्या कमाया ? धन नहीं। क्योंकि धन आपका नहीं है। धन आपका नहीं है और कभी हो नहीं सकता है, क्योंकि जब आप चले जाएंगे तो वह किसी और का हो जायेगा। आदमी बनाता है मकान। अपने लिए बनाता है मकान और कहता है, ‘‘यह मेरा मकान है।’’ परंतु मकान कभी नहीं कहता है, ‘‘यह मेरा मालिक है।’’ जब आप चले जाएंगे, वह मकान किसी और का हो जाएगा। वही ठाठ हैं उसके ! समझने की बात है कि आपने क्या असली चीज कमायी ?
कबीर माला काठ की, बहुत यतन कर फेर।
माला स्वांसो स्वांस की, जा में गांठ न मेर।।
माला स्वांसो स्वांस की, जा में गांठ न मेर।।
क्या स्वांस की यह माला फेरी ? चिंता की माला तो आप हमेशा फेरते रहते है न
!
फिक्र सभी को खा गया, फिक्र सभी का पीर।
जो फिक्र का फाँका करे, उसका नाम फकीर।।
जो फिक्र का फाँका करे, उसका नाम फकीर।।
अब सोचिए ! एक दिन में हम अपनी समस्याओं का चिंतन ज्यादा करते हैं या
भगवान का चिंतन ज्यादा करते हैं ? मुझे मालूम है। मैं भी मनुष्य हूं, आप
भी मनुष्य हैं। आपका और हमारा नाता जो है, वो है। भगवान हमारे अंदर भी है,
आपके अंदर भी है। पर न आप भगवान हैं, न हम भगवान हैं। यह तो वही बात है
न-दाल और पतीले की ! दाल को खा सकते हैं, पतीले को नहीं खा सकते। हम जानते
हैं, आप किसका चिंतन ज्यादा करते हैं। अपनी चिंताओं का चितंन ज्यादा करते
हैं, अपनी समस्याओं का चिंतन ज्यादा करते हैं। भगवान का कम करते हैं।
करत-करत अभ्यास के, जड़मति होत सुजान।
रस्सी आवत जात से, सिल पर पड़त निशान।।
रस्सी आवत जात से, सिल पर पड़त निशान।।
जिस चीज का अभ्यास किया जाएगा, उसमें आप सबसे माहिर हो जाएंगे। अगर आप
गुस्सा ज्यादा करते हैं, गुस्से का अभ्यास करते हैं सारे दिन, तो गुस्सा
आपको जल्दी आता रहेगा। बिना बात के आपको गुस्सा आ जाएगा। कई लोग हैं,
हंसते हैं ! बात-बात पर हंसते हैं। कोई बात न भी हो, तो भी हंसते हैं।
अभ्यास करते रहेंगे तो बिना बात के हंसना भी आसान हो जाएगा। कई लोग हैं,
अपना सिर खुजाने का अभ्यास करते हैं ! पता नहीं क्यों सिर खुजाते हैं। कोई
बात सोच रहे हैं, सिर खुजाते हैं। अभ्यास करते, करते, करते फिर क्या हो
जाता है ? वह इतना सरल हो जाता है कि उनको सोचने की भी जरूरत नहीं है। सिर
में खुजली हो रही है या नहीं, हाथ सीधा ऊपर सिर में पहुंच जाता है और
खुजाना उनका चालू हो जाता है। हम हवाई जहाज उड़ा सकते हैं, रोटी नहीं बना
सकते हैं। मैं अपनी बात कह रहा हूं। हमने बहुत कोशिश की है रोटी बनाने की,
हमसे रोटी नहीं बनती। हम देखते हैं, हमारी रसोई में जब लोग खाना बनाते
हैं, तो उनको तो कोई दिक्कत नहीं है रोटी बेलने में। जहां जहाज की बात है,
वह उनसे नहीं हो सकता ! वहां इतने बटन हैं !
एक बार एक व्यक्ति को मैं हवाई जहाज में साथ ले जा रहा था, तो उसने काकपिट की तरफ देखकर कहा, ‘‘ये इतने बटन क्यों हैं ?’’ मैंने कहा, ‘‘हैं, इसलिए हैं, ताकि सुरक्षित पहुंच सकें एक जगह से दूसरी जगह।’’
आप भी अभ्यास करते होंगे। किस चीज का अभ्यास करते हैं ? चिंताओं का अभ्यास करते हैं ? चिंताओं का चिंतन करते हैं या परमपिता परमेश्वर का चिंतन करते हैं ? एक बात और सुन लीजिए परमपिता परमेश्वर का चिंतन तो हम करना चाहते हैं, पर उसमें एक छोटी-सी दिक्कत यह है कि आप उनको जानते हैं या नहीं ? परिचय हुआ है ? ठिकाना मालूम है ? कैसे लगते हैं, ये मालूम है ? नहीं मालूम है, तो चिंतन करने में मुश्किल तो होगी !
अगर मैं आपको कह दूं कि जी, एक व्यक्ति को ढूंढ़ के लाइये !
आप कहें, ‘‘जी, कौन ?’’
मैं कहूं, ‘‘हमको नाम नहीं मालूम !’’
‘‘अच्छा, कहां बैठा है ?’’
‘‘हमको नहीं मालूम।’’
‘‘कैसा लगता है ?’’
‘‘हमको नहीं मालूम !’’
‘‘क्या पहना हुआ है ?’’
‘‘हमको नहीं मालूम। कहां है हमको नहीं मालूम ! पर ढूंढ कर ले आओ।’’
अब जब नहीं मालूम है तो ढूंढ के क्या लाएंगे ? चिंतन तो हम सब करना चाहते हैं। कोई व्यक्ति नहीं है, जो परमानंद का अनुभव न करना चाहता हो। सब परमानंद का अनुभव करना चाहते हैं। परंतु वह है कहां ? किसी को नहीं मालूम ! जिस परमपिता परमेश्वर का चिंतन करना चाहते हो, वह तुम्हारे घट में विराजमान है।
एक बार एक व्यक्ति को मैं हवाई जहाज में साथ ले जा रहा था, तो उसने काकपिट की तरफ देखकर कहा, ‘‘ये इतने बटन क्यों हैं ?’’ मैंने कहा, ‘‘हैं, इसलिए हैं, ताकि सुरक्षित पहुंच सकें एक जगह से दूसरी जगह।’’
आप भी अभ्यास करते होंगे। किस चीज का अभ्यास करते हैं ? चिंताओं का अभ्यास करते हैं ? चिंताओं का चिंतन करते हैं या परमपिता परमेश्वर का चिंतन करते हैं ? एक बात और सुन लीजिए परमपिता परमेश्वर का चिंतन तो हम करना चाहते हैं, पर उसमें एक छोटी-सी दिक्कत यह है कि आप उनको जानते हैं या नहीं ? परिचय हुआ है ? ठिकाना मालूम है ? कैसे लगते हैं, ये मालूम है ? नहीं मालूम है, तो चिंतन करने में मुश्किल तो होगी !
अगर मैं आपको कह दूं कि जी, एक व्यक्ति को ढूंढ़ के लाइये !
आप कहें, ‘‘जी, कौन ?’’
मैं कहूं, ‘‘हमको नाम नहीं मालूम !’’
‘‘अच्छा, कहां बैठा है ?’’
‘‘हमको नहीं मालूम।’’
‘‘कैसा लगता है ?’’
‘‘हमको नहीं मालूम !’’
‘‘क्या पहना हुआ है ?’’
‘‘हमको नहीं मालूम। कहां है हमको नहीं मालूम ! पर ढूंढ कर ले आओ।’’
अब जब नहीं मालूम है तो ढूंढ के क्या लाएंगे ? चिंतन तो हम सब करना चाहते हैं। कोई व्यक्ति नहीं है, जो परमानंद का अनुभव न करना चाहता हो। सब परमानंद का अनुभव करना चाहते हैं। परंतु वह है कहां ? किसी को नहीं मालूम ! जिस परमपिता परमेश्वर का चिंतन करना चाहते हो, वह तुम्हारे घट में विराजमान है।
घट में है सूझे नहीं, लानत ऐसी जिन्द।
तुलसी या संसार को, भयो मोतियाबिंद।।
नहीं दिखाई देता है न ! पर वह है !
ज्यों तिल माहीं तेल है, ज्यों चकमक में आगि।
तेरा साँईं तुझ में, जाग सके तो जागि।।
तुलसी या संसार को, भयो मोतियाबिंद।।
नहीं दिखाई देता है न ! पर वह है !
ज्यों तिल माहीं तेल है, ज्यों चकमक में आगि।
तेरा साँईं तुझ में, जाग सके तो जागि।।
लोग सोचते हैं, ईश्वर पर्वतों पर है। वहां मंदिर होते हैं और मंदिरों में
नीचे से ऊपर तक सीढ़ियाँ बनी हुई हैं। कोई भगवान के दर्शन करना चाहता है,
पैरों की जरूरत पड़ेगी उसको। पैरों की ही जरूरत नहीं, बल्कि पैर भी उसके
शक्तिशाली होने चाहिए। नहीं तो इतनी सीढ़ियां हैं, वह चढ़ नहीं पाएगा।
जैसे उस मंदिर पर चढ़ने के लिए शक्ति की जरूरत है, इसी तरह हृदय स्थित
मंदिर तक पहुंचने के लिए श्रद्धा की जरूरत है। कैसी श्रद्धा ? सच्ची
श्रद्धा ! बात तो कर दी, सच्ची श्रद्धा। बताइए आपने अपने जीवन में सच्ची
श्रद्धा का कभी अनुभव किया है या नहीं ? सच्ची श्रद्धा क्या होती है ?
जिसमें छल-कपट न हो। पर क्या कोई काम किया बिना छल-कपट के जिसमें छल न हो,
कपट न हो ?
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