धर्म एवं दर्शन >> सिद्धान्त रहस्य सिद्धान्त रहस्यकिरीट भाई जी
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सिद्धान्त रहस्य....
प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश
भक्ति हर एक जीव कर सकता है। भक्ति सहज और सरल है। कलियुग में भक्ति
श्रेष्ठ है। अन्य मार्ग का खंडन-मंडन नहीं है और न ही टीका-तुलना। कितने
लोग कर्मकांड कर सकते हैं ? क्या आपके पास फुर्सत है ? ज्ञान मार्ग के लिए
तीव्र वैराग्य चाहिए। जबकि भक्ति मार्ग में तीव्र प्रेम चाहिए।
सिद्धान्त रहस्य
नारायणर्म नमस्कृत्य नरम चैव नरोत्तम,
देवी सरस्वती व्यासम ततो जय मुदारये
देवी सरस्वती व्यासम ततो जय मुदारये
परमात्मा श्री कृष्णशील सिन्धु करुणा वरुणालय वसुदेव सुतम श्री नन्दनन्दन
यसोदा नन्दन देवकी नन्दन रास कासे स्वर पुष्टि पुरुषोत्तम गोपीजन बल्लभ
परम कृपालु दयालु साक्षात परापरब्रह्म कृष्णवस्तु भगवान स्वयं श्री राधा
माधव की कृपा से और हम जो जीव मात्र के सुहृदय है जो जीव मात्र के गणतव्य
है। शान्ति, सुख, आनन्द की जो खान है। निसादान जीवों का कलियुग में एक ही
साधन कलियुग में मृत्यु के अधीन मदहा, सुगन्धेमेतयो मदभाग्य, दुपद्वता, इस
प्रकार के वैसे वही परमात्मा भगवान श्री कृष्ण की पंक्ति गाथा, कथन करने
के लिए अध्ययन करने के लिए चिन्तन करने के लिए हम यहाँ एकत्रित हुए हैं।
यह हमारा परम सौभाग्य है। गुरु की कृपा है। परमात्मा जब जीव पर कृपा करते
हैं तब उनको सम्पत्ति नहीं सन्तों का दर्शन करवाते हैं। संतों का दर्शन
करने से बुद्धि में शुद्धता आती है संतों के दर्शन करने से जन्म-जन्म के
जो पाप होते है।
वो कलमाल का क्षालन होकर जीवात्म को परमात्मा के सन्मुख जाने लायक बनाते हैं वही संतों वही परम भागवत पुरुषों जिसमें अहेतु की अप्रति हत्ता ये आत्मा समप्रसीदती की भावना से अन्तरिक्ष में कहीं प्रकट कहीं अप्रकट के रूप में जब हमारे सम्मुख आते है। तो इनका ध्येय होता है। किसी जीव का कल्याण कैसे हो। भगवान श्रीकृष्ण का दर्शन उनका स्वरूप सबके लिए सुलभ नहीं है बल्कि गीता में भगवान श्रीकृष्ण ने जब कहा है समभवामी युगे-युगे तो पूर्ण पुरुषोत्तम के रूप में प्रकट हो न हो बल्कि उनके अंश का भी यदि दर्शन हो तो पूर्ण पुरुषोत्तम के रूप में प्रकट न हो बल्कि उनके अंश का भी यदि दर्शन हो तो शास्त्रों में तो यही लिखा है गंगा पापम् शशी शापन देनयम काव्य तरूक्स्तथा, बल्कि, पाप, देनयमच, दर्नम् जनोती यही कोई साधु सन्त का दर्शन हो जाएँ तो पाप, ताप, संताप ये तीनों का नाश कर देते है। परमात्मा ने जब हम पर कृपा की है तो यह कोई ग्रन्थ नहीं है पुस्तक नहीं है ये साक्षात शुकदेव जी का स्वरूप है शुकदेव जी परम भागवत् पुरुष संत है। शास्त्र में बताया गया है कि भक्त और भगवान में कोई अन्तर नहीं होता।
मर्यादा पुरुषोत्तम की पवित्र वाणी हैं। शबरी मैया के सामने यही प्रभु बोले की हे भामिनी मोते संत अधिक कर लेखा ! मेरे से ज्यादा मेरे संत होते है परमात्मा जब कृपा करे तो संतों का दर्शन होता है। संतों का दर्शन जब होता है। हमारा मन शुद्ध होता है शुभ विचार आते हैं जीवात्म शुभ संकल्प करता है और संतों तो दर्शन और संतों का स्मरण पाप करने से हमको रोकता है। ये ब्रेक सिस्टम है। ये ब्रह्मज्ञानी शुकदेव जी नहीं है ये ब्रह्म दृष्टा है। इन्हीं के साथ-साथ कृष्ण प्रेमी है। इन्हीं की संगति हमें मिली है। जीवात्मा शान्ति की प्राप्ति के लिए अनेकानेक जरिए उठाते है जिसके माध्यम से उनको परमशान्ति सुख मिल जाए। कोई पदवी में कोई प्रतिष्ठा में कोई परिवार में, कोई पत्नी में, कोई पति में कोई पुत्र में यह सब जगह तो आपने देख लिया महाराज ये स्थान एक जगह बची है। जहाँ सच्ची शान्ति सच्चा सुख सरल प्राप्ति होने वाली है पैसा में नहीं प्रतिष्ठा में नहीं पदवीं में नहीं पति में नहीं परमात्मा में जो मिलनेवाली है उन्हीं का दर्शन हम करेंगे मेरे प्रभु।
पदार्थ के लिए तो हम खूब रोए है महाराज। सुबह से शाम तक खून पसीना एक किया बाकि हमको शान्ति मिली न सुख मिला। शास्त्रों में शब्द आता है। ‘‘असार खलु संसार दूर्ख रूपी विमोहक’’ सुतय कस्य धनम कस्य स्नेहवान जलते निशभ। किसका बेटा, किसकी पत्नी किसका धन ये परम कृपालु परम दयालु जो बिना कारण द्रवे जो बिना कारण बिना हेतु जीवात्मा के ऊपर कृपा करने वाले हैं उन्हीं परमात्मा के लिए नौ दिन तक रोना हम सीखे। मेरा प्रभु जीवात्मा सम्मुख होकर जब तक रोता नहीं तब तक वो निस्पाप नहीं होता और निस्पाप नहीं होगा तब तक दया जीव पर नहीं आयेगी और जब तक दया नहीं आयेगी तब तक भक्ति प्रकट नहीं होगी और जब तक भक्ति जीवन में नहीं आयेगी तब तक मेरे भगवान परमात्मा की प्राप्ति कैसे होगी तो पहले से अन्दर से छालन जो करना है तो दूसरा कोई तरीका है ही नहीं महाराज। सामान्य जल से तो तन की शुद्धि होती है दिनों महाराज।
भक्ति रूपी जल से तो तन की शुद्धि होती है दिनों तक। आपको और हमको यही करना है। भागवत तो आप लोग सुन सके हो वो तो आप लोग जानते हो गिरिराज गोवर्धन को धारण किया, माखन की चोरी की, होपियों के साथ रास किया ये सुनानें नहीं आए। आचार्य चरण अखिल ब्राह्मण्ड के नायक इनके परम उपासक अग्नि स्वरूप आचार्य चरण बल्लभाचार्य महाराज ने 25 ग्रन्थों में से सिद्धान्त रहस्य जो लिखा है। सिद्धान्त रहस्य में साढ़े आठ श्लोक आते हैं तो आज का दिन तो चला गया। 8 दिन रह गए तो आठ ही श्लोक आते हैं सिद्धान्त रहस्य में। रोज एक-एक श्लोक मैं आपको समझाऊँगा कि आचार्य चरण आपको और हमको क्या कह रहे है यह सिद्धान्त रहस्य में परमात्मा स्वयं इसमें एक भी अक्षर एक भी चरण आचार्य का नहीं है। वो स्वयम कहेगा कि एक-एक अक्षरण परमात्मा एकादर्शी के दिन रात 12 बजे ठकुरानी घाट में प्रकट हुए इन्होंने जो कहा है जो आज्ञा दी है वही मैं आपकों बताऊँगा। इसमें मेरा कुछ नहीं है। न आचार्य चरण ब्रह्म का ये वो साक्षात पराम्परा ब्रह्म की वाणी है ठाकुर जी बोले है सिद्धान्त रहस्य में सवेरे के समय में गौर सुनना मेरे भाई-बहन। शायद वे दुबारा किसी को सुनाऊँगा नहीं यह शास्त्रों का तो कोई अन्त ही नहीं।
शोनकजी महाराज स्वयं कहे सतुपुराणी स्वयं कहे कि महाराज जन्म से अन्तिम समय तक यही शास्त्र का अध्ययन करेंगे। इसका तो कोई अन्त ही नहीं होता और सनातन धर्म की तो यही विविधता है कि हमारा तो खजाना अखण्ड् है महाराज। इसका तो कोई अन्त नहीं है। यदि वेद की बातों में आपके सामने करूं तो शायद इतनी समझ नहीं आएगी। उपनिषद के लिए तो आपको ये पंखें के लिए न ही पेड़ों के नीचे बैठना पड़ेगा। बाकी महापुरुषों की वाणी आपके और हमारे जीवन में कहीं न कहीं उपयोगी है सौ मैं आपकों बताऊँ। भाई-भाई के बीच क्या व्यवहार होना चाहिए। आज पति-पत्नी का जो संघर्ष होता है। बाप बेटे कोर्ट में जाकर लड़ते हैं। मेरे को प्रतिफल व्यवहार मेरी क्या करना चाहिए उपनिषदों में विन्ध्याचल शिखरों की जो शीतलता है। हिमालय पहाड़ों के वृक्षों की जो सुगन्ध है। कल-कल की जो आवाज़ है वही आवाज महापुरुषों के माध्यम से आप और हमारे बीच में जो आई है वही दर्शन करना है। मैंने शुरू में यही कहा भगवान श्री कृष्ण परमात्मा श्री कृष्ण निशाधन जो जीव है इन्हीं का ये साधन है दूसरा कोई उपाय नहीं है। इसलिए आचार्य चरण स्वयं बोले कृष्ण एवं गतीरमम: एवं गतीरमम: तो भगवान श्री कृष्ण जी व मात्र का हितैषी हूं सहृदय और जीव के लिए चिन्तीय हूं।
कलियुग में नि:साधन जीवन-मृत्यु के अधीन आलसी लोग भाग्य बन्द, इस प्रकार के जीव के ऊपर परमात्मा हेतु की जो कृपा करते है वही कृपा जीवात्मा अपने पात्र में रख सके। इनके लिए तैयारी करनी पड़ती है। प्रभु का अनुग्रह परमात्मा की कृपा, ईश्वर काल प्रेम जीव मात्र पर समान है। कोई भेद नहीं है परमात्मा के व्यवहार में विषमता है भाव और प्रेम में समानता है। जीवात्मा यही परमात्मा का चिन्तन करे तो परमात्मा की जीवात्मा की चिन्ता करता है। शास्त्र में शब्द आता है। जा बसा जीव पराभाव कृपा प्रहलादजी महाराज ने इस जगत के अन्धकूपम हिरण्य कशिपु को उन्होंने समझाया कि पिता श्री इस अन्धकूप में कर्म और वासना के कारण से जीव बारबार इसी में आकर गिरता है तो इस अन्धकूप में से हम कौन बचावे कीचड़ की बस्ती में गन्दगी में रहने वालों को अमुक समय तक बदबू आती है बाद में वो सहन हो जाती है। शोरगुल में आप रहते हो अमुक समय तक आपकों नींद नहीं आएगी बाकी बाद में वो शोरगुल सुनाई नहीं देता नींद आ जाती है। ठीक उसी तरह से ये जीवात्मा बार-बार इसमें आता तो है प्रथम में जीवन मरण परम दु:ख दाई तो उनको समझ आता है बाकी अमुक समय बाद ये ही सहजता बन जाती है। दुर्गंध बदबू नासिका में कानों में शोरगुल सुनाई नहीं देता है यही है जीवन इस प्रकार के जीव का उद्धार कैसे हो आइए भारतवर्ष के जो सन्त महापुरुष हुए हैं ? ऋषियों जो हुए है इन लोगों को अपनी चिन्ता नहीं करनी चाहिए। महापुरुषों से अन्य का दुख: देखा नहीं जाता दूसरों की पीड़ा अपनी लगती है। इनके लिए जीवात्मा चिन्तित होता है।
दु:ख की खोज को तप कहा जाता गया है तप की व्याख्या ही दुख: की खोज है। ये महापुरुषों ने तप किया है भारत में कितने महापुरुष हुए है। इन महापुरुषों ने या तो अपने जीवन में से ईश्वर प्रेरित अन्य जीवों का कैसे उद्धार हो इसी पर विचार किया और मार्ग दर्शन बताया। आइए अखण्ड भूमण्डलाकार आचार्य चरण श्री बल्लभाचार्य ने सोणथ ग्रन्थ लिखे हैं भगवान श्रीनाथ जी के चरणों में श्रीनाथ द्वारे में वही आचार्य चरण के श्री कृष्णाशेद मैंने समझाया था। यहाँ सिद्धान्त रहस्य क्या है ये महानगर में हम उनका दर्शन करे यदि आयु रही ईश्वर ने चाहा तो शंकराचार्य इसी के बाद आयेगा अन्य महापुरुष भी आएंगे। हमारी दृष्टि में कोई भेदभाव नहीं है।
‘‘सर्व खालु इदम ब्रह्म’’ भगवान् श्रीकृष्ण ने अर्जुन को गीता में यही कहा है कि हे अर्जुन बहुत जन्मों के बाद करोड़ों की संख्या के मध्य में कोई पुरुष है जिनकी दृष्टि वसुदेव सर्वम् इति ये जगत ब्रह्ममय है ये मेरा ही स्वरूप है। युग बीत जाए और करोड़ों के मध्य में कोई ऐसा पुरुष होता है हमारी दृष्टि में कोई भेदभाव नहीं है। 16 कथा तक 16 ग्रन्थ जो आचार्य चरण ने लिखा है उनका दर्शन कराऊँ और प्रभू ने चाहा तो शंकराचार्य महाराज, माधवाचार्य निम्बकाचार्य महापुरुषों ने आपको और हमको जो रास्ता बताया है और साभ्य है कोई खण्डन मण्डन करने वाले नहीं है। रास्ते को कोई काटते नहीं ये आचार्य जो है। उनको कोई पुरुष न समझो ये साक्षात गोपी है।
गोपी है वेणु गीता में भगवान श्रीकृष्ण जमुना जी किनारे कदम्ब के वृक्ष के नीचे ललित त्रिभन्गी होकर परमात्मा ने जब बांसुरी बजाई एक गोपियाँ दर्शन करने आईन थी वेणु गीत का और कुछ तात्पर्य नहीं है। जो गोपनी ने जो देखा जो बोली वही उन्होंने बताया। कृष्ण तो एक थे वृक्ष के नीचे परमात्मा एक ही खड़े थे। एक ही बाँसुरी बजा रहे थे। ब्रह्म तो एक ही है बाकि एक गोपी सम्मुख खड़ी थी तो चरण बिन्द का दर्शन कर रही थी। एक यहां खड़ी तो उनको बाँसुरी सुनाई देती थी वो बाँसुरी के बारे में बोली हरेक गोपी का अनुभूत सत्य है। कोई भेदभाव नहीं है। ब्रह्म एक है। शंकारचार्य यहां खड़े हैं। बल्लभाचार्य वहां खड़े हैं।
वो कलमाल का क्षालन होकर जीवात्म को परमात्मा के सन्मुख जाने लायक बनाते हैं वही संतों वही परम भागवत पुरुषों जिसमें अहेतु की अप्रति हत्ता ये आत्मा समप्रसीदती की भावना से अन्तरिक्ष में कहीं प्रकट कहीं अप्रकट के रूप में जब हमारे सम्मुख आते है। तो इनका ध्येय होता है। किसी जीव का कल्याण कैसे हो। भगवान श्रीकृष्ण का दर्शन उनका स्वरूप सबके लिए सुलभ नहीं है बल्कि गीता में भगवान श्रीकृष्ण ने जब कहा है समभवामी युगे-युगे तो पूर्ण पुरुषोत्तम के रूप में प्रकट हो न हो बल्कि उनके अंश का भी यदि दर्शन हो तो पूर्ण पुरुषोत्तम के रूप में प्रकट न हो बल्कि उनके अंश का भी यदि दर्शन हो तो शास्त्रों में तो यही लिखा है गंगा पापम् शशी शापन देनयम काव्य तरूक्स्तथा, बल्कि, पाप, देनयमच, दर्नम् जनोती यही कोई साधु सन्त का दर्शन हो जाएँ तो पाप, ताप, संताप ये तीनों का नाश कर देते है। परमात्मा ने जब हम पर कृपा की है तो यह कोई ग्रन्थ नहीं है पुस्तक नहीं है ये साक्षात शुकदेव जी का स्वरूप है शुकदेव जी परम भागवत् पुरुष संत है। शास्त्र में बताया गया है कि भक्त और भगवान में कोई अन्तर नहीं होता।
मर्यादा पुरुषोत्तम की पवित्र वाणी हैं। शबरी मैया के सामने यही प्रभु बोले की हे भामिनी मोते संत अधिक कर लेखा ! मेरे से ज्यादा मेरे संत होते है परमात्मा जब कृपा करे तो संतों का दर्शन होता है। संतों का दर्शन जब होता है। हमारा मन शुद्ध होता है शुभ विचार आते हैं जीवात्म शुभ संकल्प करता है और संतों तो दर्शन और संतों का स्मरण पाप करने से हमको रोकता है। ये ब्रेक सिस्टम है। ये ब्रह्मज्ञानी शुकदेव जी नहीं है ये ब्रह्म दृष्टा है। इन्हीं के साथ-साथ कृष्ण प्रेमी है। इन्हीं की संगति हमें मिली है। जीवात्मा शान्ति की प्राप्ति के लिए अनेकानेक जरिए उठाते है जिसके माध्यम से उनको परमशान्ति सुख मिल जाए। कोई पदवी में कोई प्रतिष्ठा में कोई परिवार में, कोई पत्नी में, कोई पति में कोई पुत्र में यह सब जगह तो आपने देख लिया महाराज ये स्थान एक जगह बची है। जहाँ सच्ची शान्ति सच्चा सुख सरल प्राप्ति होने वाली है पैसा में नहीं प्रतिष्ठा में नहीं पदवीं में नहीं पति में नहीं परमात्मा में जो मिलनेवाली है उन्हीं का दर्शन हम करेंगे मेरे प्रभु।
पदार्थ के लिए तो हम खूब रोए है महाराज। सुबह से शाम तक खून पसीना एक किया बाकि हमको शान्ति मिली न सुख मिला। शास्त्रों में शब्द आता है। ‘‘असार खलु संसार दूर्ख रूपी विमोहक’’ सुतय कस्य धनम कस्य स्नेहवान जलते निशभ। किसका बेटा, किसकी पत्नी किसका धन ये परम कृपालु परम दयालु जो बिना कारण द्रवे जो बिना कारण बिना हेतु जीवात्मा के ऊपर कृपा करने वाले हैं उन्हीं परमात्मा के लिए नौ दिन तक रोना हम सीखे। मेरा प्रभु जीवात्मा सम्मुख होकर जब तक रोता नहीं तब तक वो निस्पाप नहीं होता और निस्पाप नहीं होगा तब तक दया जीव पर नहीं आयेगी और जब तक दया नहीं आयेगी तब तक भक्ति प्रकट नहीं होगी और जब तक भक्ति जीवन में नहीं आयेगी तब तक मेरे भगवान परमात्मा की प्राप्ति कैसे होगी तो पहले से अन्दर से छालन जो करना है तो दूसरा कोई तरीका है ही नहीं महाराज। सामान्य जल से तो तन की शुद्धि होती है दिनों महाराज।
भक्ति रूपी जल से तो तन की शुद्धि होती है दिनों तक। आपको और हमको यही करना है। भागवत तो आप लोग सुन सके हो वो तो आप लोग जानते हो गिरिराज गोवर्धन को धारण किया, माखन की चोरी की, होपियों के साथ रास किया ये सुनानें नहीं आए। आचार्य चरण अखिल ब्राह्मण्ड के नायक इनके परम उपासक अग्नि स्वरूप आचार्य चरण बल्लभाचार्य महाराज ने 25 ग्रन्थों में से सिद्धान्त रहस्य जो लिखा है। सिद्धान्त रहस्य में साढ़े आठ श्लोक आते हैं तो आज का दिन तो चला गया। 8 दिन रह गए तो आठ ही श्लोक आते हैं सिद्धान्त रहस्य में। रोज एक-एक श्लोक मैं आपको समझाऊँगा कि आचार्य चरण आपको और हमको क्या कह रहे है यह सिद्धान्त रहस्य में परमात्मा स्वयं इसमें एक भी अक्षर एक भी चरण आचार्य का नहीं है। वो स्वयम कहेगा कि एक-एक अक्षरण परमात्मा एकादर्शी के दिन रात 12 बजे ठकुरानी घाट में प्रकट हुए इन्होंने जो कहा है जो आज्ञा दी है वही मैं आपकों बताऊँगा। इसमें मेरा कुछ नहीं है। न आचार्य चरण ब्रह्म का ये वो साक्षात पराम्परा ब्रह्म की वाणी है ठाकुर जी बोले है सिद्धान्त रहस्य में सवेरे के समय में गौर सुनना मेरे भाई-बहन। शायद वे दुबारा किसी को सुनाऊँगा नहीं यह शास्त्रों का तो कोई अन्त ही नहीं।
शोनकजी महाराज स्वयं कहे सतुपुराणी स्वयं कहे कि महाराज जन्म से अन्तिम समय तक यही शास्त्र का अध्ययन करेंगे। इसका तो कोई अन्त ही नहीं होता और सनातन धर्म की तो यही विविधता है कि हमारा तो खजाना अखण्ड् है महाराज। इसका तो कोई अन्त नहीं है। यदि वेद की बातों में आपके सामने करूं तो शायद इतनी समझ नहीं आएगी। उपनिषद के लिए तो आपको ये पंखें के लिए न ही पेड़ों के नीचे बैठना पड़ेगा। बाकी महापुरुषों की वाणी आपके और हमारे जीवन में कहीं न कहीं उपयोगी है सौ मैं आपकों बताऊँ। भाई-भाई के बीच क्या व्यवहार होना चाहिए। आज पति-पत्नी का जो संघर्ष होता है। बाप बेटे कोर्ट में जाकर लड़ते हैं। मेरे को प्रतिफल व्यवहार मेरी क्या करना चाहिए उपनिषदों में विन्ध्याचल शिखरों की जो शीतलता है। हिमालय पहाड़ों के वृक्षों की जो सुगन्ध है। कल-कल की जो आवाज़ है वही आवाज महापुरुषों के माध्यम से आप और हमारे बीच में जो आई है वही दर्शन करना है। मैंने शुरू में यही कहा भगवान श्री कृष्ण परमात्मा श्री कृष्ण निशाधन जो जीव है इन्हीं का ये साधन है दूसरा कोई उपाय नहीं है। इसलिए आचार्य चरण स्वयं बोले कृष्ण एवं गतीरमम: एवं गतीरमम: तो भगवान श्री कृष्ण जी व मात्र का हितैषी हूं सहृदय और जीव के लिए चिन्तीय हूं।
कलियुग में नि:साधन जीवन-मृत्यु के अधीन आलसी लोग भाग्य बन्द, इस प्रकार के जीव के ऊपर परमात्मा हेतु की जो कृपा करते है वही कृपा जीवात्मा अपने पात्र में रख सके। इनके लिए तैयारी करनी पड़ती है। प्रभु का अनुग्रह परमात्मा की कृपा, ईश्वर काल प्रेम जीव मात्र पर समान है। कोई भेद नहीं है परमात्मा के व्यवहार में विषमता है भाव और प्रेम में समानता है। जीवात्मा यही परमात्मा का चिन्तन करे तो परमात्मा की जीवात्मा की चिन्ता करता है। शास्त्र में शब्द आता है। जा बसा जीव पराभाव कृपा प्रहलादजी महाराज ने इस जगत के अन्धकूपम हिरण्य कशिपु को उन्होंने समझाया कि पिता श्री इस अन्धकूप में कर्म और वासना के कारण से जीव बारबार इसी में आकर गिरता है तो इस अन्धकूप में से हम कौन बचावे कीचड़ की बस्ती में गन्दगी में रहने वालों को अमुक समय तक बदबू आती है बाद में वो सहन हो जाती है। शोरगुल में आप रहते हो अमुक समय तक आपकों नींद नहीं आएगी बाकी बाद में वो शोरगुल सुनाई नहीं देता नींद आ जाती है। ठीक उसी तरह से ये जीवात्मा बार-बार इसमें आता तो है प्रथम में जीवन मरण परम दु:ख दाई तो उनको समझ आता है बाकी अमुक समय बाद ये ही सहजता बन जाती है। दुर्गंध बदबू नासिका में कानों में शोरगुल सुनाई नहीं देता है यही है जीवन इस प्रकार के जीव का उद्धार कैसे हो आइए भारतवर्ष के जो सन्त महापुरुष हुए हैं ? ऋषियों जो हुए है इन लोगों को अपनी चिन्ता नहीं करनी चाहिए। महापुरुषों से अन्य का दुख: देखा नहीं जाता दूसरों की पीड़ा अपनी लगती है। इनके लिए जीवात्मा चिन्तित होता है।
दु:ख की खोज को तप कहा जाता गया है तप की व्याख्या ही दुख: की खोज है। ये महापुरुषों ने तप किया है भारत में कितने महापुरुष हुए है। इन महापुरुषों ने या तो अपने जीवन में से ईश्वर प्रेरित अन्य जीवों का कैसे उद्धार हो इसी पर विचार किया और मार्ग दर्शन बताया। आइए अखण्ड भूमण्डलाकार आचार्य चरण श्री बल्लभाचार्य ने सोणथ ग्रन्थ लिखे हैं भगवान श्रीनाथ जी के चरणों में श्रीनाथ द्वारे में वही आचार्य चरण के श्री कृष्णाशेद मैंने समझाया था। यहाँ सिद्धान्त रहस्य क्या है ये महानगर में हम उनका दर्शन करे यदि आयु रही ईश्वर ने चाहा तो शंकराचार्य इसी के बाद आयेगा अन्य महापुरुष भी आएंगे। हमारी दृष्टि में कोई भेदभाव नहीं है।
‘‘सर्व खालु इदम ब्रह्म’’ भगवान् श्रीकृष्ण ने अर्जुन को गीता में यही कहा है कि हे अर्जुन बहुत जन्मों के बाद करोड़ों की संख्या के मध्य में कोई पुरुष है जिनकी दृष्टि वसुदेव सर्वम् इति ये जगत ब्रह्ममय है ये मेरा ही स्वरूप है। युग बीत जाए और करोड़ों के मध्य में कोई ऐसा पुरुष होता है हमारी दृष्टि में कोई भेदभाव नहीं है। 16 कथा तक 16 ग्रन्थ जो आचार्य चरण ने लिखा है उनका दर्शन कराऊँ और प्रभू ने चाहा तो शंकराचार्य महाराज, माधवाचार्य निम्बकाचार्य महापुरुषों ने आपको और हमको जो रास्ता बताया है और साभ्य है कोई खण्डन मण्डन करने वाले नहीं है। रास्ते को कोई काटते नहीं ये आचार्य जो है। उनको कोई पुरुष न समझो ये साक्षात गोपी है।
गोपी है वेणु गीता में भगवान श्रीकृष्ण जमुना जी किनारे कदम्ब के वृक्ष के नीचे ललित त्रिभन्गी होकर परमात्मा ने जब बांसुरी बजाई एक गोपियाँ दर्शन करने आईन थी वेणु गीत का और कुछ तात्पर्य नहीं है। जो गोपनी ने जो देखा जो बोली वही उन्होंने बताया। कृष्ण तो एक थे वृक्ष के नीचे परमात्मा एक ही खड़े थे। एक ही बाँसुरी बजा रहे थे। ब्रह्म तो एक ही है बाकि एक गोपी सम्मुख खड़ी थी तो चरण बिन्द का दर्शन कर रही थी। एक यहां खड़ी तो उनको बाँसुरी सुनाई देती थी वो बाँसुरी के बारे में बोली हरेक गोपी का अनुभूत सत्य है। कोई भेदभाव नहीं है। ब्रह्म एक है। शंकारचार्य यहां खड़े हैं। बल्लभाचार्य वहां खड़े हैं।
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