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प्रकृति द्वारा स्वास्थ्य हल्दी और फिटकरी

राजीव शर्मा

प्रकाशक : डायमंड पॉकेट बुक्स प्रकाशित वर्ष : 2005
पृष्ठ :64
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 3486
आईएसबीएन :81-288-0910-5

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हल्दी और फिटकरी के गुणों का वर्णन...

Prakrati Dwara Swasthya Haldi Aur Fitkari

प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश


प्रकृति हम सबको सदा स्वस्थ बनाए रखना चाहती हैं और इसके लिए प्रकृति ने अनेक प्रकार के फल, फूल, साग, सब्जियां, जड़ी-बूटियाँ, अनाज,  दूध,  दही, मसाले, शहद, जल एवं अन्य उपयोगी व गुणकारी वस्तुएँ प्रदान की हैं। इस उपयोगी पुस्तक माला में हमने इन्हीं उपयोगी वस्तुओं के गुणों एवं उपयोग के बारे में विस्तार से चर्चा की है। आशा है यह पुस्तक आपके समस्त परिवार को सदा स्वस्थ बनाए रखने के लिए उपयोगी सिद्ध होगी।

प्रकृति ने हमारे शरीर-संरचना एवं स्वभाव को ध्यान में रखकर ही औषधीय गुणों से युक्त पदार्थ बनाए हैं। शरीर की भिन्न-भिन्न व्याधियों के लिए उपयोगी ये प्राकृतिक भोज्य पदार्थ, अमृततुल्य हैं।
इन्हीं अमृततुल्य पदार्थों जैसे तुलसी-अदरक, हल्दी, आँवला, पपीता, बेल, प्याज, लहसुन, मूली, गाजर, नीबू, सेब, अमरूद आदि के औषधीय गुणों व रोगों में इनके प्रयोग के बारे में जानकारी अलग-अलग पुस्तकों के माध्यम से आप तक पहुंचाने का प्रयास है-यह पुस्तक।

प्रस्तावना


प्रकृति ने हमारे शरीर, गुण व स्वभाव को दृष्टिगत रखते हुए फल, सब्जी, मसाले, द्रव्य आदि औषधीय गुणों से युक्त ‘‘घर के वैद्यों’’ का भी उत्पादन किया है। शरीर की भिन्न-भिन्न व्याधियों के लिए उपयोगी ये प्राकृतिक भोज्य पदार्थ, अमृततुल्य हैं। ये पदार्थ उपयोगी हैं, इस बात का प्रमाण प्राचीन आयुर्वेदिक व यूनानी ग्रंथों में ही नहीं मिलता, वरन् आधुनिक चिकित्सा विज्ञान भी इनके गुणों का बखान करता नहीं थकता। वैज्ञानिक शोधों से यह प्रमाणित हो चुका है कि फल, सब्जी, मेवे, मसाले, दूध, दही आदि पदार्थ विटामिन, खनिज व कार्बोहाइड्रेट जैसे शरीर के लिए आवश्यक तत्त्वों का भंडार हैं। ये प्राकृतिक भोज्य पदार्थ शरीर को निरोगी बनाए रखने में तो सहायक हैं ही, साथ ही रोगों को भी ठीक करने में पूरी तरह सक्षम है।

तुलसी, अदरक, हल्दी, आँवला, पपीता, बेल, प्याज, लहसुन, मूली, गाजर, नीबू, सेब, अमरूद, आम, विभिन्न सब्जियां मसाले व दूध, दही, शहद आदि के औषधीय गुणों व रोगों में इनके प्रयोग के बारे में अलग-अलग पुस्तकों के माध्यम से आप तक पहुंचाने का प्रयास ‘मानव कल्याण’ व ‘सेवा भाव’ को ध्यान में रखकर किया गया है।
उम्मीद है, पाठकगण इससे लाभान्वित होंगे।
सादर,

-डॉ. राजीव शर्मा
आरोग्य ज्योति
320-322 टीचर्स कॉलोनी
बुलन्दरशहर, उ.प्र.


हल्दी-सामान्य परिचय


यद्यपि हल्दी पूरे शरीर की रक्षा करती है तो भी विशेषकर आंखों के लिए बहुत उपयोगी है। इसका नियमित सेवन करने से यह आंखों की रोशनी तेज करती है तथा आंखों को साफ करती है। जिस प्रकार बिजली की लाइन अंधेरे घर में उजाला कर देती है उसी तरह यह हमारी आंखों को रोशनी प्रदान करती है। प्राचीन लोग आंखों में एक पेस्ट लगाते थे जिसे ‘ममीर’ कहते थे। वह हल्दी से ही बनाया जाता था।

सौन्दर्यवर्धक


हल्दी केवल सब्जी या दाल को ही स्वादिष्ट नहीं बनाती, यह खाने वाले शरीर को भी सुन्दर बनाती है। यह कोई आश्चर्य की बात नहीं है कि व्यवसायी लोग, जो शरीर को सुन्दर बनाने की क्रीम बनाते हैं, उसमें हल्दी का प्रयोग करते हैं ताकि बिक्री अच्छी हो सके। लेकिन ये लोग हल्दी का सीधा प्रयोग नहीं करते, उसमें रंग और सुगंध का प्रयोग करते हैं। इसी कारण यह क्रीम इतनी असरदार नहीं होती, जितनी चने के आटे में हल्दी और सरसों का तेल मिलाकर बनी क्रीम जिसे ‘उबटन’ के नाम से जाना जाता है। मध्यकालीन युग में राजकुमारियां और रानियां इसी उबटन को लगाया करती थीं।
हल्दी में पौष्टिक तेल की भी मात्रा होती है जो दिखाई नहीं देती। यह हल्दी सूखी त्वचा को चिकनी और मुलायम बनाती है। इसमें तेल की मात्रा होने पर भी इसका तेल चेहरे अथवा शरीर पर दिखाई नहीं देता। इसका तेल त्वचा के अन्दर जाकर उसे प्राकृतिक रूप देता है।

कीटनाशक


हल्दी का प्रयोग साफ, स्वच्छ तरीके से ही किया जाना चाहिए। क्योंकि यह कीटनाशक है और इसके प्रयोग से गलाव-सड़ाव नहीं होता इसलिए यह पवित्र है। पवित्र वस्तु का इस्तेमाल भी पूरी पवित्रता के साथ ही करना चाहिए। संस्कृत में हल्दी को कृमिघ्ना भी कहते हैं जिसका हिन्दी में अर्थ होता है कीटाणुनाशक। यदि शरीर के किसी भाग में पस हो जाए अथवा टी-बी. हो जाए तो हल्दी इन सभी रोगों के कीटाणुओं को नष्ट करने में समर्थ है।

रक्तशोधक


हल्दी की एक और विशेषता यह है कि यह रक्तशोधक है। यह रक्त के दोषों को मूत्र द्वारा अथवा दस्त द्वारा निकालकर दूर कर देती है। यह शरीर में चूने के पदार्थ के साथ मिलकर रक्त को शुद्ध लाल रंग का बनाती है। रक्त के रंग को लाल रंग का बनाने का प्रमाण यह है कि ‘‘यद्यपि हल्दी का रंग पीला होता है फिर भी पीलिया के रोगियों की चिकित्सा हकीम हल्दी द्वारा करते हैं।’’ इसलिए यह बाहर से पीले रंग की दिखाई देने वाली हल्दी अन्दर शरीर में जाकर रक्त को शुद्ध एवं लाल रंग का बनाती है। साथ ही हम जो खाना खाते हैं उसे हजम भी करती है। यूनानी चिकित्सकों का कहना है कि रक्त यदि बिगड़ जाए तो इसे शुद्ध करने के लिए हल्दी का प्रयोग करना चाहिए।

उबटन


विवाह जैसे मांगलिक अवसर पर महिलाएं विशेष रूप से हल्दी का उबटन तैयार करती हैं जो दुल्हन के तन-बदन को कंचन की तरह निखार देता है। यह उबटन त्वचा को और भी मोहक बनाता है और कंचन सी काया को कुन्दन की तरह चमका देता है। हल्दी के उबटन के बाद दुल्हन पर कैसा रूप चढ़ता है, यह हर गृहिणी जानती है।


धार्मिक महत्त्व



ब्रह्मचारियों के हल्दी से रंगे हुए यज्ञोपवीत, वानप्रस्थियों के हल्दी में निखरे हुए पीले वस्त्र उन्हें पवित्रता से भर देते हैं। यह कोरे दिखावे की निशानियां नहीं हैं, बल्कि इनका वैज्ञानिक महत्त्व भी है। हल्दी छूत के रोगों से बचाती है, तन-बदन में ठंडक डालती है, रक्त में संचार लाती है, खून की सफाई करती है, जुकाम-नजले से बचाती है, दिमाग को ताजगी देती है और फेफड़ों को सुगंधित वायु से भर देती है। पुराने जमाने में आंखों की सुरक्षा के लिए भी हल्दी से रंगी हुई पट्टी प्रयोग में लाते थे और इसकी ऐंटी-सेप्टिक गन्ध तथा वासन्ती तासीर आंखों को स्वच्छ एवं निर्मल बनाए रखती थी।


हल्दी की प्रजातियां व उनके प्रयोग


रसोई में जिस हल्दी का प्रयोग किया जाता है, उसके अलावा भी इसकी कुछ अन्य विशिष्ट प्रजातियां हैं, जिनका औषधीय गुणों के कारण विभिन्न रोगों में प्रयोग किया जाता है। प्रस्तुत है उन्हीं की संक्षिप्त लेकिन सटीक जानकारी।

आमा हल्दी


आमा हल्दी का वानस्पतिक नाम क्यूरकुमा अमाडा है। इसमें कच्चे आम की सी गन्ध आती है। इसीलिए इसे आमा हल्दी या आम्रगन्धि हरिद्रा कहा जाता है। इस प्रकार की हल्दी भारत के प्रायः सभी प्रान्तों में विशेष रूप से बंगाल, कोंकण तथा तमिलनाडु में उत्पन्न होती है। इसकी गांठें बड़ी-बड़ी अदरक के समान, पीले रंग की तथा आम की सी गन्ध से युक्त होती हैं।

रासायनिक संगठन—

इसमें एक से डेढ़ प्रतिशत तक एक उड़नशील तेल पाया जाता है। इसके अतिरिक्त इसमें राल, शुगर, गोंद स्टार्च, एल्ब्यूमिनॉयड कार्बनिक अम्ल तथा राख आदि पदार्थ पाए जाते हैं।


गुण—

आमा हल्दी शीतल, मधुर, पित्तशामक, आम की सी गन्ध वाली, पेट से वायु निकालने वाली, भोजन का पाचन कराने वाली, भूख बढ़ाने वाली एवं मल बांध कर लाने वाली होती है। सुगन्धित होने के कारण इसे चटनी आदि बनाने में उपयोग में लाते हैं। मिठाइयों आदि में भी आम की गन्ध लाने के लिए इसका उपयोग किया जाता है।

चिकित्सकीय उपयोग
आमा हल्दी का प्रयोग साधारणतया सामान्य हल्दी के स्थान पर किया जाता है।

वन हल्दी


वन हरिद्रा का वानस्पतिक नाम क्यूरकुमा ऐरोमेटिका है। यह भी भूमिगत तना होती है और सुखायी हुई पंसारी के यहां उपलब्ध होती है। इसका भीतरी भाग गाढ़े नारंगी रंग का होता है। इसमें से साधारण हल्दी से तेज और कर्पूर की सी गन्ध आती है। इसका सामान्यतः साधारण हल्दी के स्थान पर रंगाई के काम में उपयोग होता है। वन हल्दी समस्त भारत में विशेषतः मैसूर और मालवा प्रदेश के जंगलों में उत्पन्न होती है। इसकी खेती बंगाल और केरल में की जाती है।

रासायनिक संगठन


वन हल्दी में छः प्रतिशत एक हरे भूरे रंग का कर्पूर की सी गन्ध वाला उड़नशील तेल पाया जाता है तथा इसमें करक्यूमिन नामक रंजक द्रव्य होता है। इसके अतिरिक्त इसमें स्टार्च एवं एल्ब्यूमिनॉयड पाए जाते हैं।

गुण—

वन हल्दी में साधारण हल्दी के से गुण होते हैं।
चिकित्सकीय उपयोग—वन हल्दी का रक्त विकार एवं त्वचा रोगों की अन्य औषधियों के साथ उपयोग होता है।

दारु हल्दी


दारु हल्दी के वृक्ष जो हिमालय पर्वत पर तथा आसाम में पाए जाते हैं। जिनमें चार जातियों के वृक्ष मध्य भारत एवं दक्षिण भारत के नीलगिरी पर्वत पर पाए जाते हैं। इनका भूमिगत तना ही हल्दी होता है। बर्बेरिस अरिस्टेटा हल्दी का चिकित्सा में उपयोग किया जाता है। इस प्रकार की हल्दी पीले रंग की होती है, जिसमें हल्की-सी गंध आती है और स्वाद कड़ुवा होता है।

रासायनिक संगठन—

दारु हल्दी में 8 विभिन्न प्रकार के क्षारीय पदार्थ पाए जाते हैं। इनके अतिरिक्त दारु हल्दी में कषाय, दृव्य, गोंद एवं स्टार्च पदार्थ पाए जाते हैं।

गुण—

दारु हल्दी उष्ण होती है। इसके गुण अन्य प्रकार की हल्दियों के गुणों के समान होते हैं। दारु हल्दी के सत्व को रसौत कहा जाता है।

चिकित्सकीय उपयोग—

दारु हल्दी के चिकित्सकीय उपयोग साधारण हल्दी के चिकित्सकीय उपयोगों जैसे ही होते हैं।

त्वचा रोग


यह रोग अधिकतर खून की खराबी से उत्पन्न होते हैं। इसके बचाव के लिए स्वच्छ वातावरण में रहना चाहिए ! साथ ही खाद्य—पदार्थों में गरम मसालों, मिर्च-मसालों, खटाई, गुण, चीनी, शक्कर, मांस—मदिरा, धूम्रपान, तम्बाकू, विषम भोजन आदि से बचकर रहना चाहिए। पौष्टिक आहार नियमित व्यायाम, स्नान और स्वच्छ जल का सेवन और उचित उपचार इन रोगों को आपसे दूर भगाने में सहायक होते हैं।

चेहरे की झाइयां


चेहरे पर झाइयां पड़ जाने के अनेक कारण हैं। उम्र के साथ ही बाजारू क्रीम या लोशन चेहरे पर लगाते रहने से उस पर झाइयां पड़ जाती हैं या धब्बे हो जाते हैं। कारण यह है कि मुलायम त्वचा ऐसे लोशन से झुलस जाती है। उसे पुनः सुन्दर और आकर्षित बनाने के लिए प्रथम तो आवश्यक यह है कि लोशनों और क्रीमों का सेवन करना बन्द कर दिया जाए और हल्दी द्वारा तैयार किए गए उबटन का प्रयोग करना आरम्भ कर दें।

उपचार—

हल्दी का उबटन बनाने की विधि यह है कि दारु हल्दी दस ग्राम लेकर पीपल अथवा आक के दूध में डुबो दें और अच्छी तरह दूध को सोख लेने के बाद सायंकाल उसको घिसकर पेस्ट बना लें और किसी बर्तन में पेस्ट को रखकर ढक्कन बन्द कर दें तथा रात्रि को ओस में बाहर खुले में रख दें। अब उबटन पूरी तरह बनकर तैयार हो जाएगा। सुबह स्नान करने के आधा घण्टा पूर्व इस उबटन को चेहरे पर मलें और आधे घण्टे पश्चात् स्नान करें। एक सप्ताह तक नियमित इस उबटन का प्रयोग करके झाइयां मिट जाएंगी और त्वचा मुलायम होकर चेहरा आकर्षक हो जाएगा। बाद में सप्ताह में सिर्फ एक बार इस उबटन का सेवन करते रहें। किसी अन्य दवा का इस्तेमाल न करें।

गर्मी के दाने


जब तेज गर्मी पड़ती है और पसीना शरीर से निकलता है तो पसीने के साथ ही शरीर के अनेक खनिज भी बाहर निकल जाते हैं।
इन दिनों प्याज का सलाद बनाकर सैंधा नमक और काली मिर्च तथा नीबू डालकर खाना चाहिए। और इस प्रकार की व्यवस्था कीजिए कि पसीना शरीर पर ही सूख जाए, बहने न पाए। इसके लिए सिन्थेटिक्स अथवा सिल्क के कपड़ों को नहीं पहनना चाहिए, बल्कि सूती और मोटे कपड़े ही पहनने चाहिए जिससे कपड़े पसीना सोख लें।

उपचार—

एक किलो कच्ची हल्दी को पानी में डालकर उबाल लें। अच्छी तरह उबालकर पानी को आंच से उतार कर ठण्डा कर लें और छानकर किसी शीशे के ऐसे बर्तन में भरें जिसमें पहले से ही तीन सौ ग्राम शहद भरा हुआ हो। इस शहद युक्त पानी को दो सप्ताह तक रखा रहने दें। अब आपका ठण्डा पेय तैयार हो गया। इसमें चम्मच भर फालसे का जूस या अनार का रस मिला दें और इस शर्बत का सेवन गर्मी दूर करने और दानों को शरीर से हटाने के लिए सेवन करते रहें। शरीर पर गर्मियों में दाने नहीं निकलेंगे।

फोड़ा-फुंसी


शरीर पर छोटे-छोटे लाल दाने निकल आते हैं। कुछ समय बाद उनमें पीब पड़ जाती है और दर्द का अनुभव होता है।
खून की खराबी, दूषित वातावरण में रहन-सहन, दूषित जल व भोजन का प्रयोग। गरम मसाला व मांस-मदिरा, तम्बाकू, चाय—कॉफी, मीठी वस्तुओं का अत्यधिक सेवन।

उपचार

आधा किलो हल्दी पीसकर चार लीटर पानी में घोलकर उबालें और ठण्डा करके इसमें दो सौ ग्राम शहद मिला दें। इस मिश्रण को किसी शीशे के बर्तन में दो सप्ताह तक रखा रहने दें, अब इसको छानकर किसी साफ बोतल में भरकर रख दें। खाना खाने के बाद इस आसव को दस या पन्द्रह ग्राम की मात्रा में सेवन करें। इस आसव को पीने से रक्त साफ हो जाता है।
•    तुरन्त आराम पाने के लिए हल्दी के तेल में कपड़ा भिगोकर फोड़े-फुंसी पर लगावें।

दाद


शरीर पर किसी भी अंग में एक ही स्थान पर खुजली होने और उसे खुजाते रहने से दाद बन जाता है और वह स्थान काला हो जाता है।

उपचार—

शरीर के जिस अंग में भी दाद हो उस धब्बे को अपने ही मूत्र से धोइए, यह बहुत असरदार और दाद के कीटाणुओं को फैलने से रोकने के लिए उपयोगी प्राथमिक चिकित्सा है।
•    शरीर के अन्दर इस रोग की जड़े नष्ट करने के लिए नई-ताजी हल्दी को पीस कर उसमें थोड़ा शहद मिलाकर शरीर के अन्दर के कीटाणुओं को नष्ट करने के लिए सेवन करें। इसी मिश्रण की छोटी-छोटी गोलियां बना लें और सुबह तथा शाम को उन्हें चूसें। नियम से इस चिकित्सा को करने से पन्द्रह दिन में ही दाद का निशान भी मिट जाएगा और स्वच्छ त्वचा आ जाएगी।

झाइयां


जो लोग महंगी क्रीमों और तरह-तरह की सुगंधियों से मुखड़े को संवारने की कोशिश में रहते हैं, अधिकतर उन्हीं के चेहरे पर झाइयां देखने में आती हैं, क्योंकि सभी सुगन्धियों और क्रीमें तेजाबी (रासायनिक) प्रक्रिया से तैयार की जाती हैं। कुछ दिन उनसे चेहरों पर गेरापन भी आता है, मगर काले को गोरा करने के और गोरे को और निखार देने वाली क्रीमें त्वचा की ऊपरी परत झुलसा डालती हैं, बाद में खुरंट बन जाता है, बिल्कुल उसी तरह चेहरे पर झाइयां पैदा हो जाती हैं।

उपचार—

अगर मुखड़े पर सच्चा और टिकाऊ निखार चाहते हैं तो हल्दी का उबटन ही सर्वोत्तम है जो राजघरानों और भिखारियों के झोपड़ों दोनों में सदा से ही इस्तेमाल होता रहा है। रूज और क्रीमों से पैदा हुई झाइयां दूर करने के लिए दस ग्राम पिसी हल्दी पीपल या बड़ के दूध से तर कर दें। आस-पास पीपल या बरगद न मिले तो आक का दूध ही टपका लें। शाम को यह उबटन तर करके ढंक दें और सोने से पहले झाइयों पर मल दें। अगर शाम को न कर सकें तो सुबह तैयार कर लें और नहाने से आधा घंटा पहले चेहरे पर मल लें। एक ही सप्ताह में झाइयां विलीन हो जाएंगी। उसके बाद हल्दी के उबटन से ही शरीर में निखार और सुकोमलता लाइए।

खुजली


खुजली जिस किसी नर-नारी को पकड़ लेती है तो वह खारिश वाले कुत्ते की भांति खुजलाता ही रहता है, कुछ लोग इसके इलाज के बारे में लापरवाह हो जाते हैं, ऐसा तो उन्हें भूलकर भी सोचना नहीं चाहिए।

उपचार—

हल्दी एक चम्मच, चीनी दो चम्मच, गर्म दूध एक कप, देशी घी चौथाई कप। इन सब चीजों को कूटपीस कर छान कर पी लें, कुछ ही दिनों में आराम आ जाएगा।
•    सरसों का तेल 250 ग्राम, हल्दी 100 ग्राम, पानी 250 ग्राम। इन सब चीजों को लोहे की कड़ाही में डालकर मिला लें। फिर गर्म करने के लिए हल्की आंच पर पकाएं, जब यह उबलने लगे तो नीचे उतारकर ठंडा करके छान लें, छान कर उसे किसी बोतल में भर लें। इसे हर रोज शरीर पर मलने से खुजली दूर हो जाती है।
•    त्वचा की खुश्की और छूत रोग का प्रभाव मिटाने के लिए आप हल्दी-तेल ही मलिए, लेकिन खून की खराबी दूर करने के लिए हल्दी-वटी खाइए। हल्दी पीसकर शहद मिलाकर और बेर (जंगली बेर) के बराबर गोलियां बना लीजिए। हल्दी और शहद मिलकर रक्त की बूंद-बूंद से सारे जहर निकाल देते हैं। एक गोली हल्दी के गुणों को याद करके और दूसरी गोली शहद के गुणों को याद करके सुबह चूस जाइए, इसी तरह दो गोलियां शाम या रात को सेवन कीजिए। अन्दर से रक्त का शोधन हो जाएगा और बाहर की त्वचा में न खाज उठेगी, न खुजली रहेगी।
•    महिलाओं को चाहिए कि सप्ताह में एक नहीं तो महीने में एक बार ही सही, हल्दी और बेसन को सरसों के तेल में गूंधकर उबटन बना लें और सारे बदन पर इसे अच्छी तरह मला करें। इसका प्रभाव महीने भर तक बना रहता है और खाज-खुजली से शरीर बचा रहता है।



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