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प्रकृति द्वारा स्वास्थ्य पपीता और बेल

राजीव शर्मा

प्रकाशक : डायमंड पॉकेट बुक्स प्रकाशित वर्ष : 2004
पृष्ठ :62
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 3491
आईएसबीएन :81-288-0911-3

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पपीता और बेल के गुणों का वर्णन...

Prakrati Dwara Swasthya Papita Aur Bel

प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश


प्रकृति हम सबको सदा स्वस्थ बनाए रखना चाहती है और इसके लिए प्रकृति ने अनेक प्रकार के फल, फूल, साग, सब्जियां, जड़ी-बूटियां, अनाज, दूध, दही, मसाले, शहद, जल एवं अन्य उपयोगी व गुणकारी वस्तुएं प्रदान की हैं। इस उपयोगी पुस्तक माला में हमने इन्हीं उपयोगी वस्तुओं के गुणों एवं उपयोग के बारे में विस्तार से चर्चा की है। आशा है यह पुस्तक आपके समस्त परिवार को सदा स्वस्थ बनाए रखने के लिए उपयोगी सिद्ध होगी।

प्रकृति ने हमारे शरीर-संरचना एवं स्वभाव को ध्यान में रखकर ही औषधीय गुणों से युक्त पदार्थ बनाए हैं। शरीर की भिन्न-भिन्न व्याधियों के लिए उपयोगी ये प्राकृतिक भोज्य पदार्थ, अमृततुल्य हैं।
इन्हीं अमृततुल्य पदार्थों जैसे-तुलसी, अदरक, हल्दी, आंवला, पपीता, बेल, प्याज, लहसुन, मूली, गाजर, नीबू, सेब, अमरूद आदि के औषधीय गुणों व रोगों में इनके प्रयोग के बारे में जानकारी अलग-अलग पुस्तकों के माध्यम से आप तक पहुंचाने का प्रयास है—यह पुस्तक।

प्रस्तावना


प्रकृति ने हमारे शरीर, गुण व स्वभाव को दृष्टिगत रखते हुए फल, सब्जी, मसाले, द्रव्य आदि औषधीय गुणों से युक्त ‘‘घर के वैद्यों’’ का भी उत्पादन किया है। शरीर की भिन्न-भिन्न व्याधियों के लिए उपयोगी ये प्राकृतिक भोज्य पदार्थ, अमृततुल्य हैं। ये पदार्थ उपयोगी हैं, इस बात का प्रमाण प्राचीन आयुर्वेदिक व यूनानी ग्रंथों में ही नहीं मिलता, वरन् आधुनिक चिकित्सा विज्ञान भी इनके गुणों का बखान करता नहीं थकता। वैज्ञानिक शोधों से यह प्रमाणित हो चुका है कि फल, सब्जी, मेवे, मसाले, दूध, दही आदि पदार्थ विटामिन, खनिज व कार्बोहाइड्रेट जैसे शरीर के लिए आवश्यक तत्त्वों का भंडार हैं। ये प्राकृतिक भोज्य पदार्थ शरीर को निरोगी बनाए रखने में तो सहायक हैं ही, साथ ही रोगों को भी ठीक करने में पूरी तरह सक्षम है।

तुलसी, अदरक, हल्दी, आँवला, पपीता, बेल, प्याज, लहसुन, मूली, गाजर, नीबू, सेब, अमरूद, आम, विभिन्न सब्जियां, मसाले व दूध, दही, शहद आदि के औषधीय गुणों व रोगों में इनके प्रयोग के बारे में अलग-अलग पुस्तकों के माध्यम से आप तक पहुंचाने का प्रयास ‘मानव कल्याण’ व ‘सेवा भाव’ को ध्यान में रखकर किया गया है।
उम्मीद है, पाठकगण इससे लाभान्वित होंगे।
सादर,

-डॉ. राजीव शर्मा
आरोग्य ज्योति
320-322 टीचर्स कॉलोनी
बुलन्दशहर, उ.प्र.

पपीता-सामान्य परिचय



पीपीते के अनेक नाम हैं। अंग्रजी में इसे पपाया कहते हैं। इग्लैण्ड के कुछ भागों में पपीता सेन्ट इग्नेशियस बीन (St. Ignatius bean) के नाम से प्रसिद्ध है।
खोजों से पता चलता है कि पपीते की जन्म भूमि उत्तरी अमेरिका का मैक्सिको प्रदेश है। वहीं से इसके बीज संसार के सभी देशों में ले जाए गए।
हमारे देश में पपीता 16 वी शताब्दी में पुर्तगाली लेकर आए। उन्होंने सबसे पहले कालीकट के जंगली क्षेत्र में इसके बीजों को बोकर परीक्षण किया।
पपीता फिलिपाइन द्वीप तथा चीन में अधिक मात्रा में पैदा किया जाता है। इन देशों में पपीते की खेती नकदी फसल (कैश क्रॉप) के रूप में होती है। फिलिपाइन के श्रेष्ठ बीजों की मांग लगभग विश्व के सभी देशों में है। पपीता भूड़ तथा दोमट दोनों प्रकार की मिट्टियों में पाया जाता है।
पपीते की कई प्रजातियां हैं। हर प्रजाति का पपीता रंग, आकार, गंध तथा स्वाद में एक-दूसरे से अलग होता है। एक ऐसी किस्म का पपीता भी पाया जाता है, जिसमें बीज नहीं होता।
हमारे देश में पपीते की तीन मुख्य जातियां पाई जाती हैं—देशी, पहाड़ी, तथा कैरियन।
हमारे देश में देशी तथा पर्वतीय पपीता अधिक उगाया जाता है। पहाड़ों पर यह 7000 फुट तक की ऊंचाइयों पर हो जाता है। दक्षणी भारत में काफी बड़ा तथा भीतर से लाल-सुर्ख रंग का पपीता होता है।

पपीते में पाए जाने वाले तत्त्व


पानी                        -          96.60 प्रतिशत
कार्बोहाइड्रेट              -           9.50 प्रतिशत
खनिज लवण              -           0.40 प्रतिशत
कैल्शियम                  -           0.01 प्रतिशत
प्रोटीन                      -           0.50 प्रतिशत
फॉस्फोरस                 -            0.01 प्रतिशत
खनिज पदार्थ             -            0.40 प्रतिशत
ईथर विचूर्ण               -            0.10 प्रतिशत

उपर्युक्त रासायनिक तत्त्वों के अतिरिक्त पीपीते में टारटारिक, साइट्रिक, एसिड तथा अन्य प्रकार के लवण भी पाए जाते हैं। इसमें विटामिन ‘ए’ भी होता है। इसकी मात्रा 3000 युनिट प्रति 100 ग्राम आंकी गई है। इसमें विटामिन ‘सी’ भी पाया जाता है, जिसकी मात्रा 130 मिलीग्राम तक होती है। वैसे तो पपीता हर मौसम में फायदेमंद है लेकिन मई-जून तथा अक्टूबर-नवम्बर में यह दुगुना लाभकारी है क्योंकि इन महीनों में इसमें विटामिन ‘सी’ की मात्रा बढ़ जाती है।
पपीते की एक विशेषता यह कि मादा पौधे में ही फूल तथा पल लगते हैं, नर में नहीं। लेकिन बाग में नर-पौधे का होना भी जरूरी है क्योंकि बिना नर के मादा पौधे परागण क्रिया नहीं हो सकती।


पपेन नामक औषधि तत्त्व



पपेन नामक तत्त्व पीपीते में ही पाया जाता है। यह बड़ा कीमती तत्त्व तथा शरीर को पुष्ट करने के लिए इसका प्रयोग किया जाता है। पपेन एक प्रकार का दूध है जो कच्चे फलों में चीरा लगाकर इकट्टा किया जाता है। दूध को किसी बर्तन में इकट्ठा करके उसे सुखा लेते हैं। सुखाने के पश्चात् इसे एक प्रतिशत फार्मेल्डीहाइट के घोल में रखते हैं। इससे यह खराब नहीं होता और अधिक समय तक सुरक्षित रहता है। पेट के रोगों को दूर करने के लिए पपेन बहुत उपयोगी है। इसमें प्रोटीन को पचाने की शक्ति होती है। इससे अनेकों औषधियां बनती हैं।

पपीते के आयुर्वेदिक गुण


चरक ने लिखा है कि कच्चा पपीता मलरोधक तथा कफ और वात को कुपित करने वाला होता है, परन्तु पका फल खाने में मीठा, रुचिकर, पित्त को नाश करने वाला, भारी तथा स्वादिष्ट होता है। पपीते का सबसे बड़ा गुण यह है कि ज्यों-ज्यों यह पकता जाता है, इसमें विटामिन की मात्रा बढ़ती जाती है। यही कारण है कि वैद्यों तथा डॉक्टरों की राय से पेड़ पर पका पपीता ही खाना चाहिए क्योंकि यह शरीर को स्वस्थ रखता है तथा छोटी-मोटी बीमारियों को निकालता रहता है।


पपीता शरीर को निखारता है



यह सत्य है ही पपीते का पानी शरीर के रंग को निखारता है। किशोरियों तथा युवतियों को पपीते के टुकड़े को पानी में डालकर स्नान करना चाहिए। गर्मी के मौसम में पपीते का गूदा का पेस्ट बनाकर मुंह पर मलें। इसके थोड़ी देर बाद छुड़ाकर मुंह धो लें। इससे चेहरे पर निखार तथा गोरापन आ जाएगा। पपीते का असीम तत्त्व चेहरे की मुलायम त्वचा को स्वच्छ कर देता है। यदि स्नान के तुरन्त बाद पपीते का शरबत पी लें तो यह आंतों की गर्मी को शान्त करता है और पाचन-क्रिया को बढ़ाता है। इसके सेवन से शरीर के कमजोर अंग धीरे-धीरे सबल हो जाते हैं। यह शरीर के अंगों को पुष्ट करता है। पपीते के गूदे को दोनों टांगों पर मलने से नसें खुल जाती हैं और टागों का दर्द जाता रहता है। यह हृदय की धड़कन को भी स्वाभाविक बनाता है। यह शरीर की गर्मी-सर्दी को सम रखता है। इसके सेवन से मौसम का प्रभाव किसी प्रकार की हानि नहीं पहुंचाता। प्रकृति ने पपीते को वास्तव में रोग निवारक बनाया है।

पेट के रोग


पेट के तमाम रोगों में कच्चा तथा पका दोनों प्रकार का पपीता काम में लाया जाता है। पेट की खराबी, भोजन न पचना, अजीर्ण, कब्ज, उदरशूल आदि में कच्चे पपीते का रस (पेप्सीन) प्रयोग किया जाता है। पपीते का रस पीने से भी पेट के रोग दूर हो जाते हैं। यहां हम पेट के प्रमुख रोगों की चर्चा करेंगे तथा उनकी पपीते द्वारा चिकित्सा की विधियां बताएंगे।

अजीर्ण


इस रोग में भूख नहीं लगती तथा खाना भी हजम नहीं होता, पेट में भारीपन, खट्टी डकारें, जी मिचलाना, पेट में गैस, सुस्ती, सिर में भारीपन आदि की शिकायतें हो जाती हैं।
अजीर्ण का रोग समय-असमय भोजन करने, भोजन को बिना चबाए निगल जाने, चाय, तम्बाकू, शराब आदि का सेवन करने, अचार, खट्टी चीजें खाने, रक्ताल्पता, तेल तथा घी का अधिक प्रयोग करने के कारण हो जाता है।

उपचार—

कच्चे पपीते में चीरा लगाकर उसका दूध किसी वर्तन में इकट्टा कर लें। इसे हल्की धूप दिखाकर दो चम्मच रस में एक चुटकी काला नमक डालकर रोगी को सुबह-शाम दें।

•    पके हुए पपीते का गूदा 200 ग्राम, काला नमक, पिसा हुआ जीरा तथा एक दाना हींग के साथ सेवन कराएं।

•    पपीते का हलुवा सुबह-शाम भोजन के साथ खिलाएं।

अपच-बदहजमी


यह रोग आमाशय में गड़बड़ी के कारण हो जाता है। अपच होने पर पेट में दर्द, बेचैनी, जी मिचलाना, उल्टियां आदि हो जाती हैं। भूख कम लगने के कारण पेट में गैस बनने लगती है। कभी-कभी पेट में जलन भी होती है।

उपचार—

पके हुए पपीते में भुना हुआ जीरा पीस कर तथा थोड़ा-सा सेंधा नमक डालकर सेवन करें। पपीते की मात्रा लगभग 200 ग्राम होनी चाहिए।

•    कच्चे पपीते की खीर बनाकर आठ-दस दिन तक सेवन करें।

•    भोजन करने के एक घंटे बाद सोने की क्रिया करें। दोपहर के भोजन के बाद बाईं तथा दाईं करवट लेटें तथा शाम के भोजन के बाद टहलें।

•    पपीते का गूदा पेट पर चार मिनट तक मलें। बाद में पेट को पानी से धो लें।

अम्लपित्त


अम्लपित्त के कारण बेचैनी, छाती में जलन, खट्टी डकारें, भूख का न लगना। आदि की शिकायत हो जाती है।
इस रोग में आमाशय में अम्ल रस अधिक बनता है। यह रोग तेज पदार्थों को खाने, चर्बी वाले पदार्थ अधिक मात्रा में खाने, अधपका भोजन ग्रहण करने, चावल, मिठाई, चाय, कॉफी, शराब, खटाई, मिर्च—मसाले आदि खाने से हो जाता है।

उपचार—

पपीते के गूदे में आधा चम्मच अदरक का रस तथा एक चम्मच नीबू व चुटकी भर काला नमक मिलाकर एक सप्ताह तक सेवन करें।

•    यदि खट्टी डकारें आती हों तो आधा कप पीपते के रस में एक चम्मच मूली का रस मिलाकर सुबह-शाम भोजन के बाद सेवन करें।

•    एक कप पपीते का रस, दो लौंग, एक चुटकी छोटी हरड़ का चूर्ण तथा एक चुटकी काला-नमक—सबको अच्छी तरह उबालकर पिएं।

•    200 ग्राम पपीते का गूदा, 2 चम्मच अजवायन, 4 ग्राम हींग, 10 ग्राम नमक सबको मिलाकर एक गिलास पानी के साथ उबालकर छान लें। यह शरबत छाती की जलन, उबकाई तथा अम्लपित्त के लिए बहुत लाभकारी है।

•    200 ग्राम पपीते के गूदे में 5 काली मिर्च तथा एक छोटी गांठ सोंठ का चूर्ण डालें तथा भोजन के बाद सेवन करें।

•    पपीते के 100 ग्राम रस में केले के तने का रस दो चम्मच तथा आंवले का चूर्ण पांच ग्राम मिलाकर सेवन करें।

•    2 चम्मच जामुन का रस, दो चम्मच पालक के पत्तों का रस, आधा गिलास पापीते के रस में मिलाकर सुबह-शाम पिएं।

कब्ज


इसमें व्यक्ति को बेचैनी, पेट में भारीपन, सिर में दर्द, जी मिचलाना, पेट में गैस भर जाना आदि की शिकायत हो जाती है।
कब्ज का साधारण भाषा में अर्थ है पेट की नियमित सफाई का न होना तथा मल कड़ा हो जाना। ऐसी दशा में मल त्याग करने में जोर लगाना पड़ता है। जब खुलकर मल न आए तो समझ लेना चाहिए कि पेट में कब्ज बन गया है। यह रोग कम पानी पीने, गरिष्ठ तथा मिर्च—मसाले की चीजें खाने, छिलके रहित भोजन का प्रयोग करने, व्यायाम न करने, आंतों की छोटी-मोटी बीमारी आदि के कारण हो जाता है।

उपचार—

पपीते के दो चम्मच ताजे दूध में दो अंजीर कूट कर मिला लें। फिर इस अवलेह या चटनी का सेवन करें।
•    पपीते के बीजों की चटनी या कच्चे पपीते का रस पुराने से पुराने अजीर्ण व कब्ज को नष्ट करता है।

•    250 ग्राम अमरूद का गूदा, 200 ग्राम पपीते का गूदा तथा आधा चम्मच एरण्ड का तेल मिलाकर सेवन करें।

•    पत्तागोभी के पत्तों का रस आधा कप 200 ग्राम पके पपीते के गूदे में मिलाकर खाए। चार-पांच दिन लगातार सेवन करने से पुराने से पुराना कब्ज भी टूट जाता है।

•    कच्चे पपीते के रस की 20 बूंदें बताशे में डालकर खिलाएं।

•    खरबूजे तथा पपीते के टुकड़े (दोनों की मात्रा 300 ग्राम) सेंधा नमक तथा बारीक पिसी काली मिर्च के साथ दिन में दो बार लगभग 20 दिन तक खिलाएं। कब्ज रोग जड़ से खत्म हो जाएगा।

•    दो कप पके पपीते के रस में आधा कप पके टमाटर का रस मिलाकर कुछ दिनों तक सेवन करें।

•    250 ग्राम पपीते के गूदे को मिक्सी में पीस लें। उसमें 100 ग्राम सेब के छिलकों की लुगदी करके मिला लें। दोनों चीजों का हलवा भोजन से पहले खाएं। कब्ज दूर हो जाएगा।

•    100 ग्राम पपीते के गूदे में 50 ग्राम पालक की पत्तियों का सूप मिलाकर सेवन करें।

•    200 ग्राम पपीते के रस में (पके पपीते का रस) 100 ग्राम अंगूर का रस मिलाकर दिन में दो बार भोजन के
बाद सेवन करें।

पेट में कीड़े या कृमि


यह रोग व्यक्तिगत सफाई की कमी से हो जाता है। दूषित भोजन, दूषित जल तथा दूध पीने के कारण इस रोग की वृद्धि होती है। रोगी की आंतों में कीड़ों के अण्डे मल के साथ बाहर निकलते हैं। ये अण्डे कुछ दिनों में कीड़े बन जाते हैं जो घास में चिपक जाते हैं। बच्चा जब घास पर नंगें पाव चलता है तो ये उसके नाखूनों में चिपक जाते हैं। फिर त्वचा को भेद कर पेट में जा पहुँचते हैं। बच्चे के थूक, लार आदि के साथ भी सूक्ष्म कृमि पेट में चले जाते हैं। इस प्रकार ये कृमि बच्चों को चैन से नहीं बैठने देते।


उपचार—

कच्चे पपीते के छिलके छीलकर उसका रस निकाल लें। चार चम्मच रस सुबह और छः चम्मच रस शाम को पिलाएं। यह रस बच्चों के जिगर को भी ठीक करता है।

•    एक चम्मच करेले का रस तथा आधा कप पपीते का रस—दोनों को मिलाकर रात को सोते समय रोगी को पिलाएं।

•    पपीते का गूदा 200 ग्राम लेकर उसमें 20 ग्राम पुदीना तथा 10 दाने काली मिर्च की चटनी बनाकर मिला लें। इस अवलेह का नित्य सुबह-शाम रोगी को सेवन कराएं।

•    2 ग्राम अजवायन का चूर्ण, एक चुटकी काला नमक आधा कप पके पपीते के रस में मिलाकर रात को सोते समय पीने से पेट की कीड़े मर जाते हैं।

•    आधा कप पपीते के रस में एक चम्मच नीम की पत्तियों का रस मिलाकर नित्य दो बार पीने से पेट के कीड़े सदा के लिए नष्ट हो जाते हैं।

•    250 ग्राम पपीते का गूदा लेकर उसमें चार नीम की पत्तियों की चटनी मिलाकर खाएं। तीन दिन तक सेवन करने से पेट के कृमि मल के साथ बाहर निकल जाते हैं तथा आंतें स्वच्छ हो जाती हैं।

•    एक कप पपीते का रस, आधा कप गाजर का रस तथा चार दाने काली मिर्च का चूर्ण तीनों को मिलाकर चार खुराक करें। फिर उसे बिना कुछ खाए दिन भर में चार बार सेवन करें। पेट के कृमि जड़-मूल से नष्ट हो जाएंगे।

मन्दाग्नि


इस रोग में पेट के अन्दर भोजन पचाने वाली शक्ति जठराग्नि मन्द पड़ जाती है। आंतों तथा आमाशय में पाचन ऊर्जा कम हो जाती है। भूख नहीं लगती। जो लोग भोजन के साथ अधिक पानी पीते हैं या अधिक मात्रा में भोजन करते हैं उनको मन्दाग्नि का रोग जल्दी लग जाता है। ऐसी हालत में पेट तथा शरीर भारी पड़ जाता है।

उपचार—

पपीते का गूदा 250 ग्राम, चार काली मिर्च, चार लौंग तथा दो चुटकी काली मिर्च इन सबको मिक्सी में डालकर पीस लें। फिर एक गिलास पानी में डालकर शरबत बना लें। पपीते का यह शरबत कुछ दिनों तक नियमित पीने से मन्दाग्नि का रोग सदा के लिए खत्म हो जाता है।

•    पपीते के 50 ग्राम बीजों को पानी में उबालकर पीने से, मन्दाग्नि की बीमारी जाती रहती है।

•    पपीते की सब्जी बनाकर खाने से पेट की पाचन शक्ति को बल मिलता है।

•    पपीते का दूध आधा चम्मच बताशे में डालकर नित्य सेवन करें।

•    सुबह को निराहार मुंह पपीते का कल्प (पपीते का गूदा) काली मिर्च के चूर्ण तथा सेंधा नमक के साथ खाएं।

•    पके हुए पपीते में एक ग्राम जायफल का चूर्ण खाएं।

•    पपीते का हलुवा मन्दाग्नि की बेजोड़ दवा है।

•    एक कप पपीते का रस, दो चम्मच मूली का रस, चार चम्मच पालक के रस सबको मिलाकर नित्य सुबह-शाम सेवन करें।

•    दो चम्मच कच्चे पपीते के रस में आधा चम्मच हरे पुदीने का रस मिलाकर सेवन करें।

•    पपीते के गूदे में एक चम्मच सूखा धनिया, आधा चम्मच सोंठ का चूर्ण तथा सौफ सबको मिलाकर चटनी की तरह बना लें। इसकी दो खुराक करके सुबह-शाम सेवन करें।

संग्रहणी


इसमें प्रातःकाल शौच जाने पर अधिक मात्रा में मल निकलता है। उसके साथ आंव व झाग भी निकलते हैं।

उपचार—

पपीते के रस में हिंग्वादि चूर्ण मिलाकर सुबह-शाम प्रयोग करें।
•    10 ग्राम पपीते के बीज लेकर खूब महीन पीस लें। फिर उसमें दो चम्मच जीरा पीसकर मिला लें। इसकी तीन खुराक करें। चार-चार घंटे बाद भोजन के बाद सेवन करें।

•    200 ग्राम पपीते के पके हुए फल का गूदा 1 चम्मच जीरा, सोंठ पिसी आधा चम्मच, सौंफ आधा चम्मच, काला नमक एक चुटकी सबको मिलाकर दो खुराक करें। सुबह-शाम भोजन के बाद सेवन करें। संग्रहणी की यह आजमाई हुई दवा है।


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