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प्रकृति द्वारा स्वास्थ्य शहद

राजीव शर्मा

प्रकाशक : डायमंड पॉकेट बुक्स प्रकाशित वर्ष : 2005
पृष्ठ :63
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 3493
आईएसबीएन :81-288-0912-1

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शहद के गुणों का वर्णन...

Prakrati Dwara Swasthya Shahad

प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश


प्रकृति हम सबको सदा स्वस्थ बनाए रखना चाहती है और इसके लिए प्रकृति ने अनेक प्रकार के फल, फूल, साग, सब्जियां, जड़ी-बूटियां, अनाज, दूध, दही, मसाले, शहद, जल एवं अन्य उपयोगी व गुणकारी वस्तुएं प्रदान की हैं। इस उपयोगी पुस्तक माला में हमने इन्हीं उपयोगी वस्तुओं के गुणों एवं उपयोग के बारे में विस्तार से चर्चा की है। आशा है यह पुस्तक आपके समस्त परिवार को सदा स्वस्थ बनाए रखने के लिए उपयोगी सिद्ध होगी।

प्रकृति ने हमारे शरीर-संरचना एवं स्वभाव को ध्यान में रखकर ही औषधीय गुणों से युक्त पदार्थ बनाए हैं। शरीर की भिन्न-भिन्न व्याधियों के लिए उपयोगी ये प्राकृतिक भोज्य पदार्थ, अमृततुल्य हैं।

इन्हीं अमृततुल्य पदार्थों जैसे-तुलसी, अदरक, हल्दी, आंवला, पपीता, बेल, प्याज, लहसुन, मूली, गाजर, नीबू, सेब, अमरूद आदि के औषधीय गुणों व रोगों में इनके प्रयोग के बारे में जानकारी अलग-अलग पुस्तकों के माध्यम से आप तक पहुंचाने का प्रयास है—यह पुस्तक।

प्रस्तावना


प्रकृति ने हमारे शरीर, गुण व स्वभाव को दृष्टिगत रखते हुए फल, सब्जी, मसाले, द्रव्य आदि औषधीय गुणों से युक्त ‘‘घर के वैद्यों’’ का भी उत्पादन किया है। शरीर की भिन्न-भिन्न व्याधियों के लिए उपयोगी ये प्राकृतिक भोज्य पदार्थ, अमृततुल्य हैं। ये पदार्थ उपयोगी हैं, इस बात का प्रमाण प्राचीन आयुर्वेदिक व यूनानी ग्रंथों में ही नहीं मिलता, वरन् आधुनिक चिकित्सा विज्ञान भी इनके गुणों का बखान करता नहीं थकता। वैज्ञानिक शोधों से यह प्रमाणित हो चुका है कि फल, सब्जी, मेवे, मसाले, दूध, दही आदि पदार्थ विटामिन, खनिज व कार्बोहाइड्रेट जैसे शरीर के लिए आवश्यक तत्त्वों का भंडार हैं। ये प्राकृतिक भोज्य पदार्थ शरीर को निरोगी बनाए रखने में तो सहायक हैं ही, साथ ही रोगों को भी ठीक करने में पूरी तरह सक्षम है।

तुलसी, अदरक, हल्दी, आँवला, पपीता, बेल, प्याज, लहसुन, मूली, गाजर, नीबू, सेब, अमरूद, आम, विभिन्न सब्जियां, मसाले व दूध, दही, शहद आदि के औषधीय गुणों व रोगों में इनके प्रयोग के बारे में अलग-अलग पुस्तकों के माध्यम से आप तक पहुंचाने का प्रयास ‘मानव कल्याण’ व ‘सेवा भाव’ को ध्यान में रखकर किया गया है।
उम्मीद है, पाठकगण इससे लाभान्वित होंगे।
सादर,

-डॉ. राजीव शर्मा
आरोग्य ज्योति
320-322 टीचर्स कॉलोनी
बुलन्दशहर, उ.प्र.

शहद-सामान्य परिचय


शहद हमें प्राकृतिक जीवन को सहेजने, उसे स्वस्थ रखने की शक्ति प्रदान करता है। इसलिए हमारा कर्तव्य है कि हम शहद जैसी अनमोल वस्तु को समझने की कोशिश करें। शहद अपने आप में पूर्ण विटामिन है। इसमें शरीर को स्वस्थ रखने के सभी तत्त्व मौजूद हैं।

चरक ने शहद के गुणों के विषय में लिखा है, ‘‘मधुमेह को पुष्ट, सुडौल, शक्तिशाली और चुस्त बनाने वाला अमृत है। यह सन्तुलित और गुणकारी स्थायी प्रभाव देने वाली वनौषधि है। औषधि की आवश्यकता तो रोगी को होती है किन्तु निरोगी के लिए मधु जीवन का अमृत तुल्य आहार है। यह पदार्थ—वीर्यवर्द्धक, धातु पुष्टकारी और पौरुष शक्ति की वृद्धि में योगदान करता है। सोचिए, मधुमक्खियों ने कितने परिश्रम से उसका निर्माण किया और ऋषियों ने इसकी खोज की।’’
चरक के शब्दों से प्रमाणित होता है कि शहद स्वास्थ्य को बढ़ाने तथा रोग निवारण के लिए एक टॉनिक के समान है। आज हम जितने चूर्ण, क्वाथ (काढ़े), गोलियां आदि लेते हैं उनमें शहद का मिश्रण किया जाता है। इस प्रकार शहद रोग निवारण तथा स्वास्थ्य की रक्षा करने में हमारी सहायता करता है।

शहद पेट की कठिन बीमारी को ठीक कर देता है। ‘‘पेट में दर्द या शूल होने की स्थिति में शहद का सेवन करना चाहिए। यह अंतड़ियों में पहुंचकर वायु को सोख लेता है। जिसके कारण उदर की पीड़ा शान्त हो जाती है।’’ इसे पीड़ानाशक, शक्तिवर्द्धक, मांस-मज्जा में ऊर्जा उत्पन्न करने वाला अमृत रूप है। शिशु के जन्म लेने के लगभग आठ-दस घंटे बाद माता बच्चे को शहद चटाती है। यदि माता के स्तन में दूध नहीं उतरता तो शहद सोने में सुहागे का कार्य करता है। उस समय केवल शहद ही ऐसा भोज्य पदार्थ होता है जो शिशु के रोने को शान्त करता है। शहद से शिशु को जीवन-शक्ति, ऊर्जा और खाद्योज मिलता है। इस प्रकार शहद शिशु का पहला भोज है। प्राचीन काल में शिशु की जीभ पर शहद या गुड़ से ईश्वर का नाम लिखा जाता था ताकि बड़ा होकर बच्चा ईश्वर की शक्ति, याद और सत्यता को न भूल सके। दूसरी बात यह है कि शहद के द्वारा शिशु को स्वाद का ज्ञान कराया जाता है।

जीवन शक्ति है शहद


हमारे देश में ऋषियों, मुनियों और वैद्यों ने हजारों वर्ष पहले इस तथ्य की खोज कर ली थी कि शहद में इतने गुण हैं कि पेट में पहुंचने पर उसे पाचन क्रिया को संचालित करने की जरूरत नहीं पड़ती क्योंकि बिना किसी पाचन क्रिया की सहायता से स्वयं पच जाता है। मतलब यह कि शहद दूध, दही, रबड़ी पेय पदार्थों से पहले पचने की शक्ति रखता है। उसे पचाने के लिए आंतों को अपनी चक्की नहीं चलानी पड़ती। आमाशय में ग्रंथियों से जो पाचक रस छूटता है उसे शहद तुरन्त ग्रहण कर लेता है और पाचक-तत्त्वों को जीवनी-शक्ति के रूप में बदल देता है। इस कारण बच्चे, जवान और बूढ़े सभी इसको खाकर तीव्रगति से शारीरिक विकास करते हैं। चूंकि शहद में रोगों को चूसने की भी शक्ति होती है इसलिए किसी भी प्रकार का रोग उन्हें नहीं लगता। शरीर में प्रवाहित होने वाले रक्त में यह सीधा जाकर मिल जाता है।

हमारे देश में धार्मिक कार्यों में भी मधु की जरूरत पड़ती है। जन्म संस्कार, उपनयन संस्कार, विवाह संस्कार, स्वर्गधाम संस्कार आदि में मधु के बगैर हमारा काम नहीं चलता। पंचामृत, मोक्षदायिनी क्रिया, पिण्डदान, भागवतकथा आदि में मधु का प्रयोग अनिवार्य रूप से किया जाता है। मधु को अमृत की श्रेणी में रखने का प्रमुख कारण यही है कि यह संस्कारों को निभाता है।

हमारे बोलने-चालने की क्रिया में भी शहद का उदाहरण और उपमा दी जाती है। मीठी वाणी बोलने वाला व्यक्ति अपनी बोली से सचमुच शहद टपकाता है। इस प्रकार का आचरण बड़ा विचित्र औऱ आनन्ददायक है। हलवाई की मिठाइयां, दूध, मीठे फल, मीठे मेवे, दादी मां के लड्डू, माता का दूध—सब शहद के सामने फीके हैं। जो बात शहद में है वह मुनक्का, किशमिश, अंगूर और दशहरी आम में भी नहीं है। फिर सबसे बड़ी बात यह कि फल, मेवे आदि मौसमी हो सकते हैं लेकिन शहद की महत्ता प्रत्येक मौसम में है। यह वसंत का भाई, शरद का मित्र और ग्रीष्म का संबंधी है। इसमें ऋतुओं की सुगंध और वर्षा की मधुर ध्वनि है।


दीर्घायु प्रदाता है शहद



शहद की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि यह हजार वर्ष बाद भी पूर्ववत् बना रहता है। इसमें गलने या सड़ने की क्रिया नहीं होती क्योंकि इसमें ऐसे तत्त्व पाए जाते हैं जो अन्य किसी फल, मेवा या औषधि तक में नहीं पाए जाते। इस प्रकार जो चीज स्वयं में पूर्ण है वह दूसरों को भी पूर्णत्व प्रदान करने की शक्ति रखती है। शहद दूसरों को दीर्घायु इसी कारण बनाता है क्योंकि उसमें अधिक समय तक बने रहने की ऊर्जा है। जब हम भीतर से प्रसन्न रहते हैं तभी हमारे चेहरे पर खुशी के भाव झलकते हैं। जो व्यक्ति हृदय से दुःख-दर्द, शोक, ईर्ष्या-द्वेष में डूबा हुआ है वह दूसरे को खुशी कैसे बाँट सकता है। परन्तु शहद भीतर-बाहर दोनों तरफ से मीठा और सुख देने वाला है। इसमें दूध की शक्ति और घी का वर्द्धन है।

शहद में योगवाही का गुण भी है। यह सभी प्रकृति वाले व्यक्तियों के लिए लाभकारी है। इसके सेवन से वात, पित्त और कफ प्रकृति वाले व्यक्ति किसी भी समय और किसी भी मौसम में लाभ उठा सकते हैं। यह सुख, दयालुता और ममता का मिश्रण है। इसमें मिश्री से भी सौ गुणा अधिक गुण हैं। यही कारण है कि यह बच्चों, जवानों और वद्धों सभी को समान रूप से अपना खजाना लुटाता है।


सुडौलता व सौंदर्यप्रदाता शहद



इसके सेवन से चेहरा हर समय फूल की तरह खिला रहता है क्योंकि यह शरीर के छोटे-मोटे रोगों को आत्मसात् करके शरीर में चुस्ती-फुर्ती भर देता है। यही फुर्तीलापन व्यक्ति के चेहरे पर फूल की तरह खिला रहता है। चूंकि बढ़िया शहद वही माना जाता है जिसे मधुमक्खियां फूलों के मकरन्द को चूसकर बनाती हैं, इसलिए फूलों के सारे तत्त्व शहद में भी आ जाते हैं। आजकल खोजों से पता चला है कि स्त्रियों को कॉस्मेटिक प्रसाधनों की जगह चेहरे पर शहद का पेस्ट लगाना चाहिए। यह चेहरे के दाग-धब्बों को नष्ट करता है, चिपचिपे चेहरे को खुश्क करता है, पसीने की दुर्गन्ध को दूर करता है, मुहासों को खत्म करता है और चेहरे पर चिकनापन लाता है। इन सब बातों के मेल के कारण चेहरे की त्वचा मुलायम, आकर्षक और गुलाबी हो जाती है।

यह रक्त का शोधन करता है, मज्जा को ऊर्जा देता है और अस्थियों में फॉस्फोरस को बरकरार रखता है। मनुष्य हो या स्त्री—उसकी सुन्दरता और सुडौलता में मांस, मज्जा और हड्डियां चार-चांद लगाती हैं। शहद इन सबको अपने नियंत्रण में लेकर रोगों को पनपने नहीं देता। अतः स्त्री-पुरुषों के शरीर सुडौल बने रहते हैं। शहद के सेवन का शारीरिक सुडौलता के क्षेत्र का यही सबसे बड़ा राज है।

विचारों की शुद्धि करता है शहद



शहद के सेवन से व्यक्ति के मन में पवित्र विचार पनपने लगते हैं। ऐसा माना जाता है कि जब व्यक्ति के शरीर में कोई रोग नहीं होता तो वह स्वस्थ और प्रसन्न दिखाई देता है। इन दोनों भावों के कारण वह कठिन परिश्रम से भी नहीं घबराता और परिश्रम से उसका भाग्य दो कदम आगे बढ़ता है। फिर जब चारों ओर उसे सुख ही सुख दिखाई देता है तो उसकी चेतना उसके विचारों को पवित्र बनाए रखती है। बस सफलता का छोटा-सा रहस्य यही है। अतः शहद के सेवन का सबसे बड़ा लाभ यही है कि यह व्यक्ति के आचरण को सही रखता है। यह विवेकहीन होकर कोई कार्य नहीं करता है। उसका हृदय सही कार्यों को करने की आज्ञा प्रदान करता है और मस्तिष्क उस कार्य को सम्पन्न करने के लिए दो कदम आगे रहता है।

खनिज तत्त्वों से परिपूर्ण


चरक ने लिखा है कि शहद शरीर के अंग-अंग और शिरा-शिरा को निरोग बना देता है। यह पेट के सभी रोगों का शत्रु है। यह त्रिफला के समान ऊर्जा प्रदान करता है। इसका धार्मिक, सांस्कृतिक और सामाजिक दृष्टि से परिपालन तथा सेवन करने वाला व्यक्ति कभी दुःखी नहीं रहता। इसी कारण इसे दिव्यगुणों से परिपूर्ण माना गया है क्योंकि पेट से सभी रोग चलते और पनपते हैं लेकिन शहद चूँकि पेट में पहुंचकर पाचन क्रिया को सुधारता है, तो फिर रोगों को पनपने के लिए स्थान कहां है। पेट में दर्द होने पर यदि शहद पानी में घोलकर पिला दिया जाए तो कुछ ही देर में दर्द रुक जाता है। यह वायु को बाहर निकालता है और अफारा को कम करता है। इसके सेवन से दस्त रुक जाते हैं। बच्चों को मसूड़ों पर मलने से दांत जल्दी निकलते हैं। यदि काली मिर्च के चूर्ण में शहद मिलाकर रोगी को दिया जाए तो उसका बुखार खत्म हो जाता है। दाद-खाज, खुजली, आंतों आदि के लिए शहद बहुत उपयोगी है। पानी में घोलकर पीने से यह लू की प्यास को शान्त करता है तथा अन्यान्य रोगों को नष्ट कर देता है।

शहद में चिकनाई, मृदुता तथा तैलीय अंश भी पाया जाता है। इसमें खाद्योज (विटामिन), फॉस्फोरस, शर्करा, लवण, गंधक आदि के प्रभावकारी तत्त्व पाए जाते हैं। इसी कारण इसके सेवन से त्वचा में निखार आता है। स्निग्धता तथा मृदुता के गुणों के कारण शरीर का रूखापन दूर होता है। इन सब तत्त्वों की कमी के कारण मनुष्य की मानसिक शक्ति कुंठित हो जाती है तथा सांसारिक कार्यों में उसका मन नहीं लगता। वह आलस्य और स्फूर्तिहीनता से घिरा रहता है। फॉस्फोरस तथा चिकनाई का अंश व्यक्ति के मस्तिष्क के रंध्रों को बंद नहीं होने देता, जिसके फलस्वरूप वह चमत्कारपूर्ण कार्य करता है। स्मरणशक्ति को बढ़ाने तथा आध्यात्मिक शक्ति को बनाए रखने में शहद बहुत काम करता है।


शुद्ध शहद की पहचान


शुद्ध शहद की क्या पहचान है-इसे विद्वानों ने अपने-अपने ढंग से व्यक्त किया है। अतः उन्हीं के बानाए हुए संकेतों के आधार पर हम शहद की शुद्धता की जाँच करेंगे। शुद्ध शहद की पहचान के कुछ निर्देश निम्नलिखित हैं—

•    वैसे तो शहद का रंग कुछ मटमैला और लाल रंग का होता है। लेकिन यह भूरा, हरा और कुछ सफेद रंग का भी होता है। इसमें छोटे-छोटे दाने भी देखने को मिलते हैं जो शायद मोम के होते हैं।

•    शहद में फूलों की गंध बसी होती है। उदाहरण के लिए यदि मधुमक्खियां गुलाब के मकरंद से शहद बनाती हैं तो शहद में गुलाब की सुगंध मालूम पड़ेगी। परन्तु यदि वे नीम के फूलों से गंध लेती हैं तो वह शहद निबौली की महक छोड़ेगा। वैसे सबसे अच्छा शहद नीम की डालों पर छत्ता बनाने वाली मधुमक्खियों का होता है।

•    शहद इकट्ठा करने के लिए मधुमक्खियों को बहुत परिश्रम करना पड़ता है। वैज्ञानिकों का कहना है कि मधुमक्खियां अपने छत्ते के सभी खानों को महीनों में भर पाती हैं लेकिन मनुष्य है कि देखते-देखते उनके परिश्रम को नष्ट कर अपना भला कर लेता है। सचमुच मनुष्य बड़ा स्वार्थी और लोभी है।

•    शहद उपयोगी दवा से भी अधिक गुणकारी होता है कभी-कभी शहद में विषैले अंश भी आ जाते हैं क्योंकि कुछ फूलों का मकरंद जहरीला होता है। ऐसे शहद को खाकर मनुष्य को लाभ की जगह हानि अधिक हो सकती है। परन्तु विषैले शहद की पहचान सभी को नहीं होती। कुछ ही विद्वान विश्लेषणकर्ता ऐसे शहद को पहचान सकते हैं। इसीलिए कहा गया है कि छत्ता तुड़वाने के बाद शहद को चखकर नहीं देखना चाहिए। उसकी पहचान विशेषज्ञों से कराने के बाद उसे उपयोग में लाना चाहिए।

•    पहाड़ी मधुमक्खियों द्वारा इकट्ठा किया जाने वाला शहद अधिक उपयोगी नहीं माना जाता  क्योंकि उसमें शोधित मकरंद का रस नहीं के बराबर होता है। फिर भी यह शहद विष का हरण करने वाला और हृदय को शक्ति प्रदान करने वाला होता है।

•    शहद के गुण-धर्म के विषय में यह भी माना जाता है कि शहद जितना पुराना होगा उतना ही वह गुण-धर्म में श्रेष्ठ होगा। पुराने शहद का रंग कुछ श्यामवर्ण हो जाता है। इस शहद में लौह-तत्त्व का अंश अधिक मात्रा में पाया जाता है।

•    आजकल शहद बनाने वाली कम्पनियां शक्कर, गुड़, शीरे आदि से शहद बनाती हैं और एगमार्क का लेबल लगाकर शुद्ध शहद के रूप में बेचती हैं। इसलिए इसमें दो राय नहीं कि शहद के मामले में धोखधड़ी और ठग विद्या बहुत है। बीस रुपये किलो की चीनी या बारह रुपये किलो के गुण द्वारा बनाया गया शहद 150 और 200 रुपये किलो बेचा जाता है। फिर भी कुछ ऐसी आम विधियां हैं जिनके माध्यम से नकली शहद की पहचान की जा सकती है।

•    असली शहद भारी होता है। वह पानी में डालने पर नीचे तली में बैठ जाता है—घुलता नहीं है।

•    असली शहद पर मक्खियां बैठकर तुरन्त उड़ जाती हैं क्योंकि शुद्ध शहद के तत्त्व मक्खी के पंखों पर चिपकते नहीं हैं।

•    शुद्ध शहद को रुई की बत्ती पर लगाकर जलाकर देखा जाता है। वह सरसों के तेल की तरह जलने लगता है। लेकिन नकली शहद की बत्ती जलते समय शक्कर की गंध छोड़ने लगती है।

•    शुद्ध शहद को हमारे पूर्वज सलाई से आंखों पर भी लगाते थे। ऐसा शहद पलकों पर चिपकता नहीं है। यह आंखों की रोशनी बढ़ाता है तथा गंदा पानी बाहर निकाल देता है।

शहद का प्रयोग


•    शहद को कभी गरम करके इस्तेमाल नहीं करना चाहिए क्योंकि इसके तत्त्व जल जाते हैं और शहद विषैला हो जाता है।

•    चूर्ण, चटनी, काढ़ा, रस आदि को हल्का गरम करके उसमें शहद को मिलाकर लिया जा सकता है।

•    शहद और घी, शहद और नीबू, शहद और मक्खन, शहद और चर्बी, शहद और अर्क, शहद और पानी, शहद और घी आदि को बराबर की मात्रा में मिलाकर कभी नहीं खाना चाहिए।

•    चाय, कॉफी, फलों के रस आदि में शहद मिलाकर इस्तेमाल न करें। दूध व पानी की अधिक मात्रा में कम शहद मिलाकर सेवन करें।

•    जहां तक हो सके शहद को कभी अकेला सेवन न करें। उसमें रस, दूध पानी मिलाकर उपयोग में लाएं।

•    किसी भी तरह के ज्वर, जुकाम या अन्य किसी रोग में शहद का इस्तेमाल चाटने या पीने वाली दवा में मिलाकर करें।

•    गुड़, खांड, राब, खजूर आदि के साथ शहद का सेवन न करें क्योंकि शहद से मूल वस्तु में विषैले तत्त्व बढ़ जाते हैं।

•    जाड़े की ऋतु में शहद दूध के साथ लेने पर बहुत लाभकारी होता है। वर्षा ऋतु में शहद अदरक के रस, इलायची के चूर्ण, कालीमिर्च के चूर्ण आदि में मिलाकर लेना चाहिए।


शहद में पाए जाने वाले तत्त्व



•    शहद में सबसे ज्यादा शर्करा का अंश होता है। परन्तु शहद की शर्करा, गन्ना, चुकन्दर, अंगूर, फलों, खजूर आदि की शर्करा से अधिक लाभकारी तथा तीव्र होती है। इसलिए इस शर्करा को गुणकारी माना गया है।

•    इसमें कैल्शियम, फॉस्फोरस, लौहतत्त्व, गंधक और पोटैशियम जैसे खनिज तत्त्व 10.5 प्रतिशत पाए जाते हैं।

•    शहद में विटामिन (खाद्योज), प्रोटीन, चिकनाई आदि के तत्त्व भी मिलते हैं।

•    शहद में कैलोरीज की मात्रा सर्वाधिक होती है। इसलिए यह हृदय को मजबूती प्रदान करता है और वर्ण को निखारता है।

आँख, दांत और दिमाग के रोग


आँखों में लाली



शहद पांच बूंदें, सुरमा दो रत्ती, घी दो ग्राम लेकर आंवले के रस में खरल करें। सूख जाने पर एक-एक सलाई सुबह-शाम आंखों में लगा लें और पढ़ाई-लिखाई या आँखों से लेनेवाला काम दो दिन के लिए टाल दें। दो ही दिनों में आँखों की लाली छँट जाएगी। अगर दो-तीन दिन आँवले के रस में शहद और सूरमा खरल करके रख लें तो सारा साल काम आएगा।

आँखें सूजना


हरड़ का चूर्ण कपड़छन कर लें। इसे शहद में मिलाकर आँखों पर लेप दें। इस लेप से कसमसाहट और चिपचिप तो अवश्य अनुभव होगी, मगर इलाज रामबाण है। रात को लेप कर सो जाएँ और सुबह धो दें। ईश्वर-कृपा से एकाध दिन में ही सूजन निकल जाएगी।


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