स्वास्थ्य-चिकित्सा >> प्रकृति द्वारा स्वास्थ्य मेवे और औषधीय पौधे प्रकृति द्वारा स्वास्थ्य मेवे और औषधीय पौधेराजीव शर्मा
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मेवे और औषधीय पौधों के गुणों का वर्णन....
प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश
प्रकृति हम सबको सदा स्वस्थ बनाए रखना चाहती हैं और इसके लिए प्रकृति ने
अनेक प्रकार के फल, फूल, साग, सब्जियां, जड़ी-बूटियाँ, अनाज,
दूध, दही, मसाले, शहद, जल एवं अन्य उपयोगी व गुणकारी वस्तुएँ
प्रदान
की हैं। इस उपयोगी पुस्तक माला में हमने इन्हीं उपयोगी वस्तुओं के गुणों
एवं उपयोग के बारे में विस्तार से चर्चा की है। आशा है यह पुस्तक आपके
समस्त परिवार को सदा स्वस्थ बनाए रखने के लिए उपयोगी सिद्ध होगी।
प्रकृति ने हमारे शरीर-संरचना एवं स्वभाव को ध्यान में रखकर ही औषधीय गुणों से युक्त पदार्थ बनाए हैं। शरीर की भिन्न-भिन्न व्याधियों के लिए उपयोगी ये प्राकृतिक भोज्य पदार्थ, अमृततुल्य हैं।
इन्हीं अमृततुल्य पदार्थों जैसे तुलसी-अदरक, हल्दी, आँवला, पपीता, बेल, प्याज, लहसुन, मूली, गाजर, नीबू, सेब, अमरूद आदि के औषधीय गुणों व रोगों में इनके प्रयोग के बारे में जानकारी अलग-अलग पुस्तकों के माध्यम से आप तक पहुंचाने का प्रयास है यह पुस्तक।
प्रकृति ने हमारे शरीर-संरचना एवं स्वभाव को ध्यान में रखकर ही औषधीय गुणों से युक्त पदार्थ बनाए हैं। शरीर की भिन्न-भिन्न व्याधियों के लिए उपयोगी ये प्राकृतिक भोज्य पदार्थ, अमृततुल्य हैं।
इन्हीं अमृततुल्य पदार्थों जैसे तुलसी-अदरक, हल्दी, आँवला, पपीता, बेल, प्याज, लहसुन, मूली, गाजर, नीबू, सेब, अमरूद आदि के औषधीय गुणों व रोगों में इनके प्रयोग के बारे में जानकारी अलग-अलग पुस्तकों के माध्यम से आप तक पहुंचाने का प्रयास है यह पुस्तक।
प्रस्तावना
प्रकृति ने हमारे शरीर, गुण व स्वभाव को दृष्टिगत रखते हुए फल, सब्जी,
मसाले, द्रव्य आदि औषधीय गुणों से युक्त ‘‘घर के
वैद्यों’’ का भी उत्पादन किया है। शरीर की
भिन्न-भिन्न
व्याधियों के लिए उपयोगी ये प्राकृतिक भोज्य पदार्थ, अमृततुल्य हैं। ये
पदार्थ उपयोगी हैं, इस बात का प्रमाण प्राचीन आयुर्वेदिक व यूनानी ग्रंथों
में ही नहीं मिलता, वरन् आधुनिक चिकित्सा विज्ञान भी इनके गुणों का बखान
करता नहीं थकता। वैज्ञानिक शोधों से यह प्रमाणित हो चुका है कि फल, सब्जी,
मेवे, मसाले, दूध, दही आदि पदार्थ विटामिन, खनिज व कार्बोहाइड्रेट जैसे
शरीर के लिए आवश्यक तत्त्वों का भंडार हैं। ये प्राकृतिक भोज्य पदार्थ
शरीर को निरोगी बनाए रखने में तो सहायक हैं ही, साथ ही रोगों को भी ठीक
करने में पूरी तरह सक्षम है।
तुलसी, अदरक, हल्दी, आँवला, पपीता, बेल, प्याज, लहसुन, मूली, गाजर, नीबू, सेब, अमरूद, आम, विभिन्न सब्जियां मसाले व दूध, दही, शहद आदि के औषधीय गुणों व रोगों में इनके प्रयोग के बारे में अलग-अलग पुस्तकों के माध्यम से आप तक पहुंचाने का प्रयास ‘मानव कल्याण’ व ‘सेवा भाव’ को ध्यान में रखकर किया गया है।
उम्मीद है, पाठकगण इससे लाभान्वित होंगे।
सादर,
तुलसी, अदरक, हल्दी, आँवला, पपीता, बेल, प्याज, लहसुन, मूली, गाजर, नीबू, सेब, अमरूद, आम, विभिन्न सब्जियां मसाले व दूध, दही, शहद आदि के औषधीय गुणों व रोगों में इनके प्रयोग के बारे में अलग-अलग पुस्तकों के माध्यम से आप तक पहुंचाने का प्रयास ‘मानव कल्याण’ व ‘सेवा भाव’ को ध्यान में रखकर किया गया है।
उम्मीद है, पाठकगण इससे लाभान्वित होंगे।
सादर,
-डॉ. राजीव शर्मा
आरोग्य ज्योति
320-322 टीचर्स कॉलोनी
बुलन्दरशहर, उ.प्र.
आरोग्य ज्योति
320-322 टीचर्स कॉलोनी
बुलन्दरशहर, उ.प्र.
पुरानी व नई माप
8 रत्ती
= 1
माशा,
12 माशा = 1 तोला
1 तोला = 12 ग्राम
5 तोला = 1 छटांक
16 छटांक = 1 कि.ग्रा.
1 छटांक = लगभग 60 ग्राम
12 माशा = 1 तोला
1 तोला = 12 ग्राम
5 तोला = 1 छटांक
16 छटांक = 1 कि.ग्रा.
1 छटांक = लगभग 60 ग्राम
मेवों द्वारा रोगोपचार
छुहारा
खजूर का सूखा रूप छुहारा होता है। जैसे अंगूर का सूखा हुआ रूप किशमिश और
मुनक्का होता है। छुहारे का प्रयोग मेवों के रूप में किया जाता है। इसके
मुख्य दो भेद हैं—1. खजूर और 2. पिण्ड खजूर।
सामान्य परिचय
यह शीतल, पाक में मधुर, स्निग्ध, रुचिकारक, हृदय को प्रिय, भारी,
तृप्तिकारक, ग्राही, वीर्यवर्द्धक एवं बलदायक होता है तथा यह क्षत, क्षय,
रक्तपित्त, वायु, उलटी, कफ, बुखार, अतिसार, भूख प्यास, खांसी, श्वांस,
दमा, मूर्च्छा, वात, पित्त और मद्य सेवन से हुए रोगों को नष्ट करता है। यह
शीतवीर्य होता है पर सूखने के बाद छुहारा गर्म प्रकृति का हो जाता है।
खजूर के दोनों भेदों के गुण कमोबेश एक समान हैं पर इनका उपयोग अलग-अलग ढंग से किया जाता है। खजूर के पेड़ से रस निकालकर, ‘नीरा’ बनाई जाती है जो तुरन्त पी ली जाए तो बहुत पौष्टिक और बलवर्द्धक होती है और कुछ समय तक रखी जाए तो शराब बन जाती है। इसके रस से गुड़ भी बनाया जाता है। वात पित्त शामक होने से इसका उपयोग वात और पित्त का शमन करने के भी किया जाता है। यह पौष्टिक और मूत्रल है। हृदय और स्नायविक संस्थान को बल देने वाला तथा शुक्र दौर्बल्य दूर करने वाला होने से इन व्याधियों को नष्ट करने के लिए उपयोगी है। इसके वृक्ष के रस से बनाई गई ताजी नीरा कमजोरी, दुबलापन और पेशाब की रुकावट व जलन दूर करने में उपयोगी होती है।
खजूर के दोनों भेदों के गुण कमोबेश एक समान हैं पर इनका उपयोग अलग-अलग ढंग से किया जाता है। खजूर के पेड़ से रस निकालकर, ‘नीरा’ बनाई जाती है जो तुरन्त पी ली जाए तो बहुत पौष्टिक और बलवर्द्धक होती है और कुछ समय तक रखी जाए तो शराब बन जाती है। इसके रस से गुड़ भी बनाया जाता है। वात पित्त शामक होने से इसका उपयोग वात और पित्त का शमन करने के भी किया जाता है। यह पौष्टिक और मूत्रल है। हृदय और स्नायविक संस्थान को बल देने वाला तथा शुक्र दौर्बल्य दूर करने वाला होने से इन व्याधियों को नष्ट करने के लिए उपयोगी है। इसके वृक्ष के रस से बनाई गई ताजी नीरा कमजोरी, दुबलापन और पेशाब की रुकावट व जलन दूर करने में उपयोगी होती है।
रासायनिक विश्लेषण
16 प्रतिशत तक आर्द्रता, 2.5 ग्राम प्रोटीन, 75 से 76 ग्राम तक
कार्बोहाइड्रेट्स, 0.35 से 0.40 ग्राम तक वसा, 2 से 2.1 ग्राम तक खनिज
(मिनरल्स), 3.9 ग्राम के लगभग रेशा, 120 मिलीग्राम तक कैल्शियम, 50
मिलीग्राम तक फास्फोरस, 7.3 मिलीग्राम तक लौह (आयरन), 3 मिलीग्राम विटामिन
‘सी’, कुछ मात्रा में विटामिन बी—काम्लेक्स
व कुछ अन्य
उपयोगी पदार्थ होते हैं। 100 ग्राम खजूर से लगभग 317 कैलोरी ऊर्जा मिलती
है।
औषधीय उपयोग
• शरीर के दुबले-पतलेपन को दूर
करके पुष्ट, सुडौल
और गठीला शरीर करने के लिए यह उपाय करें—4 छुहारे एक गिलास दूध
में
उबाल कर ठण्डा कर लें। प्रातः काल या रात को सोते समय गुठली अलग करके इन
छुहारों को खूब चबा-चबा कर खाएँ और दूध पी जाएं। इस प्रयोग को शीत और
बसन्तकाल में करना चाहिए। लगातार 3-4 माह तक सेवन करने से शरीर का दुबलापन
दूर होता है। चेहरा भर जाता है, सुन्दरता बढ़ती है, बाल लम्बे व घने होते
हैं और बलवीर्य में वृद्धि होती है। यह प्रयोग नवयुवा, प्रौढ़ और वृद्ध
आयु के स्त्री-पुरुष सबके लिए उपयोगी और लाभकारी है।
• छुहारे की गुठली को पानी के साथ पत्थर पर घिसकर, इसका लेप घाव पर लगाने से घाव ठीक हो जाता है। आंख की पलक पर गुहेरी हो तो उस पर लेप लगाने से गुहेरी ठीक होती है।
• प्रातः काल खाली पेट दो छुहारे खूब चबा-चबा कर दो सप्ताह तक खाऐं। तीसरे सप्ताह से 3 छुहारे लेने लगें और चौथे सप्ताह से चार छुहारे खाने लगें। चार छुहारे से ज्यादा न लें। यह प्रयोग कम से कम 3 माह तक (शीत और बसन्त ऋतु में) करें। इस प्रयोग के साथ ही रात को सोते समय दो सप्ताह तक छुहारे, तीसरे सप्ताह में तीन छुहारे और चौथे सप्ताह से बारहवें सप्ताह तक यानी तीन माह पूरे होने तक चार छुहारे एक गिलास दूध में उबाल कर, गुठली हटाकर खूब चबा-चबा कर खाएँ और ऊपर से दूध पी लें। इसका प्रयोग स्त्री पुरुष को अपूर्व शक्ति देने वाला, शरीर पुष्ट और सुडौल बनाने वाला तथा पुरुषों के शीघ्र पतन रोग को नष्ट करने वाला है।
• एक मोटे और गूदेदार छुहारे को तेज चाकू या छुरी से, बीच में खड़ा कर चीरा लगा कर, गुठली इस ढंग से निकालें कि छुहारे के दो टुकड़े न हों। अब इसमें असली शुद्ध केसर की 4-5 पंखुड़ियां डाल दें और छुहारे को वापिस जोड़ कर इस भाग पर धागा लपेट दें ताकि केसर बाहर न निकल सके। पाव भर दूध में इस छुहारे को डाल कर मन्दी आंच में शाम को तब तक उबालें। जब तक दूध आधा गिलास न रह जाए। इसके बाद उतार कर ठण्डा कर लें और छुहारे को खूब मसल कर मोटे कपड़े से निचोड़कर छान लें। छुहारे की लुगदी को फेंक दें और दूध का एक-एक घूँट कर करके सोते समय पीएं। इसके बाद पानी न पीएं सिर्फ कुल्ला करके मुंह साफ कर लें। यह प्रयोग पति-पत्नी दोनों के बहुत शक्ति देने वाला और यौन शक्ति बढ़ाकर यौन-दौर्बल्य, अरुचि, शिथिलता आदि दोष दूर करता है।
• दमा के रोगी को प्रतिदिन सुबह-शाम 2-2 छुहारे खूब चबाकर खाना चाहिए। इससे फेफड़ों को शक्ति मिलती है और कफ व सर्दी का प्रकोप कम होता है।
• सर्दी-जुकाम होने पर, दो दिन छोड़ कर यानी जुकाम होने के दो दिन बाद यह प्रयोग करना चाहिए—4 पिण्ड खजूर के गूदे को काटकर टुकड़े कर लें। पाव भर दूध में ये टुकड़े और 4 काली मिर्च व व एक बड़ी इलायची डालकर उबलने के लिए रख दें। खूब उबालकर उतार लें और एक चम्मच शुद्ध घी डाल दें। सोने से पहले टुकड़ा खा लें और दूध पी लें। ऐसा 3-4 रात करने से सर्दी, जुकाम तो ठीक होता है साथ ही इस कारण सिर में दर्द या भारीपन होना, सूखी खांसी, थकावट, हल्का बुखार, भूख की कमी और कमजोरी आदि व्याधियां भी ठीक हो जाती हैं।
• शरीर और बल-पुष्टि और वजन बढ़ाने के लिए पिण्ड खजूर खूब चबा-चबा कर, एक-एक घूंट दूध पीते हुए खाना चाहिए। यह बहुत ही उत्तम और बलपुष्टिवर्द्धक प्रयोग है जो शरीर का दुबलापन दूर कर शरीर को पुष्ट बनाता और सुडौल बनाने के साथ त्वचा को चिकना, साफ और चमकीला बनाता है, बाल घने व लम्बे होते हैं, चेहरे पर निखार लाता है, पिचके हुए गालों को भरता है और एसिडिटी एवं गैस ट्रबल को नष्ट करता है। युवक-युवतियों और प्रौढ़ व वृद्ध स्त्री-पुरुषों सभी के लिए उत्तम प्रयोग है। दम्पत्ति को यह प्रयोग तो अवश्य ही करना चाहिए। एक बात का ख्याल रखें कि पिण्ड खजूर की संख्या अपनी पाचन शक्ति के अनुकूल ही रखें क्योकि पचने में भारी होने से इसे ज्यादा मात्रा में खाने पर अपच हो जाता है और पेट भारी हो जाता है। यौन दौर्बल्य और शीघ्र पतन के रोगी पुरुषों को तो नाश्ते में पिण्ड खजूर का सेवन 2-3 माह तक करना ही चाहिए, बहुत लाभ होगा।
• जो बच्चे दुबले-पतले और कमजोर हों उनको भी सुबह नाश्ते में 2-3 पिण्ड खजूर मिलाकर दूध पिलाना चाहिए। पिण्ड खजूर के गूदे के टुकड़े प्लेट में रख कर दें और एक-एक घूंट दूध पीते हुए 1-1 टुकड़ा खूब चबा-चबाकर खाने के लिए माताएं सामने बैठकर नाश्ता कराएं तो बच्चे खूब सुडौल शरीर वाले रहेंगे।
• छुहारे की गुठली को पानी के साथ पत्थर पर घिसकर, इसका लेप घाव पर लगाने से घाव ठीक हो जाता है। आंख की पलक पर गुहेरी हो तो उस पर लेप लगाने से गुहेरी ठीक होती है।
• प्रातः काल खाली पेट दो छुहारे खूब चबा-चबा कर दो सप्ताह तक खाऐं। तीसरे सप्ताह से 3 छुहारे लेने लगें और चौथे सप्ताह से चार छुहारे खाने लगें। चार छुहारे से ज्यादा न लें। यह प्रयोग कम से कम 3 माह तक (शीत और बसन्त ऋतु में) करें। इस प्रयोग के साथ ही रात को सोते समय दो सप्ताह तक छुहारे, तीसरे सप्ताह में तीन छुहारे और चौथे सप्ताह से बारहवें सप्ताह तक यानी तीन माह पूरे होने तक चार छुहारे एक गिलास दूध में उबाल कर, गुठली हटाकर खूब चबा-चबा कर खाएँ और ऊपर से दूध पी लें। इसका प्रयोग स्त्री पुरुष को अपूर्व शक्ति देने वाला, शरीर पुष्ट और सुडौल बनाने वाला तथा पुरुषों के शीघ्र पतन रोग को नष्ट करने वाला है।
• एक मोटे और गूदेदार छुहारे को तेज चाकू या छुरी से, बीच में खड़ा कर चीरा लगा कर, गुठली इस ढंग से निकालें कि छुहारे के दो टुकड़े न हों। अब इसमें असली शुद्ध केसर की 4-5 पंखुड़ियां डाल दें और छुहारे को वापिस जोड़ कर इस भाग पर धागा लपेट दें ताकि केसर बाहर न निकल सके। पाव भर दूध में इस छुहारे को डाल कर मन्दी आंच में शाम को तब तक उबालें। जब तक दूध आधा गिलास न रह जाए। इसके बाद उतार कर ठण्डा कर लें और छुहारे को खूब मसल कर मोटे कपड़े से निचोड़कर छान लें। छुहारे की लुगदी को फेंक दें और दूध का एक-एक घूँट कर करके सोते समय पीएं। इसके बाद पानी न पीएं सिर्फ कुल्ला करके मुंह साफ कर लें। यह प्रयोग पति-पत्नी दोनों के बहुत शक्ति देने वाला और यौन शक्ति बढ़ाकर यौन-दौर्बल्य, अरुचि, शिथिलता आदि दोष दूर करता है।
• दमा के रोगी को प्रतिदिन सुबह-शाम 2-2 छुहारे खूब चबाकर खाना चाहिए। इससे फेफड़ों को शक्ति मिलती है और कफ व सर्दी का प्रकोप कम होता है।
• सर्दी-जुकाम होने पर, दो दिन छोड़ कर यानी जुकाम होने के दो दिन बाद यह प्रयोग करना चाहिए—4 पिण्ड खजूर के गूदे को काटकर टुकड़े कर लें। पाव भर दूध में ये टुकड़े और 4 काली मिर्च व व एक बड़ी इलायची डालकर उबलने के लिए रख दें। खूब उबालकर उतार लें और एक चम्मच शुद्ध घी डाल दें। सोने से पहले टुकड़ा खा लें और दूध पी लें। ऐसा 3-4 रात करने से सर्दी, जुकाम तो ठीक होता है साथ ही इस कारण सिर में दर्द या भारीपन होना, सूखी खांसी, थकावट, हल्का बुखार, भूख की कमी और कमजोरी आदि व्याधियां भी ठीक हो जाती हैं।
• शरीर और बल-पुष्टि और वजन बढ़ाने के लिए पिण्ड खजूर खूब चबा-चबा कर, एक-एक घूंट दूध पीते हुए खाना चाहिए। यह बहुत ही उत्तम और बलपुष्टिवर्द्धक प्रयोग है जो शरीर का दुबलापन दूर कर शरीर को पुष्ट बनाता और सुडौल बनाने के साथ त्वचा को चिकना, साफ और चमकीला बनाता है, बाल घने व लम्बे होते हैं, चेहरे पर निखार लाता है, पिचके हुए गालों को भरता है और एसिडिटी एवं गैस ट्रबल को नष्ट करता है। युवक-युवतियों और प्रौढ़ व वृद्ध स्त्री-पुरुषों सभी के लिए उत्तम प्रयोग है। दम्पत्ति को यह प्रयोग तो अवश्य ही करना चाहिए। एक बात का ख्याल रखें कि पिण्ड खजूर की संख्या अपनी पाचन शक्ति के अनुकूल ही रखें क्योकि पचने में भारी होने से इसे ज्यादा मात्रा में खाने पर अपच हो जाता है और पेट भारी हो जाता है। यौन दौर्बल्य और शीघ्र पतन के रोगी पुरुषों को तो नाश्ते में पिण्ड खजूर का सेवन 2-3 माह तक करना ही चाहिए, बहुत लाभ होगा।
• जो बच्चे दुबले-पतले और कमजोर हों उनको भी सुबह नाश्ते में 2-3 पिण्ड खजूर मिलाकर दूध पिलाना चाहिए। पिण्ड खजूर के गूदे के टुकड़े प्लेट में रख कर दें और एक-एक घूंट दूध पीते हुए 1-1 टुकड़ा खूब चबा-चबाकर खाने के लिए माताएं सामने बैठकर नाश्ता कराएं तो बच्चे खूब सुडौल शरीर वाले रहेंगे।
अंजीर
अंजीर एक सूखा लेकिन अन्दर से स्निग्ध और बारीक-बारीक अनगिनत बीजों वाला
फल होता है। अंजीर एक ऐसा सूखा मेवा है जिसका उपयोग अन्य मेवों की तरह
व्यंजनों में तो लगभग नहीं के बराबर होता है, लेकिन औषधि के रूप में इसका
उपयोग सफलतापूर्वक किया जाता है।
सामान्य परिचय
अंजीर का वानस्पतिक कुल ‘वटकुल’ है। एशिया माइनर में
कैरिका
नामक स्थान इसका मूल उत्पत्ति स्थान माना जाता है, वैसे पूरब में तुर्की
से लेकर पश्चिम में स्पेन से पुर्तगाल तक, भूमिध्य सागर के तटवर्ती
प्रदेशों में, अमेरिका, फारस, अफगानिस्तान, ब्लूचिस्तान और भारत में
कश्मीर, पंजाब और दक्षिण भारत में भी इसकी पैदावार अच्छी होती है।
यह मीठे स्वाद और थोड़ी हीक वाला, भारी, स्निग्ध, रस में मधुर, शीतवीर्य, विपाक होने पर मधुर, वात और रक्तपित्त का शमन करने वाला, रुचिकारी, रक्तविकार और कब्ज का नाश करने वाला है। अधिक मात्रा में सेवन करने पर आमवात करने वाला होता है। यूनानी चिकित्सा पद्धति के अनुसार इसकी जड़ पौष्टिक और सफेद दाग व दाद दूर करने वाली है और फल सूजन दूर करने वाला, पथरी गलाने वाला, यकृत व तिल्ली के विकार नष्ट करने वाला, बलपुष्टि करने वाला होता है।
अंजीर का पका हुआ और लवण जल से संस्कारित मीठा फल ही उपयोग में लेने योग्य होता है। हरे व कच्चे फल के स्पर्श से त्वचा में लालिमा और फोड़े हो जाते हैं। इसका पका हुआ संस्कारित किया हुआ जो फल माला के रूप में बाजार में मिलता है वह एक वर्ष तक गुणयुक्त और उपयोगी रहता है।
यह मीठे स्वाद और थोड़ी हीक वाला, भारी, स्निग्ध, रस में मधुर, शीतवीर्य, विपाक होने पर मधुर, वात और रक्तपित्त का शमन करने वाला, रुचिकारी, रक्तविकार और कब्ज का नाश करने वाला है। अधिक मात्रा में सेवन करने पर आमवात करने वाला होता है। यूनानी चिकित्सा पद्धति के अनुसार इसकी जड़ पौष्टिक और सफेद दाग व दाद दूर करने वाली है और फल सूजन दूर करने वाला, पथरी गलाने वाला, यकृत व तिल्ली के विकार नष्ट करने वाला, बलपुष्टि करने वाला होता है।
अंजीर का पका हुआ और लवण जल से संस्कारित मीठा फल ही उपयोग में लेने योग्य होता है। हरे व कच्चे फल के स्पर्श से त्वचा में लालिमा और फोड़े हो जाते हैं। इसका पका हुआ संस्कारित किया हुआ जो फल माला के रूप में बाजार में मिलता है वह एक वर्ष तक गुणयुक्त और उपयोगी रहता है।
रासायनिक संघटन
इसका रासायनिक संघटन इस प्रकार है—आर्द्रता—80.8%
प्रोटीन—00.3, खनिज 0.6, कार्बोहाइड्रेट्स 17.1—0.06,
फॉस्फोरस—0.03% पाया जाता है। लौह—1.2 मि.ग्रा.,
कैरोटीन 270
इ.यू., निकोटिनिक अम्ल—0.6 मि.ग्रा., राइबोफ्लोविन 50 मि.ग्रा.,
एस्कार्बिक एसि़ड 2 मि.ग्रा. प्रति 100 में पाए जाते हैं। ताजे फलों में
13-20 प्रतिशत और सूखे फलों में 42-62 प्रतिशत शर्करा होती है। बीजों में
30 प्रतिशत तेल होता है।
औषधीय प्रयोग
बवासीर के रोगी के लिए अंजीर एक मित्र के समान है। दो अंजीर 4-4 टुकड़े
करके शाम को पानी में डाल दें और सुबह पानी से निकाल कर इन टुकड़ों को खूब
चबा-चबा कर खाली पेट खा लें। इसी प्रकार सुबह को भिगोकर शाम को खायें।
8-10 दिन तक यह प्रयोग करने पर रोगी को बहुत लाभ होता है। जब तक जरूरी हो
तब तक सेवन करते रहें। कब्ज के रोगी के लिए भी यह प्रयोग बहुत लाभप्रद है।
इस प्रयोग के साथ एक प्रयोग और भी करें। सूखे पके अंजीर, मुनक्का, छोटी
हरड़ और मिश्री—चारों को बराबर मात्रा में लेकर कूट पीस कर 5-5
ग्राम की गोलियां बनाकर सुखा कर शीशी में रख लें। यह 1-1 गोली, भिगोये हुए
अंजीर के साथ सुबह-शाम खाए। खूनी बादी बवासीर दूर करने के लिए दोनों
प्रयोग बहुत लाभकारी हैं।
गांठ व फोड़े
हरे या सूखे अंजीर पीस कर पानी में डालकर औटाएं। गाढ़ा लेप बनाकर गुनगुना
गर्म गांठ या फोड़े पर लगाने से सूजन दूर होती है।
खांसी
एक अंजीर के टुकड़े करके खूब चबा-चबा कर सुबह-शाम खाने से कफ वाली खांसी
ठीक होती है।
कब्ज
एक अंजीर के चार टुकड़े करके एक कप या एक गिलास दूध में डालकर थोड़ी देर
तक उबाल कर दूध को औटाएं। रात को सोते समय अंजीर के टुकड़े को चबाते हुए
गुनगुने दूध को घूंट-घूंट कर पीएं। इस प्रयोग से कब्ज नष्ट होती है और
सुबह शौच खुल कर आता है। यह प्रयोग जितने दिन करना चाहें कर सकते हैं,
क्योंकि कब्ज दूर करने के साथ ही यह पौष्टिकता भी देता है।
सफेद दाग
सफेद दाग शुरू होते ही अंजीर के पत्तों के रस में इसकी जड़ घिसकर लेप
तैयार कर सफेद दाग पर लगाने से उसका बढ़ना बन्द हो जाता है और धीरे-धीरे
दाग मिट जाता है।
घाव व फोड़े
सूखे अंजीर को दूध में पीसकर फिर पुल्टिस बनाकर घाव या फोड़े पर बांधने से
लाभ होता है।
पौष्टिकता
एक अंजीर के चार टुकड़े कर लें। इसके साथ एक अखरोट और दो पिस्ते पीस कर एक
कप दूध मिला लें। रात को पानी में डालकर फुलाए हुए एक बादाम का छिलका हटा
कर, पत्थर पर पानी के साथ घिस कर इसके लेप को भी दूध में मिला लें। सबको
मिलाकर सुबह को खाली पेट चबाते हुए पी जाएं। यह प्रयोग कम से कम 40 दिन
करके देखें। यह प्रयोग दिमागी ताकत, शारीरिक पुष्टि और यौनशक्ति बढ़ाने के
लिए उत्तम है।
अखरोट
ऊँचे पर्वतों पर होने वाला अखरोट खाने में बहुत रुचिकारक व मधुर होता है।
आयुर्वेद के अनुसार यह स्निग्ध, पचने में भारी, कफ व पित्तकारक,
वीर्यवर्द्धक तथा दस्त लाने वाला होता है। यह वायुनाशक होने से वातरोगों
में, खासतौर पर आमवात में बड़ा लाभदायक होता है।
औषधीय प्रयोग
• इसकी गिरी को मोम या मीठे तेल
के साथ गलाकर लेप करने से नासूर मिट जाता है।
• अखरोट की गिरी 5 ग्राम समान भाग में मुनक्का के साथ मिलाकर रोज खाने से शरीर में शक्ति व बल बढ़ता है।
• चेहरे के लकवे पर इसके लेप की मालिश करके दशमूल या निर्गुण्डी के काढ़े की भाप लेने से लाभ होता है।
• इसकी ताजी गिरी को पीस कर पीड़ा युक्त स्थान पर लेप करें। बाद में ईंट के चूरे को गर्म करके उसे कपड़े में लपेट कर उस स्थान पर सेंक करें, पीड़ा दूर हो जाएगी।
• स्तनपान कराने वाली महिला को गेहूं के आटे में अखरोट के पत्तों का चूर्ण बराबर की मात्रा में डालकर गाय के घी में इसकी पूरियां बनाकर एक सप्ताह तक खिलाएं। स्तनों में दूध की मात्रा बढ़ जाएगी।
• इसके तेल को 20-40 मि.ली. की मात्रा में दूध के साथ प्रातः पीने से मल साफ आता है व कब्ज की शिकायत नहीं रहती।
• इसका तेल 10 मि.ली. और गर्म पानी 50 मि.ली. एकत्र मिलाकर 6-6 घंटे पर पिलाने से कुत्ते का विष शरीर से बाहर निकल जाता है।
• इसकी गिरी 50 ग्राम, छुहारा 40 ग्राम तथा बिनौले की मींग 10 ग्राम लेकर थोड़े से घी में कूट कर मिश्री मिलाकर रखें। इसे 25 ग्राम की मात्रा में रोज खाने से बार-बार मूत्र प्रवृत्ति (प्रमेह) की शिकायत दूर होती है। इसके बाद दूध नहीं पीना चाहिए।
• अखरोट की गिरी 25 ग्राम की मात्रा में नित्य खाने से मस्तिष्क को बल मिलता है जिससे मानसिक दुर्बलता का नाश होता है किन्तु पचने में भारी होने के कारण तेज पाचन शक्ति वाला ही इसे खा सकता है।
शीत ऋतु इसके सेवन का सबसे उत्तम काल है, क्योंकि ठंडे वातावरण से मानव की पाचनशक्ति तेज होती है, जिससे इसके पौष्टिक गुण मानव को प्राप्त होते हैं।
• अखरोट की गिरी 5 ग्राम समान भाग में मुनक्का के साथ मिलाकर रोज खाने से शरीर में शक्ति व बल बढ़ता है।
• चेहरे के लकवे पर इसके लेप की मालिश करके दशमूल या निर्गुण्डी के काढ़े की भाप लेने से लाभ होता है।
• इसकी ताजी गिरी को पीस कर पीड़ा युक्त स्थान पर लेप करें। बाद में ईंट के चूरे को गर्म करके उसे कपड़े में लपेट कर उस स्थान पर सेंक करें, पीड़ा दूर हो जाएगी।
• स्तनपान कराने वाली महिला को गेहूं के आटे में अखरोट के पत्तों का चूर्ण बराबर की मात्रा में डालकर गाय के घी में इसकी पूरियां बनाकर एक सप्ताह तक खिलाएं। स्तनों में दूध की मात्रा बढ़ जाएगी।
• इसके तेल को 20-40 मि.ली. की मात्रा में दूध के साथ प्रातः पीने से मल साफ आता है व कब्ज की शिकायत नहीं रहती।
• इसका तेल 10 मि.ली. और गर्म पानी 50 मि.ली. एकत्र मिलाकर 6-6 घंटे पर पिलाने से कुत्ते का विष शरीर से बाहर निकल जाता है।
• इसकी गिरी 50 ग्राम, छुहारा 40 ग्राम तथा बिनौले की मींग 10 ग्राम लेकर थोड़े से घी में कूट कर मिश्री मिलाकर रखें। इसे 25 ग्राम की मात्रा में रोज खाने से बार-बार मूत्र प्रवृत्ति (प्रमेह) की शिकायत दूर होती है। इसके बाद दूध नहीं पीना चाहिए।
• अखरोट की गिरी 25 ग्राम की मात्रा में नित्य खाने से मस्तिष्क को बल मिलता है जिससे मानसिक दुर्बलता का नाश होता है किन्तु पचने में भारी होने के कारण तेज पाचन शक्ति वाला ही इसे खा सकता है।
शीत ऋतु इसके सेवन का सबसे उत्तम काल है, क्योंकि ठंडे वातावरण से मानव की पाचनशक्ति तेज होती है, जिससे इसके पौष्टिक गुण मानव को प्राप्त होते हैं।
काजू
सूखे मेवों में काजू का अपना एक अलग स्थान है। ब्राजील तथा दक्षिण अफ्रीका
इसका मूल जन्म-स्थान है। ब्राजील के लोग इसे
‘अकाजू—तथा
‘एकाजान’ के नाम से पुकारते हैं। ब्राजील, दक्षिण
अमेरिका,
अफ्रीका आदि देशों में काजू बहुतायत मात्रा में मिलता है। भारत में काजू
का सर्वाधिक उत्पादन तमिलनाडु में होता है।
सामान्य परिचय
काजू की दो किस्में होती हैं। सफेद और श्याम। यह कसैला, मधुर, लघु और
कफवर्द्धक है। यह वायु, कफ, गुल्म, उदररोग, ज्वर, कृमि, अग्निमांद्य,
कोढ़, अर्श और अफारा को मिटाता है। यह वातशामक, भूख बढ़ाने वाला व हृदय के
लिए हितकारी है। हृदय की दुर्बलता व स्मरण-शक्ति की कमजोरी के लिए काजू
लाभप्रद है।
काजू का सेवन शरीर निर्माण, नाड़ी मंडल एवं पाचन प्रणाली की सक्रियता, खून की कमी, कमजोरी आदि पर नियंत्रण करने में फायदेमंद होता है।
अत्यधिक प्रोटीनयुक्त आहार होने के कारण इसकी तुलना मांस से की जाती है। मगर इसकी सबसे बड़ी विशेषता यह है कि प्रोटीनयुक्त होने के बावजूद इसके सेवन से शरीर में यूरिक एसिड बनता जो कि अन्य पदार्थों से उत्पन्न होकर शरीर को खतरा पैदा कर देता है।
काजू का सेवन शरीर निर्माण, नाड़ी मंडल एवं पाचन प्रणाली की सक्रियता, खून की कमी, कमजोरी आदि पर नियंत्रण करने में फायदेमंद होता है।
अत्यधिक प्रोटीनयुक्त आहार होने के कारण इसकी तुलना मांस से की जाती है। मगर इसकी सबसे बड़ी विशेषता यह है कि प्रोटीनयुक्त होने के बावजूद इसके सेवन से शरीर में यूरिक एसिड बनता जो कि अन्य पदार्थों से उत्पन्न होकर शरीर को खतरा पैदा कर देता है।
रासायनिक विश्लेषण
काजू पूर्णतया प्रोटीनयुक्त फल है। इसमें 29.2 प्रतिशत प्रोटीन, 22.3
प्रतिशत कार्बोहाइड्रेट, 2.5 प्रतिशत क्षार तत्व पाया जाता है। इसकी
अपेक्षा इसमें कैल्शियम, फॉस्फोरस, आयरन तथा रेशे की मात्रा कम पायी जाती
है। 100 ग्राम काजू में 100 युनिट विटामिन ‘ए’,
नियासीन 201
मिलीग्राम तथा रिबोफ्लेविन 190 माइक्रोग्राम विद्यमान रहता है।
औषधीय प्रयोग
• काजू के कच्चे फल और तिवर के फल
को पानी में रगड़ कर लेप करने से फोड़ा जल्दी पक कर फूटता है।
• प्रातः खाली पेट दो-तीन तोला काजू खाकर ऊपर से शहद लेने से मस्तिष्क की स्मरण शक्ति बढ़ती है।
• काजू का तेल मस्से पर लगाने से वह शीघ्र ठीक हो जाती है। पैर की बिवाइयों में भी यह लाभ पहुँचाता है।
• काले अंगूर के साथ 2-3 तोला काजू खाने से, अजीर्ण या गर्मी के कारण होने वाली कब्जियत दूर होती है।
• काजू के पके फल के साथ काली मिर्च व नमक मिलाकर 3-4 दिन सुबह सेवन करने से मल-विकार मिटता है।
• काजू के पके हुए फल खाने से आंत में एकत्रित वायु मिटती है।
काजू गर्म होता है, अतः अंगूर (द्राक्ष), शर्करा या शहद आदि के साथ इसका सेवन करना चाहिए। ज्यादा मात्रा में सेवन करने से रक्तस्त्राव होने की संभावना रहती है। काजू का प्रोटीन शरीर में बहुत जल्दी पच जाता है।
• प्रातः खाली पेट दो-तीन तोला काजू खाकर ऊपर से शहद लेने से मस्तिष्क की स्मरण शक्ति बढ़ती है।
• काजू का तेल मस्से पर लगाने से वह शीघ्र ठीक हो जाती है। पैर की बिवाइयों में भी यह लाभ पहुँचाता है।
• काले अंगूर के साथ 2-3 तोला काजू खाने से, अजीर्ण या गर्मी के कारण होने वाली कब्जियत दूर होती है।
• काजू के पके फल के साथ काली मिर्च व नमक मिलाकर 3-4 दिन सुबह सेवन करने से मल-विकार मिटता है।
• काजू के पके हुए फल खाने से आंत में एकत्रित वायु मिटती है।
काजू गर्म होता है, अतः अंगूर (द्राक्ष), शर्करा या शहद आदि के साथ इसका सेवन करना चाहिए। ज्यादा मात्रा में सेवन करने से रक्तस्त्राव होने की संभावना रहती है। काजू का प्रोटीन शरीर में बहुत जल्दी पच जाता है।
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