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शिखण्डी युग

सुदर्शन प्रियदर्शिनी

प्रकाशक : अर्चना प्रकाशित वर्ष : 1987
पृष्ठ :90
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 3503
आईएसबीएन :00000

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सुदर्शन प्रियदर्शिनी की 36 कविताओं का संग्रह...

Shikhandi Yug

सुदर्शन प्रियदर्शिनी

जन्म स्थान: लाहौर (अविभाजित भारत)।

शिक्षा : एम.ए. एवं हिन्दी में पी-एच.डी. (1982), (पंजाब विश्वविद्यालय)। लिखने का जुनून बचपन से ही।

प्रकाशित कृतियाँ : सूरज नहीं उगेगा, अरी ओ कनिका और रेत की दीवार (उपन्यास), काँच के टुकड़े (कहानी संग्रह), शिखण्डी युग और वरहा (कविता संग्रह)। भारत और अमेरिका के कई संकलनों में रचनाएं संकलित। विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में रचनाओं का प्रकाशन।

पुरस्कार : हिन्दी परिषद टोरंटो का महादेवी पुरस्कार तथा ओहायो गवर्नर मीडिया पुरस्कार।

सम्प्रति : क्लीवलैंड, ओहायो, अमेरिका में निवास और साहित्य सृजनरत।

शिखण्डी युग

यह युग पहले भी
आया था...
द्रोणाचार्य ने... एकलव्य का
अंगूठा कटवाया था...।
पुरुष ने शापित कर
अहल्या को-
पत्थर बनाया था...।
सीता को लांछित कर
जंगल भिजवाया था...।
राजनीति के चक्कर ने...
राम को...
बनवासी बनवाया था...
भिक्षाम देहि के लाधव से...
सीता का
हरण करवाया था...
दुर्योधन ने सत्य को-
जलाने...
लाक्षागृह बनवाया था...।
यह शिखंडी युग है
साथियों...
जिसने भीष्म पितामह को
शरों की
सेज सुलाया था...।
यह सागर मंथन है-
कि स्वयं देवों ने
शंकर को
विष पिलाया था...।
लक्ष्मी दानवों की कैद है...
जिसने देवों का
धर्म डिगाया था...
अब भी भीष्म कृष्ण
और राम
क्या पैदा नहीं होते...
होते हैं-
पर हर युग ने
उनको कारावास
दिलाया है...।

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