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कमर दर्द कारण और निवारण

निष्ठा

प्रकाशक : डायमंड पॉकेट बुक्स प्रकाशित वर्ष : 2004
पृष्ठ :157
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 3621
आईएसबीएन :81-7182-150-2

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रीढ़ की हड्डी से संबंधित विकार तथा उनका उपचार...

Kamar Dard

प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश

हड्डियों के बिना शरीर की कल्पना भी अधूरी है। हड्डियों की चहारदीवारी पर माँस पेशियों व नशों के ताने-बाने तथा त्वचा की चादर में शरीर के अवयव लिपटे रहते हैं। हमारे शरीर को ढोने या छोटी-मोटी खरोंच या धक्के से कोमल अंगों को बचाने का काम हड्डियाँ ही करती हैं।

किन्तु जब हड्डियों में चोट लग जाए या कोई रोग हो जाए तो असहनीय पीड़ा होती है। यदि समय पर उपचार न मिले तो शारीरिक विकृति, पक्षाघात व अंग-भंग की स्थिति बन सकती है।

हालाँकि हड्डी के सर्वाधिक रोगी चोट या टूटन (फ्रैक्चर) के ही होते हैं, किन्तु अन्य रोग जैसे आर्थराइटिस, डिस्क प्रोप्लेस (स्लिप्ड डिस्क), आस्टियो-पोरोसिस आदि भी बहुतायत में होते हैं। ऐसे रोगियों को दृष्टिगत रखते हुए प्रस्तुत पुस्तक लिखी गई है। इसके लेखन में यह प्रयास किया गया है कि बीमारी के लक्षण, कारण, बचाव व हर संभव उपचार के बारे में बताया जाए। पुस्तक में पोलियो पर भी विस्तृत सचित्र जानकारी दी गई है।

पीठ (कमर) दर्द के प्रकार
एंकीलोज़िंग स्पोण्डीलाइटिस


यह रीढ़ की हड्डी के उपभागों (Vertebraes of Spine) और सैक्रियोलिक जोड़ (Sacroiliac Joint मेरुदण्ड और श्रोणि प्रदेश के बीच का जोड़) के बीच जलन पैदा होने के कारण होती है। पर इस प्रकार की जलन की वजह का अभी पता नहीं चल सका है। लगभग एक प्रतिशत लोगों में एंकीलोज़िंग स्पोण्डीलाइटिस की शिकायत पाई जाती है। महिलाओं की अपेक्षा पुरुष इस तरह के पीठ दर्द से ज्यादा परेशान रहते हैं। यह बीमारी 20-40 वर्ष की उम्र में अधिक पाई जाती है।
इस बीमारी में सबसे पहले व्यक्ति की पीठ के निचले हिस्से व कूल्हों में दर्द की शुरूआत होती है और एक हिस्से में कुछ कड़ापन महसूस होता है। सुबह सोकर उठने के बाद यह दर्द अत्यधिक तेज होता है। इसके अन्य लक्षणों में छाती दर्द, भूख में कमी, थकान, आंखों का लाल रहना व जलन होना आदि प्रमुख लक्षण हैं।
इसके उपचार के लिए सिकाई, मालिश व कसरत का सहारा अधिक लेना चाहिए। चिकित्सकीय सलाह से कुछ दर्द निवारक औषधियां भी ली जा सकती हैं।

काक्सीडायनिया


मेरुदण्ड के आधार (नीचे का अंतिम छोर) पर स्थित त्रिकोण के आकार की हड्डी कॉक्सिक्स में होने वाला दर्द कॉक्सिडायनिया कहलाता है। अकसर रीढ़ की हड्डी के बल किसी कड़ी सतह पर गिरने से इसकी शिकायत होती है। कुर्सी पर बैठकर घंटों काम करने वाले लोग भी कॉक्सीडायनिया के शिकार हो सकते हैं।
इसका कोई स्थाई उपचार नहीं है, किन्तु सिकाई व दर्द निवारक इंजेक्शन के जरिए दर्द से छुटकारा अवश्य पाया जा सकता है। अधिकतर मामलों में दर्द धीरे-धीरे खुद ही कम हो जाता है, किन्तु कुछ विशेष परिस्थितियों में शल्य क्रिया भी करानी पड़ सकती है।

फाइब्रोसाइटिस


कभी-कभी मांसपेशियों में दर्द और कड़ापन पैदा हो जाता है। इसके कारण पीठ के साथ-साथ गले, छाती, कंधों, कूल्हों व घुटनों में दर्द होने लगता है। ज्यादा तनाव व ठीक तरह से न उठना-बैठना इसके प्रमुख कारण हैं। कई बार इंफेक्शन के कारण या किसी कसरत के पहली बार करने से भी इस प्रकार के पीठ दर्द की शिकायत हो जाती है।
गर्म पानी से स्नान, मालिश, दर्दनाशक दवाओं का सेवन और रिलेक्सेशन व्यायामों के जरिए मांसपेशियों के खिंचाव व दर्द को काफी हद तक दूर किया जा सकता है।

आस्टियो-आर्थराइटिस


आमतौर पर 50 की उम्र के बाद कार्टिलेज (उपास्थि) में हुए प्रदाह के कारण यह समस्या पैदा होती है। इससे कम उम्र वाले लोगों में किसी दुर्घटना के बाद कार्टिलेज में विकृति आने के कारण इस समस्या का शिकार होते हैं। इसके प्रमुख लक्षण हैं—हड्डियों के जोडों में दर्द, कठोरता व सूजन। रीढ़ की हड्डी, कूल्हों एवं घुटनों के जोडों में यह आम शिकायत रहती है। इसके कारण रोगी चलने-फिरने से लाचार हो जाता है और उसकी नींद भी उड़ जाती है।
आस्टियो आर्थराइटिस का कोई खास इलाज तो नहीं है, पर दर्द नाशक, प्रदाह नाशक व जीवाणु नाशक दवाओं के उपयोग से कुछ हद तक आराम मिलता है। इसके बारे में विस्तार से अलग लेख में बताया गया है।

पायलोनेफ्राइटिस


किडनी में बैक्टिरियल इंफेक्शन (जीवाणु संक्रमण) होने से तेज बुखार, कंपकंपी महसूस होने और पीठ दर्द की शिकायत रहने लगती है। अगर उचित समय पर उपचार न किया जाए तो उससे किडनी को भी नुकसान पहुंचने की संभावना रहती है। जीवाणु नाशक औषधियों के प्रयोग से इससे छुटकारा पाया जा सकता है।

स्कोलियोसिस


इसके कारण मेरुदण्ड सीधी न रहकर किसी एक तरफ झुक जाती है और इससे ज्यादा छाती और पीठ के नीचे के हिस्से प्रभावित होते हैं। आमतौर पर स्कोलियोसिस की शुरूआत बचपन या किशोरावस्था में होती है। जब शरीर की बाढ़ (शारीरिक विकास) रुक जाती है, तब तक यह झुकाव साफ नजर आने लगता है। कई बार देखा जाता है कि रीढ़ मुड़कर अंग्रेजी के ‘ऽ’ अक्षर के आकार की हो गई है। इस समस्या के किसी ठोस कारण का अभी तक पता नहीं चल सका है। यदि समय रहते इसका उपचार न कराया जाए तो यह शरीर में विकृति व विकलांगता पैदा कर सकती है। रीढ़ की हड्डी में किसी जन्मजात असामान्यता के चलते या रीढ़ की हड्डी के दुर्घटना का शिकार हो जाने पर भी स्कोलियोसिस हो सकती है। कभी-कभी श्रोणि प्रदेश के झुक जाने के कारण एक पैर छोटा, एक पैर बड़ा हो जाता है। नतीजतन रीढ़ भी झुक जाती है। अगर स्कोलियोसिस के सही कारण का पता चल जाए जैसे स्लिपडिस्क की वजह से है तो ‘बेडरेस्ट’ के जरिए व पैरों की लम्बाई असमान होने की वजह से है तो विशेष किस्म के आर्थोपैडिक जूतों के उपयोग से इससे बचा जा सकता है। यदि रीढ़ का झुकाव लगातार होता रहे तो आर्थोपैडिक सर्जन से परामर्श करके शल्य क्रिया भी कराई जा सकती है।

स्लिप्ड डिस्क या डिस्क प्रोलैप्स


इस प्रकार का पीठ दर्द एक आम समस्या है। इसके अंतर्गत रीढ़ की हड्डी से लिपटी मांसपेशी कमजोर पड़ जाती है या मांसपेशी का सिरा (लिगामेंट), जो कि हड्डी से जुड़ा होता है, टूट जाता है। इस कारण उस क्षेत्र की रीढ़ की हड्डी का गूदेदार नुकीला सिरा (Pulpy Core) बाहर निगल आता है। इस कारण असहनीय कमर दर्द होता है। कई बार यह नुकीला गूदेदार हिस्सा नसों पर इतना दबाव डालता है कि इससे पीड़ित व्यक्ति लाचार या विकलांग जैसा हो जाता है। ज्यादातर पीठ का निचला हिस्सा ही डिस्क प्रोलेप्स का शिकार होता है। इसके कारण कूल्हे या पीठ के ऊपरी हिस्से में भी दर्द हो सकता है।

कारण व लक्षण


आमतौर पर डिस्क प्रोलैप्स उम्र बढ़ने के साथ-साथ ‘डिस्क’ में विकृतियां पैदा हो जाने के कारण होता है। कई बार भारी वजन उठाने और शरीर को बहुत ज्यादा मोड़ देने से भी डिस्क प्रोलैप्स से पीड़ित होने की सम्भावना अधिक रहती है। 30 वर्ष की उम्र के बाद डिस्क में पानी की मात्रा कम होने से उसका लचीलापन कम हो जाता है। 40 वर्ष के बाद डिस्क के आस-पास ज्यादा रेशे वाले ऊतकों का निर्माण होने लगता है, जिससे वहां कठोरता पैदा होकर लचीलापन कम हो जाता है।
रीढ़ 33 हड्डियों को मिलाकर बनी होती है। ऊपर की शुरूआती सात हड्डियों सॅरवाइकल स्पाइन के नाम से जानी जाती है। उसके बाद की 12 हड्डियाँ कृमशः सॅक्रम और कोकिक्स के नाम से जानी जाती है।

डिस्क प्रोलैप्स की शिकायत महिलाओं के बजाए पुरुषों में अधिक पाई जाती है, वह भी उनमें जो लगातार कई-कई घंटे बैठकर काम करते हैं, वजन उठाने का काम करते हैं या स्कूटर व मोटरसाइकिल पर लम्बी दूरी की यात्राएं अधिक करते हैं। इससे दर्द की शिकायत होने पर तुरंत चिकित्सक से परामर्श करना चाहिए। लापरवाही बरतने पर हाथ-पैरों में झनझनाहट या सुन्नी आ सकती है, पक्षाघात जैसे लक्षण प्रकट हो सकते हैं और शल्य क्रिया भी करानी पड़ सकती है।
जांच
-एक्स-रे
सी.टी. स्कैनिंग (कम्प्यूटर आधारित 3D एक्स-रे)
-माइलोग्राफी (रीढ़ की हड्डी में किसी रेडियो ओपेक पदार्थ का इंजेक्शन लगाने के बाद लिया गया एक्स-रे)
-ई.एम.जी. (मांसपेशियों में इलैक्ट्रिकल अर्थात् विधुतीय क्रिया-कलापों का पता लगाने के लिए की जाने वाली जांच)
-एम.आर.आई. उपर्युक्त सभी जांचे चिकित्सकीय परामर्श के बाद ही करानी चाहिए। आजकल एम.आर.आई. जांच सर्वश्रेष्ठ मानी जाती है।

मैनजमैंट


कम-से-कम तीन सप्ताह पूर्ण ‘बेड रेस्ट’ (बिस्तर पर आराम) करने से सामान्य किस्म का डिस्क प्रोलैप्स ठीक हो जाता है। इस दौरान सभी रूप से सभी शारीरिक गतिविधियां बंद रखनी चाहिए। आगे-पीछे को नहीं झुकना चाहिए। बिस्तर पर भी स्थिर लेटना चाहिए और करवटें नहीं बदलनी चाहिए। यदि सम्भव हो सके तो टट्टी-पेशाब भी बिस्तर पर ही पॉट लगाकर करना चाहिए।
अगर बेड रेस्ट के बावजूद दर्द बरकरार रहता है तो इसकी वजह से पित्ताशय, अंतड़ियों या मांसपेशियों की कार्यक्षमता पर बुरा असर पड़ता है, तो स्पाइनल कैनाल (मेरुदण्ड नलिका) की ‘डिकम्प्रैशन सर्जरी’ के जरिए या फिर केमोम्यूक्लियोसिस के जरिए इसका इलाज किया जा सकता है। इसके लिए किसी बड़े अस्पताल या नर्सिंग होम में न्यूरोसर्जन की सलाह लेनी चाहिए।

उपचार


कमर दर्द की चिकित्सा बहुआयामी हो सकती है। इसके लिए एलोपैथिक औषधियां, आयुर्वेदिक औषधियां, होमियोपैथिक औषधियां, फिजियोथेरेपी, शल्य क्रिया, एक्यूप्रेशर व व्यायाम आदि सुविधानुसार कुछ भी अपनाया जा सकता है।

आयुर्वेदिक उपचार


आयुर्वेदिक चिकित्सा में औषधियां, सम्बंधित कारणों पर निर्भर करती हैं। विभिन्न परिस्थितियों में निम्न प्रकार के आयुर्वेदिक उपाचर अपनाया जा सकता है।

श्वेतप्रदर से होने वाला कमर दर्द


चन्द्र प्रभा वटी 2-2, गोली, त्रिवंग भस्म 60 मि. ग्रा., कुक्टाण्डत्वक 60 मि.ग्रा. तीनों मिलाकर गर्म दूध से सुबह-शाम लें।
अश्वगंधारिष्ट 4 चम्मच बराबर मात्रा में पानी में मिलाकर रात्रि में भोजनोपरांत लें।
इसके अलावा गर्म पानी में फिटकरी मिलाकर उसमें सिट्ज बाथ (कटि स्नान) लेने से भी श्वेतप्रदर जन्य कमर दर्द (कटिशूल) ठीक हो जाता है।
कष्टप्रदर जन्य कमर दर्द
रजः प्रवर्तनी वटी 2-2 गोली सुबह-शाम गर्म पानी के साथ लेने के अलावा दशमूलारिष्ट, कौमार्यासव भी एक-एक चम्मच पानी की बराबर मात्रा में मिलाकर दिन में दो बार भोजनोंपरांत लें। इसके साथ ही गर्मपानी से कमर व पेड़ु की सिकाई भी करें।

प्रसवोपरांत होने वाला कमर दर्द


कमर व पेट की मांसपेशिया प्रसव पीड़ा की वजह से शिथिल पड़ जाती हैं। इसकी चिकित्सा के लिए सुपारी पाक एक-एक बड़ा चम्मच, गर्म दूध के साथ सुबह-शाम लें। साथ ही सौभाग्य शुष्ठिपाक भी एक-एक चम्मच सुबह-शाम दूध से लें। इसके अतिरिक्त दशमूलारिष्ट के चार-चार चम्मच समभाग पानी में मिलाकर सुबह-शाम भोजनोपरांत लें।
उक्त औषधियों के अलावा महानारायण तेल की मालिश कमर व पेड़ु पर करनी चाहिए।

शारीरिक कमजोरी से होने वाला दर्द


इसके लिए दर्द निवारक औषधियों के साथ-साथ जिस्म को बल देने व पुष्ट करने वाले योग भी प्रयोग में लाने चाहिए।
अश्वगंधापाक 10-10 ग्राम दूध के साथ सुबह-शाम। सुबह-शाम ही गुनगुने दूध के साथ किसी भी अच्छी कम्पनी का च्यवनप्राश लें। वृहतवात चिंतामणि की एक गोली दिन में किसी भी समय दूध की मलाई के साथ लें।
महानारायण तेल की मालिश करें व गर्म पानी की बोतल से सिकाई करें।
हड्डी दौर्बल्य के कारण होने वाला दर्द
मुक्ताशक्ति भस्म 500 मि.ग्रा. में पर्याप्त मलाई के साथ सुबह-शाम, गर्म दूध के साथ लें। इसी के साथ महायोग राज गुग्गुल की 2-2 गोली सुबह-शाम गर्म दूध के साथ लें। बलारिष्ट नामक औषधि की 30 मि.ली. खुराक समभाग ताजा जल के साथ सुबह-शाम लेनी चाहिए।
इसके अलावा सुबह-शाम दो-दो गोली लाक्षादि गुग्गुल की एक चम्मच कैस्टर ऑयल से लेनी चाहिए।

फिजियोथेरेपी


दर्द मिटाने के लिए फिजियोथेरेपिस्ट हल्के हाथों से मालिश करता है और कशेरुकाओं को उनकी सही जगह पर बैठा देता है। यह उपचार चिकित्सकीय परामर्श के बाद ही योग्य व कुशल फिजियोथेरेपिस्ट से कराना चाहिए।

एक्यूप्रेशर व एक्यूपंक्चर


इस विद्या में पारंगत व्यक्ति से ही यह उपचार कराना चाहिए। कुशल हाथों के द्वारा रोगी के दर्द में काफी आराम मिल सकता है।

होमियोपौथिक उपचार


लक्षणों की समानता के आधार पर मुख्यरूप से निम्न औषधियों का प्रयोग किया जा सकता है।
चेलीडोनियम: गर्दन में दर्द, कठोरता, घुमाने में दर्द, दाएं कंधे की हड्डी (स्केपुला) पर अंदर एवं नीचे की तरफ लगातार दर्द रहने पर 30 शक्ति औषधि लेनी चाहिए।
जिंकम मेट : कमर दर्द, छूना भी पीड़ादायक, कंधों पर तनाव, रीढ़ की हड्डी में चिड़चिड़ाहट, आखिरी डॉरसल अथवा रीढ़ की प्रथम लम्बर हड्डी में दर्द, गुम चोट जैसा दर्द, एक जगह बैठे रहने पर दर्द, अकड़न, कंधों में टूटन-ऐंठन आदि लक्षण मिलने पर उक्त औषधि 30 शक्ति में दिन में तीन बार 3-3 बूंद लेनी चाहिए। इस औषधि से रोगी को टट्टी-पेशाब के बाद राहत मिलती है।
स्त्रियों को सफेद पानी (श्वेत प्रदर) के साथ कमर दर्द व चिड़चिड़ाहट पर सीपिया 30 तथा एलुमिना 30 शक्ति में देनी चाहिए।

अत्यधिक मैथुन के बाद कमर दर्द रहने पर एग्नस कैस्टस एवं एसिडफॉस औषधियां 30 शक्ति में लेना हितकर रहता है।
यदि चलने-फिरने पर दर्द बढ़ने लगे एवं दबाने पर तथा दर्द वाली सतह पर लेटने से आराम मिले तो ब्रायोनिया 30 शक्ति में, दिन में तीन बार, एक हफ्ते तक लेनी चाहिए।
कालीकार्ब औषधि के रोगी में ब्रायोनिया से विपरीत लक्षण मिलते हैं। अर्थात् रोगी को चलने-फिरने से आराम मिलता है एवं बाईं तरफ अथवा दर्द वाली सतह पर लेटने से परेशानी बढ़ जाती है। ऐसे में कालीकार्ब औषधि 30 शक्ति में लेनी चाहिए।

यदि बैठकर उठते समय अथवा चलना प्रारम्भ करते समय असहनीय पीड़ा हो किन्तु लगातार चलते रहने से दर्द में राहत मिल जाए तो रसटॉक्स 30 शक्ति में देनी चाहिए।
मांसपेशियों में दर्द, खासतौर से कठिन परिश्रम करने वालों में बेलिस वेशेनस औषधि 3x शक्ति में लेने से लाभ मिलता है।
युवा स्त्रियों में दर्द का स्थान परिवर्तित होते रहने पर पल्सेटिला 30 शक्ति में व प्रौढ़ महिलाओं में यौनांग शिथिल हो जाने पर सीपिया 30 शक्ति देनी चाहिए।

पीठ दर्द से बचने के लिए व्यायाम


नियमित व्यायाम न सिर्फ आपको पीठ दर्द से छुटकारा दिलाता है, बल्कि पुराने पीठ दर्द में भी लाभ पहुंचाता है। व्यायाम उचित ढंग से करें। गलत ढंग से किया गया व्यायाम पीठ दर्द को और बढ़ा सकता है। यह भी ध्यान रखें कि चिकित्सकीय परामर्श के बाद यह सुनिश्चित अवश्य कर लें कि आपको किस प्रकार का पीठ दर्द है और उसमें कौन-कौन से व्यायाम करना ठीक रहेगा। इसी प्रकार यदि पीठ दर्द नहीं है तो पीठ दर्द से बचे रहने के लिए भी नियमित व्यायाम लाभदायक रहते हैं।
निम्नलिखित व्यायाम सभी के लिए लाभदायक हो सकते हैं, किंतु नियमितता आवश्यक है।

तैरना


लम्बे समय से पीठ दर्द से परेशान लोगों के लिए तैरना या स्वीमिंग एक बेहद फायदेमंद व्यायाम साबित हुआ है। तैरने से हमारे पेट, पीठ, बांह, व टांगों की मांसपेशियां मजबूत बनती हैं। पानी हमारे शरीर के गुरुत्वाकर्षी खिंचाव को कम कर देता है, जिसके चलते तैरते समय पीठ पर किसी तरह का तनाव या बोझ नहीं पड़ता। यह सावधानी जरूर रखें कि कुछ निश्चित स्ट्रोक के बाद अपना चेहरा पानी के भीतर जरूर कर लें। हमेशा सिर ऊपर करके तैरने से रीढ़ के अस्थिबंधों में कुछ ज्यादा ही खिंचाव पैदा हो जाता है। इस कारण पीठ दर्द बढ़ भी सकता है।

तेज चाल


तेज चलना भी शरीर में लोच बनाए रखने के लिए लाभदायक है, किन्तु सुबह के समय, खाली पेट ही घूमना अधिक फायदेमंद होता है। दिल के रोगियों को तेज चाल (Brisk Walking) नहीं करनी चाहिए।
तेज चाल के अलावा जागिंग भी लाभदायक रहती है, किन्तु पीठ दर्द होने पर जागिंग नहीं करनी चाहिए।



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