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शिव उपासना

राधाकृष्ण श्रीमाली

प्रकाशक : डायमंड पॉकेट बुक्स प्रकाशित वर्ष : 2006
पृष्ठ :176
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 3653
आईएसबीएन :81-288-0218-6

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प्रस्तुत है शिव उपासना....

Shiv Upasana

प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश

वैदिक साहित्य में उपासना का महत्त्वपूर्ण  स्थान है। हिन्दू धर्म के सभी मतावलम्बी-वैष्णव, शैव, शाक्त तथा सनातन धर्मावलम्बी-उपासना का ही आश्रय ग्रहण करते हैं।
यह अनुभूत सत्य है कि मन्त्रों में शक्ति होती है। परन्तु मन्त्रों की क्रमबद्धता, शुद्ध उच्चारण और प्रयोग का ज्ञान भी परम आवश्यक है। जिस प्रकार कई सुप्त व्यक्तियों में से जिस व्यक्ति के नाम का उच्चारण होता है, उसकी निद्रा भंग हो जाती है, अन्य सोते रहते हैं उसी प्रकार शुद्ध उच्चारण से ही मन्त्र प्रभावशाली होते हैं और देवों को जाग्रत करते हैं।

क्रमबद्धता भी उपासना की महत्त्वपूर्ण  भाग है। दैनिक जीवन में हमारी दिनचर्या में यदि कहीं व्यतिक्रम हो जाता है तो कितनी कठिनाई होती है, उसी प्रकार उपासना में भी व्यतिक्रम कठिनाई उत्पन्न कर सकता है।
अतः उपासना-पद्धति में मंत्रों का शुद्ध उच्चारण तथा क्रमबद्ध प्रयोग करने से ही अर्थ चतुष्टय की प्राप्ति कर परम लक्ष्य-मोक्ष को प्राप्त किया जा सकता है।

लेखकीय

मंत्रों में अद्भुत शक्ति है। इस शक्ति का प्रयोग करें और देखेंगे कि अनास्था की ओर जा रहे बौद्धिक वर्ग में आस्था जाग्रत हो रही है। जीवन की विरोधी गतिविधियों को अनुकूल बनाने के लिए सदैव एक सूक्ष्म शक्ति को साथ रखने की आवश्यकता रहती है। साधक को मन्त्रमय बनाने के लिए प्रातः से सायं तक की सभी क्रियाओं के लिए मन्त्र सहायक होते हैं।
इस पुस्तक में महादेव से सम्बन्धित प्रयोग, जाप, पूजादि देने का भरपूर प्रयास किया गया है। इस अष्टक, पाठ-प्रयोगों में नवीनता पाएंगे। साधरण लोग मन्त्र-साधना आरम्भ किन्ही भौतिक उपलब्धियों या संकटनाश की आशा से ही करते हैं। संकट आने पर नास्तिक भी इधर झुकने को तैयार होता है और आशाजनक लाभ प्राप्त होने पर सहज में ही मन्त्र-शक्ति पर विश्वास करने लगते हैं। यह पुस्तक हर प्रकार के शिव उपासक के लिए परमोपयोगी है। दरिद्रता-निवारण, आर्थिक अभाव को दूर करने अथवा लक्ष्मी की प्राप्ति के लिए प्रभावशाली स्तोत्रादि दिए हैं। विश्व के सभी असाधारण कार्य बुद्धि के सहयोग से ही किए जाने सम्भव हैं। अतः बुद्धिवर्द्धक प्रयोग है।

हर जीवन में विरोध, संकट और विघ्न आते हैं। इन्हें दूर करने का कोई साधन न देखकर वह घबरा जाता है और जीवन में निराशा छा जाती है। इस संकट की घड़ी में कोई दैव्य शक्ति की अपेक्षा रहती है। इसके आह्वान के लिए अनुभव सिद्ध प्रयोग संकलित हैं। विश्वास और श्रद्धा से इन्हें करें तो अति निश्चित लाभ होता है। मन्त्र-शक्ति साधक के साथ आशा की किरणों की तरह साथ रहती है। मन्त्र-साधक सदैव आशाप्रद जीवन जीता है। वह कभी निराश नहीं होता, कारण वह एक असीम शक्ति के सान्निध्य की निरन्तर अनुभूति करता है तथा विजय और सफलता के कीर्तिमान स्थापित करता है। कोई विधान न होने पर भी जीवन की अनेक योजनाओं में सफलता की आकांक्षा रहती है।
इस प्रकार यह पुस्तक विशेष उपयोगी बन पड़ी है और यह मन्त्र-शक्ति के प्रति आस्था उत्पन्न करेगी, ऐसा मेरा दृढ़ विश्वास है।

पं. राधाकृष्ण श्रीमाली

गणेश-पूजनम्

प्रातः काल स्नानादि से निवृत होकर सरिता, तालाब, तपोवन भूमि या अन्यत्र शान्तिमय वातावरण में अपने घर के किसी स्थान में गणपति की साधना की जानी चाहिए। साधना काल में मुंह पूर्व की ओर रखना चाहिए। आशन कुशा या ऊन का हो तो उत्तम है। एक सुन्दर चौकी पर गणपति का भव्य-सुन्दर तेजोमय चित्र शीशे में मंडित स्थापित कर लें। यदि प्रतिमा की स्थापना हो पाए तो और भी उत्तम व श्रेष्ठ है। यदि प्रतिमा की व्यवस्था न हो सके तो एक पात्र में चावल डालकर उस पर सुपारी की स्थापना कर लें। पूजन से पूर्व शुद्ध घी के दीपक की स्थापना गणेश के चित्र या प्रतिमा के दायीं ओर करें। अब अधोलिखित मन्त्र का उच्चारण करते हुए दीप-पूजन शुद्ध मन से करें—
ॐ  दीप ज्योतिषे नमः
फिर दीपशिखा में श्री गणेश की भावना करते हुए निम्न प्रार्थना करें

प्रार्थना

भो दीप देव स्वरूपस्वं सर्वसाक्षी ह्यविघ्नकृत।
यावत् कर्म समाप्तिः स्यात् तावत् त्वं सुस्थिरो भव।।

आचमन

निम्न मन्त्रों का पाठ करते हुए तीन बार आचमन करना चाहिए—

ॐ  केशवाय नमः।
ॐ  नारायणाय नमः।
ॐ  माधवाय नमः

अब निम्न मन्त्र पढ़ते हुए हाथ धो लें—

ॐ  हृषीकेशाय नमः।

पवित्री धारणा

निम्न मन्त्रों का पाठ करते हुए दाहिने हाथ में कुशा की पवित्री ग्रहण करें—

ॐ पवित्रे स्थो वैष्णव्यौ सवितुर्व प्रसव।
उत्पुनाम्यच्छिद्रेण पवित्रेण सूर्यस्य रश्मिभिः।
तस्येते पवित्रपते पवित्रपूतस्य यत्कामः पुनेत्च्छकेयम्।

पवित्रीकरण

तीन बार प्राणायम करके निम्न मन्त्रों का उच्चारण करते हुए एकत्र की हुई पूजा सामग्री व अपने शरीर पर इस भावना से जल छिड़कें कि पूजा सामग्री और हमारा बाह्य व आन्तरिक शरीर पवित्र हो रहा है—

ॐ  अपवित्रः पवित्रो व सर्वावस्थां गतोऽपि वा।
य स्मरेत् पुण्डरीकाक्षं सा बाह्याभ्यन्तरः शुचि।।
ॐ  पुण्डरीकाक्षः पुनातु।

मंगल पाठ

ॐ आ नो भद्रा क्रतवो यन्तु विश्वतोऽब्धासो अपरीतास उद्भिदः।
देवानो यथा सदमिद् वृधे असन्न प्रायुवो रक्षितारो दिवे दिवे।।
देवानां भद्रा सुमतिऋजूयतां देवानाम् रति रभिनो निवर्तताम्।
देवाना ॐ  सख्यमुपसेदिमा वयं देवा न आयुः प्रतिरन्तु जीवसे।
तान् पूर्वया निविदा हूमहे वयं भगं मित्रमदितिं दक्षमस्त्रिधम्
अर्यमणं वरुणंवु सोममश्विना सरस्वती नः सुभगा मयस्करत्।।
तन्नो वातो मयो भु वातु भेषजं तन्माता पृथ्वी तत्पिताद्यौः।
तद्ग्रावाणः सोममसुतो मयोभुवस्तदश्विनां श्रुणुतं धष्णया युवम्।।
तमीशानं जगतस्तुस्शुषस्पति धियं जिन्मवसे हूमये वयम्।
 पूषा नो यथा वेदसामसद् वृधे रक्षितापायुरनब्धः स्वस्तये।।
स्वस्ति न इन्दो वृद्धश्रवाः स्वस्तिनः पूषा विश्ववेदा।
स्वस्ति नस्तार्क्ष्यो अरिष्टनेमिः स्वस्ति नो बृहस्पतिर्दधातुः।
पृषदश्वा मरुतः पृश्निमातरः शुभञ्ञाय मनो विदधेषु जग्मयः।
अग्निर्जिह्वा मनवः सूरचक्षसो विश्वे नो विश्वे नो देवा अवसागमन्निह।।
भद्रं कर्णेभिः श्रृणुयाम देवा भद्रं पश्येमाक्षर्भियजत्राः।।
स्थिररावरंगे स्तुष्टुवा सस्तनुभिर्व्यशेमहि देवहितं यदायुः।।
शतमिन्न शरदो अन्तिदेवायवा नश्चक्रा जरसन्तनूनाम्।
पुत्रासोयत्र पितरो भवन्ति मानो मध्या रीरिषतायुर्गन्तो।।
अदितिर्द्यौ रदितिरन्तरिक्षमदितिर्माता स पिता स पुत्रः।
विश्वेदेवा अदितिः पंचजना अदितिर्जातमदितिर्जनित्वम्।।
ॐ  द्यौः शान्तिरन्तरिक्ष ॐ  शान्तिः पृथिवी शान्तिरापः
शान्तिरोषधयः शान्तिः। वनस्पतयः श्न्तिर्विशेवेदेवाः शान्तिर्ब्रह्मा
शान्तिः सर्व ॐ  शान्तिः शान्तिरेव शान्तिः सा मा शान्तिरेधि।

यतो यतः समीहसे ततो नो अभयं कुरु।
शं नः कुरु प्रजाभ्यो भयं न पशुभ्यः।।

सुखशान्तिर्भवतु।
श्री मनमहाहणाधिपतये नमः
लक्ष्मीनाराणाभ्यां नमः।
उमामहेश्वराभ्यां नमः।
वाणीहिरण्यगर्भाभ्यां नमः।
शचीपुरन्दराभ्यां नमः।
मातपितृभ्यां नमः।
इष्ट देवताभ्यो नमः
कुल देवताभ्यो नमः।
ग्राम देवताभ्यो नमः।
वास्तु देवताभ्यो नमः
स्थान देवताभ्यो नमः
सर्वेभ्यो देवभ्यो नमः
सर्वेभ्यो ब्रह्मणेभ्यो नमः।




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