विविध धर्म गुरु >> श्री साई अवतार त्रिमूर्ति श्री साई अवतार त्रिमूर्तिसत्यपाल रुहेला
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शिरडी साई बाबा,श्री सत्य साई बाबा और भावी प्रेम साई बाबा पर चुनी हुई महत्वपूर्ण सामग्री....
प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश
इस पुस्तक में कलियुग में तीनों साई अवतारों का रोचक सर्वांगीण विवरण
प्रस्तुत किया गया है। प्रथम ‘शिरडी के साई बाबा’ थे
जिन्होंने 1918 में महासमाधि ली थी। द्वितीय साई ‘श्री सत्य साई
बाबा’ हैं, और उनके बाद ‘प्रेम साई बाबा’
का अवतार
होगा। उपलब्ध सूचनाओं पर आधारित यह सुन्दर पुस्तक जिज्ञासु भक्तों के लिए
बहुत उपयोगी है।
प्रस्तावना
इस पुस्तक में हमने साई अवतार त्रिमूर्ति-श्री शिरडी साई बाबा, श्री सत्य
साई बाबा और भावी प्रेम साई बाबा पर चुनी हुई महत्त्वपूर्ण सामग्री
प्रस्तुत की है।
सभी साई भक्तों और आध्यात्म प्रेमियों को इसमें अवश्य ही रुचि होगी और इससे लाभ मिलेगा।
श्री साई अवतार त्रिमूर्ति का प्रयोजन प्रेम और उपदेश के माध्यम से ही मानव जाति में नैतिक और आध्यात्मिक सुधार लाना है। वे मानव सभ्यता में विश्व एकता और विश्व शांति का एक नया युग लाने को कटिबद्ध हैं।
आइये, हम उनके दिव्य जीवन व कार्यक्रमों के बारे में जाने और उनकी विश्वयोजना को कार्यान्वित करने में संयत्र बनकर अपना सहयोग दे और आत्म कल्याण करें।
सभी साई भक्तों और आध्यात्म प्रेमियों को इसमें अवश्य ही रुचि होगी और इससे लाभ मिलेगा।
श्री साई अवतार त्रिमूर्ति का प्रयोजन प्रेम और उपदेश के माध्यम से ही मानव जाति में नैतिक और आध्यात्मिक सुधार लाना है। वे मानव सभ्यता में विश्व एकता और विश्व शांति का एक नया युग लाने को कटिबद्ध हैं।
आइये, हम उनके दिव्य जीवन व कार्यक्रमों के बारे में जाने और उनकी विश्वयोजना को कार्यान्वित करने में संयत्र बनकर अपना सहयोग दे और आत्म कल्याण करें।
डॉ. सत्यपाल रूहेला
प्रथम भाग
1
शिरडी साई अवतार
साई महात्म्य
साई जिसके साथ है,
उसकी क्या बात है।
साई जिसका पालनहार,
उसे नहीं कोई दरकार।
साई जिसका रक्षक है,
उसका कौन भक्षक है।
साई का जो प्यारा है,
जग में सबसे न्यारा है।
साई को जो देता मान,
उसका जग करता गुणगान।
उसकी क्या बात है।
साई जिसका पालनहार,
उसे नहीं कोई दरकार।
साई जिसका रक्षक है,
उसका कौन भक्षक है।
साई का जो प्यारा है,
जग में सबसे न्यारा है।
साई को जो देता मान,
उसका जग करता गुणगान।
सुरेन्द्र सिंह कुशवाह
2
श्री शिरडी साई बाबा के प्रति
-प्रो. आद्या प्रसाद त्रिपाठी
हे यशः काय शिरडी वासी।
मेरी ये आंखें प्यासी।।
स्वामी मुझको दर्शन दो।
पूर्व-वचन पूरा कर दो।।
द्वार तुम्हारे आया था।
दर्शन जी-भर पाया था।।
किन्तु नाथ कुछ शेष रहा।
सामीप्यमात्र का खेद रहा।।
मुझे बिलखता छोड़ गये।
पर क्या नाता तोड़ गये ?
पिता तुम्हारे चरण मिलें।
उर बगिया में सुमन खिलें।
यही आस ले फिर आया।
वरद हस्त की मृदु छाया।।
पुनः निराश न जाऊँगा।।
भ्रमर तुल्य मंडराऊंगा।।
अवढर दानी तुम भोले।
अवगुण मेरे खुद धोले।
दूर करो या बिसराओ।
प्रभु सेवक को अपनाओ।
खोटा खरा तुम्हारा हूँ।
विपदाओं का मारा हूँ।।
बोलो हे गिरिवधारी।
वह विपद है क्या भारी।।
मेरी ये आंखें प्यासी।।
स्वामी मुझको दर्शन दो।
पूर्व-वचन पूरा कर दो।।
द्वार तुम्हारे आया था।
दर्शन जी-भर पाया था।।
किन्तु नाथ कुछ शेष रहा।
सामीप्यमात्र का खेद रहा।।
मुझे बिलखता छोड़ गये।
पर क्या नाता तोड़ गये ?
पिता तुम्हारे चरण मिलें।
उर बगिया में सुमन खिलें।
यही आस ले फिर आया।
वरद हस्त की मृदु छाया।।
पुनः निराश न जाऊँगा।।
भ्रमर तुल्य मंडराऊंगा।।
अवढर दानी तुम भोले।
अवगुण मेरे खुद धोले।
दूर करो या बिसराओ।
प्रभु सेवक को अपनाओ।
खोटा खरा तुम्हारा हूँ।
विपदाओं का मारा हूँ।।
बोलो हे गिरिवधारी।
वह विपद है क्या भारी।।
3
श्री शिरडी साई बाबा का जीवन-वृत
शिरडी साई बाबा विशुद्ध भगवान् शंकर के पूर्ण अवतार थे। उनके जीवन-रहस्य
का उद्धाटन भगवान श्री सत्य साई बाबा ने विस्तारपूर्वक 6 जुलाई, 1963 को
गुरु पूर्णिमा के उत्सव के दिन किया था :
‘‘शिव और पार्वती ने ऋषि भारद्वाज को और अधिक वरदान दिये। शिव ने कहा कि वे भारद्वाज गोत्र में तीन बार अवतार लेंगे—केवल शिव के रूप में वे शिरडी के साई बाबा होंगे, शिव और शक्ति के सम्मिलित रूप में पुटुपर्ती में श्री सत्य साई बाबा के रूप में और केवल शक्ति के रूप में श्री प्रेम साई का अवतार होगा।’’
ऋषि भारद्वाज को भगवान शंकर का यह वरदान लगभग 5625 वर्ष पूर्व प्राप्त हुआ था। शिरडी साई बाबा के रूप में आविर्भाव के पूर्व उन्होंने अनेक अवतार लिये थे और उनमें से एक अवतार में ही वे सन्त कबीर थे जिन्होंने 15वीं शताब्दी के उत्तरार्ध में और 16वीं शताब्दी के पूर्वार्द्ध तक जीवन धारण किया। उन्होंने अपने जीवन-काल में धार्मिक कर्म-काण्ड और ब्राह्यआडम्बरों का खण्डन किया था और हिन्दू और मुसलमान—दोनों धर्मों के लोगों को आध्यात्मिक शिक्षा देने का प्रयास किया था। शिरडी के साई बाबा ने अपने कुछ भक्तों को बताया था कि वे पिछले 72 जन्मों में उनके साथ थे। शिरडी साई बाबा को प्रायः सभी भक्तों के द्वारा दत्तात्रेय का अवतार माना जाता है।
‘‘शिव और पार्वती ने ऋषि भारद्वाज को और अधिक वरदान दिये। शिव ने कहा कि वे भारद्वाज गोत्र में तीन बार अवतार लेंगे—केवल शिव के रूप में वे शिरडी के साई बाबा होंगे, शिव और शक्ति के सम्मिलित रूप में पुटुपर्ती में श्री सत्य साई बाबा के रूप में और केवल शक्ति के रूप में श्री प्रेम साई का अवतार होगा।’’
ऋषि भारद्वाज को भगवान शंकर का यह वरदान लगभग 5625 वर्ष पूर्व प्राप्त हुआ था। शिरडी साई बाबा के रूप में आविर्भाव के पूर्व उन्होंने अनेक अवतार लिये थे और उनमें से एक अवतार में ही वे सन्त कबीर थे जिन्होंने 15वीं शताब्दी के उत्तरार्ध में और 16वीं शताब्दी के पूर्वार्द्ध तक जीवन धारण किया। उन्होंने अपने जीवन-काल में धार्मिक कर्म-काण्ड और ब्राह्यआडम्बरों का खण्डन किया था और हिन्दू और मुसलमान—दोनों धर्मों के लोगों को आध्यात्मिक शिक्षा देने का प्रयास किया था। शिरडी के साई बाबा ने अपने कुछ भक्तों को बताया था कि वे पिछले 72 जन्मों में उनके साथ थे। शिरडी साई बाबा को प्रायः सभी भक्तों के द्वारा दत्तात्रेय का अवतार माना जाता है।
अवतार
सन् 1990 में भगवान् श्री सत्य साई बाबा ने शिरडी साई बाबा के अवतार से
संबंधित इन तथ्यों को उद्घाटित किया था। उसके पश्चात् 1992 में भी बाबा ने
अपने दिव्य प्रवचन में कुछ और तथ्यों को प्रकट किया था।
जब देवगिरिअम्मा और गंगा भावडिया पथरी नामक ग्राम में निवास कर रहे थे, उस समय वे ईश्वर (शंकर) और पार्वती के उपासक थे। वे दोनों लम्बी अवधि तक निःसन्तान रहे और इसलिए उन लोगों ने ईश्वर से अपनी प्रार्थना को गहनतर बना दिया। गंगा भावडिया जीवन-यापन के लिए पथरी ग्राम के निकट की नदी में नाव चलाने का व्यवसाय करते थे। एक रात को जब मूसलाधार जलवृष्टि हो रही थी, गंगा भावडिया रात में वापस न लौटने की बात अपनी पत्नी से कहकर नाव की रखवाली और सुरक्षा के लिए नदी के तट पर चले गये।
जब गंगा भावडिया खाना खाकर चले गये, तब देवगिरि अम्मा ने खाना खाया और सोने के लिए बिस्तर पर चली गयीं। रान नौ बजे उन्हें अपने दरवाजे को खटखटाये जाने का आभास हुआ। देवगिरिअम्मा ने इस सम्भावना में दरवाजा खोला कि शायद उनके पति वापस आ गये हैं। दरवाजा खोलने पर एक बहुत वृद्ध व्यक्ति ने घर में प्रवेश किया। उसने अनुरोध किया, ‘‘बाहर बहुत तेज सर्दी है। मां, मुझे ठण्ड से बचने के लिए अन्दर सोने की अनुमति दो।’’ एक धार्मिक महिला होने के नाते देवगिरिअम्मा ने उस वृद्ध को अन्दर बरामदे में विश्राम करने की अनुमति दे दी और अन्दर का दरवाजा बन्द करके भीतर चली गयी। उसके थोड़ी ही देर बाद भीतर के दरवाजे के खटखाने की आवाज़ उन्होंने सुनी।
उन्होंने दरवाजा खोल दिया। तब एक वृद्ध व्यक्ति ने कहा—‘‘मुझे भूख लगी है। मुझे कुछ खाने को दो।’’ घर में खाने को कुछ न बचा होने के कारण देवगिरिअम्मा ने दही के साथ बेसन की कढ़ी बनाकर उसे खाने के लिए दे दिया। थोड़ी देर बाद फिर दरवाजा खटखटाया गया। जब महिला ने दरवाजा खोला तो एक वृद्ध पुरुष ने उससे कहा ‘‘माँ, मेरे पैर में दर्द हो रहे हैं। क्या तुम मेरे पांव दबा दोगी ?’’ यह सुनकर देवगिरिअम्मा भीतर चली गयीं और पूजा-कक्ष में बैठकर भगवती से प्रार्थना करने लगीं : ‘‘ओ माँ, तुम इस तरह मेरी परीक्षा क्यों ले रही हो ? मैं क्या करूँ ? मैं उस वृद्ध की यथेच्छ सेवा करूँ या मना कर दूँ ?’’ वे मकान के पीछे वाले दरवाजे से निकल गयीं। वे किसी ऐसी स्त्री को खेज करने लगीं जो उस वृद्ध की यथेच्छ सेवा कर सके। उसी समय एक स्त्री ने पीछे का दरवाजा खटखटाया।
उसने कहा—‘‘लगता है तुम मेरे घर किसी स्त्री की कुछ सहायता माँगने के लिए गयी थीं। मैं उस समय घर में नहीं थी। कृपया मुझे बताओं कि मैं क्या करूँ ?’’ यह सोचकर कि स्वयं मां पार्वती ने ही मेरी पुकार सुनकर इस स्त्री को सहायता के लिए भेजा है, देवगिरिअम्मा ने उसे बरामदे में उस वृद्ध की सेवा के लिए भेज दिया और अन्दर से दरवाजा बन्द कर लिया। वृद्ध पुरुष और वह स्त्री भगवान् शंकर और पार्वती ही थे, अन्य कोई नहीं। शंकर भगवान् ने पार्वती से कहा—‘‘तुम इस स्त्री की कामना पूरी करो।’’ पार्वती ने कहा—‘‘आप सर्वोच्च हैं, परमेश्वर हैं। कृपा करके आप ही इसके ऊपर अनुग्रह करें।’’ ईश्वर ने कहा—‘‘मैं इस स्त्री की परीक्षा लेने आया था और तुम उसकी पुकार सुनकर आयी हो। अतएव तुम ही उसे अशीष दो।’’
अब फिर दरवाजा खटखटाया गया। इस बार देवगिरिअम्मा ने तुरन्त ही दरवाजा खोल दिया, क्योंकि घर में एक अन्य स्त्री मौजूद थी और चिन्ता की कोई बात नहीं थी। अब पार्वती और परमेश्वर शंकर अपने ईश्वरीय रूप में उसके सामने प्रकट हो गये। इस आनन्द को सहन करने में अपने को असमर्थ पाकर देवगिरिअम्मा उनके चरणों पर गिर पड़ीं। पार्वती ने कहा ‘‘तुम्हारा वंश बनाये रखने के लिए मैं तुम्हें एक पुत्र का भी वरदान देती हूँ और साथ ही कन्या-दान करने के लिए एक पुत्री का भी वरदान देती हूँ।’’ तब वे भगवान शंकर के चरणों में गिर पड़ीं। भगवान शंकर ने कहा कि ‘‘मैं तुम्हारी भक्ति से बहुत प्रसन्न हूँ।
जब देवगिरिअम्मा और गंगा भावडिया पथरी नामक ग्राम में निवास कर रहे थे, उस समय वे ईश्वर (शंकर) और पार्वती के उपासक थे। वे दोनों लम्बी अवधि तक निःसन्तान रहे और इसलिए उन लोगों ने ईश्वर से अपनी प्रार्थना को गहनतर बना दिया। गंगा भावडिया जीवन-यापन के लिए पथरी ग्राम के निकट की नदी में नाव चलाने का व्यवसाय करते थे। एक रात को जब मूसलाधार जलवृष्टि हो रही थी, गंगा भावडिया रात में वापस न लौटने की बात अपनी पत्नी से कहकर नाव की रखवाली और सुरक्षा के लिए नदी के तट पर चले गये।
जब गंगा भावडिया खाना खाकर चले गये, तब देवगिरि अम्मा ने खाना खाया और सोने के लिए बिस्तर पर चली गयीं। रान नौ बजे उन्हें अपने दरवाजे को खटखटाये जाने का आभास हुआ। देवगिरिअम्मा ने इस सम्भावना में दरवाजा खोला कि शायद उनके पति वापस आ गये हैं। दरवाजा खोलने पर एक बहुत वृद्ध व्यक्ति ने घर में प्रवेश किया। उसने अनुरोध किया, ‘‘बाहर बहुत तेज सर्दी है। मां, मुझे ठण्ड से बचने के लिए अन्दर सोने की अनुमति दो।’’ एक धार्मिक महिला होने के नाते देवगिरिअम्मा ने उस वृद्ध को अन्दर बरामदे में विश्राम करने की अनुमति दे दी और अन्दर का दरवाजा बन्द करके भीतर चली गयी। उसके थोड़ी ही देर बाद भीतर के दरवाजे के खटखाने की आवाज़ उन्होंने सुनी।
उन्होंने दरवाजा खोल दिया। तब एक वृद्ध व्यक्ति ने कहा—‘‘मुझे भूख लगी है। मुझे कुछ खाने को दो।’’ घर में खाने को कुछ न बचा होने के कारण देवगिरिअम्मा ने दही के साथ बेसन की कढ़ी बनाकर उसे खाने के लिए दे दिया। थोड़ी देर बाद फिर दरवाजा खटखटाया गया। जब महिला ने दरवाजा खोला तो एक वृद्ध पुरुष ने उससे कहा ‘‘माँ, मेरे पैर में दर्द हो रहे हैं। क्या तुम मेरे पांव दबा दोगी ?’’ यह सुनकर देवगिरिअम्मा भीतर चली गयीं और पूजा-कक्ष में बैठकर भगवती से प्रार्थना करने लगीं : ‘‘ओ माँ, तुम इस तरह मेरी परीक्षा क्यों ले रही हो ? मैं क्या करूँ ? मैं उस वृद्ध की यथेच्छ सेवा करूँ या मना कर दूँ ?’’ वे मकान के पीछे वाले दरवाजे से निकल गयीं। वे किसी ऐसी स्त्री को खेज करने लगीं जो उस वृद्ध की यथेच्छ सेवा कर सके। उसी समय एक स्त्री ने पीछे का दरवाजा खटखटाया।
उसने कहा—‘‘लगता है तुम मेरे घर किसी स्त्री की कुछ सहायता माँगने के लिए गयी थीं। मैं उस समय घर में नहीं थी। कृपया मुझे बताओं कि मैं क्या करूँ ?’’ यह सोचकर कि स्वयं मां पार्वती ने ही मेरी पुकार सुनकर इस स्त्री को सहायता के लिए भेजा है, देवगिरिअम्मा ने उसे बरामदे में उस वृद्ध की सेवा के लिए भेज दिया और अन्दर से दरवाजा बन्द कर लिया। वृद्ध पुरुष और वह स्त्री भगवान् शंकर और पार्वती ही थे, अन्य कोई नहीं। शंकर भगवान् ने पार्वती से कहा—‘‘तुम इस स्त्री की कामना पूरी करो।’’ पार्वती ने कहा—‘‘आप सर्वोच्च हैं, परमेश्वर हैं। कृपा करके आप ही इसके ऊपर अनुग्रह करें।’’ ईश्वर ने कहा—‘‘मैं इस स्त्री की परीक्षा लेने आया था और तुम उसकी पुकार सुनकर आयी हो। अतएव तुम ही उसे अशीष दो।’’
अब फिर दरवाजा खटखटाया गया। इस बार देवगिरिअम्मा ने तुरन्त ही दरवाजा खोल दिया, क्योंकि घर में एक अन्य स्त्री मौजूद थी और चिन्ता की कोई बात नहीं थी। अब पार्वती और परमेश्वर शंकर अपने ईश्वरीय रूप में उसके सामने प्रकट हो गये। इस आनन्द को सहन करने में अपने को असमर्थ पाकर देवगिरिअम्मा उनके चरणों पर गिर पड़ीं। पार्वती ने कहा ‘‘तुम्हारा वंश बनाये रखने के लिए मैं तुम्हें एक पुत्र का भी वरदान देती हूँ और साथ ही कन्या-दान करने के लिए एक पुत्री का भी वरदान देती हूँ।’’ तब वे भगवान शंकर के चरणों में गिर पड़ीं। भगवान शंकर ने कहा कि ‘‘मैं तुम्हारी भक्ति से बहुत प्रसन्न हूँ।
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