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हास्य-व्यंग्य >> चुनी हुई हास्य कविताएँ

चुनी हुई हास्य कविताएँ

गिरिराजशरण अग्रवाल

प्रकाशक : डायमंड पॉकेट बुक्स प्रकाशित वर्ष : 2006
पृष्ठ :264
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 3696
आईएसबीएन :81-288-1018-9

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गिरिराज शऱण अग्रवाल के द्वारा प्रस्तुत की गयीं हास्य व्यंग्य कविताएँ....

Chuni Hui Hasya Kavitayein - Girirajsharan Agrawal - चुनी हुई हास्य कविताएँ - गिरिराजशरण अग्रवाल

प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश

हास्य ही सहारा है

जिंदगी हो गई है तंगदस्त
और तनावों ने उसे
कर दिया है अस्तव्यस्त,
मस्ती की फ़हरिस्त
निरस्त हो गई है
और हमारी हस्ती
अपनों के धोखे में
पस्त हो गई है।
अब कोई ऐसा सिद्धहस्त
सलाहकार भी नहीं
जो हमारी त्रस्त जीवनशैली को
आश्वस्त कर सके
या हमारे सपनों का रखवाला
सरपरस्त बन सके।
ऐसे में मात्र एक ही सहारा है
हमारे जीवन की शुष्क धरा पर
केवल हास्य ही
उभरता हुआ चश्मा है, धारा है।
यही हमारे दुखों को देगा शिकस्त
और करेगा हमें विश्वस्त
कि आओ, हास्य-कविताएँ पढ़ो
और हो जाओ मदमस्त।

डा. गिरिराजशरण अग्रवाल
16 साहित्य विहार, बिजनौर
डा. अजय जनमेजय


बात बनाना सीख गया


संबंधों को यार निभाना सीख गया
हाँ, मैं भी अब आँख चुराना सीख गया

वो है मदारी, मैं हूं जमूरा दुनिया का
पा के इशारा बात बनाना सीख गया

नंगे सच पर डाल के कंबल शब्दों का
अपनी हर करतूत छिपाना सीख गया

दिल दरपन था, सब कुछ सच कह देता था
उसकी भी मैं बात दबाना सीख गया

वो भी चतुर था, उसने सियासत सीख ही ली
धोखा देना, हाथ मिलाना सीख गया

उसको दे दो नेता पद की कुर्सी, वो
वादे करना और भुलाना सीख गया

सीख गया सुर-ताल मिलाना मैं भी ‘अजय’
वो भी मुझको नाच नचाना सीख गया

हाऊ आर यू


तूने मुझको किया मुलायम
मैं तेरा कल्याण करूँगा
राज कुसुम दोनों को कुरसी
काम के बदले काम करूँगा
एक बात पर भूल न जाना
बुरे वक़्त पर काम है आना
बी.जे.पी. में लौट न जाना
मोबाइल पर पूछते रहना
हलो याडी ‘हाऊ आर यू’

आओ साथी सही है मौक़ा
मिलकर खेलें थू-थू-थू
हा-हा ही-ही हू-हू-हू

करो बगावत, पाओ चेयर
गेम यहाँ पर बिल्कुल फेयर
इस हाथ लेना, उस हाथ देना
रिजल्ट ओरियेण्टड देन एंड देयर
कुरसी से क्यों दूर खड़ा है
बुला रही है कुरसी छू

जम्बो मंत्रिमंडल का होना
रोज़ विपक्षी रोते रोना
माल अगर तुमको खाना है
सबके हाथ में दे दो दौना
आकंठ करेप्ट सभी को कर दो
फिर आएगी किसकी बू

पंजे की है पकड़ भी ढीली
फिर भी मैडम नीली-पीली
हाथ बढ़ाओ खेल में साथी
वरना आ जाएगा हाथी
बड़ा मज़ा है राजनीति में
मैं भी अच्छा, अच्छी तू

फील गुड


आपके जीवन में वो आई नहीं, पर फील गुड
आपने कोई खुशी देखी नहीं, पर फील गुड

डिग्रियाँ हैं पास में देने को पर रिश्वत नहीं
नौकरी ढूँढ़ें से भी मिलती नहीं, पर फील गुड

घर का राशन ख़त्म है तो क्या हुआ उपवास रख
जेब में फूटी भी इक कौड़ी नहीं, पर फील गुड

घूस लेकर भी पुलिस का छोड़ देना कम है क्या ?
तेरी नज़रों में पुलिस अच्छी नहीं, पर फील गुड

कल थे जो उस पार्टी में आज इसमें आ गए
कुछ समझ में बात ये आई नहीं, पर फील गुड

देश क़र्जों में धँसा है, भ्रष्टता है चरम पर
बात तुमने ये कभी सोची नहीं, पर फील गुड

आप जनता हैं समय की आपको परवाह क्या
ट्रेन टाइम से कभी आती नहीं, पर फील गुड

एक ने मंडल बनाए, एक ने बंडल किए
बात दोनों की हमें भाई नहीं, पर फील गुड

नाम इक दिन आएगा इतिहास में ‘अनमोल’ का
आज इसको जानता कोई नहीं, पर फील गुड

हँसिकाएँ
पुल-निगम


तारीफ़ के पुल
वह प्रारम्भ से ही बाँधते हैं,
अब हो गए हैं,
इस क्षेत्र में कुछ सीनियर,
इसीलिए हैं
‘ब्रिज-कारपोरेशन’ में इंजीनियर।

अनभिज्ञ


जनता के दुख-दर्द से
सर्वथा अनभिज्ञ हैं,
इसीलिए बड़े
राजनीतिज्ञ हैं।

एकता


हमने पूछा—
‘अनेकता में एकता,
आप नारा लगाते हैं,
कृपया बताएँ
इसके क्रियान्वयन-हेतु आपने
अब तक क्या किया ?
वो बोले—
‘अभी तो इसके प्रथम चरण से
गुज़र रहे हैं,
सर्वप्रथम अनेकता लाने का
प्रयास कर रहे हैं।’

पैदावार


हमसे पूछा गया—
‘किन्हीं दो फ़सलों के नाम बताएँ
स्वतंत्रता-प्राप्ति के बाद लगातार
बढ़ रही हो जिनकी पैदावार।’
हमने कहा—‘भ्रष्टाचार व आतंकवाद’।

झूठ


मंत्री जी से पूछा गया—
‘अपने जीवन का
कोई महत्वपूर्ण झूठ बताइए।’
वो बोले—
‘मेरे भाषणों की प्रतियाँ ले जाइए।’

नारा


मंत्री जी हमेशा
ऊपर उठो, ऊपर उठो
का नारा लगाते हैं,
हम क्रियान्वित करने को कहते हैं
तो वायुयान में चढ़ जाते हैं।

दर्पण


उन्होंने देश बचाओ का नारा दिया
और कहा सभ्रांत नागरिकों के बीच—
कि कोई भी देशद्रोही नाग,
सांप्रदायिक, आदमख़ोर बाघ, तस्कर भ्रष्टाचारी
आपको दिखे तो हमें दिखाएँ, देश बताएँ !
एक व्यक्ति ने
उनकी इच्छापूर्ति का अनोखा उपाय किया—
उन्हें दर्पण दिखा दिया।

भिखारी


एक दयनीय भिखारी को
अपने सम्मुख
भिक्षापात्र पसारे देख मि. श्री ने कहा—
‘सुख-सुविधाओं से दामन भिगोता,
हे भिखारी, काश ! तू भी मंत्री होता।’
भिखारी बोला—
‘श्रीमन, महोदय,
अंतर मात्र इतना आता,
अब यह कटोरा आपके सम्मुख
पसार रहा हूँ,
तब विदेशी के सम्मुख फैलाता।’

विकास-मार्ग


राष्ट्रीय समस्याओं पर
परिचर्चा करने आए पत्रकारों से
मंत्री जी ने कहा—
‘आप ही देश के विकास-मार्ग को
साफ़-सुथरा करने का कोई उपाय बताइए
पत्रकारों ने कहा—
‘‘श्रीमन, मार्ग से आप हट जाइए।’

वास्तविक कारण
एक प्राकृतिक चिकित्सक ने
मंत्री जी के लगातार
मुटियाने का कारण बताया—
‘लोहा, सीमेंट, बालू, यानी
राष्ट्रीय विकास के समस्त साधन
मंत्री जी के पेट में जा रहे हैं,
इसीलिए राष्ट्र के स्थान पर
मंत्री जी मुटिया रहे हैं।’

अतीत


एक अत्याधुनिक युवती को उन्होंने दी सफ़ाई महोदय यह अपने अतीत को नहीं भूल पाई

प्रजातंत्र



वो बोले


प्रजातंत्र की परिषाभा दीजिए।
हमने कहा—
भीतर गाली-गलोच,
वीभत्स रस का खुला उपयोग,
ऊपर समाज-सेवी और
राष्ट्रभक्ति का चोचला,

एक-दूसरे की ओछी आलोचना।
विकास के नाम पर मात्र विवाद
या फिर दंगा-फ़साद
और जहाँ वोटों पर बलिहारी
रहती हो राजनीति बेचारी,
यही वह तंत्र है, सच्चा प्रजातंत्र है।

ठंड का असर


बालक का पेट भरने हेतु
आप उसकी माँ को ही सताते हैं,
कृपया बताएँ—
भैंस का दूध
बालक को क्यों नहीं पिलाते हैं ?
वो बोले—
जिसका दूध बालक के पेट में जाता है,
उसकी ठंड का असर बालक में आता है।
आप ही बताएँ श्रीमन्
भैंस का दूध बालक को पिलाकर
क्या परेशान नहीं हो जाऊँगा,
माँ को तो ठंड से बचा लेता हूँ,
भैंस को कहाँ तक बचाऊँगा ?

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