विविध धर्म गुरु >> साई शरणं गच्छामि साई शरणं गच्छामिसत्यपाल रुहेला
|
4 पाठकों को प्रिय 47 पाठक हैं |
साई भजन और भक्ति कविताएँ...
प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश
भूमिका
प्रस्तुत पुस्तक ‘साई शरणं गच्छामि’ में श्री
सत्य साई
बाबा के परम भक्त स्वर्गीय प्रोफेसर आद्याप्रसाद त्रिपाठी द्वारा एकत्रित
साई भजन और उनके द्वारा पिछले दो दशकों में रचित साई कविताएँ प्रस्तुत की
गई हैं। प्रों, त्रिपाठी भगवान श्री सत्य साई बाबा के प्रशान्ति निलमय
स्थति विश्वविद्यालय में हिन्दी विभाग के प्रोफेसर तथा अध्यक्ष थे। 70
वर्ष की आयु होने तक भी वे वहाँ अपने जीवन के अन्तिम दिन 15 मार्च 1999 तक
उक्त पद कार्य करते रहे थे। वर्षों श्री सत्य साई बाबा के सानिध्य में रह
कर उन्होंने उनकी दिव्य कृपा को प्राप्त किया था। प्रशान्ति निलयम आश्रम
में पिछले दो दशकों में गाये गए असंख्य भजनों में से जो भजन उन्हें बहुत
आकर्षण लगते थे वे उनकों नोट करते रहते थे। और इस प्रकार यह भजन संग्रह
उन्होंने बहुत परिश्रम और प्रेम-भक्ति भाव से तैयार किया था।
इस पुस्तक के द्वितीय भाग में उनके द्वारा समय समय पर रचित साई भक्ति से ओत-प्रोत कविताएँ दी गई हैं। ये कविताएं हैं जिन्हें त्रिपाठी जी ने वर्तमान अवतार हम सबके आराध्यदेव भगवान श्री सत्य साई बाबा के प्रति अपने हृदय की गहराइयों से उठने वाली उत्कट आभारपूर्ण तथा साथ ही साथ उपालभ्य से ओत-प्रोत भावनाओं से प्रेरित होकर व रचित किया था इन कविताओ को त्रिपाठी जी प्रायः मुझे व अन्य मिलने वालों को अपने प्रशांति निलयम के क्वाटर पर भाव-विभोर होकर व अश्रु बहाते हुए भी गाते थे तो हमें त्रिपाठी जी के जीवन की वेदनाओं और उनमें कैसे भगवान साई नाथ ने सदैव बचाया है का भान होता था। भगवान के प्रति रचित ये सशक्त कविताएं भक्ति भावनाओं की कितनी गहरी सच्चाई से निर्मित हुई हैं। तो पढ़ने पर ही पाठकों को अनुभव होगा। भगवान ने इसमें से अनेक को समय-समय पर अपने कर-कमलों से स्पर्श कर अथवा उन्हें ग्रहण कर अपने साथ ले जाकर त्रिपाठी जी को अतीव प्रसन्नता व संतोष प्रदान करने का अनुग्रह किया था जिसका मैं स्वयं कई बार साक्षी रहा हूँ।
साई-प्रेम से ओत-प्रोत इन मार्मिक कविताओं ने असंख्य भक्तों हिला दिया था। इनमें प्रभावित होकर ही मैंने सर्वप्रथम 23 वनम्बर 1991 को भगवान श्री सत्य साई बाबा के छियासठवें जन्मदिन पर अपने व्यय से प्रकाशित किया था जिससे त्रिपाठी जी को बहुत हर्ष हुआ था और साई भक्तो को इनकी जानकारी हुई थी और इनकों बहुत सराहा गया था।
प्रो. त्रिपाठी से 1974 में पुटुपर्ती में ही मेरा सर्वप्रथम परिचय हुआ था। तब वे मध्य प्रदेश में किसी महाविद्यालय में कार्य कर रहे थे। तब हमारी घनिष्ठ मित्रता थी। बाद में वे श्री सत्य साई विश्वविद्यालय में आए थे। उनसे वहां प्रति वर्ष मेरी भेट होती रहती थी। दिसम्बर 1998 में पुट्टुपर्ती में मेरी उनसें अंतिम भेंट हुई थी। तब वे बहुत बीमार थे। और कष्टम में थे। तब उन्होंने मुझसे बहुत आग्रह किया था कि मैं उनकी इन कविताओं और उनके द्वारा पिछले 20 वर्षों से संग्रहित साई भजनों को प्रकाशित करवा दूँ। उन्होंने इनका प्रकाशन सर्वाधिकार मुझे दिया। वहाँ से लौट आने पर मैंने इनका सम्पादन करने के पश्चात इनके प्रकाशन की व्यवस्था की। मैंने शीघ्रतिशीघ्र इस पुस्तक का प्रथम प्रूफ त्रिपाठी जी के पास रजिस्टर्ड डाक से 9 मार्च, 1999 को उनके अवलोकन भेजा, लेकिन 15 मार्च, 1999 को प्रो. त्रिपाठी का यकायक स्वर्गवास हो जाने से यह प्रूफ मेरे पास पोस्टमैन की एक ऐसी हृदयविदारक रिपोर्ट के साथ लौट आया। मुझे दुख है कि पूर्ण प्रयास करने पर भी प्रो. त्रिपाठी इस प्रकाशन को अपने जीवनकाल में नहीं दिख पाए। साई भक्तों को यह पुस्तक त्रिपाठी की गहरी साई भक्ति का सदैव स्मरण कराती रहेगी।
इस पुस्तक के द्वितीय भाग में उनके द्वारा समय समय पर रचित साई भक्ति से ओत-प्रोत कविताएँ दी गई हैं। ये कविताएं हैं जिन्हें त्रिपाठी जी ने वर्तमान अवतार हम सबके आराध्यदेव भगवान श्री सत्य साई बाबा के प्रति अपने हृदय की गहराइयों से उठने वाली उत्कट आभारपूर्ण तथा साथ ही साथ उपालभ्य से ओत-प्रोत भावनाओं से प्रेरित होकर व रचित किया था इन कविताओ को त्रिपाठी जी प्रायः मुझे व अन्य मिलने वालों को अपने प्रशांति निलयम के क्वाटर पर भाव-विभोर होकर व अश्रु बहाते हुए भी गाते थे तो हमें त्रिपाठी जी के जीवन की वेदनाओं और उनमें कैसे भगवान साई नाथ ने सदैव बचाया है का भान होता था। भगवान के प्रति रचित ये सशक्त कविताएं भक्ति भावनाओं की कितनी गहरी सच्चाई से निर्मित हुई हैं। तो पढ़ने पर ही पाठकों को अनुभव होगा। भगवान ने इसमें से अनेक को समय-समय पर अपने कर-कमलों से स्पर्श कर अथवा उन्हें ग्रहण कर अपने साथ ले जाकर त्रिपाठी जी को अतीव प्रसन्नता व संतोष प्रदान करने का अनुग्रह किया था जिसका मैं स्वयं कई बार साक्षी रहा हूँ।
साई-प्रेम से ओत-प्रोत इन मार्मिक कविताओं ने असंख्य भक्तों हिला दिया था। इनमें प्रभावित होकर ही मैंने सर्वप्रथम 23 वनम्बर 1991 को भगवान श्री सत्य साई बाबा के छियासठवें जन्मदिन पर अपने व्यय से प्रकाशित किया था जिससे त्रिपाठी जी को बहुत हर्ष हुआ था और साई भक्तो को इनकी जानकारी हुई थी और इनकों बहुत सराहा गया था।
प्रो. त्रिपाठी से 1974 में पुटुपर्ती में ही मेरा सर्वप्रथम परिचय हुआ था। तब वे मध्य प्रदेश में किसी महाविद्यालय में कार्य कर रहे थे। तब हमारी घनिष्ठ मित्रता थी। बाद में वे श्री सत्य साई विश्वविद्यालय में आए थे। उनसे वहां प्रति वर्ष मेरी भेट होती रहती थी। दिसम्बर 1998 में पुट्टुपर्ती में मेरी उनसें अंतिम भेंट हुई थी। तब वे बहुत बीमार थे। और कष्टम में थे। तब उन्होंने मुझसे बहुत आग्रह किया था कि मैं उनकी इन कविताओं और उनके द्वारा पिछले 20 वर्षों से संग्रहित साई भजनों को प्रकाशित करवा दूँ। उन्होंने इनका प्रकाशन सर्वाधिकार मुझे दिया। वहाँ से लौट आने पर मैंने इनका सम्पादन करने के पश्चात इनके प्रकाशन की व्यवस्था की। मैंने शीघ्रतिशीघ्र इस पुस्तक का प्रथम प्रूफ त्रिपाठी जी के पास रजिस्टर्ड डाक से 9 मार्च, 1999 को उनके अवलोकन भेजा, लेकिन 15 मार्च, 1999 को प्रो. त्रिपाठी का यकायक स्वर्गवास हो जाने से यह प्रूफ मेरे पास पोस्टमैन की एक ऐसी हृदयविदारक रिपोर्ट के साथ लौट आया। मुझे दुख है कि पूर्ण प्रयास करने पर भी प्रो. त्रिपाठी इस प्रकाशन को अपने जीवनकाल में नहीं दिख पाए। साई भक्तों को यह पुस्तक त्रिपाठी की गहरी साई भक्ति का सदैव स्मरण कराती रहेगी।
प्रो. सत्यपाल रुहेला
खण्ड 1
साई भजन संग्रह
भगवान श्री स त्य साई सुप्रभातम्
ईश्वरम्बासुतः श्रीमन् पूर्वासध्या प्रवतते !
उत्तिष्ठ सत्य साईश, कर्तव्यं देवमाहिकम् ।।
उत्तिष्ठोत्तिष्ठ पर्त्तीश, उत्तिष्ठ जगतीपते।
उत्तिष्ठ करुणापूर्णा, लोकमंगल सिद्धये।।
चित्रावती तट विशाल सुशान्त सौघेः
तिष्ठन्ति सेवकजनास्तवदर्शनाकर्थम्।
आदित्यकान्तिरनुभाति समस्त लोकान्
श्री सत्य साई भगवन्, तव सुप्रभातम्।।
त्वन्नामकीर्तनरतास्तव दिव्य नाम,
गायन्ति भक्तिरसपान प्रह्ष्टचित्ताः
दातुम् कृपासहित दर्शनमाशुतैभ्यः
श्री सत्य साई भगवान तव सुप्रभातम् ।।3।।
आदाय दिव्य कुसुमुमानि मनोहराणि,
श्री-पाद-पूजनविधिम् भवदंभि मूले।
कर्तुम् महोत्सुकता प्रविशन्ति भक्ताः,
श्री सत्य साई भगवान् तव सुप्रभातम् ।।4।।
देशान्तरागण बुधास्तव दिव्यमूर्तिम्,
संदर्शनाभिरति संयुक्त चितवृत्या।
वेदोक्त मन्त्र पठनेन तसंत्यजत्रम्
श्री सत्य साई भगवन्, तव सुप्रभातम्।।5।।
श्रुत्वा तवाद्भुदत चरित्रमखण्डकीर्तिम्,
व्याप्ता दिगन्तर विशाल धरातलैस्मिन्।
जिज्ञासुलोकउपतिष्ठित्ति चाश्रमेस्मिन्
श्री सत्य साई भगवान तव सुप्रभातम् ।।6।।
सीता सती सम विशुद्ध ह्दम्बुजाताः
बहवंगनाः कर गृहीत सुपुव्य हाराः।
स्तुंवन्ति दिव्य नुतिभिः फणिभूषणंत्वाम्
श्री सत्य साई भगवान् कतव सुप्रभात्।।7।।
सुप्रभातमिदं पुण्यं से पठन्ति दिने-दिने
ते विशान्ति पमधामं, ज्ञान-विज्ञान-शोभिताः।
मंगल गुरूदेवाय, मंगल ज्ञानादायिने।
मंगल पर्तिवासाय मंगल सत्यसाइने ।।8।।
ईश्वरम्बासुतः श्रीमन् पूर्वासध्या प्रवतते !
उत्तिष्ठ सत्य साईश, कर्तव्यं देवमाहिकम् ।।
उत्तिष्ठोत्तिष्ठ पर्त्तीश, उत्तिष्ठ जगतीपते।
उत्तिष्ठ करुणापूर्णा, लोकमंगल सिद्धये।।
चित्रावती तट विशाल सुशान्त सौघेः
तिष्ठन्ति सेवकजनास्तवदर्शनाकर्थम्।
आदित्यकान्तिरनुभाति समस्त लोकान्
श्री सत्य साई भगवन्, तव सुप्रभातम्।।
त्वन्नामकीर्तनरतास्तव दिव्य नाम,
गायन्ति भक्तिरसपान प्रह्ष्टचित्ताः
दातुम् कृपासहित दर्शनमाशुतैभ्यः
श्री सत्य साई भगवान तव सुप्रभातम् ।।3।।
आदाय दिव्य कुसुमुमानि मनोहराणि,
श्री-पाद-पूजनविधिम् भवदंभि मूले।
कर्तुम् महोत्सुकता प्रविशन्ति भक्ताः,
श्री सत्य साई भगवान् तव सुप्रभातम् ।।4।।
देशान्तरागण बुधास्तव दिव्यमूर्तिम्,
संदर्शनाभिरति संयुक्त चितवृत्या।
वेदोक्त मन्त्र पठनेन तसंत्यजत्रम्
श्री सत्य साई भगवन्, तव सुप्रभातम्।।5।।
श्रुत्वा तवाद्भुदत चरित्रमखण्डकीर्तिम्,
व्याप्ता दिगन्तर विशाल धरातलैस्मिन्।
जिज्ञासुलोकउपतिष्ठित्ति चाश्रमेस्मिन्
श्री सत्य साई भगवान तव सुप्रभातम् ।।6।।
सीता सती सम विशुद्ध ह्दम्बुजाताः
बहवंगनाः कर गृहीत सुपुव्य हाराः।
स्तुंवन्ति दिव्य नुतिभिः फणिभूषणंत्वाम्
श्री सत्य साई भगवान् कतव सुप्रभात्।।7।।
सुप्रभातमिदं पुण्यं से पठन्ति दिने-दिने
ते विशान्ति पमधामं, ज्ञान-विज्ञान-शोभिताः।
मंगल गुरूदेवाय, मंगल ज्ञानादायिने।
मंगल पर्तिवासाय मंगल सत्यसाइने ।।8।।
ओउम् शान्ति शान्ति शान्तिः
ॐ
श्री साई यशः काय शरणीवासिने नमः
भगवान श्री सत्य साई बाबा
अष्टोत्तर-शत नामावली
ओउम् श्री भगवीन सत्य साई बाबाय नमः
ओउम् श्री साई सत्यसिवरूप नमः
ओउम् श्री साई सत्य-घर्मपरायणाय नमः
ओउम् श्री साई वरदाय नमः
ओउम श्री साई सत्यपुरूषाय नमः
ओउम् श्री साई सत्यगुणात्मने नमः
ओउम् श्री साई साधु-वर्द्धनाय नमः
ओउम् श्री साई सीधु-जन पोषणाय नमः
ओउम श्री साई सर्वशाय नमः
ओउम् श्री साई सर्व-जन-प्रियाय नमः
ओउम् श्री साई सर्वान्तिर्यामिने नमः
ओउम् श्री साई महिमात्मने नमः
ओउम् श्री साई महेश्वरसिवरूप नमः
ओउम् श्री साई पर्तिग्रामोद्भवाय नमः
ओउम श्री साई यशः काय शिरडीवासिने नमः
ओउम् श्री जोडिआदिपल्लिसोमप्पाय नमः
ओउम् श्री साई भरद्वाज ऋषिगोत्राय नमः
ओउम् श्री भक्तवत्सलाय नमः
ओउम् श्री अपान्तरात्माय नमः
ओउम् श्री साई अवतारमूर्तेये नमः
ओउम् श्री सर्वभय-विवारिणे नमः
ओउम् श्री साई सत्यसिवरूप नमः
ओउम् श्री साई सत्य-घर्मपरायणाय नमः
ओउम् श्री साई वरदाय नमः
ओउम श्री साई सत्यपुरूषाय नमः
ओउम् श्री साई सत्यगुणात्मने नमः
ओउम् श्री साई साधु-वर्द्धनाय नमः
ओउम् श्री साई सीधु-जन पोषणाय नमः
ओउम श्री साई सर्वशाय नमः
ओउम् श्री साई सर्व-जन-प्रियाय नमः
ओउम् श्री साई सर्वान्तिर्यामिने नमः
ओउम् श्री साई महिमात्मने नमः
ओउम् श्री साई महेश्वरसिवरूप नमः
ओउम् श्री साई पर्तिग्रामोद्भवाय नमः
ओउम श्री साई यशः काय शिरडीवासिने नमः
ओउम् श्री जोडिआदिपल्लिसोमप्पाय नमः
ओउम् श्री साई भरद्वाज ऋषिगोत्राय नमः
ओउम् श्री भक्तवत्सलाय नमः
ओउम् श्री अपान्तरात्माय नमः
ओउम् श्री साई अवतारमूर्तेये नमः
ओउम् श्री सर्वभय-विवारिणे नमः
|
अन्य पुस्तकें
लोगों की राय
No reviews for this book