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			 आचार्य श्रीराम शर्मा >> आकृति देखकर मनुष्य की पहिचान आकृति देखकर मनुष्य की पहिचानश्रीराम शर्मा आचार्य
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लोगो की आकृति देखकर उनका स्वभाव पहचानना मनोरंजक तो होता ही है, परंतु इससे अधिक यह अनुभव आपको अन्य लोगों से सही व्यवहार करने में काम आता है।
भूमिका
चेहरा मनुष्य के भीतरी भागों का दर्पण है। मन में जैसे भाव होते हैं उन्हें कुछ अत्यन्त सिद्ध हस्त लोगों को छोड़कर कोई आसानी से नहीं छिपा सकता। मनोगत भाव आमतौर से चेहरे पर अंकित हो जाते हैं। मुखाकृति को देखकर मन की भीतरी बातों का बहुत कुछ पता लगा लिया जाता है।
 
परन्तु जब कोई भाव अधिक समय तक मन में मजबूती के साथ बैठ जाता है तो उसका प्रभाव आकृति पर स्थाई रूप से पड़ता है और अंगों की बनावट वैसी ही हो जाती है। स्वभाव के परिवर्तन के साथसाथ चेहरे की बनावट में कितने ही सूक्ष्म अन्तर आ जाते हैं।
 
जब कोई मनोवृत्ति बहुत पुरानी एवं अभ्यस्त होकर मनुष्य के अन्त:करण में संस्कार रूप से जम जाती है तो वह कई जन्मों तक जीव का पीछा करती है। इस स्वभाव संस्कार के अनुसार माता के गर्भ में उस जीव आकृति का निर्माण होता है। बालक के पैदा होने पर जानकार लोग जान लेते हैं कि किन स्वभावों और संस्कारों की इसके अन्त:करण पर छाया है और उन संस्कारों के कारण उसे जीवन में किस प्रकार की परिस्थितियों से होकर गुजरना पड़ेगा।
 
आकृति विज्ञान का यही आधार है। प्राचीन काल में इस विद्या की सहायता से बालकों के संस्कारों को समझ कर उनकी प्रवृत्तियों को सन्मार्ग पर लगाने का प्रयत्न किया जाता था। अब भी इसका यही उपयोग होना चाहिए।
 
इसके चिह्न बुरे हैं इसलिए यह अभागा है इससे घृणा करे, इससे विद्या का दुरूपयोग है। ऐसा दुरुपयोग नहीं होना चाहिए, ऐसा अपने पाठकों से हमारा जोरदार आदेश है।
 
-श्रीराम शर्मा आचार्य
 			
		  			
			
			परन्तु जब कोई भाव अधिक समय तक मन में मजबूती के साथ बैठ जाता है तो उसका प्रभाव आकृति पर स्थाई रूप से पड़ता है और अंगों की बनावट वैसी ही हो जाती है। स्वभाव के परिवर्तन के साथसाथ चेहरे की बनावट में कितने ही सूक्ष्म अन्तर आ जाते हैं।
जब कोई मनोवृत्ति बहुत पुरानी एवं अभ्यस्त होकर मनुष्य के अन्त:करण में संस्कार रूप से जम जाती है तो वह कई जन्मों तक जीव का पीछा करती है। इस स्वभाव संस्कार के अनुसार माता के गर्भ में उस जीव आकृति का निर्माण होता है। बालक के पैदा होने पर जानकार लोग जान लेते हैं कि किन स्वभावों और संस्कारों की इसके अन्त:करण पर छाया है और उन संस्कारों के कारण उसे जीवन में किस प्रकार की परिस्थितियों से होकर गुजरना पड़ेगा।
आकृति विज्ञान का यही आधार है। प्राचीन काल में इस विद्या की सहायता से बालकों के संस्कारों को समझ कर उनकी प्रवृत्तियों को सन्मार्ग पर लगाने का प्रयत्न किया जाता था। अब भी इसका यही उपयोग होना चाहिए।
इसके चिह्न बुरे हैं इसलिए यह अभागा है इससे घृणा करे, इससे विद्या का दुरूपयोग है। ऐसा दुरुपयोग नहीं होना चाहिए, ऐसा अपने पाठकों से हमारा जोरदार आदेश है।
-श्रीराम शर्मा आचार्य
						
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- चेहरा, आन्तरिक स्थिति का दर्पण है
 - आकृति विज्ञान का यही आधार है
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