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आचार्य श्रीराम शर्मा >> आकृति देखकर मनुष्य की पहिचान

आकृति देखकर मनुष्य की पहिचान

श्रीराम शर्मा आचार्य

प्रकाशक : युग निर्माण योजना गायत्री तपोभूमि प्रकाशित वर्ष : 2012
पृष्ठ :41
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 372
आईएसबीएन :00-000-00

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लोगो की आकृति देखकर उनका स्वभाव पहचानना मनोरंजक तो होता ही है, परंतु इससे अधिक यह अनुभव आपको अन्य लोगों से सही व्यवहार करने में काम आता है।



मस्तक


मस्तक की मजबूत हड्डियों के अन्दर अत्यन्त कोमल भूरे रंग का चिकना-चिकना पदार्थ भरा हुआ है, जिसे मस्तिष्क कहते हैं। मस्तिष्क में असंख्य मानसिक शक्तियों का निवास है, इन शक्तियों के प्रथक्-प्रथक् स्थान हैं। जिसका विस्तारपूर्वक वर्णन हम अपनी पुस्तक "बुद्धि बढ़ाने के उपाय" में कर चुके हैं। यहाँ संक्षेपत: सार रूप में इतना ही बता देना पर्यात होगा कि सिर के अगले भाग में यानी माथे की तरफ आशा, धर्म, दृढ़ता, इजत, बुद्धि तथा विवेक आदि आत्मिक शक्तियों का स्थान है। सिर के पिछले भाग में की दोनों बगलियों में गाना, बजाना, नृत्य, चित्रकारी, कवित्व, रचना, विज्ञान तथा कला प्रभृति कोमल वृत्तियों का निवास है। सिर के इन तीनों भागों में जो मजबूत, पुष्ट, स्वस्थ तथा उन्नत दिखाई पड़ता हो समझना चाहिए कि उस स्थान में रहने वाली शक्तियाँ भी बढ़ी-चढ़ी होंगी।

ऊँचे और चौड़े माथे को देखकर विचारशीलता तथा बुद्धिमत्ता का अनुमान किया जा सकता है। छोटा, दबा हुआ, कम चौड़ा माथा अल्पबुद्धि और विवेकहीनता का लक्षण है, उभरे हुए और चमकदार माथे वालों की स्मरण शक्ति तेज होती है तथा विद्याभ्यास का शौक बढ़ा-चढ़ा होता है।

कम ऊँचा माथा यदि लम्बाई में दूर तक फैला हुआ हो तो हाजिर जबाव, चतुर, गहराई तक पहुँचने वाला तथा कुशाग्र बुद्धि का सूचक होता है। ऊँचे और चौड़े मस्तक वाले व्यक्तियों को यदि अवसर मिले तो वे महापुरुष नेता और आदर्श व्यक्ति हो सकते हैं। इनमें परिश्रम, चतुरता, बुद्धिमत्ता और सचाई की काफी मात्रा होती हैं।

जड़ में अर्थात् भौंहों के पास माथा आगे की ओर बढ़ा हुआ हो और ऊपर बालों के पास पीछे हटा हुआ हो तो समझना चाहिए कि सद्भावना और सच्चरित्रता की कमी है। नीचे ऊपर धंसा हुआ और बीच में उभरा हुआ माथा सहानुभूति, गम्भीरता और उदारता का लक्षण है। ऊपर का भाग आगे निकला हुआ और नीचे का भाग भीतर धंसा हुआ हो तो यह व्यक्ति शौकीन तबियत का, यात्रा करने वाला तथा नित नई योजनाएँ बनाने वाला होगा।

गोलाई लिए हुए माथा कृपालुता, आदर, अनुराग तथा धार्मिकता प्रकट करता है। महरावदार अर्थात् बीच में नुकीला और दोनों ओर गोल माथा दार्शनिक, विचारक, विद्वान् और नई बातें खोजने वालों का होता है। सीधे सपाट माथे वाले बेफिक्र, मस्तराम, हर हालत में खुश और चैन की वंशी बजाने वाले होते हैं, उन्हें दीन-दुनियाँ की ज्यादा परवाह नहीं रहती।

भवों के ठीक ऊपर की हड्डियाँ यदि कुछ आगे बढ़ी हुई हों तो इसे उत्साह, जोश और लगन का चिह्न समझना चाहिए। देश और जाति की महत्वपूर्ण सेवा करने वालों के माथे के बीच में अक्सर गड़े देखे जाते हैं। अगर दोनों भवों के बीच में गड्ढा हो तो वाक्पटुता, प्रसन्नता, चतुराई तथा दयालुता का द्योतक समझना चाहिए।

फूला हुआ, भारी-सा, अधिक वजनदार मस्तक, ठस्स बुद्धि और अड़ियल स्वभाव वालों का होता है। लम्बाई में बहुत छोटा किन्तु ऊँचा बहुत हो तो कपटीपन, ढोंग और मिथ्या भाषण की भरमार समझनी चाहिए। चौकोर माथा प्रतिभा, स्थिरता, सच्चाई और दृढ़ता प्रकट करता है। व्यापारी और धनी लोगों के माथे में एक प्रकार की चमक रहती है। ऊबड़-खाबड़ बेडौल, मस्तक अस्थिरता और काहिली का भेद खोलते हैं।

सिर का पिछला हिस्सा यदि भरा हुआ हो तो प्रेमी होने का और चिपटा हो तो स्वाथी होने का लक्षण है। यह भाग यदि गड्ढेदार, सूखा हुआ, पोलापोला हो तो चिड़चिड़ेपन तथा खुदगर्जी की अधिकता बताता है। ठोस, चौड़ा, सीधा हो तो इन्द्रियों पर काबू रखने वाला होना चाहिए। छीपटी सा पतला और उभरी हुई नसों का हो तो दुनियाँदरी के धन्धे में बहुत अधिक व्यस्त समझना चाहिए। साधु और त्यागी वृत्ति के लोगों के सिर के पिछले भाग को टटोलने पर एक छोटा-सा गड्ढा मालूम पड़ करता है।

छोटी कनपटी वाले नीरस स्वभाव के होते हैं। बड़ी, चौड़ी या फैली हुई कनपटी रसीली प्रकृति के संगीत, साहित्य तथा कला कौशल में रुचि लेने वालों की होती है। कनपटी के नीचे नाक की तरफ जाने वाली जबड़े की हड्डी यदि उभरी हुई हो तो उससे शारीरिक अस्वस्थता प्रकट होती है। कान के पीछे यदि हड्डियों के दो गुटके से उभरे हुए हों तो उस व्यक्ति को कूटनितिज्ञ, रहस्यमय तथा गहरे स्वभाव का समझना चाहिए।

चपटे सिर वाले व्यभिचारी तथा आदरणीय पुरुषों की अवज्ञा करने वाले होते हैं। बहुत छोटे-सिर वाले चंचल और चालाक तो खूब होते हैं, पर विद्वता तथा गम्भीरता की न्यूनता ही रहती है।मध्यम आकार का सुडौल सिर धनी विद्यावान् सुखी और सदाचारी लोगों का होता है। जिसके माथे पर रामानन्दी तिलक का-सा चिह्न हो वह बड़ा होनहार धनी, पुरुषार्थी तथा यशस्वी होता है।

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    अनुक्रम

  1. चेहरा, आन्तरिक स्थिति का दर्पण है
  2. आकृति विज्ञान का यही आधार है
  3. बाल
  4. नेत्र
  5. भौंहें
  6. नाक
  7. दाँत
  8. होंठ
  9. गर्दन
  10. कान
  11. मस्तक
  12. गाल
  13. कंधे
  14. पीठ
  15. छाती
  16. पेट
  17. बाहें
  18. रहन-सहन

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