कहानी संग्रह >> लावा लावाह. मो. मराठे
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हिन्दी पाठकों को समर्पित मराठे की श्रेष्ठ कहानियों का सुन्दर संकलन
प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश
आठवें दशक की मराठी के सशक्त हस्ताक्षर हैं- ह. मो. मराठे। नयी पीढ़ी के अग्रणी कहानीकारों की तरह मराठे के बारे में कहा जा सकता है कि उनकी कहानी कल्पना की हवाई किले से दुनिया पर निगाह फेंकने के बजाय, पथरीले जंगल में दबी सिसकियों से साक्षात्कार करने का सफल प्यास करती हैं। आधुनिकीकरण और औद्योगीकरण के दो पाटों में पिसती मानवता तथा परम्पराओं को तिलांजलि देने के चक्कर में समय का साथ कदम से कदम मिलाकर न चल पाने की असमर्थताएं- कुछ ऐसे ही ‘त्रिशंकु’ आदमी की आहों की आहट उनकी कहानियों से आती है।
महानगरी नारकीय जीवन, आदमी को बेईमानी की खाई में ढकेलती आधुनिकता, नारी शोषण, सामाजिक असमानता का शिकार हुई पीढ़ी का विलाप और अखबारी क्षेत्र के मगरमच्छी आंसू- अन्यान्य ऐसे ही विषय मराठे की कहानी के केन्द्र में होते हैं। दूसरे शब्दों में, आधुनिक जीवन बोध की मेढ़ पर खड़ी गरीबी मानो मराठे कहानी के माध्यम से समूची मानवता के सामने एक गरहा प्रश्न चिह्न लगाती है और यही उनकी कहानी की सफलता है।
महानगरी नारकीय जीवन, आदमी को बेईमानी की खाई में ढकेलती आधुनिकता, नारी शोषण, सामाजिक असमानता का शिकार हुई पीढ़ी का विलाप और अखबारी क्षेत्र के मगरमच्छी आंसू- अन्यान्य ऐसे ही विषय मराठे की कहानी के केन्द्र में होते हैं। दूसरे शब्दों में, आधुनिक जीवन बोध की मेढ़ पर खड़ी गरीबी मानो मराठे कहानी के माध्यम से समूची मानवता के सामने एक गरहा प्रश्न चिह्न लगाती है और यही उनकी कहानी की सफलता है।
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