लोगों की राय

महान व्यक्तित्व >> राजा राममोहन राय

राजा राममोहन राय

विनोद तिवारी

प्रकाशक : मनोज पब्लिकेशन प्रकाशित वर्ष : 2005
पृष्ठ :84
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 3998
आईएसबीएन :81-8133-596-1

Like this Hindi book 9 पाठकों को प्रिय

87 पाठक हैं

मूर्तिपूजा सतीप्रथा, बालविवाह, जात-पात जैसी बुराइयों की समाप्ति के लिए ब्रह्मसमाज की स्थापना करने वाले योद्धा...

Raja ram mahan rai

प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश

राजा राममोहनराय ने देश की गुलामी के खिलाफ बैखौफ होकर शंखनाद किया। अंग्रेजी हुकूमत को खदेड़ भगाने के लिए उन्होंने जहां मोर्चा संभाला, वहीं बालविवाह जैसी कुप्रथाओं के खिलाफ भी जंग छेड़ी। ब्रह्मसमाज की स्थापना कर उन्होंने जो मुहिम छेड़ी, वह सामाजिक और धार्मिक दोनों क्षेत्रों में थी। कारण ? बालविवाह, सतीप्रथा और जात-पात जैसी बुराइयों को सामाजिक स्वीकृति दिलाने में तथाकथित धार्मिक कट्टरपंथियों की महत्वपूर्ण भूमिका थी। राजा राममोहन राय के शब्दों में-‘मैं हिंदू धर्म का नहीं, उसमें व्याप्त बुराइयों का विरोधी हूं’।

सतीप्रथा जैसी कुप्रथा को नष्टप्राय करने में राजाजी काफी हद तक सफल रहे। आज के भारत में राजाजी के कार्यों की भूमिका उनकी समन्वयवादी विचारधारा के कारण है। राजाजी ने बुराई के विपरीत प्रत्येक विचारधारा का सम्मान किया।

प्रकाशकीय

नदी का प्रवाह यदि रुक जाए तो उसका पानी गंदला जाता है। ऐसा ही समाज के संदर्भ में भी होता है। रीति- रिवाज तथा मान्यताओं का निर्माण मानव हितों के लिए किया जाता है। बदलते संदर्भों के साथ कुछ रीति-रिवाज और मान्यताएं अपना अर्थ खो बैठती हैं। जब कोई इन्हें लादकर चलने की कोशिश करता है तो लोग कुछ समय तक उससे उठने वाली सड़ांध को बर्दाश्त कर लेते हैं। लेकिन एक समय ऐसा आता है, जब समर्थक दिखने वाले ही इनके घोर विरोधी बन जाते हैं। वे तब तक चैन से नहीं बैठते, जब तक वातावरण को विषैला बनाने वाली लाश जलाकर फूंक नहीं दी जाती।

18 वीं शताब्दी का उत्तरार्ध और 19 वीं शताब्दी का पूर्वार्ध इस मायने में महत्वपूर्ण है। देश को गुलामी की जंजीरों से मुक्त करने के लिए जहां भारत माता के कुछ सपूतों ने जंग छेड़ी हुई थी, वहीं कुछ लोग गुलाम होने के कारणों को जानकर उन्हें हटाने में जुटे हुए थे। राजा राममोहन राय भी उनमें से एक थे। वे दोनों ही मोर्चों पर लड़ रहे थे। बाल विवाह, जात-पात मूर्ति -पूजा जैसी सामाजिक बुराइयों को दूर करने के लिए राजाजी ने किसी की भी परवाह नहीं की। सतीप्रथा की बलि चढ़ती अपनी भाभी को उन्होंने बचपन में देखा था। वे भाभी की विवशता भरी करुण निगाहों को नहीं भुला पाए थे।
आखिरकार सतीप्रथा को समाप्त करने में राजाजी सफल हुए। इसे कानूनन अपराध मान लिया गया।
अपने उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए राजा राममोहन ने ब्राह्म समाज की स्थापना की। ब्राह्म समाज ने तत्कालीन सांस्कृतिक एवं सामाजिक क्रांति लाने में महत्वपूर्ण प्रेरणा का काम किया।
राजाजी की स्पष्ट घोषणा थी-‘‘मैं हिंदू धर्म का नहीं, उसमें व्याप्त बुराइयों का विरोधी हूं।’’

राजा राममोहन राय नाम है एक ऐसी शख्सियत का, जिसने भारत की प्राचीन गौरवशाली परंपरा को उसके विशुद्ध रूप में स्वीकार करते हुए आधुनिकता को भी यथोचित स्थान दिया। राजाजी ने जहां हिंदुओं की अर्थहीन परंपराओं का विरोध किया, वहीं अपने लेखों, भाषणों द्वारा लोगों को हिंदुत्व के सार का भी परिचय कराया। इसे भाग्य की विडंबना ही कहेंगे कि जिस व्यक्ति ने अपना सर्वस्व भारत के लिए न्योछावर किया, उसने अंतिम सांसें इंग्लैंड में लीं।

कभी-कभी ही जन्म लेती हैं ऐसी दिव्य आत्माएं, जिनका जीवन अपने लिए नहीं अपितु समूची मानवता के लिए होता है।
बड़े भाई जगमोहन की मृत्य के बाद जिस तरह उनकी भाभी ‘अलक मंजरी’ को सती होने के लिए विवश किया गया, उसे राजाजी तब तक नहीं भूले, जब तक सतीप्रथाओं को कानूनी रूप से अपराध नहीं स्वीकार कर लिया गया। सतीप्रथा के पक्षधरों को जवाब देने के लिए राजा राममोहन राय ने समस्त हिंदु धर्मग्रंथों को छान मारा, लेकिन किसी शास्त्र में सतीप्रथा का समर्थन नहीं किया गया था। जघन्य और अमानवीय कृत्य का प्रतिपादन भलाशास्त्र कैसे कर सकते हैं ?

हिंदू समाज में व्याप्त कुप्रथाओं को महसूस करने के बाद राजा राममोहन ने उन्हें दूर करने का संकल्प लिया। प्राचीन और नवीन साहित्य का अध्ययन किया। धार्मिक और सांस्कृतिक रहस्यों को जाना-परखा। उन्हें लोगों तक पहुंचाने के लिए फारसी तथा सर्वप्रथम किसी भारतीय भाषा (बंगला) के समाचारपत्रों का प्रकाशन किया। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की मांग की। अपने विचारों को प्रकट करते समय राममोहन सदैव इस बात का ध्यान रखते थे कि उनकी भाषा मर्यादित हो, उससे किसी के दिल को ठेस न पहुंचे। अपनी ही तरह के विचारों के व्यक्तियों को संगठित करने के लिए राममोहन ने ब्रह्म समाज की स्थापना की। ब्रह्म समाज के सदस्य प्रत्येक शनिवार को एकत्र होते और वेदों की ऋचाओं को पढ़ते। फिर उस पर चर्चा होती।

ब्राह्म समाज का विश्वास था-‘‘ईश्वर केवल एक है। उसकी बराबरी कोई नहीं कर सकता। उसका कोई अंत नहीं। सभी जीवित वस्तुओं में परमात्मा का अस्तित्व है।’’


प्रथम पृष्ठ

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book

A PHP Error was encountered

Severity: Notice

Message: Undefined index: mxx

Filename: partials/footer.php

Line Number: 7

hellothai