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मुक्तिदूत

वीरेन्द्र जैन

प्रकाशक : भारतीय ज्ञानपीठ प्रकाशित वर्ष : 2001
पृष्ठ :238
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 400
आईएसबीएन :81-263-0573-8

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भारतीय ज्ञानपीठ के ‘मुक्तिदेवी’ पुरस्कार से सम्मानित कथा कृति।

Muktidoot - A Hindi Book by - Virendra Jain मुक्तिदूत - वीरेन्द्र जैन

प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश

उपन्यास ‘मुक्तिदूत’ एक महाकाव्य़ात्मक इयत्ता की कथाकृति है। सत्ता, जीवन और चेतना का कोई भी आयाम और स्तर इसमें अछूता नहीं रहा है। चिरन्तन पुरुष और चिरन्तन नारी के द्वन्द्व के माध्यम से, इसमें कथाकार ने जीवन के हरसम्भव संघर्ष और उलझन को प्रकाशित और पारिभाषित किया है।

अंजना-पवन्जय के प्राणकथा पर आधारिय यह अपने ढंग की अनोखी कृति है। क्लासिकल और रूमानी सृजनात्मकता का इसमें एक अनूठा समन्वय हुआ है। इसमें सतही वास्तविकता के अर्थ में नहीं, मौलिक यथार्थ के रूप में, एक यथार्थवादी कृति ही कहा जायेगा। क्योंकि इसमें चरम सत्ता के परिपेक्ष्य में, उससे प्रवाहित जीवन को देखने, समझने और समझाने का एक हार्दिक प्रयास है। इसमें अनुभूति ही अनायास चिन्तन बन गयी है।

मानव-चेतना ही मानव चेतना के अन्तरिक्ष-यात्रा के इस आख्यान में लेखक ने कुछ नये शिल्प-प्रयोग भी किये हैं जो सुधी और विवेकी पाठक की दृष्टि से छिपे नहीं रहेंगे। अन्तश्चेतनिक मनोविज्ञान ‘डेफ्थ साइकोलोजी’ का यह हिन्दी में एक अन्यतम सृजन-प्रयोग है।
प्रस्तुत है पुस्तक का यह नया संस्करण।

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