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विश्व प्रसिद्ध जासूसी कहानियाँ

विजय श्रीवास्तव

प्रकाशक : आत्माराम एण्ड सन्स प्रकाशित वर्ष : 2005
पृष्ठ :136
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 4011
आईएसबीएन :81-89377-06-x

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विश्व प्रसिद्ध जासूसी कहानियों का संग्रह

Vishva prasidha jasoosi kahaniyan

प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश

क्या आपने कभी किसी औरत को चीखते हुए सुना है ? सामान्य चीख-पुकार नहीं, बिलकुल गलाफाड़ कर किसी डर से या परेशानी से चीखते हुए। ऐसी चीख जिसे सुनकर सुनने वाले का कलेजा डर से दहल जाये, वह पूरा का पूरा हिल जाए।
अब वह एक स्टूल पर बैठकर झुककर अपनी एड़ियों को गर्म करने के लिए रगड़ रही थी। यह मुद्रा मुझे उत्तेजक लगी और वैसे भी मेरे लिए इस तरह का पहला अनुभव था। मैं उसके करीब पहुँचा और उसके कन्धों पर हाथ रख दिए।

वह मुस्कराती हुई खड़ी हो गए। किसी लड़की के आलिंगन में आने का यह मेरा पहला अनुभव था। हमने एक-दूसरे को चूमा।
जैस्पर स्लेन फ्लैट से बाहर जाने के लिए दरवाजे की तरफ कदम बढ़ा रहा था। वह थका हुआ जरूर था लेकिन उसने खुद को इससे पहले कभी इतना हताश नहीं पाया था। वह सोच रहा था कि मेरा अन्तर्मन जो महसूस करता है वह सही होता है। हालाँकि अब भी उसकी छठी इन्द्रिय यह बार-बार कह रही थी कि कार्टराइट यहीं कहीं पर है, पर कहाँ और किस हाल में ?

ये कहानियाँ क्यों ?


जासूसी कहानियाँ हमेशा से पाठकों को आकर्षित करती रही हैं। दरअसल अपराध और अपराध सुलझाना एक ऐसी प्रक्रिया है जो एक रोमांचक दौर से गुजरती है। हिन्दी में जासूसी कहानियाँ इधर कम ही लिखी जा रही हैं और लिखी भी जा रही हैं तो उन्हें प्रकाशित करने का मंच उपलब्ध नहीं हो पाता। इसी कमी को पूरा करने के लिए यह प्रयास किया गया है। ये कहानियाँ इंग्लैंड में दशकों पहले छप कर लोकप्रिय हो चुकी हैं। इनका अनुवाद करके इसे हिन्दी पाठकों तक इसी मकसद से पहुँचाया जा रहा है कि वे भी इनका रसास्वादन कर सकें। ये सभी कहानियाँ पढ़ते हुए अपार जासूसों की एक अलग और दूसरी दुनियाँ में खुद को पाएँगे। हर कहानी अलग मिजाज की है लेकिन इन सबमें एक समानता भी है। वो यह कि अपराध जगत से निपटने के लिए जासूसों या पुलिस अधिकारियों की तत्परता और कार्यकुशलता एक समान सी ही झलकती है।

 हाँ, एक बात और हिन्दी के ज्यादातर पाठकों ने विदेशी जासूसी लेखकों के नाम पर सर आर्थर कानन डायल, अथवा क्रिस्टी, सर राइडर एच हैगर्ड का ही नाम सुना पढ़ा है। दरअसल इनकी कृतियाँ हिन्दी साहित्य में प्रकाशित ज्यादातर लेखकों की कहानियों का अनुवाद न के बराबर ही हुआ है। इसलिए इस संग्रह में ऊपर वर्णित लेखकों की कहानियाँ नहीं हैं। लेकिन जिन लेखकों की कहानियाँ यहाँ छापी गई हैं उन्हें पढ़ने में भी आप वही रोमांच रहस्यमयता महसूस करेंगे जिसकी कि एक अच्छी जासूसी कहानी से उम्मीद की जाती है, इसमें भी आपको वही रहस्य और रोमांच मिलेगा जो सर आर्थर कानन डायल या अगाथा क्रिस्टी के उपन्यासों या कहानियों को पढ़ते हुए मिलता है।

-विजय श्रीवास्तव

तीन चाभियाँ


हैटन गार्डन स्थित एक इमारत की पहली मंजिल के आफिस में दो अलग-अलग मेजों के साथ लगी कुर्सियों पर दो व्यक्ति बैठे हुए थे। दोनों ही एकदम किसी लकवाग्रस्त व्यक्ति की तरह बिना हिले-डुले बैठे, अपलक अपने सामने की दीवार को घूर रहे थे। कमरे में एक तीसरी तरफ की दीवार पर एक अत्यन्त आधुनिक और मजबूत सेफ लगी हुई थी, जो किसी समये खुली हुई थी, और इसमें नीचे के चारों ड्राअर भी खुले पड़े थे।

कुर्सियों पर बैठे दोनों सज्जन लगभग 20 मिनट से एकदम चुप थे, लेकिन इससे पहले दोनों में जमकर वाकयुद्ध हो चुका था। अब सब तरफ खामोशी थी, जिसे रह-रह कर घड़ी की टिक-टिक और नीचे चल रहा ट्रैफिक ही कभी-कभी भंग कर रहा था। इन दोनों व्यक्तियों में सिवाय इस बात के कि दोनों सम्पन्न थे और कोई समानता नहीं थी। बड़ा वाला छोटे कद का मोटा और थोड़े साँवले रंग का था। छोटा वाला व्यक्ति  लंबे कद का दुबला-पतला और गेहुँआ रंगत का था।
दोनों में कोई संबंध नहीं था, लेकिन दोनों ही लगभग 30 वर्षों से आज तक बेहद अच्छे दोस्त थे। बस 20 मिनट पहले ही दोनों में झगड़ा हुआ था।

तभी सीढ़ियों पर किसी के चढ़ने की आहट हुई। दरवाजे पर दस्तक के बाद नीले रंग का सूट पहने एक सज्जन कमरे में हाजिर हुए। कमरे में अजनबी ने अपनी हैट उतारते हुए दोनों का अभिवादन करते हुए अपना परिचय दिया, ‘‘जासूस इंस्पेक्टर पूल, न्यू स्काटलैंड यार्ड। आप लेवी, बर्ग और फिलिप्स हैं ? मुझसे कहा गया था कि आपने यहाँ एक इंस्पेक्टर भेजने का अनुरोध किया है।’’
यह सुनते ही कमरे में पहले से ही बैठे दोनों सज्जन एकदम से हरकत में आ गए। दोनों ही एक-दूसरे को घूरते हुए ऊँची आवाज में बोलने लगे। इंस्पेक्टर पूल दोनों की बात तो समझ नहीं आई, लेकिन उसे कमरे की एक झलक से ही वहाँ के हालात का अंदाजा हो गया था।
इंस्पेक्टर पूल ने कहा, ‘‘सज्जनों, यह ज्यादा अच्छा होगा अगर आप लोग एक-एक करके अपनी बात बताएँ। तभी मुझे समझने में सुविधा होगी।’’ पहले कौन बयान दे, इस पर भी दोनों में चखचख हुई। लेकिन दुबले-पतले सज्जन श्रीमान बर्ग में बयान देने पर राजी हो गए।

मोटे सज्जन श्रीमान लेवी ने घटना बतानी शुरू की, ‘‘हम लोग हीरों के व्यापारी हैं, ‘‘उन्होंने कहा। ‘‘हम 30 साल से साझेदारी में एक व्यवसाय कर रहे हैं, और मैं आरोन बर्ग। गत 15 वर्षों से इस धन्धे में हमारे साथ एक तीसरा साझेदार भी जुड़ गया है, वह जार्ज फिलिप्स। फिलिप्स ने हमारे धन्धे में पूँजी तब लगाई जब लड़ाई के कारण बाजार की हालत पतली थी। आरोन एक जर्मन नागरिक है और फिलिप्स इस धन्धे में अपने छोटे भाई को भी कुछ साल पहले ले आया था। लेकिन साझेदार की हैसियत से नहीं बल्कि हमारे आफिस में एक क्लर्क की हैसियत से।’’
‘‘क्या वह आपके साझेदार श्रीमान फिलिप्स यहीं हैं,’’ पूल ने पूछा।
‘‘वह और उसका भाई ईस्टर की छुट्टियाँ मनाने कल रात यहाँ से रवाना हुए हैं।’’

‘‘आपके और श्रीमान बर्ग के जिम्मे यहाँ का कामकाज छोड़कर ?’’
‘जी हाँ, चूँकि हम ईसाई नहीं, यहूदी हैं इसलिए ईस्टर की छुट्टियाँ नहीं मनाते।’’
इंस्पेक्टर पूल ने महसूस कर लिया था कि श्रीमान लेवी सच बोल रहे हैं।
लेवी ने अपना बयान जारी रखा, ‘‘आम तौर पर हम इस सेफ में 5 से 20 हजार पौंड तक के हीरे रखते हैं। तराशे हुए भी और बिना तराशे हुए भी। हाल में हम एक धन्धे की बातचीत करने में लगे हुए थे। हमारे पास कुछ बेहतरीन बिना तराशे हुए हीरे थे। कल रात जब हमने सेफ बन्द किया तो उसमें 30 हजार पौंड के हीरे थे, और आज दुपहर को यह सेफ खाली मिला।...’’
यह बताते हुए अपनी सारी जमा पूँजी गँवा चुके व्यक्ति की तरह लेवी के जबड़े दुख से काँप उठे।
‘‘आपने कहा कि रात सेफ को ताला लगाया गया था। किसने सेफ को ताला लगाया था ?
अपने काँपते हाथों से इशारा करते हुए श्रीमानलेवी ने जैसे समझाना चाहा कि वह सबकुछ बता देंगे।

उन्होंने कहना जारी रखा, ‘‘सेफ की तीन चाभियाँ हैं। दो से सेफ का मुख्य पल्ला खुलता है और तीसरी से ड्राअर। ड्राअर में ही अमूल्य हीरे रखे जाते थे और कल रात उसी में रखे गए थे। ड्राअर के ऊपर बने खानों में बही खाते की किताबें और अन्य जरूरी कागजात रखे जाते हैं। बर्ग और फिलिप्स के पास सेफ की चाभी है और मेरे पास ड्राअर की, लेकिन मेरे पास सेफ की चाभी नहीं है। एक बार ड्राअर में हीरे रख कर ताला लगा दिया जाए तो फिर उसे तभी देखा जा सका है जब हम दोनों बर्ग और फिलिप्स हों और मैं होऊँ। या फिर उन दोनों में से एक हो और मैं होऊँ। इन चाभियों को हम अपने पास से कभी अलग नहीं करते, न ही किसी अन्य व्यक्ति को सेफ का ड्राअर खोलने के लिए इसे देते हैं। इसी तरीके से इतने वर्षों से हम अपने हीरों को सुरक्षित रखने में कामयाब रहते आए हैं।’’

जासूस की नजर एक बार फिर से सेफ पर पड़ी। उसकी नजरों में एक सेकेंड के लिए शायद एक विचार कौंधा कि आखिर यह पद्धति भी सुरक्षा देने में नाकाम रही।

लेवी ने कहना जारी रखा, ‘‘कल बर्ग काम के सिलसिले में बरमिंघम में था। मैंने और फिलिप्स ने दिन का काम खत्म करने के बाद स्टॉक की जाँच की और मैंने, जैसा कि हमेशा करते आए हैं, ड्राअर का ताला लगाया।   उसके बाद फिलिप्स ने सेफ का ताला बन्द किया। फिर हम इकट्ठे यहाँ से रवाना हो गए।’’
‘‘एक मिनट श्रीमानजी,’’ इंस्पेक्टर ने हस्तक्षेप करते हुए कहा, ‘‘क्या आप निश्चित तौर पर कह रहे हैं कि श्रीमान फिलिप ने सेफ में ताला लगाया था ?’’

‘‘जी हाँ, हमारी आदत है, बल्कि नियम है कि एक के ताला लगाने के बाद दूसरा खींचकर देख लेता है कि ताला ठीक से लगा है या नहीं। मैंने जब ड्राअर को ताला लगाया तो मैंने उसे खींच कर देखा। यह हमारा एक ऐसा नियम है जिसका पालन करने में हम कभी कोताही नहीं बरतते।’’
‘‘और जब आपने दफ्तर छोड़ा, पीछे कोई था तो नहीं ?’’
‘‘कोई भी नहीं। हम सभी के पास दफ्तर की चाभी हैं, यहाँ तक कि फिलिप्स के छोटे भाई हैरल्ड फिलिप्स तक के पास। हाँ, दफ्तर में काम करने वाले लड़के के पास कोई चाभी नहीं है। मैं यहीं इसी दफ्तर में ही सोता हूँ। लेकिन बीच-बीच में मैं तीन-चार घण्टों के लिए दफ्तर से बाहर भी जाता हूँ। लेकिन इस सेफ को बनाने वालों ने गारण्टी दे रखी है कि या तो यह सिर्फ इसकी चाभी से खुलेगा और इसकी डुबलीकेट चाभी नहीं बन सकती, या फिर इसे गैस मशीन से काटने में भी कम से कम छह घण्टे लगेंगे, उससे पहले यह कट नहीं सकती। और मैं 4-5 घण्टे से ज्यादा कभी गायब नहीं रहता।’’

इंस्पेक्टर पूल ने सिर हिलाया और लेवी ने अपना बयान जारी रखा, ‘‘मैं और फिलिप्स यहाँ से इकट्ठे ही आल ब्रिटिश स्पोर्ट्स क्लब गए थे टर्किश बाथ लेने के लिए। यह हमारी आदत है कि एक पखवाड़े में एक बार हम इस क्लब में टर्किश क्लब में टर्किश बाथ जरूर लेते हैं। यह हम अपने मोटापे को नियंत्रित रखने के लिए करते हैं। हम क्लब में करीब छह बजे शाम को पहुँचे। वहाँ हम दोनों इकट्ठे स्नान किया और इकट्ठे ही साढ़े सात बजे क्लब से रवाना हो गए।....’’
‘‘एक मिनट श्रीमानजी ! आप जब नहा रहे थे तो आपकी चाभियाँ कहाँ थीं ?’’
‘‘कमरे की चाभी मेरी डायरी के साथ बाथरूम से लगाकर बने ड्राअर में; जिसकी निगरानी हमें तौलिया देने वाला अटेंडेंट कर रहा था।’’
‘‘और ड्राअर की चाभी।’’
‘‘वह मेरे कपड़ों में ही थी।’’
‘‘और जब आपने कपड़े पहने तब भी ड्राअर की चाभी आपकी जेब में थी ?’’
‘‘जी हाँ।’’
‘‘और आपको बाथरूम के साथ बने ड्रार में अपनी चाभी और डायरी सुरक्षित मिली ?’’
‘‘जी हाँ।’’

इसके बाद श्रीमान लेवी ने बताया कि दफ्तर कम घर लौटकर उन्होने सेफ को खींचकर देखा, वह बन्द था। फिर उन्होंने खुद ही अपने लिए आमलेट बनाया और व्हिस्की के दो पैग पीकर एक किताब पढ़ते हुए सो गए। उनका कमरा दफ्तर के कमरे के ठीक ऊपर है।
उन्होंने कहना जारी रखा, ‘‘आज सुबह कुछ व्यापारियों से मिलने के लिए मैं बाहर चला गया। मेरे पीछे आरोगन बर्ग दफ्तर में अकेला था। आज दोपहर ही किसी व्यापारी को हीरे दिखाने के लिए सेफ खोला गया तो उस हालत में पाया गया, जैसा कि इंस्पेक्टर खुद देख रहे हैं।’’
‘‘क्या सेफ खोलने पर उसके अन्दर बने ड्राअर भी बन्द पाए गए थे ?’’
‘‘हाँ, बन्द लेकिन खाली।’’
इंस्पेक्टर ने पूछा, ‘‘आप इस, बारे में क्या सोचते हैं। क्या अन्दाजा है आपका ?’’


 

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