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उपन्यास >> न जाने कहाँ कहाँ

न जाने कहाँ कहाँ

आशापूर्णा देवी

प्रकाशक : भारतीय ज्ञानपीठ प्रकाशित वर्ष : 2012
पृष्ठ :138
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 405
आईएसबीएन :9788126340842

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ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित लेखिका श्रीमती आशापूर्णा देवी जी का एक और उपन्यास

 

6


लाबू बोली, “अरे पत्ते लेने आयी है? तो ले न कितना लेगी? जंगल हो रहा है।"

पत्ते इकट्ठा कर एक दोने में रख मिंटू चबूतरे पर पाँव लटकाकर बैठ गयी। इधर-उधर की एक-आध बातें शुरू की थीं कि खुले दरवाजे से अरुण भीतर आया। बोला, “क्यों, क्या हाल-चाल है?"

लाबू जल्दी से बोली, “वह अपने पिता के लिए पत्ते लेने आयी है। बारहों महीने उन्हें डिस्पेपसिया रहता है।"

अरुण ने पूछा, “बढ़ गया है क्या?'

मिंटू उठ खड़ी हुई। अपनी उसी फिरोज़ी रंग की साड़ी का आँचल सँभालते हुए बोली, “नहीं। नया कुछ नहीं। एकाएक ही याद आया इसे खाकर पिताजी बहुत ठीक रहते हैं।"

“ताई जी ठीक हैं? “हाँ।”

“अच्छा। कहना, हो सका तो शाम को आऊँगा। रेल का एक मन्थली टिकट बनवाना पड़ेगा। ताऊजी अगर."

अगर सुनने तक मिंटू ठहरी नहीं। बोली, “ठीक है कह दूंगी।” दौड़ती हुई चली गयी। लेकिन इतना ही काफ़ी था-दोनों ने एक दूसरे पर चकित दृष्टि डाल ली।


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