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उपन्यास >> न जाने कहाँ कहाँ

न जाने कहाँ कहाँ

आशापूर्णा देवी

प्रकाशक : भारतीय ज्ञानपीठ प्रकाशित वर्ष : 2012
पृष्ठ :138
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 405
आईएसबीएन :9788126340842

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ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित लेखिका श्रीमती आशापूर्णा देवी जी का एक और उपन्यास

 

13


रात को सुनीला बगलवाली खाट पर लेटी लड़की को छूकर बोली, “तो फिर तू शादी वादी नहीं करेगी?"

“बड़ी मुश्किल है। नींद के मारे मेरी हालत ख़राब है और तुम हो कि... सोने दो न बाबा?”

“जब भी कहती हूँ तू बात टाल देती है। ज़रा साफ़-साफ़ बता तो दे। शादी किये बगैर ज़िन्दगी कटेगी?”।

"बड़े आश्चर्य की बात है? कभी भी नहीं करूँगी ऐसी भीष्म प्रतिज्ञा मैंने कब की है?

“ऐं ! सच कह रही है?" माँ हड़बड़ाकर उठ बैठीं लगभग आर्तनाद कर उठीं, "सच कह रही है? मुझे छू कर कह !"

"मैं छूने-छुलाने में विश्वास नहीं करती हूँ, माँ। क्या यह शादी अभी इसी रात करनी है? वर रेडी है? लग्न भी है? पुरोहित, नाऊ, आरती की थाल सब है तैयार?”

माँ ज़रा-सा कौतुकपूर्ण स्वर में बोली, “इसी रात को न सही-वर है। बाप रे ! तू ऐसी बातें करती है तो सुन, अलका की एक ममेरी बड़ी बहन का लड़का है। बी.कॉम. पास है। नौकरी की तरफ गया नहीं, सीधे बिजनेस करने लगा है।

और तीस-इकतीस साल की इस उम्र में तेरे शब्दों में 'भयंकर उन्नति' कर ली है। कहते हैं घर का नक्शा ही बदल डाला। फ्रिज, रंगीन टी.वी., टेलीफोन- पहले शायद मोटर वाइक थी-अब हाल ही में कार खरीद ली है। खूब मातृभक्त है। ऐसा कोई काम नहीं करता है जिससे माँ को दुःख पहुँचे। हर समय यही कोशिश रहती है कि माँ को हर तरह का आराम मिले। बेचारी ने सधवा रही तो एक अच्छी साड़ी नहीं पहनी, अब लड़का महँगी-महँगी साड़ियाँ ला-लाकर माँ को पहना रहा है। कार खरीदकर सबसे पहले माँ को बिठाया और कालीघाट ले गया।”

ब्रतती समझ गयी, आज ‘छोटे तरफ़' वाली ने ‘बड़ी तरफ़' वाली से काफ़ी वार्तालाप किया है। इसीलिए आज माँ का चेहरा इतना उज्ज्वल लगा था।

मन-ही-मन हँसने पर भी चेहरे पर निरीह भाव लाते हुए बोली, “अरे बाप रे ! तब तो मानना ही पड़ेगा 'जबरदस्त क़िस्म का वर' है ! ऐसे लड़के को तो आधा राज्य और पूरी राजकन्या मिलनी चाहिए ! बेचारी सुनीला सेन की भिखमंगी लड़की का ऑफर क्यों?

माँ नाराज़ होकर बोलीं, “बात करने का ढंग देखो लड़की का? इसमें भिखमंगी होने की क्या बात है? मैं देख रही हूँ क्रमशः तेरा मन कुटिल हुआ जा रहा है। अलका की ममेरी दीदी ने तुझे कितनी बार तो देखा है उसे तू अच्छी लगी है। फिर उसने कहा है तुझ जैसी मातृभक्त लड़की को घर की लक्ष्मी बनाकर ले जायेगी तो उसका लड़का कभी नहीं बिगड़ेगा।"

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