लोगों की राय

उपन्यास >> न जाने कहाँ कहाँ

न जाने कहाँ कहाँ

आशापूर्णा देवी

प्रकाशक : भारतीय ज्ञानपीठ प्रकाशित वर्ष : 2012
पृष्ठ :138
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 405
आईएसबीएन :9788126340842

Like this Hindi book 2 पाठकों को प्रिय

349 पाठक हैं

ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित लेखिका श्रीमती आशापूर्णा देवी जी का एक और उपन्यास

 

42


चैताली बोली, “तो भीष्म की प्रतिज्ञा भंग हुई।"

सौम्य बोला, “ऐसी कोई अमोघ प्रतिज्ञा की थी, याद तो नहीं आ रहा है।"

“मुँह से न सही, देखने-सुनने से तो यही धारणा हो गयी थी।"

"अरे, यह बात है? हा हा हा। इन्सान कितनी तरह की गलत धारणा मन में पाला करता है। मैंने तो जिस दिन पहली बार इस लड़की को देखा था उसी दिन उसके प्रेमजाल में फँस गया था।"

ऐसी स्पष्ट निर्लज्ज युक्ति के बाद चैताली का मन नहीं किया कि कुछ कहे। शायद साहस नहीं हुआ। लगता है, अब चैताली को लड़ाई की तैयारी करनी पड़ेगी।

दिव्य से जाकर बोली, “इसके बाद शायद हमें इस घर को छोड़ना पड़ेगा।"

दिव्य शंकित हुआ। "क्यों? किसने क्या कहा है?"

“कहा नहीं है। लेकिन लग रहा है छोटे साहब भीतर ही भीतर युद्ध के लिए प्रस्तुत हो रहे हैं।"

ज़िन्दगी में पहली बार दिव्य चैताली की बात का प्रतिवाद कर बैठा। बोला, “तुम भी क्या कहती हो? तुम तो ज़बरदस्ती 'डर' को न्योता देकर सोचने बैठ जाती हो। सौम्य जैसा लड़का हजारों में एक नहीं मिलेगा।"

"बदलते कितना वक्त लगता है? पुरुष जाति का कोई भरोसा नहीं।"

एकाएक दिव्य एक अलौकिक-सी हँसी हँसकर बोला, “यह बात हालाँकि सच है ।

इसी हँसी ने चैताली को और भी शंकित कर दिया। लेकिन इस समय अपनी गुरु और मंत्री कंकनादी के पास भागकर जा भी नहीं सकती थी। वह अपने नये ब्याहे पति के साथ यूरोप घूमने गयी है।

चैताली जैसे अपनी आँखों के सामने देख रही थी, उसका आधिपत्य, उसका एकाधिकार, कम होता जा रहा है।

जो लड़की सौम्य जैसे अड़ियल लड़के पर कब्जा जमा सकती है, वह मामूली लड़की तो होगी नहीं।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book

A PHP Error was encountered

Severity: Notice

Message: Undefined index: mxx

Filename: partials/footer.php

Line Number: 7

hellothai