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आचार्य श्रीराम शर्मा >> अन्त्याक्षरी पद्य-संग्रह

अन्त्याक्षरी पद्य-संग्रह

श्रीराम शर्मा आचार्य

प्रकाशक : श्रीवेदमाता गायत्री ट्रस्ट शान्तिकुज प्रकाशित वर्ष : 2001
पृष्ठ :160
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 4136
आईएसबीएन :00000

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जीवन मूल्यों को स्थापित करने के लिए अन्त्याक्षरी पद्य-संग्रह

Antyakshari Padya-Sangrah a hindi book by Sriram Sharma Acharya

प्राक्कथन


'अन्त्याक्षरी' प्रतियोगिताओं के प्रति छात्रों, बाल और किशोर वय के बालक-बालिकाओं में काफी अभिरुचि पाई जाती है। विज्ञजनों ने इस विधा का स्वरूप गढ़ने तथा उसे लोकप्रिय बनाने के लिए काफी प्रयास किए। इसके पीछे कई प्रयोजन रहे हैं। अन्त्याक्षरी एक स्वस्थ साहित्यिक, स्मृति वर्धक खेल है। स्पर्धा के भाव से जो पद याद कर लेते हैं, उनमें सन्निहित श्रेष्ठ विचारजीवन सूत्र उनके जीवन को जाने-अनजाने प्रभावित भी करते हैं। इसलिए समाज के विचारशील लोग, शिक्षक, अभिभावक आदि सभी यह चाहते रहे हैं कि अधिकाधिक बच्चे 'अन्त्याक्षरी' खेल/स्पर्धा में भाग लेते रहें।

रामचरित मानस में रोचकता के साथ व्यक्ति, परिवार एवं समाजगत आदर्शों का काव्यमय वर्णन है। बच्चे उन सूत्रों को पढ़ें-समझें-याद करें, इसलिए रामचरित मानस पर आधारित अन्त्याक्षरियों का बोलबाला लम्बे समय तक रहा। क्रमशः उसका दायरा बढ़ाने के लिए अन्य काव्य संग्रहों के पद भी शामिल करने का प्रचलन चला; लेकिन उस दिशा में बच्चों को सुविधा एवं मार्गदर्शन देने के लिए अकारादि क्रम से संपादित पद्य संग्रहों का काफी अभाव रहा। बच्चे अपनी अधकचरी बुद्धि से प्रतियोगिताएँ जीतने के उत्साह में अधिक से अधिक पद्यांश चुनने एवं याद करने लगे। परिणाम यह हुआ कि उसके साथ फिल्मी गीतों के अनगढ़ पद जोड़े जाने लगे। अन्याक्षरी एक स्पर्धा मात्र रह गई, उसके साथ बच्चों की स्मृति में श्रेष्ठ जीवन सूत्रों को स्थापित करने का महत्त्वपूर्ण उद्देश्य दरकिनार कर दिया गया।

युग निर्माण आन्दोलन के अन्तर्गत उस प्रत्येक विधा को दिशा एवं प्रोत्साहन देने का प्रयास किया जा रहा है। जो सुसंस्कृत व्यक्ति, परिवार एवं समाज के निर्माण में योगदान कर सके। इस विश्वव्यापी आन्दोलन के संस्थापकसंरक्षक ऋषि युग्म (वेदमूर्ति तपोनिष्ठ, युगऋषि पं० श्रीराम शर्मा आचार्य एवं स्नेह सलिला वन्दनीया माता भगवती देवी शर्मा) बच्चों तक विचार क्रान्ति के सूत्र पहुँचाने के लिए, उन्हें जीवन आदर्शों की ओर उन्मुख करने के लिए हर संभव प्रयास करते रहने की प्रेरणा देते रहे हैं। 'अन्त्याक्षरी' को भी उन्होंने इस कार्य के लिए अत्यधिक उपयोगी माना है। इसलिए सन् १९६७-६८ के लगभग उन्होंने 'दोहा अन्त्याक्षरी' के नाम से एक संग्रह भी प्रकाशित करवाया था। वह पुस्तिका काफी लोकप्रिय भी हुई थी।

पिछले कुछ वर्षों से क्षेत्र के विचारशील कार्यकर्ता एवं शुभ चिन्तक इस बात का आग्रह करते रहे हैं कि दोहा अन्त्याक्षरी के फिल्मी अनगढ़ स्वरूप के स्थान पर उसे मौलिक गरिमामय स्वरूप को पुनः स्थापित करने के लिए कुछ किया जाय । इस उद्देश्य की पूर्ति की दिशा में पहली जरूरत अनुभव हुई एक ऐसे पद्य संग्रह की, जिसमें अकारादि क्रम से संपादित श्रेष्ठ प्रेरणादायक पद पर्याप्त संख्या में हों। इस दिशा में शान्तिकुञ्ज के वेद विभाग एवं संगीत विभाग के माध्यम से सुनिश्चित प्रयास किया गया, जिसके फलस्वरूप 'अन्त्याक्षरी पद्य संग्रह' का पहला संस्करण प्रस्तुत किया जा रहा है।

इस संग्रह में अकारादि क्रम से अनेक संत कवियों द्वारा रचित पदों के साथ 'युगनिर्माण' गीतों के समृद्ध कोष से श्रेष्ठ प्रेरणादायक पद्यांश भी संकलित किए गये हैं। अपेक्षा यह की गई है कि छात्रों, बाल एवं किशोर वय के बालक, बालिकाओं के बीच इसके सहयोग से सोद्देश्य अन्न्याक्षरी प्रतियोगिताएँ कराई जाएँ। इस श्रृंखला में आमंत्रित की जाने वाली अन्त्याक्षरी प्रतियोगिताओं में यह भी शर्त रखी जाय कि पद्यांश बोलने के साथ प्रतियोगी को उसमें सन्निहित प्रेरणा को भी स्पष्ट करना होगा। इस संग्रह के बाहर के भी पद्यांश लिए जा सकते हैं, लेकिन निर्णायकों को यह अधिकार होगा कि यदि गाये गये पद में कोई उपयुक्त प्रेरणा नहीं है, तो उस पद को अमान्य किया जा सकेगा।

आशा है युगनिर्माण आन्दोलन से जुड़े परिजन नई पीढ़ी में श्रेष्ठ जीवन मूल्यों को स्थापित करने के लिए सार्थक प्रयास करेंगे तथा उन प्रयासों को सफल बनाने में 'अन्त्याक्षरी पद्य-संग्रह' का महत्वपूर्ण योगदान मिलता रहेगा।

- प्रकाशक

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    अनुक्रम

  1. ज्ञ
  2. ट-ण

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