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आचार्य श्रीराम शर्मा >> शिवाभिषेक

शिवाभिषेक

वेद विभाग

प्रकाशक : युग निर्माण योजना गायत्री तपोभूमि प्रकाशित वर्ष : 2005
पृष्ठ :16
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 4166
आईएसबीएन :0000

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प्रस्तुत है शिवाभिषेक विधि....

Shivabhishek

प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश

।।शिवाभिषेकः।।

शक्तिपीठों में जगह-जगह महाकाल शिवजी की स्थापना हो गई है, हो भी रही है। पर्वों एवं विशेष प्रसंगों पर श्रद्धालुजन रुद्राभिषेक करने-कराने का आग्रह भी करते हैं। रुद्राभिषेक की परम्परागत पद्धति लम्बी और जटिल है। अस्तु, ‘शिवाभिषेक’ के नाम से यह पद्धति जनहितार्थ पर्याप्त शोधपूर्वक ‘वेदविभाग, शान्तिकुज’ द्वारा प्रस्तुत की गई है। इसमें परम्परागत पद्धति के महत्त्वपूर्ण अनिवार्य घटकों को शामिल रखते हुए इसे सुगम और प्रभावी बना दिया गया है। अन्त में महाकाल की समयानुकूल आरती तथा महाकालाष्टक आदि भी दे दिए गये हैं। विश्वास  है परिजन इसके आधार पर श्रद्धालुओं का उचित समाधान भी कर सकेंगे।

।।मंगलाचरणम्।।

ॐ भद्रं कर्णेभिः श्रृणुयाम देवा, भद्रम्पश्येमाक्षभिर्यजत्राः।
स्थिरैरंगैस्तुष्टुवाऽसस्तनूभिः, व्यशेमहि देव हितं यदायुः।।
-25.21

।।पवित्रीकरणम्।।

ॐ अपवित्रः पवित्रों वा, सर्वावस्थां गतोऽपि वा।
यः स्मरेत्पुण्डरीकाक्षं, स बाह्याभ्यन्तरः शुचिः।।
ॐ पुनातु पुण्डरीकाक्षः, पुनातु पुण्डरीकाक्षः, पुनातु।

वामन पुराण 33.6

।।आचमनम्।।

ॐ अमृतोपस्तरणमसि स्वाहा।।1।।
ॐ अमृतापिधानमसि स्वाहा।।2।।
ॐ सत्यं यशः श्रीर्मयि, श्री श्रयतां स्वाहा।।3।।

।।शिखावन्दनम्।।

ॐ चिद्ररूपिणि महामाये, दिव्यतेजः समन्विते।
तिष्ठ देवि शिखामध्ये, तेजोवृद्धिं कुरुष्व मे।।

-संध्या प्रयोग

।।प्राणायमः।।

ॐ भूः ॐ भुवः ॐ स्वः ॐ महः, ॐ जनः ॐ तपः ॐ सत्यम्। ॐ तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि। धियो यो नः प्रचोदयात्। ॐ आपोज्योतीरसोऽमृतं, ब्रह्म भूर्भुवः स्वः
ॐ।

-तैत्तिरीय आरण्यक 10.27

।।न्यासः।।

ॐ वाङ्मे आस्येऽस्तु। (मुख को)
ॐ नसोर्मे प्राणोऽस्तु। (नासिका के दोनों छिद्रों को)
ॐ अक्ष्णोर्मे चक्षुरस्तु। (दोनों नेत्रों को)
ॐ कर्णयोर्मे श्रोत्रमस्तु (दोनों कानों को)
ॐ बाह्वोर्मे बलमस्तु। (दोनों भुजाओं को)
ॐ ऊवोर्र्मे ओजोऽस्तु। (दोनों जंघाओं को)
ॐ अरिष्टानि मेऽङ्गानि, तनूस्तन्वा मे सह सन्तु। (समस्त शरीर पर)

-पारस्कर गृह्य सूत्र 1.3.25

।।पृथ्वी पूजनम्।।

ॐ पृथि्व ! त्वया धृता लोका, देवि ! त्वं विष्णुना धृता।
त्वं च धारय मां देवि ! पवित्रं कुरु चासनम्।।-संध्या प्रयोग

।।कलशपूजनम्।।

ॐ तत्त्वायामि ब्रह्मणा वन्दमानः, तदाशास्ते यजमानो हविर्भिः।
अहेडमानो वरुणेह बोध्युरुश ॐ, समानऽआयुः प्रमोषीः।18.49
ॐ मनोजूतिर्जुषतामाज्यस्य, बृहस्पतिर्यज्ञमिमं तनोत्वरिष्टं, यज्ञ ॐ
समिमं दधातु। विश्वेदेवासऽइह मादयन्तामो3म्प्रतिष्ठ।-2-13
ॐ वरुणाय नमः। आवाहयामि, स्थापयामि, ध्यायामि।
गन्धाक्षतं, पुष्पाणि, धूपं, दीपं, नैवेद्यं समर्पयामि।
ॐ कलशस्थ देवताभ्यो नमः।

।।दीप पूजनम्।।

ॐ अग्निर्ज्योतिर्ज्योतिरर्ग्निः स्वाहा। सूर्यो ज्योतिर्ज्योतिः सूर्यः स्वाहा। अग्निर्वर्च्चो ज्योतिर्वर्च्चः स्वाहा। सूर्यो वर्च्चो ज्योतिर्वर्च्चः स्वाहा। ज्योतिः सूर्य्यः सूर्य्यो ज्योतिः स्वाहा।-3.9

।।देवावाहनम्।।

ॐ गुरुर्ब्रह्मा गुरूर्विष्णुः, गुरुरेव महेश्वरः।
गुरुरेव परब्रह्म, तस्मै श्री गुरुवे नमः ।।1।।
अखण्डमण्डलाकारं, व्याप्तं येन चराचरम्।
तत्पदं दर्शितं येन, तस्मै श्री गुरुवे नमः।।2।।

-गुरु गीता 43, 45

मातृवत् लालयित्री च, पितृवत् मार्गदर्शिका।
मनोऽस्तु गुरुसत्तायै, श्रद्धा-प्रज्ञायुता च या।।3।।
ॐ श्री गुरुवे नमः। आवाहयामि, स्थापयामि, ध्यायामि।
ॐ आयातु वरदे देवि ! त्र्यक्षरे ब्रह्मवादिनि।
गायत्रिच्छन्दसां मातः, ब्रह्मयोने नमोऽस्तु ते।।4।।

-संध्या प्रयोग


ॐ श्री गायत्र्यै नमः। आवाहयामि, स्थापयामि, ध्यायामि।


ततो नमस्कारं करोमि।


ॐ स्तुता मया वरदा वेदमाता, प्रचोदयन्तां पावमानी द्विजानाम्।
आयुः प्राणं प्रजां पशुं, कीर्तिं द्रविणं ब्रह्मवर्चसम्।
मह्यं दत्त्वा व्रजत ब्रह्मलोकम्।

-अथर्व. 19.71.1

अभीप्सितार्थसिद्ध्यर्थं, पूजितो यः सुरासुरैः।
सर्वविघ्नहरस्तस्मै, गणाधिपतये नमः।।5।।
सर्वमङ्गलमांगल्ये, शिवे सर्वार्थसाधिके !
शरण्ये त्र्यम्बके गौरि, नारायणि ! नमोऽस्तु ते।।6।।
शुक्लाम्बरधरं देवं, शशिवर्णं चतुर्भुजम्।
प्रसन्नवदनं ध्यायेत्, सर्वविघ्नोपशान्तये।।7।।
सर्वदा सर्वकार्येषु, नास्ति तेषाममंगलम्।
येषां हृदिस्थो भगवान्, मंगलायतनो हरिः।।8।।
विनायकं गुरुं भानुं, ब्रह्मविष्णुमहेश्वरान्।
सरस्वतीं प्रणौम्यादौ, शान्तिकार्यर्थसिद्धये।।9।।
मंगलं भगवान् विष्णुः मंगलं गरुणघ्वजः।
मंगलं पुण्डरीकाक्षो, मंगलायतनो हरिः।।10।।
त्वं वै चतुर्मुखो ब्रह्मा, सत्यलोकपितामहः।
आगच्छ मण्डले चास्मिन्, मम सर्वार्थसिद्यये।11।।
शान्ताकारं भुजगशयनं, पद्मनाभं सुरे्शं,
विश्वाधारं गगनसदृशं, मेघवर्णं शुभांगम्।
लक्ष्मीकान्तं कमलनयनं, योगिभिर्ध्यानगम्यं,
वन्दे विष्णुं भवभयहरं, सर्वलोकैकनाथम्।12।।
वन्दे देवमुमापतिं सुरगुरुं, वन्दे जगत्कारणम्,
वन्दे पन्नगभूषणं मृगधरं, वन्दे पशूनाम्पतिम्।
वन्दे सूर्यशशांकवह्निनयनं, वन्दे मुकुन्दप्रियम्,
वन्दे भक्त जनाश्रयं च वरदं, वन्दे शिवं शंकरम्।।13।।
ॐ त्र्यम्बकं यजामहे, सुगन्धिम्पुष्टिवर्धनम्।
उर्वारुकमिव बन्धनान्, मृत्योर्मुक्षीय माऽमृतात्।।14।। -3.60
दुर्गे स्मृता हरसि भीतिमशेषजन्तोः,
स्वस्थैः स्मृता मतिमतीव शुभां ददासि।
दारिद्र्यदुःखभयहारिणि का त्वदन्या,
सर्वोपकारकरणाय सदार्द्रचित्ता।।15।।
शुक्लां ब्रह्मविचारसारपरमाम्, आद्यां जगद्व्यापिनीं,
वीणापुस्तकधारिणीमभयदां, जाड्यान्धकारापहाम्।
हस्ते स्फाटिकमालिकां विदधतीं, पद्मासने संस्थिताम्,
वन्दे तां परमेश्वरीं भगवतीं, बुद्धिप्रदां शारदाम्।।16।।
आर्द्रां यः करिणीं यष्टिं, सुवर्णां हेममालिनीम्।
सूर्यां हिरण्यमयीं लक्ष्मीं, जातवेदो मऽआवह।।17।।





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