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आचार्य श्रीराम शर्मा >> युग संस्कार पद्धति

युग संस्कार पद्धति

श्रीराम शर्मा आचार्य

प्रकाशक : युग निर्माण योजना गायत्री तपोभूमि प्रकाशित वर्ष : 2006
पृष्ठ :24
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 4179
आईएसबीएन :000000

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युग संस्कार पद्धति....

Yug Sanskar Paddhati

प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश

प्राक्कथन

परम पूज्य गुरुदेव ने उज्जवल भविष्य की संरचना के लिए, सुसंस्कारी व्यक्तित्वों के निर्माण एवं विकास की अनिवार्य आवश्यकता बार-बार बतलायी है। व्यक्तित्व निर्माण के क्रम में धर्म तंत्र से लोकशिक्षण के अन्तर्गत संस्कार प्रक्रिया का असाधारण महत्त्व है। अभियान को गति देने के सूत्रों पर चर्चा करते हुए पूज्य गुरुदेव ने कहा था-

‘‘अगले ही चरण में समाज में संस्कार अभियान तीव्रतर होगा। समाज की माँग को पूरी करने के लिए बड़ी संख्या में संस्कार-सम्पन्न कराने वाले पुरोहितों की आवश्यकता पडे़गी। दैवी चेतना के प्रभाव से बड़ी संख्या में प्रतिभा-सम्पन्नों, भावनाशीलों में ऐसी उमंगे जागेंगी, जो उन्हें थोड़े या बहुत समय के लिए पुरोहितो के गरिमामय कार्य में प्रवृत्त होने के लिए बाध्य करेंगी। वे सांसारिक व्यस्तता, लोभ-मोह से ऊपर उठकर इस कार्य के लिए समय और श्रम लगायेंगे, किन्तु संस्कृत भाषा का पूर्वाभ्यास न होने से उन्हें प्रचलित पद्धति में कर्मकांड कराने में बाधा पड़ेगी। इस बाधा को दूर करके उत्पन्न होने वाली माँग के अनुरूप, बड़ी संख्या में सेवा भावी पुरोहितों को तैयार किया जा सकेगा।’’

उक्त उद्देश्यों की पूर्ति के लिए उन्होंने कर्मकाण्ड के लिए श्लोक-परक मंत्रों के स्थान पर सूत्र-मन्त्रों के प्रयोग की विधा पुन: विकसित कर दी। प्राचीन काल में सूत्र पद्धति बहुत लोकप्रिय रह चुकी है। कालान्तर में समय के प्रभाव से श्लोक पद्धति प्रचलन में आ गयी। अब युग की माँग के अनुरूप सूत्र पद्धति को पुन: स्थापित करना आवश्यक हो गया है। इसलिए पूज्य गुरुदेव ने अगले चरण के रूप में दीपयज्ञ तथा संस्कारों के लिए सूज्ञ पद्धति विकसित करके दी है।

प्रथम प्रयोग के रूप में सामूहिक दीप यज्ञों के लिए युग यज्ञ-पद्धति लोकप्रियता प्राप्त कर चुकी है। अब विवाह, अन्त्येष्टि एवं मरणोत्तर (श्राद्ध) संस्कारों के अतिरिक्त अन्य सभी संस्कारों को, सूत्र मंत्रों को प्रधानता देते हुए संक्षिप्त रूप में प्रस्तुत किया जा रहा है। आवश्यकता के अनुसार विवेकपूर्वक सुगम श्लोकों का प्रयोग भी उचित स्थानों पर किया गया है। प्रयुक्त श्लोक भी बहुत प्रचलित तथा उचित स्थानों पर किया गया है। प्रयुक्त श्लोक भी बहुत प्रचलित तथा सुगम हैं, इसलिए संस्कृत न जानने वाले सुशिक्षित परिजन भी थोड़े से अभ्यास से कर्मकाण्ड सम्पन्न करने में सफल होंगे।

क्रम व्यवस्था- कोई भी संस्कार कराने के लिए समय और परिस्थितियों के अनुरूप यज्ञ अथवा दीपयज्ञ के साथ संस्कार कराये जा सकते हैं। प्रारम्भ में क्रमश: मंगलाचरण, षट्कर्म, तिलक एवं रक्षा सूत्र के बाद कलशपूजन, देवपूजन, स्वस्तिवाचन आदि कर्मकाण्ड कराये जायें। इसके बाद संस्कार के विशेष कर्मकांड सम्पन्न करायें। प्रत्येक क्रिया से जुड़े सूत्र हिन्दी में समझाकर संस्कृत में दुहरवाये जायें, क्रिया के समय निर्धारित मंत्र बोले जायें। तदुपरान्त अग्रिस्थापन करवाकर गायत्री मंत्र की आहुतियाँ दी जायें। गायत्री मंत्र की आहुतियों के बाद 5 आहुतियाँ महामृत्युञजय मंत्र से दी जायें।

पूर्णाहुति के पूर्व संस्कार विशेष का संकल्प कराया जाए। प्रत्येक संस्कार के साथ जुड़े दायित्वों को पूरा करने का व्रत यजमान परिवार के परिजनों को दिलाये जाने की व्यवस्था संकल्प क्रम में रखी गयी है। संकल्प बुलवाकर पूर्णाहुति सम्पन्न करायी जाए। यदि दीप-यज्ञ है, तो संकल्प के अक्षत-पुष्प दीप पूजास्थली पर अर्पित कराये जायें। यज्ञ हो, तो संकल्प करवाकर उस दायित्व बोध के साथ पूर्णाहुति करायें। सभी संस्कारों में इसी प्रकार का क्रम रहेगा। इस विधा का प्रयोग शान्तिकुंज में शपथ समारोह के साथ प्रारम्भ कर दिया गया है। सूत्रों को दुहरायें जाने से संस्कार कराने वालों ने अन्तस् में अधिक उमंगें भी उठती हैं और सिद्धांतों को समझने-याद रखने में सुविधा होती है।

ब्रह्मवर्चस

पुंसवन संस्कार


(1) औषधि आवघ्राण

गर्भिणी दोनों हाथों में औषधि की कटोरी लेकर निम्रांकित सूत्रों का भाव समझते हुए, उन्हें दुहराये और इष्ट का ध्यान करे-

सूत्र- (क) ॐ दिव्यचेतनां स्वात्मीयां करोमि।

(हम दिव्य चेतना को आत्मसात् कर रहे हैं।)

(ख) ॐ भूयो भूयो विधास्यामि।

(यह क्रम आगे भी बनाये रखेंगे।) गर्भिणी औषधि को सूँघे, उस समय मंत्र बोला जाय-

मंत्र- ॐ विश्वानि देवसवितर्दुरितानि परासुव। यद् भद्रं तन्नऽ आसुव।।

(2) गर्भपूजन

घर की वयोवृद्ध महिला अथवा गर्भिणी का पति अक्षत-पुष्प लेकर सूत्र दुहराये-

सूत्र- ॐ सुसंस्काराय यत्नं करिष्ये।

(नवागन्तुक को सुसंस्कृत और समुन्नत बनायेंगे।)
सूत्र पूरा होने पर गायत्री मंत्र बोलते हुए वह पुष्प-अक्षत गर्भिणी के हाथ में दिया जाये, वह उसे अपने उदर से स्पर्श कराकर पूजा वेदी पर अर्पित करे।

(3) आश्वात्सना

पति, पत्नी के कंधे पर दाहिना हाथ रखे। सभी परिजन उस ओर हाथ उठायें, उनसे नीचे लिखे सूत्र दुहरवायें-

सूत्र- (क) ॐ स्वस्थां प्रसन्नां कर्तुं यतिष्ये।

(गर्भिणी को स्वस्थ और प्रसन्न रखने के लिए प्रयत्न करेंगे।)

(ख) ॐ मनोमालिन्यं नो जनयिष्यामि।

(परिवार में कलह और मनोमालिन्य न उभरने देंगे।)

(ग) ॐ स्वाचरणं अनुकरणीयं विधास्यामि।


(अपना आचरण-व्यवहार अनुकरणीय बनायेंगे।)
सूत्र पूरे होने पर प्रतिनिधि उन सब पर अक्षत-पुष्प छिड़कें और यह मन्त्र बोलें-

मन्त्र- ॐ स्वस्ति ! ॐ स्वस्ति !! ॐ स्वस्ति !!!

यहाँ यज्ञ-दीप यज्ञ की प्रक्रिया जोड़ें।

(4) चरू प्रदान

गर्भिणी दोनों हाथों में खीर की कटोरी पकड़े, मंत्र बोलने के बाद मस्तक से लगाये और उसे रख ले। बाद में उसे प्रसाद रूप में खा ले।

मन्त्र- ॐ पय: पृथिव्यां पयऽओषधीषु, पयो दिव्यन्तरिक्षे पयोधा:। पयस्वती प्रदिश: सन्तु मह्यम्।।

(5) संकल्प एवं पूर्णाहुति

परिवार के प्रमुख परिजन हाथ में अक्षत-पुष्प-जल लेकर संकल्प सूत्र दुहराते हुए पूर्णाहुति का क्रम संपन्न करें।


संकल्प मंत्र- अद्य......गोत्रोत्पन:......नामाहं पुंसवन संस्कार सिद्धयर्थं देवानां तुष्ट्यर्थं देवदक्षिणा अन्तर्गते-
दिव्यचेतनां स्वात्मीयां करिष्ये, सुसंस्काराय यत्नं करिष्ये, स्वस्थां प्रसन्नां कर्तुं यतिष्ये, मनोमालिन्यं नो जनयिष्यामि, स्वाचरणं अनुकरणीयं विधास्यामि, इत्येषां व्रतानां धारणार्थं संकल्पं अहं करिष्ये।

हाथ के अक्षत-पुष्प को पूर्णाहुति मंत्र बोलते हुये दीपक की थाली में एक स्थान पर चढ़ाया जाये। (शेष आरती आदि का क्रम समय के अनुसार संक्षिप्त या विस्तृत रूप में सम्पन्न कर लिया जाये।)

नामकरण संस्कार


(1) मेखला बन्धन

माता या पिता अपने हाथ में मेखला (बनी हुई करधनी या कलावा) लें और सूत्र दुहरायें-

सूत्र- ॐ स्फूर्तं तत्परं करिष्यामि।

(शिशु में स्फूर्ति और तत्परता बढ़ायेंगे।)

शिशु की कमर में सूत्र बाँधते हुए यह मंत्र बोला जाये-

मंत्र- ॐ गणानां त्वा गणपति ॐ हवामहे, प्रियाणां त्वा प्रियपति ॐ हवामहे, निधीनां त्वा निधिपति ॐ हवामहे, वसोमम। आहमजानि गर्भधमा त्वम जासि गर्भधम्।।

(2) मधुप्राशन

माता चम्मच में शहर लेकर सूत्र दुहरायें-

सूत्र- ॐ शिष्टतां शालीनतां वर्धयष्यामि।

(शिशु में शिष्टता-शालीनता की वृद्धि करेंगे।)
शिशु को शहद चटाते हुए यह मंत्र बोला जाये-

मंत्र- ॐ मंगलं भगवान् विष्णु, मंगलं गरुडध्वज:।
मंगलं पुण्डरीकाक्षो, मंगलायतनो हरि:।।

(3) सूर्य नमस्कार- पिता शिशु को गोदी में लेकर सूत्र दुहराये-
सूत्र- ॐ तेजस्वितां वर्धयिष्यामि। (शिशु की तेजस्विता में वृद्धि करेंगे।)
इसके बाद उसे सूर्य के प्रकाश में ले जायें। इस बीच गायत्री मंत्र का सस्वर पाठ चलायें।



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