लोगों की राय

आचार्य श्रीराम शर्मा >> युग यज्ञ पद्धति

युग यज्ञ पद्धति

श्रीराम शर्मा आचार्य

प्रकाशक : युग निर्माण योजना गायत्री तपोभूमि प्रकाशित वर्ष : 2005
पृष्ठ :32
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 4182
आईएसबीएन :0000

Like this Hindi book 4 पाठकों को प्रिय

305 पाठक हैं

युग यज्ञ पद्धति की विधि...

Yug Yagya Paddhati

प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश

विषय प्रवेश

युग निर्माण योजना के अंतर्गत-सद्भाव एवं सदविचार संवर्धन के लिए गायत्री साधना तथा सत्कर्म के विकास-विस्तार के लिए गायत्री यज्ञीय प्रक्रिया को आधार बनाकर, परम पूज्य गुरुदेव के प्रत्यक्ष मार्गदर्शन में एक जन-अभियान प्रारंभ किया गया था। दैवी अनुशासन एवं निर्देशों का पूरी तत्परता निष्ठा से पालन होने से, दैवी संरक्षण में यह अभियान आश्चर्यजनक गति से बढ़ता चला गया।

समय की माँग को ध्यान में रखकर यज्ञीय प्रक्रिया को अधिक सुगम तथा अधिक व्यापक बनाने के लिए अनेक कदम उठाये गये, जिनके कारण जन-जीवन में यज्ञीय भावना का प्रवेश कराने में पर्याप्त सफलता मिलती चली गयी। इसी क्रम में दीप यज्ञों का अवतरण हुआ, जो अत्यधिक प्रभावशाली एवं लोकप्रिय सिद्ध हुए। इसमें कम समय, कम श्रम तथा कम साधनों से भी बड़ी संख्या में व्यक्ति यज्ञीय जीवन पद्धति से जुड़ने लगे। दीपक-अगरबत्ती सभी धार्मिक स्थलों में प्रज्वलित होते हैं, इसलिए उस आधार पर सभी वर्गों के लोग बिना किसी झिझक के दीपयज्ञों में सम्मिलित होते रहते हैं।

कुण्डीय यज्ञ लम्बे समय तक कई पारियों में होते हैं। श्रद्धालु किसी एक पारी में ही शामिल होकर चले जाते हैं। प्रारंभ और अन्त के उपचारों से संबंधित प्रेरणाओं से अधिकांश लोग वंचित ही रह जाते हैं। दीप यज्ञों की सारी प्रक्रिया लगभग डेढ़ घंटे में पूरी हो जाती है। अस्तु, सम्मिलित होने वाले सभी जन पूरी प्रक्रिया का, यज्ञीय दर्शन एवं ऊर्जा का पूरा-पूरा लाभ प्राप्त करते हैं।
इस अभियान को और अधिक गति मिली, युग यज्ञ पद्धति से; जिसमें श्लोकों के स्थान पर संस्कृत सूत्रों का उपयोग किया गया।

शास्त्रों के निर्माण में श्लोक पद्धति और सूत्र पद्धति दोनों का उपयोग हुआ है। योग दर्शन, ब्रह्मसूत्र आदि ग्रंथ श्लोक पद्धति में नहीं, सूत्र पद्धति में ही हैं। समय की माँग के अनुरूप युग यज्ञ पद्धति सूत्र प्रधान है। समझने, बोलने, दुहराये जाने में सुगम होने के कारण यह पद्धति देश-विदेश में बहुत लोक प्रिय हुई। परिजनों ने आग्रह किया कि इस पद्धति को पहले छपी पद्धतियों की तरह भावनाओं-प्रेरणाओं एवं क्रिया निर्देशों को टिप्पणियों सहित छापा जाय, ताकि यज्ञ संपन्न कराने वाले के लिए अधिक प्रेरणा का लाभ मिल सके।

प्रस्तुत संस्करण इसी आवश्यकता की पूर्ति हेतु निकाला गया है। इसमें, प्रेरणा प्रकरण में दर्शन तथा महत्त्व प्रदर्शित किया गया है। इसका सारांश, समय और समुदाय के स्तर के अनुसार सुगम भाषा में समझाया जा सकता है। क्रिया और भावना सम्बन्धी निर्देशों का उपयोग विवेकपूर्वक करते हुए जन-जन को यज्ञीय जीवन प्रक्रिया के साथ जोड़ा जा सकता है।
कार्यक्रम में भाग लेने वाले, हर कर्मकाण्ड की प्रेरणा सुनने-समझने के बाद जब सूत्रों को स्वयं दोहराते हैं, तो वे भाव उनके अपने संकल्प के रूप में मानस में स्थान बना लेते हैं। इस प्रकार सुगमता से जन-जीवन में मानवीय आदर्शों की स्थपना होती चलती है।

कोई भी सुनिश्चित लोकसेवी मानस के कार्यकर्त्ता, दो-चार दिन के अभ्यास से ही इस विधि से यज्ञ संचालन की कुशलता प्राप्त कर सकते हैं। इसके माध्यम से जन मानस के परिष्कार के अभियान को तीव्रगति से व्यापक बनाया जाना संभव है।

ब्रह्मवर्चस

पूर्व व्यवस्था


दीप यज्ञ के लिए श्रद्धालु याजकों को तैयार किया जाए। उन्हें समझाया जाय कि समस्याओं के विनाशकारी बादलों को छाँटने के लिए, उज्ज्वल भविष्य की संरचना के लिए स्थूल प्रयासों के साथ-साथ आध्यात्मिक-भावनात्मक पुरुषार्थ भी आवश्यक है। सभी धर्मों में सामूहिक प्रार्थना, सामूहिक साधनात्मक प्रयोगों को अधिक प्रभावशाली माना गया है। मनुष्यता को विनाश से बचाकर उज्ज्वल भविष्य की ओर ले जाने के लिए ईश्वरीय संकल्प उभरा है। अपनी आत्म चेतना, भावना, विचारणा और कार्यकुशलता को ईश्वरीय प्रयोजन के साथ जोड़ने के लिए ही दीपयज्ञ का सामूहिक आध्यात्मिक प्रयोग किया जाता है। हर भावनाशील, विचारशील, जनहित चाहने वाले इसमें भावनापूर्वक भाग लेना चाहिए।

दीप यज्ञ की विशालता अथवा सफलता का मूल्यांकन दीपकों की संख्या से नहीं, भगवान् के साथ साझेदारी की भावना से जुड़ने वाले याजकों की संख्या के आधार पर किया जाना चाहिए। दीपयज्ञ में सम्मिलित होने के लिए व्यक्तिगत सम्पर्क द्वारा नर-नारियों को उद्देश्य समझाकर, भावनाएँ जगाकर सम्मिलित होने के लिए प्रेरित करना चाहिए। घरेलू-मोहल्ला स्तर के छोटे कार्यक्रमों में केवल चर्चा करने से काम चल जाता है, बड़े कार्यक्रमों के लिए अपना उद्देश्य प्रकट करने वाले पर्चे छपवाकर बाँटने, याजक संकल्प पत्र भरवाने की व्यवस्था करना अच्छा रहता है। संकल्प पत्रों के आधार पर बाद में संपर्क करके उन्हें सक्रिया बनाना सुगम हो जाता है।

आयोजन की सफलता के लिए विशेष जप, गायत्री मंत्र लेखन, चालीसा पाठ आदि कराना अच्छा रहता है। इससे भावनात्मक एकता बढ़ती है। आत्म विकास और आत्म परिष्कार के लाभ तो इतने व्यापक हैं कि कालान्तर में लो उनसे अपने को धन्य हुआ ही अनुभव करते हैं।

दीप यज्ञ घरों में, पारिवारिक छोटे स्तर से लेकर नगर एवं क्षेत्रीय स्तर तक के विशाल रूप में किये जा सकने में सुविधाजनक है। लोगों में उत्साह हो, तो हर याजक अपने साथ दीपक एवं अगरबत्ती (स्टैण्ड सहित) एक थाली या तश्तरी में रखकर ला सकता है। साथ ही रोली, अक्षत एवं फूल भी हों।

यदि ऐसा संभव नहीं, तो आयोजन की विशालता के अनुरूप संख्या में यदि दीप एवं अगरबत्तियाँ मंच पर अथवा चौकियों-मेजों पर एक साथ सजाकर रखने की व्यवस्था की जाए। उन्हें इस ढंग से सजाया जाए कि प्रज्वलित होने पर सब लोग उन्हें देख सकें। सम्मिलित होने वालों की संख्या के अनुसार, व्यवस्था के लिए चुने हुए स्वयं सेवक तैयार रखे जायें। संचालक के निर्देशों के अनुरूप ठीक समय पर ठीक क्रिया करने का प्रशिक्षण पहले से ही दे दिया जाय। समुचित संख्या में सिंचन के लिए पात्र, रोली, अक्षत, पुष्प, कलावा आदि रखे जायें। उनके उपयोग का सही समय और सही ढंग स्वयं सेवकों को समझा दिया जाए। ऐसा करने से कर्मकाण्ड का प्रवाह टूटता नहीं और वातावरण अधिक प्रभावशाली बन जाता है।
प्रारम्भ में एकाध कीर्तन या गीत करवा कर, वातावरण में शान्ति एवं सरसता पैदा करके कर्मकाण्ड प्रारम्भ करना अच्छा रहता है। प्रेरणाप्रद टिप्पणियों, गीतों, क्रिया निर्देशों तथा कर्मकाण्ड आदि का विस्तार समय और परिस्थितियों के अनुरूप विवेक के आधार पर किया जाए। पुस्तिका में आवश्यक सूत्र-संकेत दिये गये हैं। समय और वातावरण के अनुरूप उनका संक्षेप या विस्तार किया जा सकता है। ध्यान रखा जाए कि विवेचन लम्बे या नीरस न होने पायें। यज्ञ के अनुरूप भावनात्मक प्रवाह बना रहे।


1.    पवित्रीकरणम्



1-1. प्रेरणा-यज्ञ

शुभकार्य है, देवकार्य है। यज्ञ के प्रयोग में आने वाली हर वस्तु शुद्ध और पवित्र रखी जाती है। देवत्व से जुड़ने की पहली शर्त पवित्रता ही है। हम देवत्व से जुड़ने के लिए, देव कार्य करने योग्य बनने के लिए मंत्रों और प्रार्थना द्वारा, भावना, विचारणा एवं आचरण को पवित्र बनाने की कामना करते हैं।

1-2. क्रिया और भावना-

सभी लोग कमर सीधी करके बैठे। दोनों हाथ गोद में रखें। आँखें बन्द करके ध्यान मुद्रा में बैठें।
- अब मंत्रों सहित जल सिंचन होगा। भावना करें कि हम पर पवित्रता की वर्षा हो रही है।

- हमारा शरीर धुल रहा है-    आचरण पवित्र हो रहा है।
- हमारा मन धुल रहा है-       विचार पवित्र हो रहे हैं।
- हमारा हृदय धुल रहा है-     भावनाएँ पवित्र हो रही हैं।

   

प्रथम पृष्ठ

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book

A PHP Error was encountered

Severity: Notice

Message: Undefined index: mxx

Filename: partials/footer.php

Line Number: 7

hellothai