आचार्य श्रीराम शर्मा >> आत्मीयता का माधुर्य और आनंद आत्मीयता का माधुर्य और आनंदश्रीराम शर्मा आचार्य
|
3 पाठकों को प्रिय 380 पाठक हैं |
आत्मीयता का माधुर्य और आनंद
Aatmeeyta Ka Madhurya Aur Anand a hindi book by Sriram Sharma Acharya -
सघन आत्मीयता : संसार की सर्वोपरि शक्ति
संसार में दो प्रकार के मनुष्य होते हैं, एक वे जो शक्तिशाली होते हैं, जिनमें अहंकार की प्रबलता होती है। शक्ति के बल पर वे किसी को भी डरा धमकाकर वश में कर लेते हैं। कम साहस के लोग अनायास ही उनकी खुशामद करते रहते हैं, किंतु भीतर-भीतर उन पर सभी आक्रोश और घृणा ही रखते हैं। उसकी शक्ति घटती दिखाई देने पर लोग उससे दूर भागते हैं, यही नहीं कई बार अहंभाव वाले व्यक्ति पर घातक प्रहार भी होता है और वह अंत में बुरे परिणाम भुगतकर नष्ट हो जाता है। इसलिए शक्ति का अहंकार करने वाला व्यक्ति अंततः बड़ा ही दीन और दुर्बल सिद्ध होता है।
एक दूसरा व्यक्ति भी होता है-भावुक और करुणाशील। दूसरों के कष्ट, दुःख, पीड़ाएँ देखकर उसके नेत्र तुरंत छलक उठते हैं। वह जहाँ भी पीड़ा, स्नेह का अभाव देखता है वहीं जा पहुँचता है और कहता है, लो मैं आ गया और कोई हो न हो तुम्हारा मैं जो हूँ। मैं तुम्हारी सहायता करूँगा तुम्हारे पास जो कुछ नहीं, वह मैं दूंगा। उस करुणापूरित अंतःकरण वाले मनुष्य के चरणों में संसार अपना सब कुछ न्यौछावर कर देता है। इसलिए वह कमजोर दिखाई देने पर भी बड़ा शक्तिशाली होता है। यही वह रचनात्मक भाव है जो आत्मा की अनंत शक्तियों को जाग्रत कर उसे पूर्णता के लक्ष्य तक पहुँचा देता है। इसीलिए विश्व-प्रेम को ही भगवान् की सर्वश्रेष्ठ उपासना के रूप में प्रतिष्ठित किया गया है।
जीवन के संदरतम रूप की यदि कुछ अभिव्यक्ति हो सकती है तो वह प्रेम में ही है, पर उसे पाने और जाग्रत करने का यह अर्थ नहीं होता कि मनुष्य सुख और मधुरता में ही विचरण करता रहे। वरन् उसे कष्ट, सहिष्णुता और उन वीरोचित प्रयत्नों का जागरण करना भी अनिवार्य हो जाता है, जो प्रेम की रक्षा और मर्यादा के पालन के लिए अनिवार्य होते हैं। प्रेम का वास्तविक आनंद तभी मिलता है।
प्रेम संसार की ज्योति है और सब उसी के लिए संघर्ष करते रहते हैं। सच्चा समर्पण भी प्रेम के लिए होता है, इसीलिए यह जान पड़ता है कि विश्व की मूल रचनात्मक शक्ति यदि कुछ होगी तो वह प्रेम ही होगी और जो प्रेम करना नही सीखता, उसे ईश्वर की अनुभूति कभी नहीं हो सकती। तुलनात्मक अध्ययन करके देखें तो भी यही लगता है कि परमेश्वर की सच्ची अभिव्यक्ति ही प्रेम है और प्रेम भावनाओं का विकास कर मनुष्य परमात्मा को प्राप्त कर सकता है। प्रेम से बढ़कर जोड़ने वाली (योग) शक्ति संसार में और कुछ भी नहीं है।
|
- सघन आत्मीयता : संसार की सर्वोपरि शक्ति
- प्रेम संसार का सर्वोपरि आकर्षण
- आत्मीयता की शक्ति
- पशु पक्षी और पौधों तक में सच्ची आत्मीयता का विकास
- आत्मीयता का परिष्कार पेड़-पौधों से भी प्यार
- आत्मीयता का विस्तार, आत्म-जागृति की साधना
- साधना के सूत्र
- आत्मीयता की अभिवृद्धि से ही माधुर्य एवं आनंद की वृद्धि
- ईश-प्रेम से परिपूर्ण और मधुर कुछ नहीं