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आचार्य श्रीराम शर्मा >> अध्यात्म चेतना का ध्रुव केन्द्र देवात्मा हिमालय

अध्यात्म चेतना का ध्रुव केन्द्र देवात्मा हिमालय

श्रीराम शर्मा आचार्य

प्रकाशक : युग निर्माण योजना गायत्री तपोभूमि प्रकाशित वर्ष : 2001
पृष्ठ :64
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 4197
आईएसबीएन :0000

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अध्यात्म चेतना का ध्रुव केन्द्र


दशरथ और अर्जुन के देवलोक जाकर वहाँ वालों की सहायता करने, असुरों को परास्त करने की कथाएँ प्रख्यात हैं। नारद जी अक्सर विष्णु लोक जाकर भगवान् से परामर्श किया करते थे। नहुष, ययाति आदि ने सशरीर स्वर्ग जाने का प्रयत्न किया था। युधिष्ठिर का स्वर्ग ले जाने के लिए देवयान आया था। इसी प्रकार देवताओं का भी मनुष्यों के अनेक कार्यों में सहयोग रहा है। कुन्ती के पुत्र देव-पुत्र ही थे। शकुन्तला की माँ देवलोक से पृथ्वी पर उतर कर विश्वामित्र के संयोग से उसे जन्म दे गई थी। पाण्डव अन्त-समय में सशरीर स्वर्गारोहण के लिए अग्रसर हुए थे।

इन कथा-गाथाओं को यदि मिथक मानकर सन्तोष न कर लिया जाए और धरती पर स्वर्ग होने की बात पर ध्यान जुटाया जाए, तो इसी निश्चय पर पहुँचना पड़ता है कि हिमालय का देवात्मा भाग कभी अति पुरातन काल में स्वर्ग भी रहा है। देवता सुमेरु पर्वत पर रहते थे। उनके उद्यान का नाम नन्दन वन था। यह दोनों ही इसी नाम से उपरोक्त क्षेत्र में अभी भी विद्यमान हैं। सुमेरु को स्वर्ण-पर्वत कहा गया है। उस शिखर पर अधिकांश समय सूर्य की पीली किरणें पड़ती हैं। अस्तु, बरफ सुनहरी दिखती है-स्वर्ण की बनी जैसी प्रतीत होती है। अब भू-भाग नीचे आ गया है, पर्वत ऊँचे हो गये। शीत की अधिकता बढ़ी, संभवतः इसी कारण देवताओं ने वह क्षेत्र अपने लिए उपयोगी न समझा हो और कारण शरीरों में अन्तरिक्ष क्षेत्र में रहने लगे हों। अपना स्थान सिद्ध पुरुषों के लिए स्थानान्तरित कर दिया हो।

जो हो यहाँ चर्चा सिद्ध पुरुषों के संबंध में अभीष्ट है। उनके लिए यह स्थान सर्वथा उपयुक्त भी है। पूर्ववर्ती देव निवास होने के कारण उसकी सत्पात्रता, सुसंस्कारिता भी बढ़ी-चढ़ी है। फिर धरातल की परिस्थितियों को दूर-दूर तक देखने, समझने की क्षमता भी। धरती की निचली पर्तों पर हवा में उड़ने वाला कचरा तह बनाकर बैठता रहता है। इसी प्रकार जिन स्थानों की समुद्र सतह से ऊँचाई कम हो वहाँ स्वस्थता और सम्पन्नता के साधन घटते जाते हैं। सौन्दर्य सद्भाव भी अपेक्षाकृत कम होता है। जैसे-जैसे ऊँचाई बढ़ती जाती है, वैसे-वैसे भूमि की उर्वरता और प्राणियों की प्रतिभा का विकास हुआ दृष्टिगोचर होता हैं। इस दृष्टि से हिमालय के ऊँचाई वाले क्षेत्र में जहाँ प्राकृतिक सौन्दर्य की भरमार है, वहाँ स्वास्थ्य संरक्षक तत्त्व भी कम नहीं हैं। साधन सम्पन्न लोग गर्मी के दिनों में पहाड़ों पर अपनी निवास व्यवस्था बनाते हैं। जो अधिक समय वहाँ ठहरने की स्थिति में नहीं हैं, वे उस क्षेत्र में सैर-सपाटे के लिए निकलते हैं। कितने ही सेनेटोरियम पहाड़ी क्षेत्र में बने हैं। जिसमें क्षय जैसे कष्ट साध्य रोगों के रोगी रोग-मुक्ति का लाभ प्राप्त करते हैं। सम्पन्न लोगों के विद्यालय भी देहरादून, मँसूरी, नैनीताल, अलमोड़ा जैसे स्थानों में बने हैं, ताकि छात्र विद्या प्राप्ति के अतिरिक्त प्रकृति सान्निध्य एवं उपयुक्त जलवायु के सहारे शारीरिक एवं मानसिक स्वास्थ्य की अभिवृद्धि कर सकें। पहाड़ी क्षेत्र में निर्धनता रहते हुए भी वहाँ के निवासियों में सहनशीलता एवं सज्जनता की मात्रा अन्य स्थानों की अपेक्षा कम नहीं, अधिक ही पाई जाती हैं।

तीर्थयात्रा की धर्म भावना से प्रेरित होकर अब धर्म प्रेमी अन्यान्य भीड़ भरे नगरों में देवदर्शन के लिए जाने की अपेक्षा उत्तराखण्ड की दिशा अधि क उत्साहपूर्वक पकड़ने लगे हैं। अब से १०० वर्ष पहले मुश्किल से ५ हजार यात्री उस क्षेत्र में जाते थे, पर अब उसकी संख्या २० लाख से अधिक होती हैं। यह प्रमाण बताते हैं कि मानसिक शान्ति की दृष्टि से जन साधारण के लिए भी देवात्मा हिमालय वाला भाग कितना उत्साहवर्धक और आनन्ददायक है।



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    अनुक्रम

  1. अध्यात्म चेतना का ध्रुव केन्द्र देवात्मा हिमालय
  2. देवात्मा हिमालय क्षेत्र की विशिष्टिताएँ
  3. अदृश्य चेतना का दृश्य उभार
  4. अनेकानेक विशेषताओं से भरा पूरा हिमप्रदेश
  5. पर्वतारोहण की पृष्ठभूमि
  6. तीर्थस्थान और सिद्ध पुरुष
  7. सिद्ध पुरुषों का स्वरूप और अनुग्रह
  8. सूक्ष्म शरीरधारियों से सम्पर्क
  9. हिम क्षेत्र की रहस्यमयी दिव्य सम्पदाएँ

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