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आचार्य श्रीराम शर्मा >> अध्यात्म चेतना का ध्रुव केन्द्र देवात्मा हिमालय

अध्यात्म चेतना का ध्रुव केन्द्र देवात्मा हिमालय

श्रीराम शर्मा आचार्य

प्रकाशक : युग निर्माण योजना गायत्री तपोभूमि प्रकाशित वर्ष : 2001
पृष्ठ :64
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 4197
आईएसबीएन :0000

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अध्यात्म चेतना का ध्रुव केन्द्र


इसी अवधि में उनका एक कार्य और भी होता है- वंश वृद्धि। वे भी परब्रह्म की तरह एक से अनेकों को अपने सदृश बनाना चाहते हैं। अपने संचित अनुदानों का एक बड़ा अंश उन्हें प्रदान भी करते रहे हैं। अभिभावक यही करते हैं। संतान पर अपना समय-मनोयोग एवं वैभव निःसंकोच लुटाते हैं। अल्प समर्थों को अति समर्थ बनाने के लिए प्रयत्नशील रहते हैं। हर पिता अपनी संतान को अपने ही सदृश तथा अपने से भी अधिक बढ़ा-चढ़ा देखना चाहता है। अभिभावकों और सन्तान के बीच इसी आधार पर आदान-प्रदान चलता रहता है और कई सौभाग्यशाली उत्तराधिकारियों को सहज ही धनाध्यक्ष बनने की तरह सिद्ध पुरुषों के अनुग्रह से वह असाधारण क्षमताएँ एवं सफलताएँ प्राप्त कर लेते हैं, जो निजी प्रयत्नों से कदाचित् ही उपलब्ध हो पाता है।

सिद्ध पुरुषों की अनुकम्पा-सहायता प्राप्त करने के लिए कितने ही लोग लालायित फिरते हैं। उनके दर्शन करने और चमत्कार देखने के लिए आतुर फिरते हैं। इसके लिए वन, पर्वतों की खाक छानते हैं, पर ऐसे लोगों को असफलता ही मिलती है; क्योंकि दिव्यदर्शी सिद्ध पुरुष घट-घट को जान लेते हैं। उनका क्षुद्र मनोरथ ऐसा होता है जिसे परखने में उन्हें तनिक भी कठिनाई नहीं होती। वे मदारी के हाथ की कठपुतली बनने में अपना अपमान अनुभव करते हैं। फिर क्षुद्रजनों के मनोरंजन या कामनापूर्ति के लिए ये क्यों अपना तप या समय खराब करें। वे भली प्रकार जानते हैं कि उन्हें अपना बहुमूल्य अनुग्रह किस व्यक्ति को किस काम के लिए प्रदान करना है। ऐसे सत्पात्रों को वे स्वयं तलाशते फिरते हैं। जहाँ खिला कमल दीखता है उस पर भौरों की तरह वे स्वयं जा पहुँचते हैं। उद्देश्य स्पष्ट है प्रामाणिक प्रतिभावानों को सत्प्रवृत्ति सम्बर्धन में जुटाने के लिए आवश्यक सहयोग प्रदान करना। यह हर किसी से करते नहीं बन पड़ता। जिनने पहले से ही अपने चिन्तन, चरित्र और व्यवहार को उदार, साहसिकता से ओत-प्रोत कर रखा है, जिनने संयम साधा है, लोभ, मोह, अहंकार से छुटकारा पाया है, उन निस्पृह व्यक्तियों से ही यह आशा की जा सकती है कि लोकमंगल की साधना में निरत हो सकेंगे। पुण्य प्रयोजनों के लिए अपने श्रम, समय, मनोयोग एवं साधनों को लगायेंगे। इस स्तर की उत्कृष्ट प्रामाणिकता को सिद्ध करने में जिन्होंने अनेकों बार अग्नि परीक्षाएँ उत्तीर्ण करने के प्रमाण प्रस्तुत किये हैं। उन्हें ही देव पुरुष दिव्य प्रयोजनों के लिए वरण करते हैं। दर्शन या अनुग्रह उन्हें ही प्रदान करते हैं। करने के बाद यह भी देखते रहते हैं कि जो दिया गया है वह पुण्य प्रयोजनों में लगा या नहीं। जिन्हें मात्र स्वार्थ ही नशे की तरह सवार है, उनकी क्षुद्रता दुर्गन्ध की तरह उड़ती रहती है और किसी सिद्ध पुरुष के समीप पहुँचने पर उसे समीप नहीं आने देती। हेय मनोभूमि के लोग ललक-लिप्साओं की पूर्ति के लिए सिद्ध पुरुषों को अपने चंगुल में फँसाने के लिए बहेलियों की तरह जाल सजाये फिरते हैं; पर वे राजहंस परमहंस ऐसे हैं, जो यह भली-भाँति जानते हैं कि कुपात्रों और सुपात्रों की सहायता करने पर उसके क्या बुरे–भले परिणाम होते हैं। कुपात्रों के हाथ पहुँची दिव्य शक्ति वैसे ही विग्रह खड़े करती है, जैसे कि भस्मासुर, मारीच, रावण, हिरण्यकश्यप, महिषासुर आदि के हाथों सिद्धियाँ पहुँचने में अनर्थ खड़े हुए हैं। सिद्धों को तलाशने के लिए जहाँ-तहाँ मारे-मारे फिरने वाले निश्चित रूप से खाली हाथ लौटते हैं। वे असफलता के उपहास से बचने के लिए मन गढ़त झूठे उपाख्यान गढ़ लेते हैं और भोले-भावुक जनों पर अपनी धाक जमाने के लिए उन मन गढ़तों का प्रचार करते हैं कि उनकी अमुक क्षेत्र में किन्हीं सिद्ध आत्माओं से भेंट हुई। उनने यह दिया, यह कहा आदि। ऐसी मन गढ़त बातें अनेकों के मुँह सुनी जाती हैं, और किम्वदन्ती के रूप में जहाँ-तहाँ प्रचारित होते हैं। इनकी सच्चाई जाँचने के लिए एक कसौटी है कि भेंट करने वाला उत्कृष्ट चरित्र का विशिष्ट व्यक्तित्व सम्पन्न था या नहीं। उसने दिव्य अनुग्रह को पाकर लोक मंगल के लिए कोई महत्त्वपूर्ण त्याग, पुरुषार्थ किया या नहीं।


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    अनुक्रम

  1. अध्यात्म चेतना का ध्रुव केन्द्र देवात्मा हिमालय
  2. देवात्मा हिमालय क्षेत्र की विशिष्टिताएँ
  3. अदृश्य चेतना का दृश्य उभार
  4. अनेकानेक विशेषताओं से भरा पूरा हिमप्रदेश
  5. पर्वतारोहण की पृष्ठभूमि
  6. तीर्थस्थान और सिद्ध पुरुष
  7. सिद्ध पुरुषों का स्वरूप और अनुग्रह
  8. सूक्ष्म शरीरधारियों से सम्पर्क
  9. हिम क्षेत्र की रहस्यमयी दिव्य सम्पदाएँ

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