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आचार्य श्रीराम शर्मा >> सतयुग की वापसी

सतयुग की वापसी

श्रीराम शर्मा आचार्य

प्रकाशक : युग निर्माण योजना गायत्री तपोभूमि प्रकाशित वर्ष : 2005
पृष्ठ :32
मुखपृष्ठ :
पुस्तक क्रमांक : 4237
आईएसबीएन :0000

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उज्जवल भविष्य की संरचना....

Satyug Ki Vapsi

प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश


इस सदी के समापन वेला में अब तक हुई प्रगति के बाद एक ही निष्कर्ष निकलता है कि संवेदना का स्रोत तेजी से सूखा है, मानवी अंतराल खोखला हुआ है। भाव संवेदना जहाँ जीवंत-जाग्रत होती है वहाँ स्वतः ही सतयुगी वातावरण विनिर्मित होता चला जाता है। भाव संवेदना से भरे पूरे व्यक्ति ही उस रीति-नीति को समझ पाते हैं, जिसके आधार पर संपदाओं का, सुविधाओं का सदुपयोग बन पाता है।

समर्थताः कुशलता और सम्पन्नता आए दिनों जय-जयकार होती देखी जाती है। यह भी सुनिश्चित है कि इन्हीं तीन क्षेत्रों में फैली अराजकता ने वे संकट खड़े किये हैं , जिनसे किसी प्रकार उबरने के लिए के लिए व्यक्ति और समाज छटपटा रहा है। इन तीनों से ऊपर उठकर एक चौथी शक्ति है-भाव संवेदना। यह दैवी अनुदान के रूप में जब मनुष्य की स्वच्छ अंतरात्मा पर उतरती है तो उसे निहाल बनाकर रख देती है। इस एक के आधार पर ही अनेकानेक दैवी तत्व उभरते चले जाते हैं।

सतयुग की वापसी इसी संवेदना के जागरण, करुणा के उभार से होगी। बस एक ही विकल्प इन दिनों है-भाव संवेदना का जागरण। उज्जवल भविष्य का यदि कोई सुनिश्चित आधार है तो वह एक ही है कि जन-जन की भाव संवेदनाओं को उत्कृष्ट आदर्श और उदात्त बनाया जाए। इसी से यह विश्व उद्यान हरा-भरा, फला, फूला व संपन्न बन सकेगा।

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