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आचार्य श्रीराम शर्मा >> क्या धर्म ? क्या अधर्म ?

क्या धर्म ? क्या अधर्म ?

श्रीराम शर्मा आचार्य

प्रकाशक : युग निर्माण योजना गायत्री तपोभूमि प्रकाशित वर्ष : 2006
पृष्ठ :48
मुखपृष्ठ :
पुस्तक क्रमांक : 4258
आईएसबीएन :00000

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धर्म और अधर्म पर आधारित पुस्तक....


सत् का अर्थ है अस्तित्व, चित् का अर्थ ज्ञान और आनन्द का अर्थ सुख है। अपने अस्तित्व की उन्नतिमें, अपने ज्ञान की वृद्धि में, अपने सुख को बढ़ाने में ही सब लोग लगे हुए हैं। मनोविज्ञान शास्त्र के फ्रांसीसी पण्डित सारेन्सस ने मानवप्रवृत्तियों का विश्लेषण करते हुए बताया है कि- (1) शरीर और मन का सुख प्राप्त करने, (2) आत्म-रक्षा, (3) अपने को सबके सामने प्रकट करने, (4) बड़प्पनपाने, (5) समूह इकट्ठा करने, (6) गुप्त विषयों को जानने, (7) विपरीत योनि से (पुरुष स्त्री से, स्त्री पुरुष से) घनिष्ठता रखने, (8) साहस करने कीइच्छाओं में प्रेरित होकर ही मनुष्य अनेक प्रकार के कार्यकरता है। अर्थात मनुष्य को जितने भी कार्य करते हुए देखते हैं वे सबइन्हीं इच्छाओं के फल मात्र होते हैं।

इन आठ वृत्तियों का विभाजन हम इस प्रकार किए देते हैं-


अस्तित्व-उन्नति के अन्तर्गत- (1) आत्म-रक्षा, (2 ) अपने को प्रकट करना (कीर्ति), (3) बड़प्पन प्राप्त करना।

ज्ञान वृद्धि के अन्तर्गत - (1) गुप्त विषयों को जानना, (2) समूह इकट्ठा करना।

आनन्द बढ़ाने के अन्तर्गत - (1) शरीर और मन का सुख, (2) साहस, (3) विपरीत योनि से घनिष्ठता।

अब विचार कीजिए कि मनुष्य के समस्त कार्य इस सीमा में आ जाते हें कि नहीं। हिंसक, दस्युआक्रमणकारियों से, आपत्ति से बचने के लिए लोग घर बनाते, बस्तियों मे रहते, शस्त्र रखते, डरते, छिपते, भागते, वैद्यों, डाक्टरों के पास जाते, राज्यनिर्माण करते, देवी-देवताओं की सहायता लेते, युद्ध करते तथा अन्यान्य ऐसे प्रयत्न करते हैं, जिससे आत्म-रक्षा हो, अधिक दिन जियें, मृत्यु से दूररहें। कीर्ति के लिए लोकप्रिय बनना, फैशन बनाना, भाषण देना, अपने विचार छापना, लोगों का ध्यान अपनी ओर खींचने वाले शब्द अथवा प्रदर्शन करना आदिकार्य किए जाते हैं। गौरव के लिए नेता बनना, अपने संरक्षण में छोटे लोगों को लेना, ओहदा प्राप्त करना, सम्पत्तिवान, बलवान बनना, राज्य सम्पत्तिपाना, गुरु बनना, अपने को पदवीधारी, ईश्वर भक्त, धर्म प्रचारक प्रकट करना आदि कृत्य होते हैं। इस प्रकार आत्मरक्षा, कीर्ति और गौरव प्राप्त करकेआत्म- विश्वास, आत्म-सन्तोष, आत्म-उन्नति का उद्योग किया जाता है।

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