आचार्य श्रीराम शर्मा >> मरने के बाद हमारा क्या होता है ? मरने के बाद हमारा क्या होता है ?श्रीराम शर्मा आचार्य
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मरने का स्वरूप कैसा होता है....
परलोक कैसा है ?
यह अन्यत्र बताया गया है कि परलोक का दूरी से कुछ भी संबंध नहीं है। 'क्ष' किरणें (X-Rays) ठोसपदार्थों को चीरती हुई पार हो जाती हैं। हमें दीवार का परदा तोड़ना मुश्किल मालूम पड़ता है, पर 'क्ष' किरणों के लिए यह परदा कुछ नहीं केबराबर है। गरमी और सरदी का प्रभाव बहुत अंशों में बाहरी प्रतिबंधों को तोड़कर भीतर चला जाता है, इसी प्रकार सूक्ष्म तत्त्वों के लिए स्थूलवस्तुओं के कारण कुछ बाधा नहीं पड़ती। हवा का समुद्र पृथ्वी के चारों ओर भरा हुआ है, पर हम उसे चीरते हुए जहाँ फिरते हैं, हमें वह भान भी नहींहोता कि हम हवा के बीच में इसी प्रकार भागदौड़ कर रहे हैं, जैसे-पानी में मछली। संभव है कि मछली भी पानी में ऐसे ही स्वतंत्र घूमती हो, जैसे हम हवाके समुद्र में घूमते हैं। मृत आत्माएँ सूक्ष्मतत्त्वों की बनी हुई हैं, इसलिए वे ईथर-तत्त्व की भाँति चाहे जहाँ आ-जा सकती हैं। उसके निवासीस्वेच्छानुसार चाहे जहाँ भूमि, जल, पर्वत, ग्रह, नक्षत्र आदि के बीचों बीच या ऊपर-नीचे भी रह सकते हैं और अपने रहने के लिए सब प्रकार की सुविधाएँवहाँ उत्पन्न कर सकते हैं।
यह जानना चाहिए कि मृत प्राणी के साथ उसके विचार स्वभाव, विश्वास और अनुभव भी जाते हैं।घरों में रहने, कपड़े पहनने, भोजन करने आदि की क्रियाएँ जीवित मनुष्यों को जीवन भर करनी पड़ती हैं, इसलिए उनके यह विश्वास सुदृढ़ हो जाते हैं। यहबात एक साधारण मनुष्य के विचारों के बाहर की है कि कोई मनुष्य बिना घर, वस्त्र और भोजन के भी रह सकता है। जैसे विश्वासों के कारण सूक्ष्मशरीर औरइंद्रियाँ उत्पन्न हो जाती हैं वैसे ही विश्वासों के आधार पर परलोकवासी के लिए गह-वस्त्र, आहार-विहार की भी व्यवस्था हो जाती है। वे समझते हैं कि हमघरों में रहते हैं, कपड़े पहनते हैं और भोजन करते हैं। यह सब पदार्थ उनकी भावना स्वरूप होते हैं। यदि कोई परमहंस संन्यासी निर्जन वन में वस्त्ररहित और कंदमूल फल खाकर निर्वाह करता हो तो उसका परलोक भी वैसा ही होगा। भूत-प्रेत किन्हीं विशेष स्थानों पर ठहर जाते हैं किंतु साधारण क्रम केअनुसार चलने वाले प्राणी स्थान संबंधी बंधन में नहीं बँधते। वे एक स्थान पर रहते हैं, किंतु वह स्थान चाहे जहाँ हो सकता है।
स्त्री और पुरुष का लिंग-भेद बना रहता है। विश्वासों के आधार पर यह भी निर्भर है, जो पुरुषस्त्री भावना का आचरण करते हैं या जो स्त्रियाँ पुरुष भाव को हृदयंगम करती हैं, वे कुछ काल नपुंसक की दशा में रहकर लिंग-परिवर्तन कर लेते हैं औरअगला जन्म परिवर्तित भावना के अनुसार होता है। यह अपवाद है। साधारणतः लिंग-परिवर्तन करने की किसी जीव की रुचि नहीं होती। शरीर संबंधीअयोग्यताएँ परलोक में हट जाती हैं और वे प्रायः तरुण दशा को प्राप्त हो जाते हैं, क्योंकि यह अयोग्यताएँ मन की नहीं, वरन एक शरीर में भी कुछ समयकी हैं। इसलिए इन शारीरिक अयोग्यताओं का मन पर अधिक प्रभाव नहीं पड़ता।
परलोक में इच्छा करने पर कोई जीव किन्हीं दूसरे जीवों से मिल भी सकता है। इच्छा होने पर हीवे दूसरे परलोकवासी दिखाई देते हैं और उनसे विचार-परिवर्तन करना संभव होता है। यह मिलन दो चेतनाओं का मिलन होता है। विचारों का आदान-प्रदान ही होसकता है। शरीर कोई किसी को नहीं देखता क्योंकि परलोकवासियों के सूक्ष्मशरीर वास्तव में देखने योग्य नहीं होते। घर, कपड़े, भोजनादि की हरजीव की अपनी कल्पना होती है, उसका देखना भी दूसरे के लिए कठिन है। स्वर्ग-नरक के दुःखसुख का दूसरा परिचय पाते हैं, पर यह नहीं देख सकते किवह कुंभीपाक नरक में पड़ा हुआ है या रौरव में। स्वर्गवासी आत्माओं के शरीर में एक प्रकार का तेज होता है, जिससे उनके सुखी होने का परिचय मिलता है,पर यह जानना कठिन है कि वह हूर गिरमाओं को जन्नत में हैं या सुरपुरी में, क्योंकि यह सब भी अपनी-अपनी स्वतंत्र कल्पनाएँ हैं, दृश्य वस्तु इनमें सेकुछ भी नहीं। मृतात्माएँ एक-दूसरे से कह-सुन सकती हैं, पर उनके लिए यह कठिन है कि दुःख-सुख में भी हिस्सा बाँट सकें। कुछ आत्माएँ अपने पूर्वपरिचितों मृतकों के साथ रहना पसंद करती हैं और उनका एक समुदाय बन जाता है। ऐसे समुदाय नीचे लोक में ही होते हैं। उच्च लोकवासी जन्म-जन्मांतरों मेंआकर्षित प्राणियों के साथ अपने संपर्कों का ध्यान करते हुए इन भ्रम-बंधनों की व्यर्थता को समझ जाते हैं और मोह जाल से दूर रहते हुए आत्मोन्नति काएकांत प्रयत्न करते हैं। आत्माएँ किसी बाड़े में या किसी अन्य शासन के अधिकार में नहीं रहतीं, जीवों पर उनकी अंतरात्माओं का ही शासन होता है।
श्राद्ध करने या स्मारक बनाने का पुण्यफल उनके करने वालों को ही प्राप्त होता है। यहदान-पुण्य परलोकवासी की कुछ विशेष सहायता नहीं कर सकता, क्योंकि इन उदार कार्यों के करने में अपना कुछ हाथ थोड़े ही है? यह निश्चय है कि पुण्यफलका अदला-बदला नहीं हो सकता। जो करता है, वही भरता है। फिर भी परलोकवासी जब यह देखता है कि मेरे पूर्व संबंधी मेरे प्रति कृतज्ञता और उपकार के भावप्रदर्शित कर रहे हैं, तो उसे संतोष होता है और कभी उनके वश की बात हो एवं अवसर पाए, तो उस उपकार भाव का किसी अदृश्य प्रकार से बदला चुकाते हैं।अपने प्रियजनों की सहायता के लिए. जो कर सकते हैं, करते हैं। संबंधियों के रोने-पीटने या शोक प्रदर्शन करने से मृतक को दुख होता है और उनकी शांतिमें बाधा पड़ती है। इसलिए उचित यह है कि मृतक के साथ मोह-बंधन शीघ्र तोड़ लिए जाएँ और केवल शांति की उच्च कामना की जाए।
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