आचार्य श्रीराम शर्मा >> तत्त्व दृष्टि से बंधन मुक्ति तत्त्व दृष्टि से बंधन मुक्तिश्रीराम शर्मा आचार्य
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तत्त्व दृष्टि से बंधन मुक्ति....
मनुष्य की भिन्न मनः स्थिति के कारण एक ही तथ्य के सम्बन्ध में परस्पर विरोधी मान्यताएँ एवं रुचियाँ होती हैं। यदि यथार्थतः एक ही होती, तो सबको एक ही तरह के अनुभव होते। एक व्यक्ति अपराधों में संलग्न होता है, दूसरा परमार्थ परोपकार में। एक को प्रदर्शन में रुचि है, दूसरे को सादगी में। एक विलास के साधन जुटा रहा है, दूसरा त्याग पर बढ़ रहा है। इन विभिन्नताओं से यही सिद्ध होता है कि वास्तव में सुख-दुख, हानि-लाभ कहाँ है ? किसमें है ? उसका निर्णय किसी सार्वभौमिक कसौटी पर नहीं मनःस्थिति की स्थिति के आधार पर दृष्टि कोण के अनुरूप ही किया जाता है।
यह सार्वभौम सत्य यदि प्राप्त हो गया तो संसार मं मतभेदों की कोई गुजाइश न रहती।
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