आचार्य श्रीराम शर्मा >> अध्यात्मवादी भौतिकता अपनाई जाए अध्यात्मवादी भौतिकता अपनाई जाएश्रीराम शर्मा आचार्य
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अध्यात्मवाद पर आधारित पुस्तक
यदि एक बार यह तीनों वस्तुयें किसी को मिल भी जाएँ तो हानि-लाभ, वियोग-विछोह, ईर्ष्या-द्वेष आदि के न जाने कितने कारण मनुष्य को दुःखी और उद्विग्न करते रहते हैं। ऐसा नहीं हो पाता कि धन, विद्या और शक्ति को पाकर भी मनुष्य सदा सुखी, संतुष्ट एवं शांत बना रहे। संसार की कोई भी ऐसी उपलब्धि नहीं, जिसके मिल जाने से मनुष्य दुःख-क्लेशों की ओर से सर्वथा निश्चित हो जाये।
मनुष्य जीवन का लक्ष्य आनंद की प्राप्ति ही है। उसी को पाने के लिए सारे प्रयत्न किये जाते हैं। भौतिक विभूतियों की सहायता से वह मिल नहीं पाता। मनुष्य दुःखी तथा उद्विग्न बना रहता है। तब कौन-सा उपाय हो सकता है, जिसके आधार पर इस असफलता को सफलता में बदला जा सके? उसका एकमात्र उपाय यदि कोई है तो वह है 'अध्यात्म'। अध्यात्म की महिमा अपार है। उसके द्वारा प्राप्त होने वाले अहेतुक सुख की तलना संसार की किसी भी विभूति से मिलने वाले क्षणिक सुख से नहीं की जा सकती। मानव-जीवन की सर्वोत्कृष्ट विभूति वही है। उसकी सहायता से मनुष्य देवताओं की भाँति सदा आनंदित रह सकता है। देवत्व प्राप्त हो जाने पर दुःख की संभावना ही समाप्त हो जाती है।
अध्यात्म भवरोगों की अमोघ औषधि मानी गई है। दुःखों के निवारण के लिए भौतिक प्रयत्नों के साथ-साथ यदि अध्यात्म की भी साधना की जाती रहे तो निश्चित ही भवरोगों से सहज ही छुटकारा पाया जा सकता है। आध्यात्मिक औषधि का महत्त्व जानने वाले प्राचीन ऋषि-मुनियों ने भौतिक विभूतियों को त्याग कर भी सुखी और उपयोगी जीवनयापन कर इसकी अमोघता को सिद्ध कर दिखलाया है। आज भी इसमें वही विशेषता मौजूद है। पर खेद है, आज हमारी प्रमाद, भ्रम, अज्ञान, आलस्य एवं अनास्था आदि दोषों ने हमारी दृष्टि और अध्यात्म के महत्त्व के बीच परदा डाल दिया है। हम अध्यात्म के सारे महत्त्व को भूले जा रहे हैं। भौतिक उपलब्धि में संलग्न रहने और अध्यात्म साधना की सर्वथा उपेक्षा करने से ही आज मनुष्य जाति इतनी उन्नति और प्रगति के बाद भी दुःखी और दीन बनी हुई है।
बाह्य ज्ञान, भौतिक विभूतियाँ और जड विज्ञान, इनका कितना ही विकास क्यों न हो जाये, मनुष्य के जीवन-लक्ष्य आनंद को प्राप्त नहीं करा सकते। उसके लिए तो अध्यात्म तत्त्व को धारण करना होगा। बाह्य विकास और भौतिक उन्नति मनुष्य को कुछ सामयिक सुविधा का सुख भले ही प्रदान कर सकें, पर इससे श्रेयपूर्ण स्थायी सुख की उपलब्धि संभव नहीं। वह तो अध्यात्म से मिल सकता है। भौतिक विभूतियाँ मात्र इंद्रिय सुख की संभावना उपस्थित कर सकती हैं। इनके द्वारा वह अखंड आनंद संभव नहीं, जो अध्यात्म के आधार पर इंद्रिय निग्रह द्वारा प्राप्त होता है। संसार में चारों ओर जो दुःखों का जाल फैला हुआ है, उससे तभी मुक्ति मिल सकती है, जब सर्वथा सांसारिक-लिप्साओं को कम कर अध्यात्म के श्रेय-पथ का प्रतिपादन किया जाए। सांसारिक-कर्तव्यों के साथ-साथ आत्म-साधना में भी लगा जाए।
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- भौतिकता की बाढ़ मारकर छोड़ेगी
- क्या यही हमारी राय है?
- भौतिकवादी दृष्टिकोण हमारे लिए नरक सृजन करेगा
- भौतिक ही नहीं, आध्यात्मिक प्रगति भी आवश्यक
- अध्यात्म की उपेक्षा नहीं की जा सकती
- अध्यात्म की अनंत शक्ति-सामर्थ्य
- अध्यात्म-समस्त समस्याओं का एकमात्र हल
- आध्यात्मिक लाभ ही सर्वोपरि लाभ है
- अध्यात्म मानवीय प्रगति का आधार
- अध्यात्म से मानव-जीवन का चरमोत्कर्ष
- हमारा दृष्टिकोण अध्यात्मवादी बने
- आर्ष अध्यात्म का उज्ज्वल स्वरूप
- लौकिक सुखों का एकमात्र आधार
- अध्यात्म ही है सब कुछ
- आध्यात्मिक जीवन इस तरह जियें
- लोक का ही नहीं, परलोक का भी ध्यान रहे
- अध्यात्म और उसकी महान् उपलब्धि
- आध्यात्मिक लक्ष्य और उसकी प्राप्ति
- आत्म-शोधन अध्यात्म का श्रीगणेश
- आत्मोत्कर्ष अध्यात्म की मूल प्रेरणा
- आध्यात्मिक आदर्श के मूर्तिमान देवता भगवान् शिव
- आद्यशक्ति की उपासना से जीवन को सुखी बनाइए !
- अध्यात्मवादी भौतिकता अपनाई जाए
- आध्यात्मिक साधना का चरम लक्ष्य
- अपने अतीत को भूलिए नहीं
- महान् अतीत को वापस लाने का पुण्य प्रयत्न