आचार्य श्रीराम शर्मा >> अध्यात्मवादी भौतिकता अपनाई जाए अध्यात्मवादी भौतिकता अपनाई जाएश्रीराम शर्मा आचार्य
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अध्यात्मवाद पर आधारित पुस्तक
इस संसार की यदि कुछ सार्थकता है तो वह परमात्मा का विराट रूप होने से है। शास्त्रकार का कथन है—'सर्वं खल्विदं ब्रह्म ।' इदं सर्व खलु ब्रह्म—यह जो कुछ भी दिखाई देता है, वह सारा जगत् ब्रह्म रूप है। परमात्मा हमारी सेवा और पुण्यार्जन का आधार है, अतः इस संसार को भी इसी रूप में ही देखना चाहिए। इसे परमात्मा का स्वरूप समझकर सत्कर्मों द्वारा यदि कुछ प्रेरणा और प्रकाश ग्रहण कर सकें तो यह संसार ही हमारी जीवन मुक्ति में सहायक हो सकता है।
"संसार माया है" यह कहने का तात्पर्य मनुष्य को उसके जीवन लक्ष्य की याद दिलाते रहना है। ऐसा न हो कि प्राणी सांसारिक भोग-वासनाओं में ही भटकता रहे और पारलौकिक सुख को भूल जाए, इस दृष्टि से इस संसार को स्वप्नवत् बताना उचित ही है।
सृष्टि का दूसरा स्वरूप ईश्वरमय है। वह हमारे कर्तव्यपालन के लिए है। माया-माया कहकर यदि कर्मों का परित्याग कर दिया जाए तो सारी सृष्टि व्यवस्था में गड़बड़ी उत्पन्न हो सकती है। जीवात्मा जिन सुखों के भोग के लिए यहाँ आयी–कर्तव्यपालन के अभाव में वह भी तो पूरे नहीं होते। अतः इस संसार को परमात्मा का ही प्रतिरूप समझकर निष्काम भावना से अपने कर्तव्य-कर्मों का पालन करते रहना चाहिए। इस तरह मनुष्य इहलोक के सुख और पारलौकिक शांति सुगमता से उपलब्ध कर सकता है।
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- भौतिकता की बाढ़ मारकर छोड़ेगी
- क्या यही हमारी राय है?
- भौतिकवादी दृष्टिकोण हमारे लिए नरक सृजन करेगा
- भौतिक ही नहीं, आध्यात्मिक प्रगति भी आवश्यक
- अध्यात्म की उपेक्षा नहीं की जा सकती
- अध्यात्म की अनंत शक्ति-सामर्थ्य
- अध्यात्म-समस्त समस्याओं का एकमात्र हल
- आध्यात्मिक लाभ ही सर्वोपरि लाभ है
- अध्यात्म मानवीय प्रगति का आधार
- अध्यात्म से मानव-जीवन का चरमोत्कर्ष
- हमारा दृष्टिकोण अध्यात्मवादी बने
- आर्ष अध्यात्म का उज्ज्वल स्वरूप
- लौकिक सुखों का एकमात्र आधार
- अध्यात्म ही है सब कुछ
- आध्यात्मिक जीवन इस तरह जियें
- लोक का ही नहीं, परलोक का भी ध्यान रहे
- अध्यात्म और उसकी महान् उपलब्धि
- आध्यात्मिक लक्ष्य और उसकी प्राप्ति
- आत्म-शोधन अध्यात्म का श्रीगणेश
- आत्मोत्कर्ष अध्यात्म की मूल प्रेरणा
- आध्यात्मिक आदर्श के मूर्तिमान देवता भगवान् शिव
- आद्यशक्ति की उपासना से जीवन को सुखी बनाइए !
- अध्यात्मवादी भौतिकता अपनाई जाए
- आध्यात्मिक साधना का चरम लक्ष्य
- अपने अतीत को भूलिए नहीं
- महान् अतीत को वापस लाने का पुण्य प्रयत्न