आचार्य श्रीराम शर्मा >> अध्यात्मवादी भौतिकता अपनाई जाए अध्यात्मवादी भौतिकता अपनाई जाएश्रीराम शर्मा आचार्य
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अध्यात्मवाद पर आधारित पुस्तक
ईश्वर की इस सुव्यवस्थित सृष्टि का कण-कण नियम-बंधनों में बँधा हुआ है। इतना बड़ा शासन तंत्र बिना नियत व्यवस्था के चल भी नहीं सकता। सूर्य और चंद्रमा नियत समय पर उदय होते हैं, पृथ्वी नियत मार्ग पर नियत चाल से चलती है। ऋतुयें समय पर आती हैं। बीज अपने नियम और क्रम से उगते और बढ़ते हैं। जन्म, वृद्धि और मृत्यु के चक्र में हर पदार्थ जकड़ा हुआ है। यहाँ अव्यवस्था के लिए तनिक भी गुंजायश नहीं। ईश्वर भी अपना काम तभी कर पा रहा है, जब उसने अपने आपको नियम और व्यवस्था के अंतर्गत बाँध लिया है। प्राणियों को उनके शुभ-अशुभ कर्मों के आधार पर उन्नति या अवनति के प्रतिफल प्रदान करता है। यदि वह इसमें अव्यवस्था उत्पन्न करे तो सृष्टि का सारा क्रम ही बिगड़ जाए। प्रार्थना करने मात्र से मनमाने उपहार देने लगे तो फिर प्रयत्न और पुरुषार्थ करने के लिए किसी को क्या आकर्षण रह जाएगा? फिर कर्मफल का तथ्य तो एक उपहास की बात बन जाएगा। कोई न्यायाधीश वस्तुस्थिति पर ध्यान दिये बिना प्रार्थियों की अर्जी-मर्जी के अनुरूप फैसले करने लगे, सुविधायें देने लगे तो उसे पागल ही कहा जाएगा। ईश्वर ऐसा पागल नहीं है। देवता या सिद्ध पुरुषों को भी इतना नासमझ नहीं माना जाना चाहिए कि हर किसी की उचित-अनुचित सहायता के लिए धर दौड़ें और पात्रता, अधिकार एवं कर्मफल के सुनिश्चित तथ्यों को मटियामेट करके अव्यवस्था फैला देने के दोषी बनें।
गुरुजन कृपा अवश्य करते हैं और उनके आशीर्वाद से लोगों का भला भी अवश्य होता है, पर वह कृपा विशुद्ध रूप से प्रार्थी की पात्रता पर निर्भर रहती है। देवता वरदान देते हैं। ऐसे असंख्य उपाख्यान पुराणों में मिलते हैं, पर यह स्मरण रखना चाहिए कि वे वरदान भी अंधाधुंध नहीं, किसी आधार पर मिलते हैं। असुरों ने बड़े-बड़े आश्चर्यजनक वरदान पाये थे, पर उनका मूल्य उन्होंने घोर तपश्चर्या के रूप में चुकाया भी था। हमारी तरह यदि वे भी दर्शन करके या चंदन-अक्षत चढ़ाकर थोड़ी-सी पूजा-पत्री से बड़ी-बड़ी आशायें लगाये बैठे रहते तो उन्हें भी हमारी तरह निराशा के अतिरिक्त और क्या हाथ लग सकता था?
दैवी अनुग्रह हमारी पात्रता के आधार पर ही उपलब्ध हो सकता है; अतएव उसके लिए बहुत चिंता या बहुत खोजबीन करने की अपेक्षा, अपनी आंतरिक उत्कृष्टता बढ़ाने के लिए प्रयत्न करना चाहिए। सत्पात्रों की उचित सहायता एवं मार्गदर्शन करने के लिए ईश्वरीय नियम अपने आप काम करता रहता है और उसकी पूर्ति अनायास ही होती रहती है। गुरु ढूँढ़ने नहीं पड़ते, अधिकारी को वे अनायास ही मिल जाते हैं। पुष्प खिलते ही बिना निमंत्रण के भौंरे उसके आगे गुंजार करने स्वतः ही जा पहुंचते हैं। जहाँ पर जितना गहरा गड्ढा होता है, वहाँ उतना जल भर जाता है। कम गहरा गड्ढा, बड़े सरोवर के बराबर जल कैसे प्राप्त कर सकेगा? बादलों पर 'कम देने का दोष भले ही वह लगाया करे, पर वस्तुस्थिति यही है कि गड्ढे के उथलेपन ने ही उसे प्रचुर जलराशि संग्रह करने के लाभ से वंचित रखा। बादलों को सरोवर और गड्ढे में से किसी के साथ पक्षपात नहीं था, उन्होंने समान वर्षा की, पर लाभ उन्हें अपनी पात्रता के अनुरूप ही मिल सका। ईश्वर, देवता या सिद्ध पुरुषों से विविध-विधि वरदानों की कामना एवं प्रार्थना करने के साथ-साथ हमें अपनी पात्रता भी देखनी चाहिए और उसे बढ़ाने के लिए प्रयत्न भी करना चाहिए।
अध्यात्म की महिमा का पारावार नहीं, उसके द्वारा प्राप्त हो सकने वाले लाभों की गणना नहीं हो सकती। मानव जीवन की सर्वोत्कृष्ट विभूति वही है। अंत:प्रदेश में सन्निहित रहस्यमयी शक्तियों के जागरण से मनुष्य की परिणति देवता में हो सकती है। पर उस मार्ग पर चलने वाले को इतना तो ध्यान रखना ही चाहिए कि उपासना विधानों की तरह व्यावहारिक जीवन को उत्कृष्ट एवं परिष्कृत बनाना भी आवश्यक है। इसके बिना कठोर साधना निरर्थक सिद्ध होती है।
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- भौतिकता की बाढ़ मारकर छोड़ेगी
- क्या यही हमारी राय है?
- भौतिकवादी दृष्टिकोण हमारे लिए नरक सृजन करेगा
- भौतिक ही नहीं, आध्यात्मिक प्रगति भी आवश्यक
- अध्यात्म की उपेक्षा नहीं की जा सकती
- अध्यात्म की अनंत शक्ति-सामर्थ्य
- अध्यात्म-समस्त समस्याओं का एकमात्र हल
- आध्यात्मिक लाभ ही सर्वोपरि लाभ है
- अध्यात्म मानवीय प्रगति का आधार
- अध्यात्म से मानव-जीवन का चरमोत्कर्ष
- हमारा दृष्टिकोण अध्यात्मवादी बने
- आर्ष अध्यात्म का उज्ज्वल स्वरूप
- लौकिक सुखों का एकमात्र आधार
- अध्यात्म ही है सब कुछ
- आध्यात्मिक जीवन इस तरह जियें
- लोक का ही नहीं, परलोक का भी ध्यान रहे
- अध्यात्म और उसकी महान् उपलब्धि
- आध्यात्मिक लक्ष्य और उसकी प्राप्ति
- आत्म-शोधन अध्यात्म का श्रीगणेश
- आत्मोत्कर्ष अध्यात्म की मूल प्रेरणा
- आध्यात्मिक आदर्श के मूर्तिमान देवता भगवान् शिव
- आद्यशक्ति की उपासना से जीवन को सुखी बनाइए !
- अध्यात्मवादी भौतिकता अपनाई जाए
- आध्यात्मिक साधना का चरम लक्ष्य
- अपने अतीत को भूलिए नहीं
- महान् अतीत को वापस लाने का पुण्य प्रयत्न