आचार्य श्रीराम शर्मा >> अध्यात्मवादी भौतिकता अपनाई जाए अध्यात्मवादी भौतिकता अपनाई जाएश्रीराम शर्मा आचार्य
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अध्यात्मवाद पर आधारित पुस्तक
जो घटनाएँ आपके चारों ओर घट रही हैं, जो घटनाएँ भूतकाल में घट चुकी हैं, उनको उपेक्षा की दृष्टि से मत देखिए वरन् जहाँ तक हो सके हर एक पर पैनी नजर फेंकते चलिए और यह विचार करते चलिए कि किन कारणों से ऐसे अवसर उपस्थित हुए या होते हैं? उन कारणों का सामयिक परिस्थितियों से कितना सामंजस्य है? इस गंभीर अवलोकन से आप कुछ निष्कर्ष निकाल सकेंगे, कुछ अनुभव प्राप्त कर सकेंगे। वह निष्कर्ष और अनुभव धीरे-धीरे इतने दृढ़ हो जायेंगे कि उनके आधार पर भावी जीवन का बहुत कुछ निर्माण हो सकेगा। आप बीती के आधार पर अधिक अनुभव इकट्ठे नहीं हो सकते, अनुभवी और विशेषज्ञ बनना है तो दूसरों पर बीती हुई बातों का विश्लेषण करने पर जो शिक्षा मिलती है, उसे ग्रहण करके अपनी योग्यता में वृद्धि करनी चाहिए।
वस्तुस्थिति को समझने की गलती तथा दोषपूर्ण विचारधारा के कारण अधिकांश दुःखों का आविर्भाव होता है। कोई सगा संबंधी मर जाने पर आप सिर धुन-धुन कर रोते हैं, भोजन त्याग देते हैं, सूख-सूख कर काँटा हो जाते हैं, यह विपत्ति आपकी अपनी उत्पन्न की हुई है। हर प्राणी का मरण निश्चित है—इसी प्रकार आपके संबंधी का भी मरण अनिवार्य था। सूर्य को डूबना ही है, यदि उसे अस्त होता देखकर रोयें-पीटें तो भी वह अपना क्रम न रोकेगा। आप भ्रमवश मान लेते हैं कि सूरज सदा चमकता ही रहेगा और उससे ऐसी आशा करते हैं, जब आशा के अनुकूल फल नहीं निकलता तो रोते-चिल्लाते हैं। इसके शोक में मरने वाला व्यक्ति कारण नहीं हैं, क्योंकि वह तो उसी स्वाभाविक राजपथ से गया, जिससे सभी को जाना पड़ता है। दोष उस दृष्टिकोण का है, जिसने मरणशील प्राणी को अमर समझकर नाना प्रकार की आशायें बाँध रखी थीं। जिसको अपनी आशाओं के महल अधिक टूटते दीखते हैं, वह अपनी असफलता पर अधिक रोता है। जिसका मृत व्यक्ति से जितना अधिक स्वार्थ था, वह उतना ही अधिक दुःखी होता है। जिसने उससे कुछ आशायें नहीं बाँध रखी थीं, कुछ स्वार्थ वहीं जोड़ रखे थे—उसे दुःख क्यों होगा? रोजाना अनेक मुर्दे निकलते और जलते हम देखते हैं, पर एक बूंद भी आँसू की नहीं निकलती। पर जब अपना स्वार्थ संबंधित मनुष्य मरता है तो रो-रोकर व्याकुल हो जाते हैं।
यदि अध्यात्म ज्ञान की उचित शिक्षा प्राप्त करके अपने हर एक प्रियजन को मृत्यु के मुँह में लटका हुआ समझें और उसके ऊपर आशाओं के महल खड़े न करके कर्तव्यभावना से उसके साथ अपना धर्म निबाहने का दृष्टिकोण रखें तो विश्वास रखिए, उसकी मृत्य के समय कुछ भी कष्ट न होगा। जिस पर ममत्व नहीं है, वह वस्तु नष्ट हो जाने पर कौन दुःख मनाता है? यदि भौतिक वस्तुओं पर आपका ममत्व न हो, अपने को उनका मालिक न समझा करें, सेवक-संरक्षक मानें तो प्रियजनों के बिछोह, चोरी, हानि आदि के कारण उत्पन्न होने वाले दुःख-शोकों से सरलतापूर्वक बच सकते हैं। "संसार की हर वस्तु नाशवान् है, उनका किसी भी क्षण नाश हो सकता है, मेरा कर्तव्य यह है कि प्राप्त वस्तुओं के प्रति निर्लिप्त भावना से अपनी जिम्मेदारी पूरी करता रहूँ।" यह ज्ञान यदि दृढ़तापूर्वक हृदय में बैठ जाए तो मानसिक-क्लेशों का अंत हुआ ही समझिए।
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- भौतिकता की बाढ़ मारकर छोड़ेगी
- क्या यही हमारी राय है?
- भौतिकवादी दृष्टिकोण हमारे लिए नरक सृजन करेगा
- भौतिक ही नहीं, आध्यात्मिक प्रगति भी आवश्यक
- अध्यात्म की उपेक्षा नहीं की जा सकती
- अध्यात्म की अनंत शक्ति-सामर्थ्य
- अध्यात्म-समस्त समस्याओं का एकमात्र हल
- आध्यात्मिक लाभ ही सर्वोपरि लाभ है
- अध्यात्म मानवीय प्रगति का आधार
- अध्यात्म से मानव-जीवन का चरमोत्कर्ष
- हमारा दृष्टिकोण अध्यात्मवादी बने
- आर्ष अध्यात्म का उज्ज्वल स्वरूप
- लौकिक सुखों का एकमात्र आधार
- अध्यात्म ही है सब कुछ
- आध्यात्मिक जीवन इस तरह जियें
- लोक का ही नहीं, परलोक का भी ध्यान रहे
- अध्यात्म और उसकी महान् उपलब्धि
- आध्यात्मिक लक्ष्य और उसकी प्राप्ति
- आत्म-शोधन अध्यात्म का श्रीगणेश
- आत्मोत्कर्ष अध्यात्म की मूल प्रेरणा
- आध्यात्मिक आदर्श के मूर्तिमान देवता भगवान् शिव
- आद्यशक्ति की उपासना से जीवन को सुखी बनाइए !
- अध्यात्मवादी भौतिकता अपनाई जाए
- आध्यात्मिक साधना का चरम लक्ष्य
- अपने अतीत को भूलिए नहीं
- महान् अतीत को वापस लाने का पुण्य प्रयत्न