आचार्य श्रीराम शर्मा >> दिव्य शक्तियों का उद्भव प्राणशक्ति से दिव्य शक्तियों का उद्भव प्राणशक्ति सेश्रीराम शर्मा आचार्य
|
1 पाठकों को प्रिय 226 पाठक हैं |
दिव्य शक्ति का उद्भव प्राणशक्ति से
प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश
दिव्य शक्तियों का उद्भव प्राणशक्ति से (पण्डित श्रीराम शर्मा आचार्य) इस
संसार में दिखाई पड़ने वाली और न दीखने वाली जितनी भी वस्तुएँ तथा
शक्तियाँ हैं, उन सबके सम्पूर्ण योग का नाम ‘प्राण’
है। इस
विश्व की अति सूक्ष्म और अति उत्कृष्ट सत्ता को प्राण ऊर्जा (Vital
Energy) कह सकते हैं। श्वास-प्रश्वास क्रिया तो उसकी वाहन मात्र है, जिस
पर सवार होकर वह हमारे समस्त अवयवों और क्रिया-कलापों तक आती-जाती और
उन्हें समर्थ, व्यवस्थित एवं नियंत्रित बनाये रहती है। भौतिक जगत् में
संव्याप्त गर्मी-रोशनी, बिजली, चुंबक आदि को उसी के प्रति स्फुरण समझा जा
सकता है। वह बाह्य और अन्तर्मन से संबोधित होकर इच्छा के रूप में, इच्छा
से भावना के रूप में, भावना से आत्मा के रूप में परिणत हुई अंतत परमात्मा
से जा मिलने वाली इस विश्व की सर्व समर्थ सत्ता है। इस प्रकार से उसे
परमात्मा का कर्तव्य माध्यम या उपकरण ही माना जाना चाहिए।
अतींद्रिय सामर्थ्यों का मूल स्रोत्र-प्राणमय कोश
मलाया के राजा ‘परमेसुरी अगोंग’ की पुत्री राजकुमारी
शरीफा
साल्वा के विवाह की तैयारियाँ बहुत धूम-धाम से की गईं। उत्सव बहुत शानदार
मनाया जाना था, किन्तु विवाह के दिन घनघोर वर्षा आरंभ हो गयी और सर्वत्र
पानी-ही-पानी भरा नजर आने लगा। अब उत्सव का क्या हो ? अंतत: एक तांत्रिक
महिला राजकीय सम्मान के साथ बुलाई गयी और उससे वर्षा रोकने के लिए उपाय,
उपचार करने के लिए कहा गया। फलत: एक आश्चर्यचकित करने वाला प्रतिफल यह
देखा गया कि पानी तो उस क्षेत्र में बरसता रहा, पर समारोह के लिए जितनी
जगह नियत थी, उस पर एक बूँद भी पानी नहीं गिरा और उत्सव अपने निर्धारित
क्रम के अनुसार ठीक तरह से संपन्न हो गया।
ठीक ऐसी ही एक और घटना उस देश में सन् 1964 में हुई थी। उन दिनों राष्ट्रमंडलीय क्रिकेट दल खेलने आया था और उसे देखने के लिए भारी भीड़ उपस्थित थी। दुर्भाग्य से नियत समय पर भारी वर्षा आरंभ हो गयी। कुआलालंपुर नगर पर घनघोर घटाएँ बरस रही थीं। अब खेल क्या हो ? मैदान पानी से भर जाने पर तो सूखना बहुत दिनों तक संभव नहीं हो सकता था। इस विपत्ति से बचने के लिए वहाँ के तांत्रिकों की सहायता लेना उचित समझा गया। अस्तु, मलाया क्रिकेट ऐसोसियेशन के अध्यक्ष ने आग्रहपूर्वक रेंबाऊ के जाने-माने तांत्रिक को बुलाया। उसका प्रयोग भी चकित करने वाला रहा। क्रिकेट के मैदान पर एक अदृश्य छतरी तन गयी और वहाँ एक बूँद भी न गिरी, जबकि चारों ओर भयंकर वर्षा के दृश्य दिखाई देते रहे।
एक ओर तीसरी घटना भी अंतर्राष्ट्रीय चर्चा का विषय बनी रही है। ‘दि ईयर ऑफ दि ड्रेगन’ फिल्म की शूटिंग वहाँ चल रही थी। जिस दिन प्रधान शूटिंग होनी थी, उसी दिन वर्षा उमड़ पड़ी। इस अवसर पर भी अब्दुल बिन उमर नामक एक तांत्रित की सहायता ली गयी और शूटिंग क्षेत्र पूरे समय वर्षा से बचा रहा।
‘द रॉयल एस्ट्रोनॉमिकल सोसाइटी’ के तत्कालीन अध्यक्ष तथा अन्य प्रमुख लोगों ने श्री डेनियल डगलस होम की विलक्षण कलाबाजियों का आँखों देखा विवरण लिखा है। प्रख्यात वैज्ञानिक, रेड़ियों मीटर के निर्माता, थीलियम गोलियम के अन्वेषक सर विलियम क्रुक्स ने भी श्री डेनियल डगलस होम का बारीकी से अध्ययन कर, उन्हें चालाकी से रहित पाया था।
इन करिश्मों में हवा में ऊँचे उठ जाना, हवा में चलना और तैरना, जलते हुए अंगरे हाथ में रखना आदि हैं। सर विलियम क्रुक्स अपने समय के शीर्षस्थ रसायनशास्त्री थे। उन्होंने भली-भाँति निरीक्षण कर श्री डी.डी. होम की हथेलियों की जाँच की, उनमें कुछ भी लगा नहीं था। हाथ मुलायम और नाजुक थे। फिर श्री क्रुक्स के देखते-देखते श्री डी.डी. होम ने धधकती अँगीठी से सर्वाधिक लाल चमकदार कोयला उटाकर, अपनी हथेली में रखा और रखे रहे। उनके हाथ में छाले फफोले कुछ भी नहीं पड़े।
‘रिपोर्ट ऑफ द डायलेक्टिकल सोसाइटी एंड कमेटी ऑफ स्पिरिचुअलिज्म’ में लार्ड अडारे ने भी श्री होम का विवरण दिया है। आपने बताया कि एक ‘सियान्स’ में वे आठ व्यक्तियों के साथ उपस्थित थे। श्री डी.डी. होम ने दहकते अँगारे न केवल अपनी हथेलियों पर रखे, बल्कि उन्हें अन्य व्यक्तियों के भी हाथों में रखाया। सात ने तो तनिक भी जलन या तकलीफ के बिना, उन्हें अपने हाथों में रखा। इनमें से चार महिलायें थीं। दो अन्य व्यक्ति उसे सहन नहीं कर सके। लार्ड अडारे ने ऐसे अन्य अनेक अनुभव भी लिखे है, जो श्री होम की अति मानसिक क्षमताओं तथा अदृश्य शक्तियों से उनके संबंध पर प्रकाश डालते हैं। इनमें अनेक व्यक्तियों की उपस्थिति में कमरे की सभी वस्तुओं को होम की इच्छा मात्र से थरथराने लगना, किसी एक पदार्थ (जैसे टेबिल या कुर्सी आदि) का हवा में 4-6 फीट ऊपर उठ जाना और होम के इच्छित समय तक वहाँ उनका लटके रहना, टेबिल के उलटने-पलटने के बाद भी उस कागज पर सामान्य रीति से रखा संगमरमर का पत्थर और कागज, पेंसिल का यथावत् बने रहना आदि हैं।
सर विलियम क्रुक्स ने भी एक सुंदर के सहसा प्रकट होने, होम के बटन में लगे फूल की पत्ती को उस हाथ द्वारा तोड़े जाने, किसी वस्तु के हिलने, उसके इर्द-गिर्द चमकीले बादल बनने और फिर उस बादल को स्पष्ट हाथ में परिवर्तित होने तथा उस हाथ को स्पर्श करने पर कभी बेहद सर्द, कभी उष्ण और शीतल लगने आदि के विवरण लिखे हैं।
अमेरिका के एक मनोविज्ञानशास्त्री डॉ. रॉल्फ एलेक्जेंडर ने पराशक्ति जाग्रत् करके, बादलों को इच्छानुसार हटाने और पैदा कर देने का प्रयोग किया है। वे बहुत वर्षों से मन को एकाग्र कर उसकी शक्ति से बादलों को प्रभावित करने का प्रयोग कर रहे थे। 1951 में उन्होंने मेक्सिको सिटी में 12 मिनट के भीतर आकाश में कुछ बरसाती बादल जमा कर दिए। उस अवसर पर कई स्थानों के वैज्ञानिक और अन्य विद्वान् वहाँ इकट्ठे थे। डॉ. एलेक्जेंडर की शक्ति के संबंध में उनमें मतभेद बना रहा, तो भी सबने यह स्वीकार किया कि जब आकाश में एक भी बादल न था, तब दस-बारह मिनट में बादल पैदा हो जाना और थोड़ी बूँदा-बाँदी भी हो जाना आश्चर्य की बात अवश्य है।
इसलिए डॉ. एलेक्जेंडर ने फिर ऐसा प्रयोग करने का निश्चय किया, जिसमें किसी प्रकार का संदेह न हो। उन्होंने कहा कि- ‘वे आकाश में मौजूद बादलों में से जिसको दर्शक कहेंगे, उसी को अपनी इच्छा-शक्ति से हटाकर दिखा देंगे।’ इसके लिए ओंटेरियो ओरीलियों नामक स्थान में 12 सितंबर, 1954 को एक प्रदर्शन किया गया। उसमें लगभग 50 वैज्ञानिक, पत्रकार तथा नगर के बड़े अधिकारी इस चमत्कार को देखने के लिए इकट्ठे हुए। नगर का मेयर (नगरपालिकाध्यक्ष) भी विशेष रूप से बुलाया गया, जिससे इस प्रयोग की सफलता में किसी को संदेह न हो। यह भी व्यवस्था की गयी कि, जब बादलों को गायब किया जाय, तो कई बहुत तेज कैमरे उनका चित्र उतारते रहें। इसकी आवश्यकता इसलिए पड़ी कि कुछ लोगों का ख्याल था कि डॉ. एलेक्जेंडर दर्शकों पर ‘सामूहिक हिप्नोटिज्म’ का प्रयोग करके, ऐसा दृश्य दिखा देते हैं, वास्तव में बादल हटता नहीं। इससे मनुष्य का मन भ्रम में पड़ सकता है, पर तब ओटोमेटिक कैमरा उस दृश्य का चित्र उतार लेगा, तो संदेह की गुंजायश ही नहीं रहेगी। कैमरे के चित्र में तो वही बात आयेगी, जो उसके सामने होगी। आगे की घटना के विषय में एक स्थानीय समाचार पत्र ‘दी डेली पैकेट एंड टाइम्स’ ने जो विवरण प्रकाशित किया, वह इस प्रकार है-
‘जब सब लोग इकट्ठे हो गए, तो डॉ. एलेक्जेंडर ने उनसे कहा कि वे स्वयं एक बादल चुन लें, जिसको गायब करना चाहते हों। क्षितिज के पास बहुत-से बादल थे। उनके बीच-बीच में आसमान भी झलक रहा था। उनमें बादलों की एक पतली-सी पट्टी काफी घनी और अपनी जगह पर स्थिर थी। उसी को प्रयोग का लक्ष्य बनाया गया। कैमरे ने उसकी कई तस्वीरें उतार लीं।’
‘डॉ. एलेक्जेंडर ने थोड़ी देर प्राणायाम किया, भौंहें सिकोड़ी (त्राटक की क्रिया की) और टकटकी लगाकर बादलों की उसी पट्टी की ओर देखने लगे। अकस्मात् उन बादलों में एक विचित्र परिवर्तन दिखाई पड़ने लगा। बादलों की वह पट्टी चौड़ी होने लगी और फिर धीरे-धीरे पतली होने लगी। कैमरे चालू थे और हर सेकेंड में एक तस्वीर उतारे जा रहे थे। मिनट पर मिनट बीतते गये, पट्टी और पतली पड़ने लगी, उनका घनत्व भी कम होने लगा। धीरे-धीरे ऐसा लगने लगा, मानों कोई रुई को धुन-धुन कर अलग कर रहा है। आठ मिनट के भीतर सब लोगों ने देखा कि वह पट्टी आसमान से बिल्कुल गायब हो गयी है, जबकि आस-पास बादल जहाँ के तहाँ स्थिर रहे।’
‘लोगों की आँखें आश्चर्य से फटी जा रही थी, पर डॉ. एलेक्जेंडर स्वयं अभी संतुष्ट नहीं हुए थे। हो सकता है, कुछ लोग यह समझें कि यह सिर्फ दैवयोग की बात है। बादल तो बनते-बिगड़ते ही रहते हैं। उन्होंने लोगों से फिर किसी दूसरे बादल का चुनाव करने को कहा और फिर कैमरे उस नये बादल पर केन्द्रित कर दिये गये। उस दिन तीन बार यही प्रयोग हुआ और तीनों बार डॉ. एलेक्जेंडर ने सफलतापूर्वक बादलों को गायब कर दिया। जब कैमरे की फिल्में साफ की गईं और फोटो निकाले गये तो देखा कि हर बार बादलों का गायब होना, उनमें पूरी तरह उतर आया है, तब वहाँ के प्रमुख अखबार ने इस समाचार को ‘क्लाउड डिस्ट्रायड बाई डॉक्टर’ (बादल-डॉक्टर द्वारा नष्ट किये गये) का बहुत बड़ा हैडिंग देकर प्रकाशित किया।
ठीक ऐसी ही एक और घटना उस देश में सन् 1964 में हुई थी। उन दिनों राष्ट्रमंडलीय क्रिकेट दल खेलने आया था और उसे देखने के लिए भारी भीड़ उपस्थित थी। दुर्भाग्य से नियत समय पर भारी वर्षा आरंभ हो गयी। कुआलालंपुर नगर पर घनघोर घटाएँ बरस रही थीं। अब खेल क्या हो ? मैदान पानी से भर जाने पर तो सूखना बहुत दिनों तक संभव नहीं हो सकता था। इस विपत्ति से बचने के लिए वहाँ के तांत्रिकों की सहायता लेना उचित समझा गया। अस्तु, मलाया क्रिकेट ऐसोसियेशन के अध्यक्ष ने आग्रहपूर्वक रेंबाऊ के जाने-माने तांत्रिक को बुलाया। उसका प्रयोग भी चकित करने वाला रहा। क्रिकेट के मैदान पर एक अदृश्य छतरी तन गयी और वहाँ एक बूँद भी न गिरी, जबकि चारों ओर भयंकर वर्षा के दृश्य दिखाई देते रहे।
एक ओर तीसरी घटना भी अंतर्राष्ट्रीय चर्चा का विषय बनी रही है। ‘दि ईयर ऑफ दि ड्रेगन’ फिल्म की शूटिंग वहाँ चल रही थी। जिस दिन प्रधान शूटिंग होनी थी, उसी दिन वर्षा उमड़ पड़ी। इस अवसर पर भी अब्दुल बिन उमर नामक एक तांत्रित की सहायता ली गयी और शूटिंग क्षेत्र पूरे समय वर्षा से बचा रहा।
‘द रॉयल एस्ट्रोनॉमिकल सोसाइटी’ के तत्कालीन अध्यक्ष तथा अन्य प्रमुख लोगों ने श्री डेनियल डगलस होम की विलक्षण कलाबाजियों का आँखों देखा विवरण लिखा है। प्रख्यात वैज्ञानिक, रेड़ियों मीटर के निर्माता, थीलियम गोलियम के अन्वेषक सर विलियम क्रुक्स ने भी श्री डेनियल डगलस होम का बारीकी से अध्ययन कर, उन्हें चालाकी से रहित पाया था।
इन करिश्मों में हवा में ऊँचे उठ जाना, हवा में चलना और तैरना, जलते हुए अंगरे हाथ में रखना आदि हैं। सर विलियम क्रुक्स अपने समय के शीर्षस्थ रसायनशास्त्री थे। उन्होंने भली-भाँति निरीक्षण कर श्री डी.डी. होम की हथेलियों की जाँच की, उनमें कुछ भी लगा नहीं था। हाथ मुलायम और नाजुक थे। फिर श्री क्रुक्स के देखते-देखते श्री डी.डी. होम ने धधकती अँगीठी से सर्वाधिक लाल चमकदार कोयला उटाकर, अपनी हथेली में रखा और रखे रहे। उनके हाथ में छाले फफोले कुछ भी नहीं पड़े।
‘रिपोर्ट ऑफ द डायलेक्टिकल सोसाइटी एंड कमेटी ऑफ स्पिरिचुअलिज्म’ में लार्ड अडारे ने भी श्री होम का विवरण दिया है। आपने बताया कि एक ‘सियान्स’ में वे आठ व्यक्तियों के साथ उपस्थित थे। श्री डी.डी. होम ने दहकते अँगारे न केवल अपनी हथेलियों पर रखे, बल्कि उन्हें अन्य व्यक्तियों के भी हाथों में रखाया। सात ने तो तनिक भी जलन या तकलीफ के बिना, उन्हें अपने हाथों में रखा। इनमें से चार महिलायें थीं। दो अन्य व्यक्ति उसे सहन नहीं कर सके। लार्ड अडारे ने ऐसे अन्य अनेक अनुभव भी लिखे है, जो श्री होम की अति मानसिक क्षमताओं तथा अदृश्य शक्तियों से उनके संबंध पर प्रकाश डालते हैं। इनमें अनेक व्यक्तियों की उपस्थिति में कमरे की सभी वस्तुओं को होम की इच्छा मात्र से थरथराने लगना, किसी एक पदार्थ (जैसे टेबिल या कुर्सी आदि) का हवा में 4-6 फीट ऊपर उठ जाना और होम के इच्छित समय तक वहाँ उनका लटके रहना, टेबिल के उलटने-पलटने के बाद भी उस कागज पर सामान्य रीति से रखा संगमरमर का पत्थर और कागज, पेंसिल का यथावत् बने रहना आदि हैं।
सर विलियम क्रुक्स ने भी एक सुंदर के सहसा प्रकट होने, होम के बटन में लगे फूल की पत्ती को उस हाथ द्वारा तोड़े जाने, किसी वस्तु के हिलने, उसके इर्द-गिर्द चमकीले बादल बनने और फिर उस बादल को स्पष्ट हाथ में परिवर्तित होने तथा उस हाथ को स्पर्श करने पर कभी बेहद सर्द, कभी उष्ण और शीतल लगने आदि के विवरण लिखे हैं।
अमेरिका के एक मनोविज्ञानशास्त्री डॉ. रॉल्फ एलेक्जेंडर ने पराशक्ति जाग्रत् करके, बादलों को इच्छानुसार हटाने और पैदा कर देने का प्रयोग किया है। वे बहुत वर्षों से मन को एकाग्र कर उसकी शक्ति से बादलों को प्रभावित करने का प्रयोग कर रहे थे। 1951 में उन्होंने मेक्सिको सिटी में 12 मिनट के भीतर आकाश में कुछ बरसाती बादल जमा कर दिए। उस अवसर पर कई स्थानों के वैज्ञानिक और अन्य विद्वान् वहाँ इकट्ठे थे। डॉ. एलेक्जेंडर की शक्ति के संबंध में उनमें मतभेद बना रहा, तो भी सबने यह स्वीकार किया कि जब आकाश में एक भी बादल न था, तब दस-बारह मिनट में बादल पैदा हो जाना और थोड़ी बूँदा-बाँदी भी हो जाना आश्चर्य की बात अवश्य है।
इसलिए डॉ. एलेक्जेंडर ने फिर ऐसा प्रयोग करने का निश्चय किया, जिसमें किसी प्रकार का संदेह न हो। उन्होंने कहा कि- ‘वे आकाश में मौजूद बादलों में से जिसको दर्शक कहेंगे, उसी को अपनी इच्छा-शक्ति से हटाकर दिखा देंगे।’ इसके लिए ओंटेरियो ओरीलियों नामक स्थान में 12 सितंबर, 1954 को एक प्रदर्शन किया गया। उसमें लगभग 50 वैज्ञानिक, पत्रकार तथा नगर के बड़े अधिकारी इस चमत्कार को देखने के लिए इकट्ठे हुए। नगर का मेयर (नगरपालिकाध्यक्ष) भी विशेष रूप से बुलाया गया, जिससे इस प्रयोग की सफलता में किसी को संदेह न हो। यह भी व्यवस्था की गयी कि, जब बादलों को गायब किया जाय, तो कई बहुत तेज कैमरे उनका चित्र उतारते रहें। इसकी आवश्यकता इसलिए पड़ी कि कुछ लोगों का ख्याल था कि डॉ. एलेक्जेंडर दर्शकों पर ‘सामूहिक हिप्नोटिज्म’ का प्रयोग करके, ऐसा दृश्य दिखा देते हैं, वास्तव में बादल हटता नहीं। इससे मनुष्य का मन भ्रम में पड़ सकता है, पर तब ओटोमेटिक कैमरा उस दृश्य का चित्र उतार लेगा, तो संदेह की गुंजायश ही नहीं रहेगी। कैमरे के चित्र में तो वही बात आयेगी, जो उसके सामने होगी। आगे की घटना के विषय में एक स्थानीय समाचार पत्र ‘दी डेली पैकेट एंड टाइम्स’ ने जो विवरण प्रकाशित किया, वह इस प्रकार है-
‘जब सब लोग इकट्ठे हो गए, तो डॉ. एलेक्जेंडर ने उनसे कहा कि वे स्वयं एक बादल चुन लें, जिसको गायब करना चाहते हों। क्षितिज के पास बहुत-से बादल थे। उनके बीच-बीच में आसमान भी झलक रहा था। उनमें बादलों की एक पतली-सी पट्टी काफी घनी और अपनी जगह पर स्थिर थी। उसी को प्रयोग का लक्ष्य बनाया गया। कैमरे ने उसकी कई तस्वीरें उतार लीं।’
‘डॉ. एलेक्जेंडर ने थोड़ी देर प्राणायाम किया, भौंहें सिकोड़ी (त्राटक की क्रिया की) और टकटकी लगाकर बादलों की उसी पट्टी की ओर देखने लगे। अकस्मात् उन बादलों में एक विचित्र परिवर्तन दिखाई पड़ने लगा। बादलों की वह पट्टी चौड़ी होने लगी और फिर धीरे-धीरे पतली होने लगी। कैमरे चालू थे और हर सेकेंड में एक तस्वीर उतारे जा रहे थे। मिनट पर मिनट बीतते गये, पट्टी और पतली पड़ने लगी, उनका घनत्व भी कम होने लगा। धीरे-धीरे ऐसा लगने लगा, मानों कोई रुई को धुन-धुन कर अलग कर रहा है। आठ मिनट के भीतर सब लोगों ने देखा कि वह पट्टी आसमान से बिल्कुल गायब हो गयी है, जबकि आस-पास बादल जहाँ के तहाँ स्थिर रहे।’
‘लोगों की आँखें आश्चर्य से फटी जा रही थी, पर डॉ. एलेक्जेंडर स्वयं अभी संतुष्ट नहीं हुए थे। हो सकता है, कुछ लोग यह समझें कि यह सिर्फ दैवयोग की बात है। बादल तो बनते-बिगड़ते ही रहते हैं। उन्होंने लोगों से फिर किसी दूसरे बादल का चुनाव करने को कहा और फिर कैमरे उस नये बादल पर केन्द्रित कर दिये गये। उस दिन तीन बार यही प्रयोग हुआ और तीनों बार डॉ. एलेक्जेंडर ने सफलतापूर्वक बादलों को गायब कर दिया। जब कैमरे की फिल्में साफ की गईं और फोटो निकाले गये तो देखा कि हर बार बादलों का गायब होना, उनमें पूरी तरह उतर आया है, तब वहाँ के प्रमुख अखबार ने इस समाचार को ‘क्लाउड डिस्ट्रायड बाई डॉक्टर’ (बादल-डॉक्टर द्वारा नष्ट किये गये) का बहुत बड़ा हैडिंग देकर प्रकाशित किया।
|
अन्य पुस्तकें
लोगों की राय
No reviews for this book