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आचार्य श्रीराम शर्मा >> असीम पर निर्भर ससीम जीवन

असीम पर निर्भर ससीम जीवन

श्रीराम शर्मा आचार्य

प्रकाशक : युग निर्माण योजना गायत्री तपोभूमि प्रकाशित वर्ष : 1998
पृष्ठ :112
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 4291
आईएसबीएन :0000

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असीम पर निर्भर ससीम

लहरों का पृथक् अस्तित्व दीखने पर भी वे वस्तुतः समुद्र की विशाल जलराशि की ही छोटी-छोटी इकाइयाँ होती हैं। किरणों का समन्वय ही ‘सूर्य’ है। व्यक्तियों के समूह को ‘समाज’ कहते हैं। सृष्टि के सबसे छोटे घटक अंड या अणु कहलाते हैं, इन्हीं का विशाल समुदाय ब्रह्माण्ड है। आत्माओं की सामूहिक चेतना ‘परमात्मा’ है। हम हवा के विशाल समुद्र में उसी प्रकार साँस लेते और जीते हैं, जिस प्रकार मछलियाँ किसी जलाशय में अपना निर्वाह करती हैं। प्राणियों की समग्र सत्ता ‘ब्रह्म’ है। अणुओं का समुदाय ‘ब्रह्मांड’। प्राणी और पदार्थों की सत्ता दीखती तो स्वतंत्र है; पर वस्तुतः वह एक ही विशाल महाप्राण के अनंत संसार से अपना पोषण प्राप्त करते हैं, उसी में उगते, बढ़ते और बदलते रहते हैं।

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